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शिवरात्रि के बाद कांवड़ यात्रा छोड़ गई कई सवाल!इस साल की महाशिवरात्रि बीत चुकी है, और इस दौरान कांवड़ यात्रा ने उत्तर भा...
26/07/2025

शिवरात्रि के बाद कांवड़ यात्रा छोड़ गई कई सवाल!
इस साल की महाशिवरात्रि बीत चुकी है, और इस दौरान कांवड़ यात्रा ने उत्तर भारत के भक्तों के बीच गहरी आस्था और उत्साह जगाया। हर साल की तरह, लाखों श्रद्धालु गंगा जल लेकर अपने शिवालयों की ओर प्रस्थान करते हैं, जो तप, त्याग और भक्ति का प्रतीक है। लेकिन इस बार यात्रा के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं और सामाजिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, जिन्होंने इस पावन परंपरा के स्वरूप और भावार्थ पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कांवड़ यात्रा: भक्ति का महापर्व या प्रदर्शनी?
कांवड़ यात्रा सदियों से शिवभक्तों की आस्था का प्रतीक रही है। जल लेकर अपने भोलेनाथ के मंदिर में जलाभिषेक करना और कठिनाइयों को सहकर यात्रा पूरी करना भक्ति और तपस्या का रूप है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी में इसे भक्ति से ज़्यादा ‘शक्ति प्रदर्शन’ और ‘इवेंट’ की तरह देखने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
इस बार कांवड़ यात्रा के दौरान तेज़ डीजे, बाइक रैलियां, भगवा झंडों के साथ सड़कों पर जमावड़ा, और कई जगहों पर सार्वजनिक अनुशासन की कमी देखने को मिली। इस वजह से आम जनता को असुविधा हुई, यातायात बाधित हुआ, और प्रशासन की व्यवस्था चुनौतीपूर्ण साबित हुई।
कई बार श्रद्धालु पूजा के बजाय शोर-शराबे और भिड़ंत में उलझे नजर आए। इस तरह की घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि कहीं यह यात्रा भक्ति से अधिक प्रदर्शन का माध्यम तो नहीं बन रही।
झगड़े और अनुशासन की चुनौतियां
इस साल हरियाणा और आसपास के राज्यों से कई स्थानों पर कांवड़ियों के बीच और कांवड़ियों तथा स्थानीय लोगों के बीच मारपीट की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। कहीं सड़कें जाम रहीं, कहीं दुकानदारों से अनावश्यक विवाद हुए। कुछ स्थानों पर जबरन दुकानें बंद करवाई गईं या अम्बुलेंस की आवाजाही बाधित हुई।
ऐसे मामलों में ज्यादातर युवा शामिल थे, जो सोशल मीडिया पर अपनी ‘धार्मिक यात्रा’ के वीडियो वायरल कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते थे। कभी-कभी ये वीडियो आपसी विवाद और ग़लतफहमियों को और बढ़ावा देते दिखे।
सोशल मीडिया पर जाति आधारित टिप्पणियां
इस बार एक और नकारात्मक पहलू यह रहा कि सोशल मीडिया पर कांवड़ यात्रा को लेकर जातिगत टिप्पणियों का प्रवाह देखने को मिला। कुछ लोग यह बताने लगे कि इस यात्रा में कौन-कौन सी जाति के लोग शामिल हैं, और इस पर राजनीतिक या सामाजिक बहसें छिड़ गईं।
यह प्रवृत्ति बेहद चिंताजनक है क्योंकि शिव की भक्ति का सार ही समावेश और एकता है। शिव की पूजा में जाति, वर्ग, या सामाजिक पहचान की कोई सीमा नहीं होती।
जब धार्मिक आयोजन जाति आधारित टिप्पणी और भेदभाव का मंच बन जाते हैं, तो समाज में विभाजन और कटुता बढ़ती है। इसके खिलाफ समाज के सभी वर्गों को आवाज़ उठानी होगी।
भक्ति का सच्चा स्वरूप और सकारात्मक पहलू
फिर भी, पूरी यात्रा को नकारात्मक कहना उचित नहीं होगा। कई जगहों पर कांवड़ सेवा शिविरों ने नि:शुल्क भोजन, चिकित्सा, और सुरक्षा व्यवस्था का उत्कृष्ट काम किया।
कुछ श्रद्धालु सादगी और संयम के साथ यात्रा करते दिखे, बिना शोर-शराबे के, केवल शिवभक्ति में लीन। यह वही भावना है जो कांवड़ यात्रा की असली आत्मा है।
युवा स्वयंसेवकों ने भी प्रशासन के साथ मिलकर ट्रैफिक कंट्रोल और सफाई में सहयोग दिया, जो काबिले तारीफ है।
आगे का रास्ता: संतुलित दृष्टिकोण की ज़रूरत
कांवड़ यात्रा को सिर्फ धार्मिक उत्सव के तौर पर नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए।
प्रशासन को चाहिए कि वह कड़ी सुरक्षा, साफ-सफाई, और यातायात व्यवस्था सुनिश्चित करे ताकि श्रद्धालु सुरक्षित और आरामदायक यात्रा कर सकें।
साथ ही, धार्मिक और सामाजिक नेताओं को युवाओं को भक्ति का सही मायना समझाने पर ज़ोर देना चाहिए-कि भक्ति का मतलब शक्ति प्रदर्शन या शोहरत नहीं, बल्कि संयम, सहिष्णुता और सेवा है।
निष्कर्ष: कांवड़ यात्रा के पीछे के सवाल
इस साल की कांवड़ यात्रा ने कई सकारात्मक पहलू तो दिखाए, लेकिन कुछ ऐसे सवाल भी छोड़े हैं जिनका जवाब देना जरूरी है:
क्या भक्ति के इस पावन आयोजन को युवा ‘धार्मिक इवेंट’ के रूप में देखने लगे हैं?
क्या सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने इसे जाति और पहचान के संघर्ष का मंच बना दिया है?
और सबसे अहम — क्या हम कांवड़ यात्रा को उसकी मूल भावना से दूर होते देख रहे हैं?
महाशिवरात्रि तो बीत चुकी है, पर इन सवालों का जवाब हमें मिलकर, समाज और प्रशासन के सहयोग से देना होगा। तभी यह यात्रा फिर से अपनी पुरानी पवित्रता और सम्मान हासिल कर पाएगी। ✍️ Deepika Lather Julana

