26/09/2025
पूजा-पाठ, मंदिर जाना, जप-तप, दान आदि का महत्व तभी होता है जब इंसान का आचरण (चरित्र और कर्म) भी सही हो।
शास्त्रों में साफ कहा गया है कि अगर इंसान बाहर से पूजा करता है लेकिन भीतर से गलत कर्म (जैसे पत्नी के होते हुए भी बार-बार अन्य स्त्रियों से संबंध रखना) करता है, तो वह पाप पूजा से स्वतः खत्म नहीं होता।
भगवान की भक्ति तभी फल देती है जब मन और कर्म दोनों पवित्र हों।
👉 आध्यात्मिक नियम –
पूजा का असर तभी होगा जब इंसान अपने दोषों को सुधारने का प्रयास करे।
सिर्फ मंदिर जाना और मंत्र बोलना पाप का प्रायश्चित नहीं है, बल्कि सच्चा पश्चाताप, संयम और सुधार जरूरी है।
👉 नैतिक दृष्टि से –
विवाह के बाद पत्नी के अतिरिक्त संबंध रखना न तो सामाजिक रूप से स्वीकार्य है, न ही धार्मिक रूप से।
इससे पत्नी के साथ विश्वासघात होता है और परिवार पर बुरा असर पड़ता है।
👉 निष्कर्ष –
केवल पूजा-पाठ से पाप धुलते नहीं हैं।
पाप तभी कम होता है जब व्यक्ति गलती को छोड़े, पश्चाताप करे और आगे से संयम व निष्ठा रखे।
🔑 यानी भगवान का दरबार बहुत विशाल है, लेकिन वहाँ सच्चाई और आचरण ज्यादा महत्व रखते हैं, सिर्फ बाहरी पूजा नहीं।