26/05/2025
पुराना बनाम नया राजपूत समाज
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१. पुराना राजपूत समाज कुटुंब और गोत्र आधारित भाई चारे पर आधारित था वर्तमान में एकल परिवार और कुटुंब में ईर्ष्या और गोत्र में राजा महाराजा, जागीरदार , ठाकुर , नेता, व्यवसायी , अफ़सर आम राजपूत, बड़े छोटे राजपूत, ऊंच नीच में टुकड़े टुकड़े है । परिवार में भाई भी ईर्ष्यालु और स्वार्थों के लिए एक दूसरे से घृणा करते हैं क्या ऐसा समाज एक होकर कभी अपने दुश्मनों से लड़ सकता है ।अगर समाज में भाईपा बराबरी और एकता नहीं है तो समाज कभी भी लड़ नहीं सकता है ।
२. पहले समाज में आत्मसम्मान,चरित्र और प्रतिशोध का महत्व होता था । मगर अब सिर्फ पैसा महत्वपूर्ण है । पैसे और पद पर होने पर चरित्र और कायरता को पूरा अनदेखा कर दिया जाता है ।प्रतिशोध लेने वाले और बागी को कोई सहयोग नहीं देता है । कोर्ट केसों में वह और उसका परिवार बर्बाद हो जाता है । इसलिए अब दुल्हन के अपहरण और परिवार में हत्या तक हो जाने पर भी मन मसोस कर बैठ जाते हैं ।इतिहास और पूर्वजों के जातीय अपमान पर कायरों की तरह चुप बैठ जाने से समाज का आत्मबल रसातल में जा रहा है ।
३.पहले राजपूत समाज में सबसे पहले निडरता सिखाई जाती थी मगर अब बच्चों को चापलूसी सिखाई जाती है । कितने भी चरित्रवान अनुभवी और बुजुर्ग होने पर भी अगर वे आर्थिक रूप से कमजोर और महत्वपूर्ण पद पर नहीं है तो उन्हें बच्चों से धोक नहीं दिलवाई जाती हैं जबकि उनकी आधी उम्र के कथित बड़े नेताओं से उनकी बराबरी की सी उम्र के लोग आशीर्वाद लेने के लिए लाइन लगाते हैं । बच्चों में इस तरह ग़लत तरीकों से सफलता हासिल करने और ग़लत आदर्श से प्रेरणा लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है ।क्योंकि चरित्र योग्यता और अनुभव की जगह सफलता और धन जल्दी से लोगों को कदमों में झुका रहा है । इसलिए समाज चरित्र और मूल्यों से विहीन होता जा रहा है ।
४. पहले समाज गोत्र के लिए सेवा और त्याग,योग्यता वीरता,आत्मसम्मान, चरित्र को कुटुंब गोत्र और पूरे समाज में बड़े सम्मान से देखा जाता था अब सिर्फ पैसे और पद को सबसे अधिक सम्मान से देखा जाता है ।
५. पहले कृतज्ञता पीढ़ियो तक निभाई जाती थी । सात पीढ़ी तक वंशज पूर्वजों का एहसान उतारने के लिए बलिदान तक देने को तत्पर रहते थे ।मगर अब यूज़ एंड थ्रो की नीति अपनाई जाती है । मतलब निकालने तक मान दिया जाता है ।मतलब निकलते ही कमियाँ गिनाई जाती है ।
६. पहले राजपूत के पास राज हो न हो, पैसा हो न हो, इज्जत, चरित्र अपनापन और संतोष जरूर होता था । वचन बद्धता, कृतज्ञता, मृत्यु को सहज भाव से स्वीकारना, सम्मान देकर सम्मान लेना जैसे महान चारित्रिक गुण परिवार के संस्कारों में गहरे उतरे हुए थे ।अब पाश्चात्य भौतिकवाद से प्रभावित परिवार इन गुणों से दूर दूर तक वास्ता नहीं रखते हैं । अब तो लोग बंगलों कोठियों और गाड़ियों से प्रतिष्ठा को मापते हैं ।चाहे वह सब चारित्रिक पतन मक्कारी,झूठ,फरेब,अन्याय से ही क्यो न हासिल किया गया हो ।मौत से तो इतना डरते है कि करोड़ो रुपये खर्च करके आईसीयू में मौत आने तक सड़ते रहते है ।जबकि पहले संघर्ष प्रधान जीवन था और बिस्तर में मौत को बुरा और अपमान जनक माना जाता था ।संतोष की जगह ईर्ष्या और कुंठा ने ले ली है । सगे भाई की उन्नति पर भी हृदय दग्ध हो जाता है । सहन शीलता तो समाप्त हो चुकी है ।
