11/04/2024
नारी अंर्तमन "
ये नारी जरा ठहर जाओ"एक बात तुम्हे बतलानी है"
तुम उसी धरा की मिट्टी हो,जिसकी एक,अमिट कहानी है!
हे नारी तुम ही जननी ,हो,तुमसे सौभाग्य पुरूष का है"
हे तरूवर से जो वृक्ष बना,उसको हर पल तुमने सींचा!!
तुम ही शक्ति स्वरूपा,हो,तुम ही,दुर्गा जगदम्बा हो"
हे नदियां आंचल मे बहती"तुम ही वो गंगा जमुना हो!
ममता जो हिलौरें लेती है "वो नैनो का जल पावन हो"
जहां से स्नेह बांध तोडे,बस उसी वक्त जलप्लावन हो!
एक राज छुपाकर रखा,है तुमको अब है बतलाना"
तुमसे ही है ये सृष्टि, ये बात सभी ने अब माना "
तुम ढोती हो खुद की पीडा,तुम इस जग से अंजानी हो,
जो गीत बसा हो दग्ध हृदय, बस तुम वही रवानी हो!
सुंदर यौवन से परिपूर्ण, होठो से हो तुम मधुशाला"
तुमको देखे, उच्छखलता, से,जो तन झांके वो क्या जाने!
मन से जो देखे अंर्तमन, वो ही समझे तेरे मन को"
हरदिन एक पीडा नयी मिले,फिर भी मुस्काऐ तू हरक्षण!
तू है विदुषी, तू है सीता,फिर भी तेरा जीवन रीता"
तुझसे है जुडा कर्म मार्ग, तुझसे पावन है ये गीता!
जीवन का सार तुझी से है,अबतक संसार तुझी से है"
तेरा पूजित है शक्ति स्वरूप,तूने ही तो सबकुछ जीता"
कभी भोग्या है,कभी जननी है,कही मर्यादा की वंशबेल"
कही दोषी है अपराध बिना,तेरी पीडा कोई क्या जाने!
कही राधा सी है अटल प्रेम,कही कृष्ण की अमिट कहानी है"
कही राम का गौरव है तुझसे ,फिर भी आंखो मे पानी है!
रीमा महेंद्र ठाकुर (रचनाकार)
वरिष्ठ लेखक साहित्य संपादक
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत