Fukrey 24

Fukrey 24 धर्म प्रचारक . धर्मो रक्षति रक्षितः धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है जय भारत मां वंदे मातरम जय श्री महाकाल जी की 🚩🔔🏵️🌹🥀 जय श्री राम
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12/02/2025

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06/02/2025

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की ।*
आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा।*
*1, अनावश्यक दखलंदाज़ी।*
*2, संस्कार विहीन शिक्षा*
*3, आपसी तालमेल का अभाव*
*4, ज़ुबान*
*5, सहनशक्ति की कमी*
*6, आधुनिकता का आडम्बर*
*7, समाज का भय न होना*
*8, घमंड झूठे ज्ञान का*
*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*
*10, परिवार से कटना।*

*मेरे ख्याल से बस यही 10 कारण हैं शायद ?*
पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
लेकिन वर्षों आपस में निभती थी ।
*भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य मे दक्ष है,
*और अब मेरी बेटी नाज़ो से पली है आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*
तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?
*शिक्षा के घमँड में आदर सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*
माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।
*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो।*
ऐसे मे वो दो घर खराब करती है।
*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*
परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।
*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में ता‌ंक झांक।*
जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*
बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।
*वो भी मोबाईल पर।*
बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
परिवार के लिये नहीं।
*सबसे ज्यादा गिरावट तो इन दिनों महिलाओं में आई है।*
दिन भर मनोरँजन,
*मोबाईल,*
स्कूटी..
*समय बचे तो बाज़ार*
*और ब्यूटी पार्लर।*
जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।
भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।
*होटल रोज़ नये नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।
*और साथ ही बिक रही है बीमारी और फैल रही है घर में अशांति।*
क्योंकि घर के शुद्ध खाने में पौष्टिकता तो है ही प्रेम भी है।
*लेकिन ये सब पिछड़ापन हो गया है।*
आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में चौकीदार।*
पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थी।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि महिला संगीत मे अपनी प्रतिभा जो दिखानी है।
*जिस की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।👌🏻*
घूँघट और साङी हटना तो ठीक है।
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?*
ये कैसी आधुनिकता है ?
*बड़े छोटे की शर्म या डर रही है क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
कोई लड़की को उठा रहा है
ये सब क्या है ?
*और हम ये तमाशा देख रहे है मौन रहकर।*
सब अच्छा है 👌🏻
*माँ बाप बच्ची को शिक्षा दे रहे है।*
ये अच्छी बात है 🙏🏻
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करे।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये।*
कमा खा ले।
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना है।*
साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*
बस यही सोच कि पांव पर खड़ी हो जायेगी, गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।
*पहले स्त्री छोड़ो पुरुष भी कोर्ट कचहरी से घबराते थे।*
और शर्म भी करते थे।
*अब तो फैशन हो गया है।*
पढे लिखे युवा तलाकनामा तो जेब मे लेकर घूमते हैं।
*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
और अब माँ बाप तक को जूते पर रखते है।
*अगर गलत है तो बिना औलाद से पूछे या एक दूसरे को दिखाये रिश्ता करके दिखाओ तो जानूं ?*
ऐसे में समाज या पँच क्या कर लेगा,
सिवाय बोलकर फ़जीहत कराने के ?
*सबसे खतरनाक है औरत की ज़ुबान।*
कभी कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझती है।*
आखिर शिक्षित है।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में लेकर आई है।*
आखिर झुक गयी तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।
*इतिहास गवाह है कि द्रोपदी के वो दो शब्द ..*
*अंधे का पुत्र भी अंधा* ने महाभारत करवा दी।
*काश चुप रहती।*
गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।
*आज समाज सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*
पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।
*घरवाली के लिये हार के सपने देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।
*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*
अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*
मनोरंजन हेतु TV,
*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,*
मसाला पीसने के लिए मिक्सी,
*रेडिमेड आटा,*
पानी की मोटर,
*पैसे हैं तो नौकर चाकर,*
घूमने को स्कूटी या कार
*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*
आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?
*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*
दो लोगों का परिवार।
*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।
*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*
लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।
*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*
*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दे तो ये सब न हो।
*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*
ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।
*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*
और पुराने रिश्ते भी।
*आज बिड़ला सिमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।*
और रिश्ते भी महीनों में खत्म।
*इसका कारण है,*
घरों को बनाने में भ्रष्टाचार
और रिश्तों मे ग़लत सँस्कार।
*खैर हम तो जी लिये।*
सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*
दिनभर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ रहती है ।🙏🏻
*मेरी बात क‌इयों को हो सकता है बुरी लगी हो।*
विशेषकर महिलाओं को।
*लेकिन सच तो यही है।*
समाज को छोड़ो,
*अपने इर्द गिर्द पड़ोस में देखो।*
सब कुछ साफ दिख जायेगा।
*यही हर समाज के घर घर की कहानी है।*
जो युवा बहनें हैं और जिनको बुरा लगा हो वो थोड़ा इंतजार करो।
*क्यों कि सास भी कभी बहू थी के समय में देरी है।*
लेकिन आयेगा ज़रुर 🙏🏻
*मुझे क्या है जो जैसा सोचेगा सुख दुःख उन्हीं के खाते में आना है 🙏🏻*
बस तकलीफ इस बात की है कि हमारी ग़लती से बच्चों का घर खराब हो रहा है।
*वे नादान हैं।*
क्या हम भी हैं ?
*शराब का नशा मज़ा देता है।*
लेकिन उतरता ज़रुर है।
*फिर बस चिन्तन ही बचता है कि क्या खोया क्या पाया ?*
पैसों की और घर की बर्बादी।
*उसके बाद भी शराब के चलन का बढ़ना आज की आधुनिक शिक्षा को दर्शाता है।*
अपना अपना घर देखो सभी।
*अभी भी वक्त है।*
नहीं तो व्हाटसप में आडियो भेजते रहना ।
जग हंसाई के खातिर।
*कोई भी समाजसेवक कुछ नहीं कर पायेगा।*
सिवाय उपदेश के।
आपकी हर समस्या का निदान केवल आप ही कर सकते हो।
सोच के ज़रिये।
रिश्ते झुकने पर ही टिकते है।
तनने पर टूट जाते है।
*इस खूबी को निरक्षर बुज़ुर्ग जानते थे।*
आज का मूर्ख शिक्षित नहीं।
काश सब जान पाते।
बुरा लगा हो तो क्षमा। कृपया इसे अपने पर ना लेवे।

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