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27/06/2025

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अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कहानियांसमाज की चाल को परखने वाले कथाकार अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कहानियों के इस संकलन में आपको आ...
26/06/2025

अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कहानियां

समाज की चाल को परखने वाले कथाकार अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कहानियों के इस संकलन में आपको आम समाज की धड़कन सुनाई देगी।

अनवर सोहेल भारत के ऐसे चुनिंदा हिंदी कथाकारों में शामिल हैं जिनकी लेखनी सदैव आम आदमी के हक में खड़ी रही है। अनवर सुहैल ने जितना भी साहित्य लिखा, कविता, कहानी, उपन्यास व लेखों के माध्यम से भी जो भी कहा उस सबमें आम आदमी ही उसके केन्द्र में रहा है। अनवर सुहैल का साहित्य सीधे आम लोगों से संवाद करती हैं।

अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कथाओं का संकलन 2024 में समय साक्ष्य से प्रकाशित हुआ है। एक मौन साधक की भांति जैसे अनवर सुहैल का व्यक्तित्व है इनकी किताब भी लगभग वैसे ही धीरे-धीरे शांति से अपना सफर तय कर रही है। अनवर सुहैल साहित्य की मुख्यधारा से छिटका दिए गए उस जनमानस की आवाज हैं जिनकी आवाज को सुनना अब कथाकारों ने भी लगभग बंद कर दिया है। अनवर सुहैल के पात्र समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके सवाल अब हमारी राजनीति और शासन सत्ता की प्रमुखता नहीं है।

अनवर सुहैल की कथाओं में ट्रेन की बोगियों के भीतर मचने वाली समाज की खदबदाहट, ट्रेन में सफर कर रहे युवाओं की बैचेनी, साथ-साथ चलते रोजी रोजगार के सवाल। अनवर सुहैल की कथा नीला हाथी में एक अहीर हिन्दु को मजार के पीर बाबा की सवारी आने का दृश्य है। ठीक वैसा ही जैसा गढ़वाल के बहुत से हिस्सों में आज भी सैयद की जागर लगाई जाती है। इस कहानी में भी अनवर सुहैल के पात्र आम जीवन की जद्दोजहद और उसकी विडम्बनाओं से जूझ रहे हैं।

प्रतिनिधि कथाओं के इस संग्रह में अनवर सुहैल की तेरह कहानियां संकलित हैं। इस संग्रह में अनवर सुहैल की शाकिर उर्फ..., नीला हाथी, ग्यारह सितंबर के बाद, गहरी जड़ें, दहशतगर्द, पीरु हज्जाम उर्फ उर्फ़ हज़रत जी, कुंजड़ कसाई, फत्ते भाई, नरगिस, डिमेंशिया, होलोकास्ट, ट्यूबलाईट और जैसे हो ही ना वजूद! क्हानियां शामिल हैं। अनवर सुहैल की सभी कहानियों में आपको गांव-कस्बों के दृश्य बारीकि के साथ मौजूद मिलंेगे। आर्थिक उदारीकरण के बाद हमारे गांव जिस तरह से बदल रहे हैं उसे अनवर सुहैल बड़ी खूबी से पकड़ते हैं।

अनवर सुहैल की सभी सभी कथाएं आम जनमानस को केंद्र में रखकर लिखी गई है। रेल, बीड़ी, सिगरेट, पान, तंबाकू, खाना-पिना, मंदिर, मस्जिद, मजार आदि आदि शब्द अनवर की कहानियों में घूमते हैं। यह इस बात की गवाही है कि अनसर सुहैल की कहानियां आम आदमी के इर्द गिर्द ही रची-बसी हैं।

सदैव आम जन के पक्ष में खड़े रहे अनवर सुहैल की कथाओं में आपको आर्थिक उदारीकरण के बाद का वह समाज दिखाई देगा जो जो खेती किसानी से दूर हो रहा है और शहरों की ओर मुड़ रहा है।
अनवर सुहैल की प्रतिनिधि कहानियों का यह संग्रह आपको अमेजाॅन पर मिल जाएगा। इसे सीधे प्रकाशक से भी मंगाया जा सकता है।

