Namh Shivaay

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22/07/2023

Bhole ka hun divana

प्रनवउ पवनकुमार खल बल पावक ग्यानधन |जासु ह्रदय आगार बसही राम शर चाप धर ||अतुलित बलधामम हेम शैलाभदेहम,दनुज वन कृशानुम ज्ञ...
04/07/2023

प्रनवउ पवनकुमार खल बल पावक ग्यानधन |
जासु ह्रदय आगार बसही राम शर चाप धर ||

अतुलित बलधामम हेम शैलाभदेहम,
दनुज वन कृशानुम ज्ञानिनामग्रगण्याम |
सकल गुणनिधामम वानराणामधीशं,
रघुपति प्रियभक्तं वातजातम नमामि ||

गोष्पदीकृतवारीशम मशकीकृतराक्षसम,
रामायणं महामालारत्नं वंदेहं निलात्मजम |
अंजनानंदनम वीरम जानकीशोकनाशणम,
कपीशमक्षहंतारं वंदे लंकाभयंकरम ||

उल्लंघ्यम सिन्धो: सलिलम सलिलम,
यः शोकवाहिनम जनकात्मजाया |
आदाय तनैव ददाह लंका,
नमामि तम प्रांजलि रान्जनेयं ||

मनोजवम मारुततुल्यवेगम,
जितेन्द्रियं बुद्धिमताम वरिष्ठम |
वात्मजम वानरयूथमुख्यम,
श्रीरामदूतम शरणम प्रप्धये ||

आन्जनेयमती पाटलालनम,
कान्चानाद्रिकमनीयविग्रहम |
पारिजाततरुमूलवासिनम,
भावयामि पावमाननंदनम ||

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनम,
तत्र तत्र कृतमस्तकान्जलिम |
वाश्पवारीपरीपूर्णलोचानाम,
मारुतिम नमत राक्षसांतकम ||

|| इति श्री हनुमत स्तवन सम्पूर्णं |

हनुमान जी की स्तुतिनमो केसरी पूत महावीर वीरं, मंङ्गलागार रणरङ्गधीरं। कपिवेष महेष वीरेश धीरं, नमो राम दूतं स्वयं रघुवीरं।...
04/07/2023

हनुमान जी की स्तुति

नमो केसरी पूत महावीर वीरं, मंङ्गलागार रणरङ्गधीरं।

कपिवेष महेष वीरेश धीरं, नमो राम दूतं स्वयं रघुवीरं।


नमो अञ्जनानंदनं धीर वेषं, नमो सुखदाता हर्ता क्लेशं।

किए काम भगतों के तुमने सारे, मिटा दुःख दारिद संकट निवारे।


सुग्रीव का काज तुमने संवारा, मिला राम से शोक संताप टारा।

गये पार वारिधि लंका जलाई, हता पुत्र रावण सिया खोज लाई।


सिया का प्रभु को सभी दुःख सुनाया, लखन पर पड़ा कष्ट तुमने मिटाया।


सभी काज रघुवर के तुमने संवारे, सभी कष्ट हरना पड़े तेरे द्वारे।

कहे दास तेरा तुम्हीं मेरे स्वामी, हरो विघ्न सरे नमामी नमामी।

Aaj mahaviraji ji ka din hai follow like jarur karein sab manokamna purn hoga
04/07/2023

Aaj mahaviraji ji ka din hai follow like jarur karein sab manokamna purn hoga

29/06/2023

गुरुवार व्रत पूजा कथा में कई ऐसी बातें बताई गई हैं जिन्हें मनुष्य को ध्यान पूर्वक अपनाना चाहिए। कहते हैं जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा करता है और गुरुवार व्रत की कथा कहता और सुनता है उसकी गरीबी और कष्ट को भगवान विष्णु दूर कर देते हैं। जीवन में सुख समृद्धि के लिए गुरुवार के दिन आप भी इस गुरुवार व्रत कथा को सुनें या पढ़ें।सूर्योदय से पहले उठकर करें स्‍नानबृहस्‍पतिवार के दिन सूर्योदय से पहले ही उठें और नित्‍यकर्म से निवृत्‍त होकर पीले रंग के वस्‍त्र पहनें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। इसके बाद पूजा घर में श्रीहरि विष्‍णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। फिर पीले रंग के गंध-पुष्प और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद चना-गुड़ और मुनक्‍का चढ़ाकर विधि- विधान से पूजन शुरू करें। इसके बाद धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥ मंत्र का जप करें। इसके बाद व्रत की कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद केले के पेड़ में जल चढ़ाएं।मंत्रोच्‍चार के बाद बृहस्‍पतिवार व्रत की कथा पढ़ें। यह इस प्रकार से है कि प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान दर्शन करने जाता था लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न ही पूजन करती थी और न ही दान करने में उसका मन लगता था। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से मन कर दिया। रानी ने कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन और संतान से कौन दुखी होता है। इसकी तो सभी कामना करते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली- महाराज मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं।साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना। राजा से कहना वह बृहस्‍पतिवार को हजामत बनवाए, भोजन में मांस- मदिरा खाना और कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। ऐसा करने से सात बृहस्पतिवार में ही आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से अंतर्धान हो गये। इसके बाद रानी ने वही किया जो साधु ने बताया था। तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन- संपत्ति नष्ट हो गया और भोजन के लिए राजा-रानी तरसने लगे। तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में चाकरी के लिए चला जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा।इधर, राजा के बिना रानी और दासी दुखी रहने लगीं । किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जाती। एक समय जब रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी । पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है । तू उसके पास जा आ और 5 सेर बेझर मांग कर ले आ ताकि कुछ समय के लिए थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जा‌ए। दासी रानी की बहन के पास ग‌ई । उस दिन बृहस्‍पतिवार था। रानी का बहन उस समय बृहस्‍पतिवार की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने को‌ई उत्तर नहीं दिया । जब दासी को रानी की बहन से को‌ई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हु‌ई । उसे क्रोध भी आया । दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी । सुनकर, रानी ने कहां की है दासी इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नही अच्छे-बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा यह सब हमारे भाग्य का दोष है। यह सब कहकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आ‌ई थी। लेकिन मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हु‌ई होगी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर ग‌ई और कहने लगी, हे बहन। मैं बृहस्‍पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी ग‌ई लेकिन जब तक कथा होती है, तब तक न उठते है और न बोलते है, इसीलिये मैं नहीं बोली। कहो, दासी क्यों ग‌ई थी ।रानी बोली, बहन । हमारे घर अनाज नहीं था । ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आ‌ई । उसने दासियों समेत 7 दिन तक भूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी । इसीलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास 5 सेर बेझर लेने के लिए भेजा था।रानी की बहन बोली, बहन देखो बृहस्‍पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते है । देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो । पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ परंतु बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा।दासी घर के अंदर ग‌ई तो वहां पर उसे एक घड़ा बेझर से भरा मिल गया। उसे बड़ी हैरानी हु‌ई। उसने बाहर आकर रानी को बताया। दासी रानी से कहने लगी, हे रानी । जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते है, इसलिये क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाये, हम भी व्रत किया करेंगे । दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से बृहस्‍पति व्रत के बारे में पूछा । उसकी बहन ने बताया, बृहस्‍पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं और कथा सुनें । उस दिन एक ही समय भोजन करें भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर करें। इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, अन्न, पुत्र और धन का वरदान देते हैं। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आ‌ई ।

