श्री दाऊजी दर्शन Dauji Darshan

  • Home
  • India
  • Baldeo
  • श्री दाऊजी दर्शन Dauji Darshan

श्री दाऊजी दर्शन Dauji Darshan Join Us for the all new cultural events, photos and blessings of Lord Dauji(Baldeo). Dauji (Baldeo) temple in baldeo is the grandest of all baldeo temples.
(233)

Baldeo is the place where Lord Krishna's elder brother named 'Baldeo' use to rule. Situated in the heart of Mathura City, dauji temple is the most visited place attracting thousands of devotees daily.

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन3 जुलाई 2025जय दाऊजी महाराज
03/07/2025

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
3 जुलाई 2025
जय दाऊजी महाराज

चकाचक: दाऊजी के परम भक्त की कहानीचकाचक, जिनका असली नाम तो कुछ और था, एक समय बिजली विभाग के एक बड़े अफसर थे। उनके लिए पैस...
02/07/2025

चकाचक: दाऊजी के परम भक्त की कहानी

चकाचक, जिनका असली नाम तो कुछ और था, एक समय बिजली विभाग के एक बड़े अफसर थे। उनके लिए पैसा ही सब कुछ था। वे रिश्वतखोरी में लिप्त थे और अपने पद का दुरुपयोग करके खूब धन कमाते थे। उनके जीवन में भक्ति या आध्यात्मिकता के लिए कोई जगह नहीं थी। वे धन-दौलत और ऐशो-आराम में डूबे रहते थे।
एक दिन, उनका सामना एक संत से हुआ। संत ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया। उन्होंने चकाचक को समझाया कि धन-दौलत क्षणिक है, और सच्चा सुख भगवान की भक्ति में है। संत की बातों का चकाचक पर गहरा असर हुआ। उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने अपना जीवन बदलने का फैसला किया।

संत से मिलन और दाऊजी भक्ति की शुरुआत

चकाचक ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी सारी अवैध कमाई गरीबों में दान कर दी। उन्होंने मथुरा और वृंदावन की यात्रा शुरू की और भगवान की खोज में निकल पड़े। इसी दौरान, उन्हें दाऊजी (भगवान बलराम) के बारे में पता चला। वे दाऊजी की महिमा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना जीवन दाऊजी को समर्पित करने का निश्चय किया।
वह दाऊजी मंदिर में घंटों बैठे रहते, उनके भजन गाते और उनकी सेवा करते। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि एक दिन, दाऊजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए। दाऊजी ने उनसे कहा, "हे मेरे भक्त, तुम्हारी सच्ची भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। अब तुम मेरी नगरी, दाऊजी (बलदेव) में आकर रहो।"

दाऊजी नगरी में आगमन और नया नाम

दाऊजी के आदेश पर, चकाचक दाऊजी नगरी आ गए। वे हर दिन दाऊजी मंदिर जाते और अपने हाथों से भाँग और प्रसाद तैयार करते। दाऊजी को भाँग का भोग लगाने के बाद, वे प्रेमपूर्वक कहते, "चकाचक!" यानी सब कुछ एकदम सही है, सब कुछ शुद्ध और पवित्र है। उनकी इसी आदत के कारण, लोगों ने उन्हें 'चकाचक' कहना शुरू कर दिया।

चकाचक अपने जीवन के अंतिम समय तक दाऊजी नगरी में ही रहे। उनका हर पल दाऊजी की भक्ति में व्यतीत होता था। उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि कहा जाता है कि उनके अंतिम समय में, स्वयं दाऊजी ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपने धाम में स्थान दिया।

चकाचक की कहानी एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन में कितनी भी गलतियाँ करे, अगर वह सच्चे मन से पश्चाताप करे और भगवान की शरण में आ जाए, तो भगवान उसे स्वीकार करते हैं और उसका उद्धार करते हैं। चकाचक का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और विश्वास से जीवन में सब कुछ 'चकाचक' हो जाता है।

बोलो दाऊजी महाराज की जय

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन2 जुलाई 2025जय दाऊजी महाराज
02/07/2025

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
2 जुलाई 2025
जय दाऊजी महाराज

02/07/2025

I got over 1,000 reactions on one of my posts last week! Thanks everyone for your support! 🎉

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन1 जुलाई 2025जय दाऊजी महाराज
01/07/2025

ब्रज के राजा ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
1 जुलाई 2025
जय दाऊजी महाराज