9 अक्टूबर 1964 को जन्मे अनवर सुहैल अब सेवानिवृत्त हैं और पूर्णकालिक साहित्य सृजन में लगे हैं। आपके दो उपन्यास पहचान और मेरे दुःख की दवा करे कोई। दो कथा संग्रह कुंजड़-कसाई व गहरी जड़ें एवं बिलौटी तथा तीन कविता संग्रह गुमशुदा चेहरे, थोड़ी सी शर्म दे मौला तथा कुछ भी नहीं बदला प्रकाशित हो चुके हैं।

खारा खेत का नमक सत्याग्रह
26/06/2025

खारा खेत का नमक सत्याग्रह

खाराखेत का नमक सत्याग्रह .............. क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के समय जब गांधीजी डांडी यात्रा निकालकर अंग्रेजों ....

खाराखेत का नमक सत्याग्रहलोकार्पण समारोह हेतु सादर आमन्त्रन27 जून 2025, पूर्वाह्न 11 बजे दून पुस्तकालय सभागार, देहरादूनआप...
26/06/2025

खाराखेत का नमक सत्याग्रह

लोकार्पण समारोह हेतु सादर आमन्त्रन
27 जून 2025, पूर्वाह्न 11 बजे
दून पुस्तकालय सभागार, देहरादून

आप जरूर आना। आपका इंतज़ार है।

क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के समय जब गांधीजी डांडी यात्रा निकालकर अंग्रेजों द्वारा थोपे गए सॉल्ट एक्ट का विरोध कर रहे थे उस समय उत्तराखंड के संग्रामी क्या कर रहे थे।

तो आपको बताएं! उत्तराखंड के तीन संग्रामी तो दांडी यात्रा में शामिल थे शेष संग्रामी उत्तराखंड में ही अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। एक तरफ जहां गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च के माध्यम से साबरमति पहुँचकर नमक कानून तोड़ा और नमक बनाया वहीं उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी भी पीछे नहीं थे।

उत्तराखंड के देहरादून में भी नमक बनाकर सॉल्ट एक्ट को तोड़ा गया था। इसी महत्वपूर्ण घटना को केंद्र में रखकर डॉ लालता प्रसाद ने एक किताब लिखी है। जिसका नाम है 'खाराखेत का नमक सत्याग्रह' ।आपको बता दें खाराखेत नामक यह स्थान वर्तमान देहरादून शहर के चकराता रोड पर प्रेम नगर से उत्तर की ओर मसूरी रेंज की तलहटी में स्थित है।

देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने खाराखेत गांव के समीप नून नदी के किनारे एकत्र होकर नमक बनाया था।मसूरी के पश्चिमी पर्वतों से निकलने वाली नून नदी को इसलिए नून नदी कहा जाता है क्योंकि इस नदी में नमक पाया जाता है। नमक को उत्तराखंड में नून भी कहा जाता है।

खाराखेत का नमक सत्याग्रह पुस्तक की भूमिका लिखी है प्रोफेसर बी के जोशी ने, जो वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सलाहकार के पद पर हैं। इससे पूर्व आप गिरी विकास संस्थान लखनऊ के निदेशक भी रह चुके हैं। अपनी भूमिका में जोशी लिखते हैं कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में उत्तराखंड का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अनेक अधिवेशनों व बैठकों में स्थानीय नेताओं की सक्रिय भागीदारी की वजह से उत्तराखंड के जनमानस में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की लहर तेजी से प्रसारित हुई।

महात्मा गाँधी 1915 से 1946 तक हरिद्वार, देहरादून, मसूरी, नैनीताल, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा, कौसानी व बागेश्वर जैसे स्थानों की यात्राओं में कुल आठ बार उत्तराखंड आए। महात्मा गांधी की यात्राओं ने एक तरह से स्थानीय आंदोलन को धार देने का कार्य किया।

1930 में जब समूचे राष्ट्र में नमक सत्याग्रह आंदोलन चरम अवस्था में चल रहा था तब उसे दौर में उत्तराखंड से तीन स्वतंत्रता सेनानियों ने भी नमक सत्याग्रह आंदोलन में भागीदारी करते हुए महात्मा गांधी के साथ यात्रा की थी। राम कांडपाल, भैरव दत्त और खड़क बहादुर थापा साबरमती जाकर दांडी सत्याग्रह में शामिल हुए। दांडी सत्याग्रह को लेकर नैनीताल में पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हर्ष देव ओली और इंद्र सिंह नयाल ने समर्थकों संग जुलूस निकाला और सभा आयोजित कर ब्रिटिश शासन को चुनौती देकर अपनी गिरफ्तारियां दी।

