26/06/2025
खाराखेत का नमक सत्याग्रह
लोकार्पण समारोह हेतु सादर आमन्त्रन
27 जून 2025, पूर्वाह्न 11 बजे
दून पुस्तकालय सभागार, देहरादून
आप जरूर आना। आपका इंतज़ार है।
क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के समय जब गांधीजी डांडी यात्रा निकालकर अंग्रेजों द्वारा थोपे गए सॉल्ट एक्ट का विरोध कर रहे थे उस समय उत्तराखंड के संग्रामी क्या कर रहे थे।
तो आपको बताएं! उत्तराखंड के तीन संग्रामी तो दांडी यात्रा में शामिल थे शेष संग्रामी उत्तराखंड में ही अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। एक तरफ जहां गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च के माध्यम से साबरमति पहुँचकर नमक कानून तोड़ा और नमक बनाया वहीं उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी भी पीछे नहीं थे।
उत्तराखंड के देहरादून में भी नमक बनाकर सॉल्ट एक्ट को तोड़ा गया था। इसी महत्वपूर्ण घटना को केंद्र में रखकर डॉ लालता प्रसाद ने एक किताब लिखी है। जिसका नाम है 'खाराखेत का नमक सत्याग्रह' ।आपको बता दें खाराखेत नामक यह स्थान वर्तमान देहरादून शहर के चकराता रोड पर प्रेम नगर से उत्तर की ओर मसूरी रेंज की तलहटी में स्थित है।
देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने खाराखेत गांव के समीप नून नदी के किनारे एकत्र होकर नमक बनाया था।मसूरी के पश्चिमी पर्वतों से निकलने वाली नून नदी को इसलिए नून नदी कहा जाता है क्योंकि इस नदी में नमक पाया जाता है। नमक को उत्तराखंड में नून भी कहा जाता है।
खाराखेत का नमक सत्याग्रह पुस्तक की भूमिका लिखी है प्रोफेसर बी के जोशी ने, जो वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार के पद पर हैं। इससे पूर्व आप गिरी विकास संस्थान लखनऊ के निदेशक भी रह चुके हैं। अपनी भूमिका में जोशी लिखते हैं कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में उत्तराखंड का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अनेक अधिवेशनों व बैठकों में स्थानीय नेताओं की सक्रिय भागीदारी की वजह से उत्तराखंड के जनमानस में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की लहर तेजी से प्रसारित हुई।
महात्मा गाँधी 1915 से 1946 तक हरिद्वार, देहरादून, मसूरी, नैनीताल, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा, कौसानी व बागेश्वर जैसे स्थानों की यात्राओं में कुल आठ बार उत्तराखंड आए। महात्मा गांधी की यात्राओं ने एक तरह से स्थानीय आंदोलन को धार देने का कार्य किया।
1930 में जब समूचे राष्ट्र में नमक सत्याग्रह आंदोलन चरम अवस्था में चल रहा था तब उसे दौर में उत्तराखंड से तीन स्वतंत्रता सेनानियों ने भी नमक सत्याग्रह आंदोलन में भागीदारी करते हुए महात्मा गांधी के साथ यात्रा की थी। राम कांडपाल, भैरव दत्त और खड़क बहादुर थापा साबरमती जाकर दांडी सत्याग्रह में शामिल हुए। दांडी सत्याग्रह को लेकर नैनीताल में पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हर्ष देव ओली और इंद्र सिंह नयाल ने समर्थकों संग जुलूस निकाला और सभा आयोजित कर ब्रिटिश शासन को चुनौती देकर अपनी गिरफ्तारियां दी।
देहरादून में 20 अप्रैल 1930 को आजादी के सेनानियों ने बुधौली गांव से आगे खाराखेत के समीप नून नदी में नमक बनाकर नमक कानून को तोड़कर अपना विरोध प्रकट किया। प्रमुख रूप से इनमें पंडित नरदेव शास्त्री, महावीर त्यागी, पंडित नारायण दत्त डंगवाल सहित कुछ अन्य नेताओं की अगुवाई में बड़ी तादाद में सत्याग्रहियों ने खाराखेत पहुंचकर भागीदारी की थी। इस तरह देहरादून के खाराखेत के नमक सत्याग्रह ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्थानीय परिपेक्ष में एक अहम भूमिका का निर्वाण किया था।