७. पहले जब कोई लड़ाई होती थी तो पूरा गोत्र एक होकर लड़ता था । राजा या गोत्र का लीडर सबसे आगे लड़ता था ।दुश्मन भारी होता था तो छापमार तरीके से लंबी लड़ाई लड़ी जाती थी । आज के नेता युवाओ को आगे करके उन्हें मुकदमों में उलझा देते हैं और ख़ुद टिकट पद हासिल करने का सौदा करते हैं और समझौते पर पैसा खा लेते हैं ।नेता हमेशा पीछे रहते हैं छिपे रहते हैं और फ़ायदा उठाने में लगे रहते हैं ।इससे समाज में चरित्र हीन, मूल्यविहीन और अनैतिक लीडरशिप हावी हो रही है जो समाज को पतन के गर्त में ले जा रही है ।
८. पहले आपसी रिश्ते करने में खानदान चरित्र व्यवहार और लड़के लड़की की योग्यता देखी जाती थी । अब सिर्फ़ पैसा, बंगला, गाड़ी, दहेज,सरकारी नौकरी ,पद देखा जाता है । परिवार का व्यवहार,खानदान,चरित्र को अक्सर इग्नोर किया जाता है ।आर्थिक रूप से साधारण होना आज अभिशाप है । साधारण घर के योग्यतम व्यवहार कुशल चरित्रवान लड़के की जगह बेटियाँ उन बड़े घरों में देने का प्रचलन बढ़ा है जो ऊँचे और बंद दरवाजों के पीछे काली अँधेरी दुनियाँ में नैतिक पतन की सड़न में बदबदाते है ।झूठे तड़क भड़क,घमंड,कुंठा स्वार्थ,ओछापन आज की ख़ानदानी योग्यताएं मानी जाती है ।ऐसे रिश्ते बाद में फिर तलाक पुनर्विवाह और बर्बाद परिवार को ढोते रहते है ।
९. पहले परिवार गोत्र में कोई सपूत और योग्य निकलता था तो वह सबके लिए चहेता और माननीय बन जाता था । सब उसे अपनापन और प्रेम से व्यवहार करते थे । उसको प्रशंसा की जाती थी ।
अब उसका लगभग बहिष्कार और आलोचना की जाती है । बाक़ी गाँव और भाई चारा उसको एक साथ मिलकर टारगेट बनाता है । ईर्ष्या और कुंठा से जलन भरा व्यवहार करता है । जिससे वह व्यक्ति दूरी बनाने को मजबूर कर दिया जाता है ।इस तरह से कुटुंब परिवार और व्यक्ति सबकी इज्जत घटती है ।
१०. पहले राजपूत अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ लड़ते रहते थे ।एक आम राजपूत इतना आत्मसम्मान रखता था कि राजा की गलती पर भी टोकने और लड़ने की हिम्मत रखता था । इससे समाज के दूसरे वर्गों में उनका महत्व बना रहता था ।आज हथियारों की लड़ाई का समय नहीं है । मगर लोकतंत्र में संवैधानिक लड़ाई और अन्याय भ्रष्टाचार और शोषण के विरुद्ध संवैधानिक हथियारों से लड़ाई में कोई रोक नहीं रहा है । कोर्ट, शिक्षा,व्यवसाय,आरटीआई, चुनाव में खड़ा होना, सोशल मीडिया पर आलोचना , नरेटिव की लड़ाई करना आदि कई रास्ते हैं जिन से आज भी लड़ा जा सकता है । मगर आज का राजपूत इतना कायर है कि कोई भी लड़ाई उसके बस की नहीं है ।जैसे नाकारा पति घर की लुगाई से झगड़ा कर सकता है वैसे ही राजपूत केवल अपने परिवार,भाइयों,कुटुंब और समाज से ही लड़ सकता है ।
-Aniket_Mudhad