Pratilipi Hindi

Pratilipi Hindi Discover, read and share your favorite stories, poems and books in a language, device and format of your choice.

     धूल का गुबार ....आग की उठती लपटें और मनुष्यों की चीखें;रह रहकर महाराज वीरभद्र को अधीर कर रहीं थीं वह बार बार यज्ञ व...
28/09/2025


धूल का गुबार ....आग की उठती लपटें और मनुष्यों की चीखें;रह रहकर महाराज वीरभद्र को अधीर कर रहीं थीं वह बार बार यज्ञ वेदी की ओर देख रहे थे...एक एक करके सारी आहुतियां समाप्त हो रहीं थी अब आहुति के नाम पर कुछ धातुएं ही शेष थीं जो महराज वीरभद्र के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर रहीं थीं।

" पुरोहित जी शत सहस्र यज्ञ की आहुतियां अभी शेष है और सामग्री हमारे पास पर्याप्त नहीं है....कहीं यह अनुष्ठान खंडित न हो जाए..... वापस नगर की ओर जाकर सामग्री की व्यवस्था करता हूं!" पुरोहित के सहायक ने सामग्री की ओर देखते हुए कहा जो शत सहस्त्र यज्ञ के लिए लाई गई थी।

" नहीं बाल गोविंद.....हमें यह अनुष्ठान यहां उपस्थित सामग्री से ही करना होगा......शत सहस्र यज्ञ का यह नियम हैं एक बार जितनी सामग्री जितने व्यक्तियों के साथ यह अनुष्ठान प्रारंभ किया जाए अनुष्ठान पूर्ण होने तक उनकी संख्या में जोड़ या घटाव नहीं किया जा सकता.....!" पुरोहित जी ने याद दिलाते हुए कहा।

" किंतु उपलब्ध सामग्री अपर्याप्त प्रतीत हो रही है पुरोहित जी....कहीं अनुष्ठान में बाधा ना आ जाए.....!" बाल गोविंद ने फिर शंका प्रकट की।

" मां काली हमारा मार्ग प्रशस्त करें.....!" पुरोहित ने मां काली की मूर्ति की ओर देखते हुए उत्तर दिया।

महाभारत के 1000 वर्ष बाद आर्यावर्त पर दैत्य और दानवों का आना काम नहीं हुआ.... कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार में उन्हें अधिक संख्या में मांस का आहार मिलता रहा जो उन्हें बार-बार पृथ्वी पर आने को आकर्षित करता रहा और इस तरह वह धीरे-धीरे पृथ्वी पर अधिक संख्या में आने लगे और जब उन्हें मांस मिलना काम हो गया तब है जीवित मनुष्य पर आक्रमण करने लगे धीरे-धीरे आक्रमण बढ़ता गया और इतना बढ़ गया कि मानव मात्र इससे त्रस्त होकर रह गया.... लोग चीख पुकार करने लगे.... अपने-अपने राजाओं से अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।
राज्यों की स्थिति भी अत्यंत दयनीय होने लगी क्योंकि बाहरी शत्रुओं से तो वह लड़ सकते थे लेकिन यह आकाशीय दैत्य से लड़ना उनके लिए असंभव सा प्रतीत होता था वह उन्हें रोक तो सकते थे मगर हरा नहीं सकते थे।

ऐसी ही विपदा इस समय महाराजा वीरभद्र के राज्य चंद्रनगर पर थी वहां दानवों का आक्रमण बढ़ गया था..... राज्य में त्राहि त्राहि मच चुकी थी उन्होंने दानवों से लड़ने का भरसक प्रयास किया किंतु उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी ऐसे में उन्होंने कई विद्वानों से संपर्क किया और उनसे उपाय मांगा।

उस समय पांचाल प्रदेश के पुरोहित आदिदेव ने उन्हें माता काली का शत सहस्त्र अनुष्ठान करने की सुझाव दिया। पुरोहित जी के कथन अनुसार यह अनुष्ठान दुर्गम किन्तु फलदायक था।
इसमें शत सहस्त्र (एक लाख) आहुतियां देवी को समर्पित करनी होती है किन्तु यह कोई भी आहुति का दोहराव नहीं होना चाहिए हर आहुति एक नवीन वस्तु से देनी होगी.... और एक बार जब अनुष्ठान प्रारंभ हो जाए तो इसमें उपस्थित कोई भी व्यक्ति वहां से कहीं नहीं जा सकता ना ही कोई बाहरी व्यक्ति उसमें आ सकता है।