खाराखेत की इस महत्वपूर्ण स्थानीय ऐतिहासिक घटना पर अब तक कोई प्रामाणिक प्रकाशित विवरण उपलब्ध नहीं है परंतु अब इस कमी को राज्य अभिलेखागार के पूर्व निदेशक डॉक्टर लालता प्रसाद ने एक तरह से पूरा कर दिया है। निश्चित तौर पर उन्होंने अपने स्तर से पर्याप्त ऐतिहासिक दस्तावेजों को अन्य साक्ष्यों को एकत्रित कर उसे लघु पुस्तिका का रूप प्रदान कर पाठकों के समक्ष रखने का एक सुंदर प्रयास किया है।
डॉ लालता प्रसाद ने इस पुस्तिका के प्रारंभ में देहरादून के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए खाराखेत के नून नदी के नमक सत्याग्रह पर सम्यक जानकारी प्रदान की है।
पुस्तिका में उन्होंने जिला देहरादून के 140 से अधिक उन नामक सत्याग्रहियों की नामावली भी दी है जिन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था। इस विवरण में उनके संक्षिप्त परिचय उन पर लगाए गए जुर्म, दंड, गिरफ्तारी की तिथि आदि शामिल है।
12 से अधिक नमक सत्याग्रहियों के दुर्लभ छाया चित्रों, न्यायालय के फैसलों की छाया प्रतियों से पुस्तिका की सार्थकता बढ़ गई है।
किताब के विषय में अपनी बात कहते हुए किताब के लेखक डॉ लालता प्रसाद लिखते हैं कि देहरादून के पछवा दून में खाराखेत नाम का एक स्थान है जो शहर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है। इस स्थान का महत्व इस कारण से है कि यहां पर सन 1930 में नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा गया था। यहां पर एक छोटी सी नदी है जिसका पानी खारा है। सन 1930 में स्थान पर इस पानी से ही नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा गया था। इस घटना की याद में यहां पर यह स्मृति स्तंभ स्थापित किया गया है। खाराखेत जंगल के मध्य में एक रमणीक स्थान है। इस स्थान के चारों ओर गांव बसे हुए हैं। खारा गांव की आबादी थोड़ी है निकट में ही दूसरे कई बड़े गांव बसे हुए हैं। जैसे चौकी, विधौली, बादशाही बाग।
इस लघु पुस्तिका का लेखन का एकमात्र उद्देश्य है कि नमक सत्याग्रह जिसने खाराखेत को केंद्र बनाकर आंदोलन का एक रूप लिया उसमें भागीदारी के रूप में समाज के सभी वर्गों का बराबर योगदान रहा है। मेरा प्रयास है कि नमक सत्याग्रह में भाग लेने वाले सत्याग्रहियों के विषय में आम जनमानस को व्यापक व्यापक जानकारी मिल सके। देहरादून के ग्रामीण व शहरी जनमानस नमक आंदोलन के लिए जागरूकता के कारण सैकडों नमक सत्याग्रही किस तरह जेल गए। उनके परिवार जन किस तरह पीड़ित रहे। उन्होंने अपार कष्टों का सामना करते हुए इस नमक सत्याग्रह को सफल बनाया। यह इस पुस्तिका में वर्णित है।
इस पुस्तिका का पहला अध्याय है 'ऐतिहासिक परिवेश में देहरादून और खाराखेत'। जिसमें व्यापक अर्थों में राष्ट्रीय परिपेक्ष में नमक सत्याग्रह के बारे में लिखते हुए उत्तराखंड प्रदेश और जो देहरादून में 'नमक सत्याग्रहियों का खाराखेत की ओर कूच'। उसके बाद तीसरा अध्याय है 'नमक सत्याग्रह की राजनीति और सरकार द्वारा उत्पीड़न'। जिसमें नमक देहरादून के नामक सत्याग्रहों पर का हवाला दिया गया है देहरादून में नमक सत्याग्रह नमक कानून को तोड़ने का जो सिलसिला है वह लंबा चला और मार्च से शुरू देहरादून में नमक सत्याग्रह शुरू हुआ और यह जून तक चलता रहा। इस तरह किताब में कुल नौ अध्याय हैं।
देहरादून में जिन लोगों के नेतृत्व में जिन संग्रामियों के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह चला गया उनमें प्रमुख थे नरदेव शास्त्री, रामस्वरूप नवकोटी, गौतम देव विद्यालंकर, गुरु प्रसाद शर्मा, लाला राम, कृष्ण दत्त, श्याम लाल गुप्त, मित्र सेन जैन, शर्मदा त्यागी और सोमेंद्र मोहन मुखर्जी।