*जामनगर के एक गांव का अनाथ बालक बना सेठ*जामनगर से कुछ मील दूर, एक छोटे से गांव में, सूरज की पहली किरणें मिट्टी के घरों प...
01/07/2025

*जामनगर के एक गांव का अनाथ बालक बना सेठ*

जामनगर से कुछ मील दूर, एक छोटे से गांव में, सूरज की पहली किरणें मिट्टी के घरों पर पड़तीं, और उन्हीं में से एक घर में रहता था एक छोटा बालक, कान्हा. कान्हा के लिए सुबह का मतलब था पेट की आग बुझाने की जद्दोजहद. न मां थी, न पिता, बस एक पुरानी झोपड़ी और अंतहीन उम्मीदों का बोझ. गांव के लोग कभी-कभार उसे रोटी का टुकड़ा दे देते, और वही उसका सहारा था. उसकी आँखें अक्सर उदास रहतीं, पर उनमें एक चमक थी – कुछ कर दिखाने की, कुछ बनने की.
कान्हा का मन हमेशा से ही प्रकृति से जुड़ा था. वह घंटों खेतों में घूमता, मिट्टी को महसूस करता, और पेड़-पौधों से बातें करता. उसे लगता था जैसे धरती माँ उसे कुछ सिखा रही है, कुछ बता रही है. एक दिन, गांव के छोर पर स्थित पुराने पीपल के पेड़ के नीचे, जहाँ दाऊजी महाराज का छोटा सा मंदिर था, कान्हा बैठा था. उसकी आँखों में आंसू थे. वह भूखा था, अकेला था, और भविष्य अंधकारमय दिख रहा था.

"हे दाऊजी महाराज," वह फुसफुसाया, "मैं क्या करूँ? मुझे कोई राह नहीं दिखती. क्या मेरा जीवन ऐसे ही संघर्ष में बीत जाएगा?"

अचानक, मंदिर के अंदर से एक हल्की सी ध्वनि आई, जैसे कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कान्हा ने सिर उठाया. उसे लगा जैसे दाऊजी महाराज की मूर्ति मुस्कुरा रही है. उसी पल, एक बूढ़ा किसान, जिसने कान्हा को कई बार देखा था, उसके पास आया. "क्या बात है बेटा? क्यों उदास बैठे हो?"

कान्हा ने अपनी व्यथा सुनाई. किसान ने धैर्य से सुना और फिर मुस्कुराया. "बेटा, दाऊजी महाराज कर्मठ लोगों पर कृपा करते हैं. तुम मेहनती हो. गांव के पास एक सेठ की हवेली बन रही है. उन्हें मजदूरों की जरूरत है. तुम वहाँ जाकर काम मांगो."

यह बात कान्हा के मन में बैठ गई. अगले ही दिन, वह सेठ की हवेली पर पहुंचा. वहाँ कई मजदूर काम कर रहे थे. कान्हा ने हिम्मत करके सेठ से बात की. सेठ ने उसकी दुबली-पतली काया देखी और पहले तो मना किया, पर कान्हा की आँखों की दृढ़ता देखकर वह मान गया. "ठीक है, तुम्हें मजदूरी करनी होगी. अगर काम अच्छा लगा तो रख लेंगे."

कान्हा ने जी-जान से काम किया. वह सुबह सबसे पहले आता और शाम को सबसे बाद में जाता. वह कभी शिकायत नहीं करता. उसकी मेहनत और लगन देखकर सेठ प्रभावित हुए. सेठ का नाम था बलराम दास, और वे भी दाऊजी महाराज के भक्त थे. एक दिन, बलराम दास ने कान्हा को अपने पास बुलाया.

"कान्हा, तुम्हारी मेहनत देखकर मैं बहुत खुश हूँ. आज से तुम केवल मजदूर नहीं, मेरे मुनीम बनोगे. हिसाब-किताब का काम सीखो."

यह कान्हा के लिए एक नया मोड़ था. उसने पूरी ईमानदारी और लगन से मुनीमी का काम सीखा. वह तेज दिमाग का था, और जल्द ही उसने व्यापार के दांव-पेंच भी समझने शुरू कर दिए. बलराम दास उसे अपनी संतानों जैसा मानने लगे. उन्होंने कान्हा को व्यापार के हर पहलू से अवगत कराया – फसल, बाजार, खरीद-फरोख्त, सब कुछ.
कुछ सालों बाद, बलराम दास बूढ़े हो चले थे. उनके अपने बच्चे व्यापार में उतनी रुचि नहीं लेते थे. उन्होंने कान्हा को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया. उन्होंने एक बड़ी सभा बुलाई और सबके सामने घोषणा की, "आज से कान्हा इस हवेली का, और मेरे व्यापार का मालिक है. यह मेरा कान्हा सेठ है."