28/06/2023

गणेश जी का श्लोक
गणेश तांत्रिक मंत्र –
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।।
यह गणेश तांत्रिक मंत्र है जिसकी साधना में रोज सुबह महादेवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा करने के बाद इस मंत्र का 108 बार जाप करने व्यक्ति के समस्त दुख समाप्त होते हैं। इस मंत्र जप के दौरान व्यक्ति को पूर्ण सात्विकता रखनी होती है और क्रोध, मांस, मदिरा, परस्त्री से संबंधों से दूर रहना होता है।

गणेश कुबेर मंत्र –
।। ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा ।।

कर्ज मुक्ति और आर्थिक परेशानियां के निवारण हेतु गणेशजी की पूजा करने के बाद गणेश कुबेर मंत्र का नियमित रूप से जाप करने से व्यक्ति का कर्जा उतर जाता है तथा धन के नए स्त्रोत प्राप्त होते हैं जिनसे व्यक्ति का भाग्य चमक उठता है।

27/06/2023

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्रद्धायुक्त होकर हनुमान जी के इस पराक्रम चरित्र का पठन-पाठन करता है तथा दूसरों को सुनाता है वह सभी प्रकार के भोगों को भोग कर मोक्ष को प्राप्त करता है। सभी प्रकार के दुखों, कष्टों, पीड़ाओं व व्याधियों से छुटकारा मिलता है। रोग, दोष, भूत, प्रेत, पिशाच आदि से मुक्ति प्राप्त होती है।

26/06/2023

ऐसे हुई थी त्रिशूल की उत्‍पत्ति जाने
भगवान शिव को सभी प्रकार के अस्त्रों के चलाने में महारथ हासिल है। पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को दो प्रमुख माना गया है। भगवान शिव के धनुष का नाम पिनाक था। जिसे विश्‍वकर्मा ने ऋषि दधीचि की अस्थियों से तैयार किया था। सृष्टि से आरंभ में ब्रह्रानाद से जब शिव प्रगट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत गुण भी प्रगट हुए। यही तीनों गुण शिवजी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने। सृष्टि के आरंभ में जब सरस्वती उत्पन्न हुई तो वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया। यह सुर और संगीत विहीन थी। इसलिये चंद्रमा को धारण करते हैं शिवभगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए। इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई। शिवजी के गले में लिपटे नाग के बारे में पुराणों में बताया गया कि यह नागों के राजा नाग वासुकी है। वासुकी नाग भगवान शिव के परम भक्त थे इसलिए भगवान शिव ने गले में आभूषण की तरफ से हमेशा लिपटे रहने का वरदान दिया। प्रजापति दक्ष द्वारा मिले श्राप से बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके जीवन की रक्षा की और उन्हें अपने शीश पर धारण किया।

26/06/2023

ऐसे हुई थी त्रिशूल की उत्‍पत्ति जाने

भगवान शिव को सभी प्रकार के अस्त्रों के चलाने में महारथ हासिल है। पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को दो प्रमुख माना गया है। भगवान शिव के धनुष का नाम पिनाक था। जिसे विश्‍वकर्मा ने ऋषि दधीचि की अस्थियों से तैयार किया था। सृष्टि से आरंभ में ब्रह्रानाद से जब शिव प्रगट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत गुण भी प्रगट हुए। यही तीनों गुण शिवजी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने। सृष्टि के आरंभ में जब सरस्वती उत्पन्न हुई तो वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया। यह सुर और संगीत विहीन थी। इसलिये चंद्रमा को धारण करते हैं शिवभगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए। इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई। शिवजी के गले में लिपटे नाग के बारे में पुराणों में बताया गया कि यह नागों के राजा नाग वासुकी है। वासुकी नाग भगवान शिव के परम भक्त थे इसलिए भगवान शिव ने गले में आभूषण की तरफ से हमेशा लिपटे रहने का वरदान दिया। प्रजापति दक्ष द्वारा मिले श्राप से बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके जीवन की रक्षा की और उन्हें अपने शीश पर धारण किया।

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