देहरादून में 20 अप्रैल 1930 को आजादी के सेनानियों ने बुधौली गांव से आगे खाराखेत के समीप नून नदी में नमक बनाकर नमक कानून को तोड़कर अपना विरोध प्रकट किया। प्रमुख रूप से इनमें पंडित नरदेव शास्त्री, महावीर त्यागी, पंडित नारायण दत्त डंगवाल सहित कुछ अन्य नेताओं की अगुवाई में बड़ी तादाद में सत्याग्रहियों ने खाराखेत पहुंचकर भागीदारी की थी। इस तरह देहरादून के खाराखेत के नमक सत्याग्रह ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्थानीय परिपेक्ष में एक अहम भूमिका का निर्वाण किया था।

खाराखेत की इस महत्वपूर्ण स्थानीय ऐतिहासिक घटना पर अब तक कोई प्रामाणिक प्रकाशित विवरण उपलब्ध नहीं है परंतु अब इस कमी को राज्य अभिलेखागार के पूर्व निदेशक डॉक्टर लालता प्रसाद ने एक तरह से पूरा कर दिया है। निश्चित तौर पर उन्होंने अपने स्तर से पर्याप्त ऐतिहासिक दस्तावेजों को अन्य साक्ष्यों को एकत्रित कर उसे लघु पुस्तिका का रूप प्रदान कर पाठकों के समक्ष रखने का एक सुंदर प्रयास किया है।

डॉ लालता प्रसाद ने इस पुस्तिका के प्रारंभ में देहरादून के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए खाराखेत के नून नदी के नमक सत्याग्रह पर सम्यक जानकारी प्रदान की है।

पुस्तिका में उन्होंने जिला देहरादून के 140 से अधिक उन नामक सत्याग्रहियों की नामावली भी दी है जिन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था। इस विवरण में उनके संक्षिप्त परिचय उन पर लगाए गए जुर्म, दंड, गिरफ्तारी की तिथि आदि शामिल है।

12 से अधिक नमक सत्याग्रहियों के दुर्लभ छाया चित्रों, न्यायालय के फैसलों की छाया प्रतियों से पुस्तिका की सार्थकता बढ़ गई है।
किताब के विषय में अपनी बात कहते हुए किताब के लेखक डॉ लालता प्रसाद लिखते हैं कि देहरादून के पछवा दून में खाराखेत नाम का एक स्थान है जो शहर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है। इस स्थान का महत्व इस कारण से है कि यहां पर सन 1930 में नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा गया था। यहां पर एक छोटी सी नदी है जिसका पानी खारा है। सन 1930 में स्थान पर इस पानी से ही नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा गया था। इस घटना की याद में यहां पर यह स्मृति स्तंभ स्थापित किया गया है। खाराखेत जंगल के मध्य में एक रमणीक स्थान है। इस स्थान के चारों ओर गांव बसे हुए हैं। खारा गांव की आबादी थोड़ी है निकट में ही दूसरे कई बड़े गांव बसे हुए हैं। जैसे चौकी, विधौली, बादशाही बाग।

इस लघु पुस्तिका का लेखन का एकमात्र उद्देश्य है कि नमक सत्याग्रह जिसने खाराखेत को केंद्र बनाकर आंदोलन का एक रूप लिया उसमें भागीदारी के रूप में समाज के सभी वर्गों का बराबर योगदान रहा है। मेरा प्रयास है कि नमक सत्याग्रह में भाग लेने वाले सत्याग्रहियों के विषय में आम जनमानस को व्यापक व्यापक जानकारी मिल सके। देहरादून के ग्रामीण व शहरी जनमानस नमक आंदोलन के लिए जागरूकता के कारण सैकडों नमक सत्याग्रही किस तरह जेल गए। उनके परिवार जन किस तरह पीड़ित रहे। उन्होंने अपार कष्टों का सामना करते हुए इस नमक सत्याग्रह को सफल बनाया। यह इस पुस्तिका में वर्णित है।