पूरा गांव अचंभित था. एक अनाथ बालक, जिसने कभी दाने-दाने के लिए संघर्ष किया था, आज जामनगर के सबसे बड़े सेठों में से एक बन गया था. कान्हा सेठ ने कभी अपनी जड़ों को नहीं भुलाया. उन्होंने गांव के विकास के लिए बहुत काम किया. उन्होंने स्कूल बनवाए, कुएं खुदवाए, और गरीबों की मदद की. दाऊजी महाराज का मंदिर उन्होंने भव्य रूप से बनवाया और हर वर्ष वहाँ एक बड़ा भंडारा करवाते.

कान्हा सेठ अक्सर कहते थे, "यह सब दाऊजी महाराज की कृपा है. उन्होंने मुझे सिर्फ राह ही नहीं दिखाई, बल्कि उसे चलने की शक्ति भी दी. मेहनत और ईमानदारी से किया गया कोई भी काम व्यर्थ नहीं जाता." और इस तरह, जामनगर के एक अनाथ बालक की कहानी, दाऊजी महाराज की कृपा और अपनी लगन से सेठ कान्हा की कहानी बन गई
बोलो दाऊजी महाराज की जय

30/06/2025

Jay Dauji Maharaj

बृजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज व रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन 30 जून 2025 दिन सोमवारबोलो दाऊजी महाराज की जय
30/06/2025

बृजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज व रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
30 जून 2025
दिन सोमवार
बोलो दाऊजी महाराज की जय

*दाऊजी का भक्त सूरदास*यमुना के किनारे, दाऊजी नगर के पास एक छोटा सा गाँव था. वहीं एक झोंपड़ी में सूरदास रहते थे. लोग उन्ह...
30/06/2025

*दाऊजी का भक्त सूरदास*
यमुना के किनारे, दाऊजी नगर के पास एक छोटा सा गाँव था. वहीं एक झोंपड़ी में सूरदास रहते थे. लोग उन्हें अंधे सूरदास कहते थे, पर उनके मन की आँखें बहुत तेज़ थीं. वे भगवान दाऊजी (बलराम) के परम भक्त थे. हर सुबह, हर शाम वे दाऊजी के भजन गाते, उनकी लीलाओं का वर्णन करते और उनकी भक्ति में लीन रहते. उनकी आवाज़ इतनी मधुर थी कि जब वे गाते, तो हवा में भी भक्ति घुल जाती थी.

सूरदास को कभी किसी ने दाऊजी के मंदिर में आते नहीं देखा था. लोग सोचते, जब देख नहीं सकते, तो मंदिर में जाकर क्या करेंगे? पर सूरदास के लिए दाऊजी हर जगह थे - यमुना की लहरों में, गायों के खुरों की आवाज़ में, पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट में. उन्हें मंदिर जाने की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती थी.

एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा. फसलें सूख गईं, कुएँ खाली हो गए और पशु-पक्षी पानी के लिए तड़पने लगे. गाँव वाले चिंतित थे. वे दाऊजी के मंदिर गए,पूजा-अर्चना की, पर कोई लाभ नहीं हुआ.
गाँव के मुखिया ने सोचा, "सूरदास दाऊजी के इतने बड़े भक्त हैं, शायद उनकी प्रार्थना से कुछ हो जाए." वे सूरदास के पास गए और उनसे विनती की, "सूरदास जी, गाँव संकट में है. आप दाऊजी के परम भक्त हैं, आप ही कुछ कीजिए."
सूरदास ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं तो दाऊजी का दास हूँ, जो वे चाहें वही होगा." उन्होंने अपनी खंजरी उठाई और दाऊजी का भजन गाना शुरू किया. उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे, पर उनके चेहरे पर अटूट विश्वास था. वे गाते रहे, गाते रहे...
सूरदास गाते हुए कभी अपनी झोंपड़ी से बाहर नहीं निकले थे, पर उस दिन भजन गाते-गाते वे अपनी झोंपड़ी से बाहर आ गए. उनके पैरों में जैसे दाऊजी का ही बल आ गया था. वे चलते रहे, भजन गाते रहे और उनके पीछे-पीछे पूरा गाँव चलने लगा.