महाराज वीरभद्र ने यह अनुष्ठान आरंभ कर दिया लेकिन जैसे ही दानवों को यह पता चला वह इस अनुष्ठान को भंग करने पहुंच गए.... किंतु माता काली के प्रभाव से वह यज्ञ वेदी तक नहीं पहुंच पाए....लेकिन उन्होंने प्रजा को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया जिनकी चीखें महाराज को यज्ञ वेदी तक सुनाई दे रहीं थीं.... उनका हृदय द्रवित हो उठा किंतु है यज्ञ के नियम से बंधे हुए थे ना चाहते हुए भी उन्हें उन चीखों को अनसुना कर रहे थे..... लेकिन बाल गोविंद की बात उनके हृदय में शंका पैदा कर रही थी..... उन्हें भी यह प्रतीत हो रहा था की आहुति संख्या में कम थी..... और उनकी यह शंका सत्य प्रतीत हुई।

अनुष्ठान पूर्ण होने वाला था और कुछ ही आहुतियां शेष थी...लेकिन यह क्या सामग्री तो समाप्त हो चुकी थी..... उनके पास कोई भी नवीन वस्तु नहीं थी जिसके वह आहुति दे सके!

" यह तो अनर्थ हो जाएगा महात्मन्..... तुम्हारे पास कोई नवीन वस्तू शेष नहीं है.....शेष यज्ञ कैसे करें.......!" बाल गोविंद ने अपनी चिंता प्रकट की।

" यह कैसे संभव हो गया मैं स्वयं वस्तुओं की गणना की थी वह संख्या में पूरी थी फिर.....समाप्त कैसे हुई ...!" पुरोहित के चेहरे पे शंका के बादल उमड़ आए।

" अनुष्ठान नहीं रुकेगा पुरोहित जी.....!" कहते हुए महाराज वीरभद्र ने अपना अंगवस्त्र अग्नि को समर्पित कर दिया।

" महाराज...!" पुरोहित हतप्रभ हुए।

" हम स्वर्ण और बाकी धातुओं की आहुति दे चुके है लेकिन यह वस्त्र एक खास प्रकार के सूत से बना जो केवल गांधार में होता है इसलिए यह अनूठा है .....आप निश्चिन्त रहिए यह आहुति स्वीकार होगी।" महाराज वीरभद्र ने आत्मविश्वास के साथ कहा और उनका कथन सत्य हुआ आहुति स्वीकार हुई।

इस प्रकार उन्होंने अपने माणिको रत्नों और मोतियों की आहुति दी....अब केवल एक आहुति बाकी थी मगर समस्या यह थी की महाराज के पास कोई और नवीन वस्तु उपलब्ध नहीं थी ।

" पुरोहित जी मेरे पास अब कुछ भी शेष नहीं.....!" महाराज ने स्वयं को देखा।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

वर्तमान से 4000 वर्ष पूर्व उत्तर आयार्वत का एक स्थान धूल का गुबार ....आग की उठती लपटें और मनुष्यों की चीखें;रह रहकर महार.....

     रात अँधेरी थी। आकाश पर बादल घिरे हुए थे, और बिजली की चमक बार-बार महल की दीवारों को प्रकाशित कर रही थी। शाही महल, जो...
28/09/2025


रात अँधेरी थी। आकाश पर बादल घिरे हुए थे, और बिजली की चमक बार-बार महल की दीवारों को प्रकाशित कर रही थी। शाही महल, जो दिन में सुनहरी चमक से दमकता था, उस रात अंधेरे में किसी प्रेतात्मा की तरह खड़ा प्रतीत हो रहा था। दीवारों पर बनी शेरों की मूर्तियाँ बिजली की चमक में ऐसी जान पड़तीं जैसे वे जीवित हों और किसी पर घात लगाए हों।

राजमहल के प्रांगण में सन्नाटा पसरा था। पहरेदार अपने भालों को कसकर पकड़े खड़े थे, लेकिन उनकी आँखों में भी एक अजीब-सा भय था। यह भय किसी बाहरी दुश्मन से नहीं था, बल्कि महल के भीतर से उठने वाली छायाओं से था।

उस महल का नाम था “सिंहगढ़”। पीढ़ियों से यह राजवंश का गौरव रहा था। कहा जाता था कि यहाँ का सिंहासन केवल उसी को स्वीकार करता है, जिसके भीतर सिंह का साहस और सिंह की निष्ठा हो। परंतु कई वर्षों से यह सिंहासन अशांत था। वर्तमान राजा, वीरेंद्रसिंह, अपने राज्य को तो सफलतापूर्वक चला रहे थे, लेकिन उनके आसपास षड्यंत्रों की परछाइयाँ गहराती जा रही थीं।

---

गूंजती आवाज़ें

उस रात, राजा अपने कक्ष में अकेले थे। उनके सामने रखा दीपक झिलमिला रहा था, और दीवारों पर पड़ती परछाइयाँ अजीब आकृतियाँ बना रही थीं। अचानक, कमरे के कोने से एक धीमी-सी आवाज़ आई—
“सिंहासन पर बैठा हर व्यक्ति शिकार बनता है...”