25/07/2025

CM ने सड़कों के नाम पर किया मज़ाक ! Shamsher Singh Gogi

हरियाणा, जो कभी देश के कृषि क्षेत्र में मिसाल माना जाता था, आज अपने किसानों की बढ़ती परेशानियों के कारण चिंताजनक हालात म...
25/07/2025

हरियाणा, जो कभी देश के कृषि क्षेत्र में मिसाल माना जाता था, आज अपने किसानों की बढ़ती परेशानियों के कारण चिंताजनक हालात में पहुंच चुका है। खाद की सबसे जरूरी किस्मों में से एक डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) की भारी कमी और काला बाजार में इसकी बढ़ती कीमतों ने किसानों की परेशानी को बढ़ा दिया है। इसके साथ ही, घटिया और की बीजों की वजह से चावल की फसलें ठीक से नहीं उग पा रही हैं, जिससे किसानों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है।
पिछले कई वर्षों से यह समस्या जारी है, लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस और प्रभावी कदम नजर नहीं आए हैं। इस बार खासकर जींद जिले के दब्लैन, सच्चा खेड़ा और दानौदा के किसान इस संकट का सामना कर रहे हैं। खाद न मिलने और खराब बीजों के कारण उनकी फसलें नष्ट हो गईं, और कई किसानों को पहले से बोए हुए खेतों में ट्रैक्टर चलाकर फसलें मिटानी पड़ीं। यह उनके लिए केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि मेहनत और सपनों का भी बड़ा नुकसान है।
सरकारी आपूर्ति ठप होने के चलते किसानों को काला बाजार का सहारा लेना पड़ रहा है, जहां डीएपी खाद की कीमत ₹2000 प्रति बोरी तक पहुंच गई है। यह सामान्य कीमत से कई गुना ज्यादा है और किसानों की आर्थिक तंगी को और गहरा रहा है। इस स्थिति से साफ जाहिर होता है कि सरकार की योजनाएं जमीन पर सही तरीके से लागू नहीं हो रही हैं। घटिया बीजों की सप्लाई ने फसलों की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है। सही और गुणवत्तापूर्ण बीज न मिलने से फसलें कमजोर और अस्वस्थ हो रही हैं, जिससे उत्पादन कम हो रहा है और किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। इसके चलते कई किसान कर्ज के बोझ तले दब गए हैं और उनकी मानसिक स्थिति भी खराब हो रही है।
यह सब मिलकर किसान आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि का कारण बन सकता है। बढ़ता कर्ज, घटती फसल उपज और निराशा ने किसानों के जीवन को कठिन बना दिया है।
इस वक्त सरकार के लिए जरूरी है कि वह खाद और बीजों की समय पर और उचित मात्रा में आपूर्ति सुनिश्चित करे। साथ ही, काला बाजार पर सख्त कार्रवाई हो ताकि किसानों को उनकी जरूरतें सही दामों पर उपलब्ध हो सकें। गुणवत्तापूर्ण बीजों की सप्लाई पर कड़ाई से नियंत्रण भी आवश्यक है।
किसान देश की कमर हैं, और उनकी खुशहाली के बिना देश की प्रगति संभव नहीं। इसलिए अब वक्त आ गया है कि हरियाणा सरकार किसानों की इन समस्याओं को गंभीरता से ले और उनके लिए ठोस, जवाबदेह और प्रभावी कदम उठाए। क्योंकि जब किसान हारेगा, तो देश भी पीछे रह जाएगा।
✍️ Deepika Lather Julana दीपिका लाठर

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