सूरदास चलते-चलते एक पुराने, सूखे हुए वटवृक्ष के पास रुके. उन्होंने वहीं बैठकर दाऊजी को पुकारा, "हे दाऊजी! आप तो हलधर हैं, खेतों को सींचने वाले हैं. आपके रहते मेरी धरती प्यासी कैसे रह सकती है?"
उनकी पुकार इतनी गहरी थी, उनका प्रेम इतना सच्चा था कि आकाश में काले बादल घिरने लगे. पहले धीमी-धीमी बूँदें गिरीं, फिर मूसलाधार बारिश होने लगी. पूरा गाँव खुशी से झूम उठा. कुएँ भर गए, फसलें हरी-भरी हो गईं और पशु-पक्षी तृप्त हो गए.

गाँव वाले सूरदास के चरणों में गिर पड़े. उन्होंने पूछा, "सूरदास जी, आपने ऐसा कैसे किया?"
सूरदास ने अपनी आँखें बंद कीं और बोले, "मैंने कुछ नहीं किया. ये तो मेरे दाऊजी की कृपा है. वे हमेशा अपने भक्तों के साथ रहते हैं, चाहे वे देखें या न देखें. सच्चा प्रेम और विश्वास ही उन्हें प्रकट करता है."
उस दिन से, गाँव के लोगों का दाऊजी और सूरदास पर विश्वास और भी गहरा हो गया. सूरदास ने अपनी भक्ति और विश्वास से यह साबित कर दिया कि सच्ची आस्था के लिए आँखों की नहीं, बल्कि हृदय की आवश्यकता होती है. और दाऊजी अपने भक्तों की पुकार हमेशा सुनते हैं.

बोलो दाऊजी महाराज की जय

*एक भक्त की कहानी: माया और मुक्ति*एक छोटे से गाँव में मदन नाम का एक व्यक्ति रहता था। बचपन से ही मदन के दिल में भक्ति और ...
29/06/2025