इस पुस्तिका का पहला अध्याय है 'ऐतिहासिक परिवेश में देहरादून और खाराखेत'। जिसमें व्यापक अर्थों में राष्ट्रीय परिपेक्ष में नमक सत्याग्रह के बारे में लिखते हुए उत्तराखंड प्रदेश और जो देहरादून में 'नमक सत्याग्रहियों का खाराखेत की ओर कूच'। उसके बाद तीसरा अध्याय है 'नमक सत्याग्रह की राजनीति और सरकार द्वारा उत्पीड़न'। जिसमें नमक देहरादून के नामक सत्याग्रहों पर का हवाला दिया गया है देहरादून में नमक सत्याग्रह नमक कानून को तोड़ने का जो सिलसिला है वह लंबा चला और मार्च से शुरू देहरादून में नमक सत्याग्रह शुरू हुआ और यह जून तक चलता रहा। इस तरह किताब में कुल नौ अध्याय हैं।

देहरादून में जिन लोगों के नेतृत्व में जिन संग्रामियों के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह चला गया उनमें प्रमुख थे नरदेव शास्त्री, रामस्वरूप नवकोटी, गौतम देव विद्यालंकर, गुरु प्रसाद शर्मा, लाला राम, कृष्ण दत्त, श्याम लाल गुप्त, मित्र सेन जैन, शर्मदा त्यागी और सोमेंद्र मोहन मुखर्जी।

देहरादून से 11 जत्थे जो नमक सत्याग्रह के लिए खाराखेत गए थे जिनमें हुलास वर्मा का जत्था, रामस्वरूप नवकोटी का जत्था, चौधरी बिहारी लाल का जत्था, स्वामी केवलानंद जी का जत्था, सोमेंद्र मोहन मुखर्जी का जत्था, सिखों का जत्था, वब्बेन वेग का जत्था, गुरुखों का जत्था, डोई वाला का जत्था, नौजवानों का जत्था और मोहल्ला झंडे वाले का जत्था। तो इस तरह से 10 लोगों ने देहरादून में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया था और पूरे देहरादून जनपद से कुल 11 जत्थे। अलग-अलग समय पर खाराखेत पहुंचे थे और उन्होंने वहां पर गैर कानूनी तरीके से नमक बनाया व नमक कानून का उल्लंघन किया। दिलचस्प बात यह है कि इसमें से बहुत सारे लोगों को 6 माह तक की सजा सुनाई गई और बहुत भारी जुर्माना उन्हें लगाया गया। पहले नंबर पर है नरदेव शास्त्री जी जिन्हें शाल्ट एक्ट के तहत 6 महीने की सजा दी गई थी। 1936 में यह गिरफ्तार किए गए थे इसी तरह से 6 महीने की सजा पाने वाले जो है लोगों में शामिल थे महावीर त्यागी, बिहारी लाल, नरेंद्र डंगवाल, स्वामी आनंद, चौधरी उल्हास वर्मा, रामस्वरूप नवकोटी, बालकृष्ण, सोमेंद्र मुखर्जी, विद्या दत्त, ब्रह्मदत्त शर्मा सहित कम से कम लगभग आधे लोगों को 6 माह की सजा हुई।कुछ लोगों को तीन माह की सजा हुई और इतना ही नहीं भारी भरकम जुर्माना के रूप में 25 से ₹50 तक संग्रामियों से वसूल किया गया।

खूबसूरत बात है कि इस किताब में सेनानियों के जिनका संबंध देहरादून के नमक सत्याग्रह से था उनके चित्र भी दिए हैं जिनमें शर्मदा त्यागी, चौधरी उल्हास वर्मा, सोमेंद्र मोहन मुखर्जी, रामस्वरूप नव कोटी सहित अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के चित्र इस किताब में दिए गए हैं और इसके साथ ही इस किताब में अनेक दस्तावेज भी दिए गए हैं। खारा खेत सत्याग्रह के प्रमुख घटनाक्रम भी एक पृष्ठ में लेखक द्वारा दिये गए हैं। जिसमें कि13 बिंदु है जिसका पहला बिंदु है लाहौर कांग्रेस अधिवेशन 1929 फिर दूसरा इसका बिंदु है 26 जनवरी 1930 स्वतंत्रता दिवस फालतू लाइन देहरादून के मैदान में झंडा अधिवेशन।

