12/09/2025                                                                            
                                    
                                                                            
                                            "पार करना है नदी को तो उतर पानी में,
बनती जाएगी ख़ुद एक रह गुज़र पानी में।
सैले-ग़म आँखों से सब-कुछ न बहा ले जाए,
डूब जाए न ये कभी ख़्वाबों का नगर पानी में।"
       अपने जन्मभूमि से कर्मभूमि तक पहुंचने की इस यात्रा में गांव की पगडंडियों से लेकर नेशनल हाईवे तक के सफर में एक सफ़र ये भी किसी चुनौतियों से कम नहीं है। बचपन से ही जहां ज्यादा पानी देखकर पीछे हटना और बाढ़ जैसे हालात देखकर दूर से ही मां सरयू को प्रणाम करना जिंदगी का एक अहम हिस्सा था कारण यह कि तैरना आना न के ही बराबर था।
        वैसे तो मेरा आना जाना अक्सर सड़क मार्ग से ही होता रहा है भले ही समय कुछ ज्यादा ही लग जाए,फिर भी एक दिन मेरे हृदय प्रिय अनुज सहायक अध्यापक श्री रामेंद्र प्रताप जी ने नदी पारकर चलने का सुझाव दिया तो मेरी तरफ से तुरंत जवाब न में ही निकला,फिर क्या.....अरे भैया हमहूं तव आपके साथे ही रहब फिर कउन चिंता।.....इतना सुनकर मानो हिम्मत मिल गई हो क्योंकि अटूट विश्वास जो है भाई पर।
       जहां हर दिन शिक्षकों की टोली नाव में बैठकर नदी पारकर स्कूलों में पढ़ाने जा रही है। वहीं बारिश के दिनों में व बाढ़ आने पर नदी जहां अपने उफान पर होती है,वहीं कोई भी रास्ता ऐसा अछूता नही जहां अच्छा खासा जल भराव न हो, फिर भी शासन की मंशानुरूप शिक्षकों का जान की बाजी लगाकर स्कूलों तक पहुंचना कोई शौक नहीं, बल्कि मजबूरी बन जाती है।
       आखिर गांवों में शिक्षा की अलख जगाने की जो जिम्मेदारी हम शिक्षकों ने ले रखी है, आलम ये है कि चलने के लिए न तो ठीक से रास्ता और न ही नदी नाले पार करने के लिए ठीक से पुल पुलिया। कहने के लिए तो इन इलाकों में स्कूल खोले तो गए हैं लेकिन यहां शिक्षकों के रहने या फिर स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई उचित एवं सुगम संसाधन नहीं है। इन विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी ससमय स्कूल पहुंचना किसी खतरनाक चुनौतियों से कम नही है। इसका मुख्य कारण यही कि विभागीय आदेश स्थानीय और भौगोलिक परिस्थितियों की समस्याओं को दरकिनार कर केवल एक वातानुकूलित माहौल में तैयार किए जाते रहे हैं।
आप भी अपने विचार हम तक साझा कर सकते है.....शेष बाद में।
इतना कुछ होते हुए भी सिर्फ दोषी मास्टर ही क्यूं?
एक शिक्षक की कलम से........✍️✍️
     नीरज कुमार
(सहायक अध्यापक)
बाल वाटिका स्कूल