
12/08/2025
कंचे की वो बाज़ी, जहाँ न इनाम था, न हार का मलाल!
धूलभरी ज़मीन पर उँगलियों की टेढ़ी चाल और आँखों में जीत की चमक — बस कंचे की दुनिया ही तो थी हमारी असली ‘बैटलग्राउंड’!
ना मोबाइल था, ना स्क्रीन टाइम... फिर भी हर शाम गांव की पगडंडियाँ बच्चों की हँसी से गूंजती थीं।
कभी खों-खों में हारते, तो कभी कंचा सीधे निशाने पर मार कर “बाज़ी पलट” देते थे।
बचपन की वो निश्छल मस्ती, आज बस यादों की तस्वीर बनकर रह गई है...
#गाँवनामा ✍️ Vishnu Shukla
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