इस पुस्तक को समय साक्ष्य और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र ने मिलकर प्रकाशित किया है।

किताब के लेखक डॉक्टर लालता प्रसाद लालता प्रसाद का जन्म 30 जून 1958 को खौपुर, तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, उत्तर प्रदेश में हुआ है। लखनऊ विश्वविद्यालय से मध्यकालीन एवं आधुनिक भारतीय इतिहास से वर्ष 1980 से एमए और 1983 में इन्होंने एचडी की उपाधि प्राप्त की है। 1986 में उन्होंने अभिलेख विज्ञान में डिप्लोमा किया है।1988 में एलएलबी की उपाधि भी इन्होंने प्राप्त की है। प्रसाद जी की अब तक जो प्रकाशित पुस्तक हैं उनमें समाचार पत्रों में लोकमत का विकास, भारतीय पुनर्जागरण में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय का योगदान यह दो प्रमुख पुस्तक शामिल हैं। आप राज्य अभिलेखागार उत्तराखंड देहरादून के में निदेशक पद से सेवानिवृत हुए हैं। कला, संस्कृति और इतिहास पर निरंतर लेखन कार्य करते रहते हैं। आकाशवाणी अल्मोड़ा सहित आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से इनके आलेखों का प्रसारण होता रहता है। इतिहास एवं इतिहास लेखन परिषद वाराणसी, साउथ इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, इंडियन हिस्ट्री एंड कल्चरल सोसायटी, इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस, राष्ट्रीय अभिलेख समिति राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार नई दिल्ली, इंडियन हिस्टोरिकल रिकॉर्ड कमेटी और राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार नई दिल्ली के यह सदस्य हैं।

इस किताब का संपादन दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के रिसर्च एसोसियेट चंद्रशेखर तिवारी द्वारा किया गया है।

आपको यह किताब जरूर पसंद आयेगी। यह उत्तराखंड के इतिहास पर नये द्वार खोलेगी। किताब का मूल्य ₹125 है। सीधे मंगाने के लिए 7579243444 पर संपर्क कीजियेगा।

देहरादून की साहित्यिक संस्था संवेदना और दून पुस्तकालय 21 जून 2025 को चार विभूतियों कांति मोहन, सुभाष पन्त, विजय गौड़ और ...
21/06/2025

देहरादून की साहित्यिक संस्था संवेदना और दून पुस्तकालय 21 जून 2025 को चार विभूतियों कांति मोहन, सुभाष पन्त, विजय गौड़ और गजेंद्र मोहन बहुगुणा को याद कर रहे हैं।

लीजिए आ गई किताबडी. एस. बी. के गलियारों सेhttps://www.amazon.in/gp/product/B0FF284YZD/ref=cx_skuctr_share?smid=A2VGZSQZ1...
21/06/2025

लीजिए आ गई किताब
डी. एस. बी. के गलियारों से

https://www.amazon.in/gp/product/B0FF284YZD/ref=cx_skuctr_share?smid=A2VGZSQZ1XN2DP

आखिर कैसा था अस्सी के दशक का नैनीताल? कैसा होता था नैनीताल में कॉलेज स्टूडेंट होना? आखिर क्या हैं डी. एस. बी. कैंपस के किस्से? इन बातों के साथ ही इस किताब को पढ़कर आप नैनीताल की धड़कनों को महसूस कर पाएंगे।

डी. एस. बी. के गलियारों से Smita Karnatak की यादों के गलियारे से निकलकर आपके हाथों तक पहुंचने के लिए तैयार है। शहर नैनीताल और 80 के दशक में काॅलेज के दिनों की यादों को लेकर रची गई यह अनोखी किताब है। किताब को लेकर पाठकों में जिज्ञासा और उत्साह था और अब उनका इंतजार खत्म हो गया है।

डी. एस. बी. के गलियारों से आ गई है। यह किताब केवल डी. एस. बी. कैंपस नैनीताल की यादों का पिटारा नहीं है बल्कि डी. एस. बी. की यादों के साथ-साथ नैनीताल शहर की परिधि को नापने का माध्यम भी है। चर्चित लेखिका और किस्सागो स्मिता कर्नाटक ने इस किताब के बहाने पहाड़ी नगर नैनीताल में 80 के दशक में हो रहे बदलावों को भी बारिकी से दर्ज किया है।