*एक भक्त की कहानी: माया और मुक्ति*

एक छोटे से गाँव में मदन नाम का एक व्यक्ति रहता था। बचपन से ही मदन के दिल में भक्ति और आध्यात्मिकता की चाह थी, लेकिन दुनियादारी के बंधनों ने उसे जकड़ रखा था। उसके परिवार में बड़ी संख्या में सदस्य थे, और रिश्तों की उलझनें, भाईचारे की जिम्मेदारियाँ, और सामाजिक ताने-बाने ने उसे कभी खुली साँस नहीं लेने दी। वह सुबह से शाम तक खेतों में काम करता, परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में लगा रहता, और गाँव के हर सामाजिक कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता। उसकी पूरी ज़िंदगी दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने और रिश्तों को निभाने में ही बीत गई।
मदन ने कई बार सोचा कि वह सब कुछ छोड़कर भजन-कीर्तन में लीन हो जाए, ईश्वर का नाम जपे, लेकिन हर बार कोई न कोई नई जिम्मेदारी आ जाती। कभी बेटे की शादी, कभी बेटी का गृहस्थ जीवन, कभी भाई के खेत में मदद, और कभी गाँव के झगड़ों को सुलझाना। वह इन सब में इतना उलझा रहा कि उसे अपने लिए समय ही नहीं मिला। उसके मन में हमेशा एक कसक रहती कि उसने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू ही नहीं की।
उम्र ढलती गई। मदन के बाल सफ़ेद हो गए और शरीर कमजोर पड़ने लगा। उसके बच्चे बड़े हो गए थे और अपनी-अपनी ज़िंदगी में व्यस्त थे। अब मदन के पास थोड़ा खाली समय था, लेकिन तब तक उसका शरीर साथ छोड़ चुका था। एक दिन, गाँव के पास एक बड़े संत पधारे। यह कोई साधारण संत नहीं थे, बल्कि वे भगवान बलदाऊ के अनन्य भक्त थे। उन्होंने गाँव में डेरा डाला और प्रवचन देने लगे। मदन ने भी उनके प्रवचन सुने। संत ने दाऊजी (भगवान बलदाऊ) की महिमा का वर्णन किया, उनके त्याग, उनके प्रेम और उनके निस्वार्थ भाव की बातें कीं। संत के वचनों में एक ऐसी सच्चाई थी जिसने मदन के हृदय को झकझोर दिया।
मदन को लगा जैसे वर्षों से उसके मन में जो शांति की खोज थी, वह आज दाऊजी के नाम में मिल गई है। उसे अपने जीवन के उन सभी वर्षों का एहसास हुआ, जो उसने दुनियादारी की मृगतृष्णा में बिता दिए थे। उसे समझ आया कि ये सारे रिश्ते, ये सारी जिम्मेदारियाँ, एक मोह माया के सिवा कुछ नहीं थीं। अंततः, उसने अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर दाऊजी का आश्रय लिया। वह हर सुबह संत के पास जाता, दाऊजी के भजनों में लीन हो जाता और उनके गुणों का गान करता। उसकी आँखों से अश्रुधारा बहती रहती, लेकिन ये अश्रु दुख के नहीं, बल्कि मुक्ति और संतोष के थे।
एक दिन, जब वह संत के चरणों में बैठा था, उसने अपने हाथों को जोड़कर, आँखों में आँसू लिए कहा: "दाऊजी, आप ही सच्चे हैं! यह सारा संसार झूठा है, यह माया का खेल है। मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी इसी झूठ में गंवा दी। आज आपके चरणों में आकर ही मुझे शांति मिली है, मुझे मुक्ति मिली है। मैं धन्य हो गया, दाऊजी!"
मदन ने अपने जीवन के अंतिम क्षण दाऊजी के चरणों में ही बिताए। उसे इस बात का कोई मलाल नहीं था कि उसने देर से शुरुआत की, क्योंकि उसे यह एहसास हो गया था कि सच्ची शांति और सच्चा आनंद केवल ईश्वर के चरणों में ही है, दुनिया के बंधनों में नहीं।
कविता: दाऊजी तुम सच्चे हो
सारी उमर बीती इस जग की आपा-धापी में,
रिश्तों के बंधन में, भाईचारे की मापी में।
कभी किसी का था कंधा, कभी किसी का हाथ,
छूटा अपना ध्येय, भूला खुद का पथ।
घर-गृहस्थी की डोर ने ऐसा जकड़ा था,
मुक्ति का द्वार मुझको कभी न पकड़ा था।
मोह-माया के जाल में फँसता चला गया,
जीवन का सुनहरा पल यूँ ही ढला गया।
सोचा था कभी तो मिलेगा मुझको चैन,
पर दुनिया की बातें करती थीं बेचैन।
ये झूठा संसार, ये झूठे सब रिश्ते,
मतलब के सारे यहाँ, सारे फरिश्ते।
फिर एक दिन राह में, मिले एक संत महान,
सुनाया उन्होंने दाऊजी का पवित्र गान।
जैसे वर्षों से भूखा था कोई प्यासा मन,
पाया दाऊजी में मैंने अपना सच्चा धन।
आँखों से बहने लगे अश्रु की धारा,
मुझ पापी को मिला दाऊजी का सहारा।
लगा आज मिली मुझे जीवन की सच्ची राह,
छूट गई मन से वो जग की सारी चाह।
झूठा है ये सब संसार, दाऊजी तुम सच्चे हो,
मेरी आत्मा के, तुम ही सच्चे बच्चे हो।
धन्य हुआ ये जीवन, पाकर तुम्हारा नाम,
अब बस तुम्हारे चरणों में मिले मुझे विश्राम।

बोलो दाऊजी महाराज की जय

ब्रजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन29 जून 2025दिन रविवारबोलो दाऊजी महाराजकमेंट में जय दाऊजी ...
29/06/2025

ब्रजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज वह रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
29 जून 2025
दिन रविवार
बोलो दाऊजी महाराज
कमेंट में जय दाऊजी की अवश्य लिखें।
इस माध्यम से ठाकुर श्री दाऊजी महाराज के दर्शन अन्य भक्त भी कर पाएंगे

बृजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज व रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन28 जून 2025दर्शन करने के बाद कमेंट में जय दाऊजी की अवश्य लि...
28/06/2025

बृजराज ठाकुर श्री दाऊजी महाराज व रेवती मैया के श्रृंगार दर्शन
28 जून 2025
दर्शन करने के बाद कमेंट में जय दाऊजी की अवश्य लिखें, व पोस्ट लाइक करें
यदि आप नास्तिक हैं तो आगे बढे
जय दाऊजी महाराज की

Address

Baldeo Temple
Baldeo
281301

Opening Hours

Monday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Tuesday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Wednesday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Thursday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Friday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Saturday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm
Sunday 6:30am - 12pm
3pm - 4pm

Telephone

+918826081836

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when श्री दाऊजी दर्शन Dauji Darshan posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to श्री दाऊजी दर्शन Dauji Darshan:

Share