12/09/2025
चलिए शुरू करते है...
शाम का समय हो चुका, सूरज आसमान में धीरे धीरे छुप रहा था। वरुण इस कहानी का मुख्य किरदार जो अपने जर्जर मकान के बाहर खड़ा था, वह हताश और हारा हुआ महसूस कर रहा था। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़-साफ़ देखी जा सकती थीं।
वरुण
अब 20 वर्ष का हो चुका था और वह बहुत ही गरीबी में पाला और अब भी वह गरीब ही है,और गरीबी बहुत अच्छी भी है और बुरी भी वह इंसान की खुशियो को मार देती हैं। वरुण, उसके परिवार में कुल चार लोग थे – उसकी माँ, छोटी बहन और उसके पिता।
वरुण के पिता दिनभर मज़दूरी करते थे, कभी उन्हें काम मिल जाता, कभी नहीं। घर की सारी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर थी। उसकी माँ भी दूसरों के घर जाकर काम करती और छोटी बहन अभी स्कूल में पढ़ रही थी, लेकिन वह भी अपनी ज़िंदगी से खुश नहीं थी।
वरुण को धीरे-धीरे चिंता होने लगी थी। उसे समझ आ चुका था कि अब उसे इस गरीबी को दूर करना है। लेकिन समस्या यह थी कि वह खुद अभी कॉलेज में पढ़ रहा था और उसके पास कोई अनुभव भी नहीं था। फिर भी, उसे अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास हो चुका था। वह सोचता कि कब तक उसके पिता ऐसे ही मेहनत करते रहेंगे। ऊपर से उनके माता-पिता की तबीयत भी अक्सर खराब रहती थी।
इस गरीबी से बाहर निकलने का एकमात्र जरिया वरुण ही था, और धीरे धीरे सभी की उम्मीदें वरुण पर बनने लगी और इसी वजह से वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रहा था। वह ऐसा कोई काम ढूंढना चाहता था, जिससे वह अपना करियर बना सके और साथ ही आर्थिक रूप से अपने परिवार की मदद कर सके। मगर उसके माता-पिता जानते थे कि ऐसा कुछ आसान नहीं होगा। वे बार-बार उसे समझाते कि वह अच्छे से पढ़ाई करे और कोई सरकारी या अच्छी नौकरी ढूंढे। लेकिन वरुण को एहसास हो चुका था कि आज के जमाने में सिर्फ पढ़ाई से कुछ हासिल नहीं होने वाला। उसने देखा था कि कई बच्चे सालों तक पढ़ाई करते हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिलती।
उसे लगा कि उसे भीड़ से हटकर कुछ अलग करना होगा। मगर समस्या यह थी कि उसे खुद ही नहीं पता था कि आखिर करना क्या है। उसके माता-पिता भी चिंतित थे कि वरुण पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहा है।
वरुण ने बहुत जगह काम ढूंढा, लेकिन उसे कोई काम नहीं मिला। शाम को जब वे सब मिलकर खाना खा रहे थे, तो उसके पिता बोले, बेटा, छोड़ दे ये सब। चल, मेरे साथ मजदूरी कर ले। लेकिन वरुण यह करने के लिए तैयार नहीं था। उसकी माँ
सावित्री देवी
भी बोलीं, बेटा, इस गरीबी से निकलने की उम्मीद सिर्फ तुझसे है। ऐसे समय बर्बाद मत कर, कुछ तो कर। तेरे पापा सही कह रहे हैं। चल, उनके साथ जाकर काम कर ले। वैसे भी, तुझसे तो पढ़ाई होती नहीं
वरुण ने धीरे से जवाब दिया, माँ, पढ़ तो रहा हूँ न। उसके
पिता रमेश प्रसाद वर्मा
गुस्से में बोले, क्या पढ़ रहा है तू? दिनभर इधर-उधर घूमता रहता है। न तो ठीक से कॉलेज जाता है, न कोई काम करता है। बस, अब और झूठ मत बोल।