मौसम से लेकर फैशन, रंगमंच से लेकर जीवन मंच तक उस दशक का सभी कुछ किताब में समाया हुआ है। याद शहर नैनीताल उस दशक में ही नहीं आज भी युवा पीढ़ी के लिए महबूब शहर है। यह किताब आपको नैनीताल शहर की धड़कनों का संगीत सुनाएगी। इस किताब के साथ पैदल चलते हुए आप नैनीताल शहर की धमनियों को महसूस कर पाएंगे।

किताब का मूल्य 195 है तथा इसे सीधे पार्सल से मंगाने के लिए 7579243444 पर संपर्क किया जा सकता है। किताब जल्द ही एमाजाॅन तथा बुक स्टोर्स पर उपलब्ध होगाी।

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जनजाति लोक कलाकार, गीतकार व गायक डाॅ. नंदलाल भारती के गीतों का पहला संग्रह ‘आमारे जौनसारी ग...
18/06/2025

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जनजाति लोक कलाकार, गीतकार व गायक डाॅ. नंदलाल भारती के गीतों का पहला संग्रह ‘आमारे जौनसारी गीत’ प्रकाशित होकर आ गया है। जौनसार की लोक कला और संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाने वाले डाॅ. नंदलाल भारती एक ख्याति प्राप्त लोक कलाकार होने के साथ ही एक चर्चित गीतकार और गायक भी हंै। ‘आमारे जौनसारी गीत’ डाॅ. नंदलाल भारती की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक में डाॅ. नंदलाल भारती के 140 से अधिक गीतों को संकलित किया गया है।

इस पुस्तक में संकलित डाॅ. भारती की रचनाएं जौनसारी समाज की लोकधर्मिता को परिलक्षित करती हैं। इस पुस्तक के गीतों में नंदलाल भारती एक तरफ महासू देवता को याद करना नहीं भूलते वहीं दूसरी तरफ अनेक चर्चित प्रेम गीत भी पुस्तक में दिए गए हैं। इसके अलावा समाज के सुख-दुख, प्रेम और विरह के साथ ही समाज में फैली कुरितियों को भी गीतों के माध्यम से सामने लाया गया है।

इस पुस्तक के अनेक गीत पहले ही ऑडियो कैसेटों के माध्यम से श्रोताओं के सामने आ चुके हैं। अब उन्हें मुदित रूप में यह गीत पढ़ने को मिलेंगे। समय साक्ष्य द्वारा प्रकाशित 208 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 250 रुपए है। इस पुस्तक की प्रस्तावना पद्म विभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी द्वारा लिखी गई है। इनके अतिरिक्त उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह नेगी द्वारा भी इसमें नंदलाल के गीत शीर्षक से एक टिप्पणी लिखी गई है। वहीं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में संचार विभाग के विभाग का अध्यक्ष डॉ. राकेश रयाल द्वारा लोक समाज की थाती शीर्षक से इस पुस्तक की विवेचना की गई है। डाॅ. नंदलाल भारती द्वारा अपने सहयोगियों और पाठकों को दो शब्द शीर्षक से शुभकामनाएं व आभार व्यक्त किया गया है। डाॅ. भारती के सहयोगी व मित्र प्रेम पंचोली द्वारा सांस्कृतिक धरोहर शीर्षक से इस किताब की विवेचना की गई है।

डॉ. नंदलाल भारती एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार हैं। आपका जन्म 8 जनवरी 1964 को देहरादून जनपद के चकराता के समीप ग्राम टूंगरा में हुआ है। भारती लगभग 40 वर्षों से लोक रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए सांस्कृतिक कार्यक्रम व गीत चर्चित हुए हैं। भारती उत्तराखंड के इकलौते ऐसे लोक कलाकार हैं जिन्हें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ ही विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में उत्तराखंड के 400 कलाकारों का नेतृत्व करने का अवसर मिला है। इसके साथ ही आपने 35000 कलाकारों के साथ 155 देश के राष्ट्राध्यक्ष, उपप्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपतियों के समक्ष सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए हंै।

