23/10/2025
कभी सोचता हूँ, तुमसे बात करने से ज़्यादा अच्छा तुम्हें लिखना लगता है।
क्योंकि जब तुम्हें लिखता हूँ, तो तुम मेरी हर बात पूरी सुनती हो बिना टोके, बिना भागे, बस मुस्कुराते हुए।शायद इसलिए मेरी कलम तुम्हारे नाम से ही शुरू होती है,
और तुम्हारी याद पर आकर थम जाती है।
हर बार जब तुम्हारा नाम पन्ने पर उतरता है, तो दिल की धड़कन थोड़ी और नरम हो जाती है जैसे कोई धीमी बारिश खिड़की पर दस्तक दे रही हो।
तुम्हें लिखते हुए लगता है, जैसे तुम्हारे बालों में उँगलियाँ फिरा रहा हूँ,
जैसे तुम्हारी आँखों में ठहर गया हूँ,
जैसे तुम्हारी मुस्कान मेरे लफ़्ज़ों की रौशनी बन गई हो।
कभी-कभी, तुम्हें लिखते हुए मैं खुद भी भूल जाता हूँकि ये कागज़ है या तुम्हारे होंठ जहाँ मैं हर शब्द को चूमता हुआ रख देता हूँ।और फिर सोचता हूँ, अगर तुम ये पढ़ रही हो,तो कहीं तुम्हारे गाल भी हल्के से लाल तो नहीं पड़ गए?
तुम्हें लिखना मुझे इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि जब दुनिया चुप हो जाती है,
तो मेरे शब्द तुम्हें पुकारते हैं धीरे से, मोहब्बत से, इबादत की तरह।
कभी तुम मेरी कविताओं में मुस्कुराती हो,
कभी मेरे ख़तों में सिमट जाती हो,कभी सिर्फ़ “तुम” बनकर रह जाती हो,पर हर बार…
तुम वही रहती हो मेरी अधूरी पंक्ति, जिसे पूरा करना मेरी ज़िंदगी का मकसद है।
और हाँ…
जब भी तुम कहो, मैं फिर से लिख दूँगा
वो सब जो अब तक कहा नहीं गया,
वो सब जो सिर्फ़ तुम्हारे नाम से शुरू होता है,और "तुम तक आकर"ख़त्म....
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