वरुण चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसे लगने लगा कि उसके माता-पिता सही कह रहे हैं। उसने अपनी पुरानी डायरी उठाई और उसमें लिखना शुरू किया। इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बस एक ही चीज़ थी, जिससे उसे सुकून मिलता था – उसका लेखन। वह अपने बीते हुए पलों को डायरी में उतारता। भले ही उसकी लेखनी बहुत प्रभावशाली न हो, लेकिन जब वह लिखता, तो उसे शांति मिलती। वह लेखक बनना चाहता था। इसी वजह से वह अपनी डायरी में कहानियाँ और विचार लिखता रहता था।
मगर ज़िम्मेदारियों ने उसे इस रास्ते पर चलने से रोक दिया था। उसे लगने लगा था कि लेखन से कुछ हासिल नहीं होगा, उसे कोई और काम करना होगा। लेकिन उसका सपना उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था।
वह अपने लिखे हुए विचार अपने दोस्त रोहन को सुनाता था। रोहन कहता, यार, तू बहुत अच्छा लिखता है।
वरुण उदास होकर बोला, बात तेरी सही है, लेकिन लेखक बनना बेकार है। इससे कोई कमाई नहीं होती। मुझे इससे कुछ नहीं मिलने वाला।
रोहन हंसते हुए बोला, अबे घोंचू! आजकल वीडियो, ब्लॉग और सोशल मीडिया का ज़माना है। पहले किताबें ही चलती थीं, तब भी लोग पढ़ते थे और दुनिया उन्हीं किताबों में ज्ञान ढूंढती थी। जिस कॉलेज में हम पढ़ रहे हैं, वहाँ भी किताबें ही पढ़ाई जाती हैं और उन्हें भी किसी ने लिखा ही है। छोटे बच्चे वह भी किताबों से ही पढ़ते हैं, वो भी किसी के द्वारा लिखी होती हैं। कोई भी ऐसा काम नहीं है, जिसमें सफलता न मिल सके। बस करने का तरीका अलग होता है। जैसे तू सोच रहा है न अगर ऐसा होता, तो कोई भी किताब नहीं लिखता, कोई लेखक नहीं बनता। तेरी लेखन शैली बहुत अच्छी है, तुझे इसे आज़माना चाहिए। वैसे भी, तुझे कहीं नौकरी नहीं मिल रही है। इस समय खाली बैठा है, तो कोशिश कर न!
वरुण ने गहरी सांस लेते हुए कहा, तेरी बात सही है। मैं कोशिश करता हूँ। एक अच्छी कहानी लिखने की कोशिश करूंगा। मगर तू मेरे लिए कोई नौकरी भी देख, मुझे भी कुछ करना है।
रोहन बोला, अबे, तू जानता ही है कि मेरे पापा की दुकान है। अगर चाहे, तो वहाँ काम कर सकता है। मैं पापा से पूछकर बताता हूँ।
वरुण के हालात इतने खराब थे कि वह कुछ भी करने को तैयार था
वरुण बोला, ठीक है, तू बात कर। मैं तैयार हूँ।
रात में वरुण घर आकर सोच रहा था कि जहाँ भी वह नौकरी मांगने जाता है, वहाँ लोग उससे अलग-अलग चीज़ों की मांग करते हैं। कोई पूछता है, क्या आपको वीडियो एडिटिंग आती है? कोई पूछता, क्या आपके पास नेटवर्किंग स्किल्स हैं? क्या आप लीडरशिप कर सकते हैं? क्या आप इंग्लिश में बात कर सकते हैं? क्या आप मार्केटिंग कर सकते है,????? आप दूसरों को समझा सकते हैं?
इन सवालों ने उसे परेशान कर दिया था। उसे समझ में आने लगा कि सिर्फ डिग्री से कुछ नहीं होगा, उसे स्किल्स भी सीखनी होंगी। उसने सोचा, लेखन भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है और यह तो मेरी अपनी रुचि भी है। मैं इसे सीख सकता हूँ और करने के लिए तैयार हूँ।
रोहन सही कह रहा था। नौकरी में समय की सीमा होगी, वह मिल भी सकती है और नहीं भी। लेकिन लेखन एक ऐसी चीज़ होगी, जो हमेशा उसके पास रहेगी। वह जब चाहे, इसे कर सकता है – दिन में, रात में, कभी भी। अगर सफल हुआ, तो बहुत आगे जा सकता है। अगर नहीं भी हुआ, तो कम से कम यह कह पाएंगे कि हमने मेहनत की थी।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।
अधूरी राहें "‘अधूरी राहें’ एक कल्पना की उड़ान है, जो जीवन के अनुभवों से प्रेरित होकर बुनी गई है। इसमें वर्णित पात्र,...