31/05/2025
उन्होंने मुघलो के तोड़े हुए मंदिरों, देवस्थानों का जीर्णोद्धार करवाया ! सभी पवित्र तीर्थों पर यात्रियों की सुविधाओं हेतु उनके बनवाये घाट,अन्न छत्र,सड़कें, कुएँ,बावड़ी आदि जैसे निर्माण आज भी देखे जा सकते है...महिष्मति जैसे राज्य में उनका शासन लोक कल्याण और प्रजा वत्सलता का पर्याय रहा !
उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। भगवान शकंर की वह बड़ी भक्त थी। बिना उनके पूजन के मुंह में पानी की बूंद नही जाने देती थी..!!
सारा राज्य उन्होने शिव चरणों में अर्पित कर रखा था और उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी।
"संपति सब रघुपति के आहि"—सारी संपत्ति भगवान की है, इसका राजा भरत के बाद प्रत्यक्ष और एकमात्र उदाहरण शायद वही थीं। राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नही लिखती थी। नीचे केवल "श्रीशंकर" लिख देती थी..
उनके रूपयो पर शिवलिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसो पर नंदी का। तब से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने राजा आये सबकी राजाज्ञाएं जब तक श्रीशंकर की आज्ञा के बिना जारी नही होती, तब तक वह राजाज्ञा नही मानी जाती थी ओर उस पर अमल नही होता था..
यह लोकमाता पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर के पुण्य सद्कर्मों, धर्म के प्रति उनकी निष्ठा का ही प्रतिफल है कि तीन शताब्दियों के बाद भी समाज उनका आदर्श साथ लेकर चलता है, सनातनी अपनी बच्चियों को उनकी तरह बनने की प्रेरणा देते है...जीवन की इससे अधिक उपलब्धि क्या ही होगी ??
राजमाता, धर्मरक्षिका पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर को आज उनके अवतरण दिवस पर सादर नमन वंदन पहुँचे... ये देश आपका ही है माँ.. आपके आशीर्वाद की छाँव हम सभी पर बनी रहें !! 🌼🙏🚩