2016 में आयोजित एक वैश्विक कार्यक्रम में आपकी सहभागिता से गिनीज बुक ऑफ व्लर्ड रिकॉर्ड भी बनाया गया है। कॉमनवेल्थ खेल गांव और दिल्ली हाट में भी आपके द्वारा प्रस्तुति की गई है। इसके अलावा सुदूर जम्मू कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत और पूर्व के अरुणाचल प्रदेश से लेकर सुदूर पश्चिम गुजरात तक देश के विभिन्न भागों में आप सैकड़ांे प्रस्तुतियां दे चुके हैं। उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों द्वारा आपको जौनसारी संगीत का जनक और जौनसार रत्न कहा जाता है।

आशा है डाॅ. नंदलाल भारती के गीतों का यह संग्रह ‘आमारे जौनसारी गीत’ आपको जरूर पसंद आएगा। जल्द ही यह किताब अमेजॉन पर भी उपलब्ध होगी।

उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन एक जरूरी सवाल पर जरूरी हस्तक्षेपउत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन- यह देवेश जोशी की नई किताब...
16/06/2025

उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन
एक जरूरी सवाल पर जरूरी हस्तक्षेप

उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन- यह देवेश जोशी की नई किताब है। देवेश जोशी पेशे सेशिक्षक हैं और उनकी गिनती पढ़ने, लिखने, समझने और बोलने वाले शिक्षकों में होती है। रिवर्स माइग्रेशन विषय पर प्रकाशित हो रही यह पहली किताब है। आगे इस विषय में बहुत से अध्ययन होंगे और इस विषय के अन्य पहलुओं को छूते हुए यह सिलसिला आगे बढ़ेगा। फिलहाल हम उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन विषय पर प्रकाशित इस किताब का स्वागत करते हैं।

देवेश जोशी विद्यालयी शिक्षा में कार्यरत एक संवेदनशील शिक्षक हैं और साथ ही विभिन्न विषयों पर उनकी नौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। अब तक देवेश जोशी की प्रकाशित नौ पुस्तकों में 1999 में प्रकाशित जिंदा रहेंगी यात्राएं संपादित पुस्तक उनकी पहली पुस्तक है। इसके अलावा उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश, घाम-बरखा-छैल, घुघुती ना बास, गाणी गिणी गीणि धरीं, कैप्टन धूमसिंह चैहान, सीखते सिखाते और गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध के बाद उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन शामिल हैं।

उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन, देवेश जोशी के उत्तराखंड में पलायन और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर लिखे गए लेखों का संग्रह है। इस किताब में देवेश जोशी के कुल 26 लेख हैं जिनमें प्रवास में प्रभाव, उत्तराखंड मेंरिवर्स माइग्रेशन, रिवर्स माइग्रेशन का पहला उत्तराखंडी गीत, भाबर नि जौंलाः प्रवास-पलायन का प्रभावी प्रतिरोध, फे्रडरिक विल्सनः गढ़वाल में रिवर्स माइग्रेशन का सूत्रधार, उत्तराखंड प्रवासी प्रकोष्ठ की प्रभावी पहल, पाताल-तीः गांव के स्रोत का जलामृत, पलायन आयोग रिपोर्ट, माइग्रेंट्स का मन मंथन, रिवर्स माइग्रेशन फ्रेंडली डेवलपमेंट, घुघूतिः लोकगीतों का चहेता माइग्रेटरी परिंदा, मशकबीनः लोकबाद्य जो प्रवजन कर पहुंचा उत्तराखंड, आदमखोर गुलदारों से सावधान, फ्वां बाग रे, ऋषिगंगाका मायकाः वैश्विक विरासत- सांस्कृतिक धरोहर, सिलक्यारा के सवाल, रूमानी नहीं रौद्र होता है पहाड़ों का सावन, भूकंपः सजगता से ही सुरक्षा, रेल को बांटो पुग्दैछ,डोबरा-चांटीः भारत का सबसे लंबा मोटरेबल सस्पेंशन ब्रिज, रेलवे से रिवर्स माइग्रेशन की रोशन राह, अल्मोड़ा अंग्रेज आओ टैक्सी में, फुलदेई वसंत- पुजारी पहाड़ी बच्चों का आसका पर्व, फ्यूंलीः पर्वत पुत्री जो खिलती है फूल बनकर, इगासः बारा बग्वाली का समापनपर्व और ककोड़ाखाल का कुली बेकार-बदायश विरोधी आंदोलन।

