24/04/2025
संयुक्त परिवार: वह नींव जिसे भुला दिया गया है | SA News Chhattisgarh
कभी भारतीय समाज की आत्मा हुआ करता था संयुक्त परिवार। यह एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें एक ही छत के नीचे तीन-चार पीढ़ियां प्रेम, अनुशासन और सहयोग के साथ रहती थीं। घर का मुखिया पूरे परिवार के निर्णय लेता था और हर सदस्य उनका आदर करता था। वहाँ सिर्फ लोग नहीं रहते थे, वहाँ रिश्ते सांस लेते थे। संस्कारों की जड़ें गहरी थीं और शालीनता जीवन की पहचान थी।
बदलते दौर में बिखरते रिश्ते: लेकिन आज समय बदल चुका है। अब अधिकतर लोग एकल परिवार को प्राथमिकता दे रहे हैं। महानगरों की भागदौड़, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह और “स्पेस” की मांग ने हमें उस नींव से दूर कर दिया है जो कभी हमारी पहचान हुआ करती थी। रिश्तों में मर्यादा का स्थान अब “स्वतंत्रता” ने ले लिया है, लेकिन इसका असर हमारे सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर साफ नजर आता है। अब बच्चों को दादा-दादी की कहानियाँ नहीं मिलतीं, न ही सुबह आंगन में बैठकर चाय पीते हुए पारिवारिक बातें।
आधुनिकता या आत्मकेंद्रितता? हमने आधुनिकता के नाम पर आत्मकेंद्रितता को अपनाना शुरू कर दिया है। अब लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं — "मुझे क्या चाहिए", "मुझे क्या अच्छा लगता है", "मेरी लाइफ, मेरी चॉइस" — और इस प्रक्रिया में दूसरों के लिए सोचने की आदत ही छूट गई। आज किसी सड़क दुर्घटना को देखकर मदद करने की बजाय वीडियो बनाना ज़्यादा आम हो गया है। मानो मानवीयता हमारी आत्मा से निकलकर सोशल मीडिया के व्यूज़ में बदल गई हो।
संयुक्त परिवार वो मीठी छांव जो सबको सहेजती थी। संयुक्त परिवार केवल एक सामाजिक ढांचा नहीं था, वह एक जीवनशैली थी जिसमें हर उम्र के व्यक्ति को उसकी जरूरत के अनुसार भावनात्मक, आर्थिक और सामाजिक समर्थन मिलता था।
संयुक्त परिवार केवल भौतिक जीवन को संतुलन देता है, परंतु आत्मिक संतुलन और मोक्ष की राह एक सच्चे सतगुरु के बिना अधूरी है। जिस तरह संयुक्त परिवार में एक मुखिया पूरे परिवार को दिशा देता है,उसी तरह आत्मा के जीवन में तत्वदर्शी संत ही सच्चा मार्गदर्शक होता है। संत रामपाल जी महाराज सतज्ञान के माध्यम से समझा रहे हैं कि जैसे परिवार का नेतृत्व एक अनुभवी व्यक्ति करता है, वैसे ही तत्वज्ञान से युक्त संत आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करके परमधाम की ओर ले जाता है।
भगवद गीता अध्याय 15,श्लोक 4 में भी कहा गया है कि "जब तत्वज्ञान प्राप्त हो जाए, तब उस परम पुरुष की खोज करनी चाहिए और जो तत्वदर्शी संत हो,उसकी शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।"..........