देहरादून से 11 जत्थे जो नमक सत्याग्रह के लिए खाराखेत गए थे जिनमें हुलास वर्मा का जत्था, रामस्वरूप नवकोटी का जत्था, चौधरी बिहारी लाल का जत्था, स्वामी केवलानंद जी का जत्था, सोमेंद्र मोहन मुखर्जी का जत्था, सिखों का जत्था, वब्बेन वेग का जत्था, गुरुखों का जत्था, डोई वाला का जत्था, नौजवानों का जत्था और मोहल्ला झंडे वाले का जत्था। तो इस तरह से 10 लोगों ने देहरादून में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया था और पूरे देहरादून जनपद से कुल 11 जत्थे। अलग-अलग समय पर खाराखेत पहुंचे थे और उन्होंने वहां पर गैर कानूनी तरीके से नमक बनाया व नमक कानून का उल्लंघन किया। दिलचस्प बात यह है कि इसमें से बहुत सारे लोगों को 6 माह तक की सजा सुनाई गई और बहुत भारी जुर्माना उन्हें लगाया गया। पहले नंबर पर है नरदेव शास्त्री जी जिन्हें शाल्ट एक्ट के तहत 6 महीने की सजा दी गई थी। 1936 में यह गिरफ्तार किए गए थे इसी तरह से 6 महीने की सजा पाने वाले जो है लोगों में शामिल थे महावीर त्यागी, बिहारी लाल, नरेंद्र डंगवाल, स्वामी आनंद, चौधरी उल्हास वर्मा, रामस्वरूप नवकोटी, बालकृष्ण, सोमेंद्र मुखर्जी, विद्या दत्त, ब्रह्मदत्त शर्मा सहित कम से कम लगभग आधे लोगों को 6 माह की सजा हुई।कुछ लोगों को तीन माह की सजा हुई और इतना ही नहीं भारी भरकम जुर्माना के रूप में 25 से ₹50 तक संग्रामियों से वसूल किया गया।
खूबसूरत बात है कि इस किताब में सेनानियों के जिनका संबंध देहरादून के नमक सत्याग्रह से था उनके चित्र भी दिए हैं जिनमें शर्मदा त्यागी, चौधरी उल्हास वर्मा, सोमेंद्र मोहन मुखर्जी, रामस्वरूप नव कोटी सहित अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के चित्र इस किताब में दिए गए हैं और इसके साथ ही इस किताब में अनेक दस्तावेज भी दिए गए हैं। खारा खेत सत्याग्रह के प्रमुख घटनाक्रम भी एक पृष्ठ में लेखक द्वारा दिये गए हैं। जिसमें कि13 बिंदु है जिसका पहला बिंदु है लाहौर कांग्रेस अधिवेशन 1929 फिर दूसरा इसका बिंदु है 26 जनवरी 1930 स्वतंत्रता दिवस फालतू लाइन देहरादून के मैदान में झंडा अधिवेशन।
इस पुस्तक को समय साक्ष्य और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र ने मिलकर प्रकाशित किया है।
किताब के लेखक डॉक्टर लालता प्रसाद लालता प्रसाद का जन्म 30 जून 1958 को खौपुर, तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, उत्तर प्रदेश में हुआ है। लखनऊ विश्वविद्यालय से मध्यकालीन एवं आधुनिक भारतीय इतिहास से वर्ष 1980 से एमए और 1983 में इन्होंने एचडी की उपाधि प्राप्त की है। 1986 में उन्होंने अभिलेख विज्ञान में डिप्लोमा किया है।1988 में एलएलबी की उपाधि भी इन्होंने प्राप्त की है। प्रसाद जी की अब तक जो प्रकाशित पुस्तक हैं उनमें समाचार पत्रों में लोकमत का विकास, भारतीय पुनर्जागरण में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय का योगदान यह दो प्रमुख पुस्तक शामिल हैं। आप राज्य अभिलेखागार उत्तराखंड देहरादून के में निदेशक पद से सेवानिवृत हुए हैं। कला, संस्कृति और इतिहास पर निरंतर लेखन कार्य करते रहते हैं। आकाशवाणी अल्मोड़ा सहित आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से इनके आलेखों का प्रसारण होता रहता है। इतिहास एवं इतिहास लेखन परिषद वाराणसी, साउथ इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, इंडियन हिस्ट्री एंड कल्चरल सोसायटी, इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस, राष्ट्रीय अभिलेख समिति राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार नई दिल्ली, इंडियन हिस्टोरिकल रिकॉर्ड कमेटी और राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार नई दिल्ली के यह सदस्य हैं।
इस किताब का संपादन दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के रिसर्च एसोसियेट चंद्रशेखर तिवारी द्वारा किया गया है।
आपको यह किताब जरूर पसंद आयेगी। यह उत्तराखंड के इतिहास पर नये द्वार खोलेगी। किताब का मूल्य ₹125 है। सीधे मंगाने के लिए 7579243444 पर संपर्क कीजियेगा।