इस तरह इस किताब में कुल 26 लेख हैं और इन सभी लेखो के केन्द्रमें है उत्तराखंड का पलायन और रिवर्स माइग्रेशन। इन दोनों के बीच में उत्तराखंडकी जो स्थितियां हैं उन सभी को केंद्रित करके देवेश जोशी ने यह किताब लिखी है। माइग्रेशन और रिवर्स माइग्रेशन को जोड़ने वाली और उत्तराखंड के पर्वतीयक्षेत्रों की स्थिति परिस्थितियों को बताने वाली यह अपने तरह की पहली किताब है।जिसे देवेश जोशी ने बहुत ही मेहनत से सभी पहलुओं को छूते हुए लिखा है।

मैडम फिर कब आओगेघुमक्कड़ पत्रकार और लेखक कला राॅय की दूसरी किताब है ‘मैडम फिर कब आओगे’ । यह किताब कहानियों, किस्सों, संस्...
12/06/2025

मैडम फिर कब आओगे

घुमक्कड़ पत्रकार और लेखक कला राॅय की दूसरी किताब है ‘मैडम फिर कब आओगे’ ।

यह किताब कहानियों, किस्सों, संस्मरणों और अनुभवों का कुशल संयोजन है। इस किताब में आपको कश्मीर से लेकर देश के मैदानी भागों से जुड़ी कहानियां एक साथ पढ़ने को मिलेंगी।

कला राॅय के इस संग्रह में अंतहीकुल 11 कथाएं हैं। जिनमें मैडम फिर कब आओगे, बरसात की वो रात, कमली का विद्रोह, हमज़मी, डर, आत्मबोध, अंतहीन, दूसरा आदमी, एक मौका और, पनसोही मेला, मां की पाती पुत्री के नाम शामिल हैं।

इस किताब में कला राॅय की धारा 370 हटने के बाद की स्थितियों पर लिखी गई कहानियां भी शामिल हैं।

युवा कथाकार सतीश डिमरी का नया बाल कथा संग्रह आया है- नन्हीं कहानियां। इस संग्रह के माध्यम से सतीश डिमरी ने बच्चों को केन...
12/06/2025

युवा कथाकार सतीश डिमरी का नया बाल कथा संग्रह आया है- नन्हीं कहानियां।

इस संग्रह के माध्यम से सतीश डिमरी ने बच्चों को केन्द्र में रखकर समाज के अलग अलग रंगों को कहानियों के माध्यम से उकेरने के काम किया है। सतीश की कहानियां अपने कथानक में अलग-अलग समाजों के चित्र प्रस्तुत करती हैं वहीं कहानी के दृश्य अपने पात्रों से संवाद करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं।

सतीश की कहानियों में भरा पूरा समाज आपको दिखाई देता है। जहां दादा-दादी से लेकर चाचा-चाची और काम काजी मांता-पिता सभी आपको दिखाई देते हैं।

इन सबसे आगे बढ़कर एक कुशल मनोवैज्ञानिक की भांति सतीश डिमरी अपनी कहानियों में बच्चों से संवाद करते हुए समाज की जटिलताओं को भी सामने रखते चलते हैं।

इन कहानियों में बाल पात्रों के साथ बड़े बुर्जुगों के संवाद रोचक हैं। इस संग्रह में कुल 5 कहानियां हैं।

उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान 2024 से सम्मानित सतीश डिमरी की इससे पहले चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

डीडीहाट किताब कौतिक6 - 8 जून 2025दूसरा दिन भी बढिया रहा। स्थानीय पाठक लगातार स्टाल पर आते रहे। 8 जून रविवार को मेला सम्प...
08/06/2025

डीडीहाट किताब कौतिक
6 - 8 जून 2025

दूसरा दिन भी बढिया रहा। स्थानीय पाठक लगातार स्टाल पर आते रहे। 8 जून रविवार को मेला सम्पन्न हो जायेगा।

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