राजा चौंककर उठ खड़े हुए।
“कौन है वहाँ?” – उन्होंने तलवार उठा ली।

परंतु कमरे में कोई न था। सिर्फ़ हवा का बहाव था, और दीपक की लौ कांप रही थी।
राजा ने सोचा कि शायद यह उनका भ्रम हो। वे वर्षों से युद्ध, राजनीति और विश्वासघात के बीच जीते आए थे। ऐसे में मन अक्सर खेल खेलने लगता है।

लेकिन तभी दरवाज़ा खुला और उनकी पत्नी महारानी पद्मावती भीतर आईं।
“महाराज, आप इतने विचलित क्यों दिख रहे हैं?”

राजा ने तलवार रख दी और धीमी आवाज़ में बोले—
“पद्मा, इस महल में कुछ है... कोई साया, जो मेरा पीछा कर रही है।”

महारानी की आँखें गहरी हो गईं। उन्होंने धीरे से कहा—
“शायद वह वही साया है, जो पीढ़ियों से इस राजवंश के पीछे है।”

---

भविष्यवाणी की गूँज

सालों पहले, राजा वीरेंद्रसिंह के जन्म के समय एक साधु महल में आए थे। उन्होंने कहा था—

“यह बालक सिंह की तरह पराक्रमी होगा। परंतु याद रखना, जिस दिन इसके सिर पर ताज सजेगा, उसी दिन इसकी छाया से राज्य कांप उठेगा। सिंह का साहस जितना उज्ज्वल होगा, सिंह की साया उतनी ही गहरी होगी।”

उस समय सबने इसे सामान्य भविष्यवाणी समझकर अनसुना कर दिया था। परंतु अब, जब राजमहल में अजीब घटनाएँ होने लगी थीं, तब यह वचन सबको याद आने लगा था।

---

पहला रक्त

अचानक दरबार से संदेश आया—“राजमहल के पश्चिमी हिस्से में पहरेदार की हत्या हो गई है।”

राजा तुरंत वहाँ पहुँचे। देखा तो एक सैनिक ज़मीन पर पड़ा था, उसकी आँखें खुली थीं पर चेहरा भय से जकड़ा हुआ। शरीर पर कोई गहरा घाव न था, परंतु गले पर पंजे जैसे निशान थे—मानो किसी जंगली जानवर ने हमला किया हो।

दरबारियों में कानाफूसी शुरू हो गई—
“क्या यह सिंह की साया है?”
“नहीं, यह कोई षड्यंत्र है।”

पर सच्चाई यह थी कि किसी को कुछ पता न था।

---

उत्तराधिकारी की राजनीति

राजा वीरेंद्रसिंह के दो पुत्र थे—राजकुमार आदित्यसिंह और राजकुमार विक्रमसिंह।

आदित्यसिंह बड़े पुत्र थे, गंभीर और धर्मपरायण। वे राज्य के कानून और न्यायप्रियता में विश्वास रखते थे। लोग उन्हें भावी उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे।

विक्रमसिंह छोटे थे, पराक्रमी और महत्वाकांक्षी। युद्धकला में निपुण, लेकिन स्वभाव से उग्र और जल्दबाज़।
दरबार में अक्सर यह चर्चा होती रहती कि सिंहासन किसे मिलेगा।

इन दोनों भाइयों के बीच की खटास छिपी नहीं थी।
आदित्य कहते—“राज्य की सेवा पहले है, ताज बाद में।”
विक्रम कहते—“ताज के बिना सेवा अधूरी है।”

---

रहस्यमयी मुलाकात

एक रात विक्रमसिंह गुप्त मार्ग से बाहर निकले। उन्होंने काले वस्त्र पहने थे और हाथ में तलवार थी। वे महल के बाहर एक पुराने मंदिर की ओर बढ़े।

वहाँ, अंधेरे में एक वृद्ध साधु खड़ा था। उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी।
साधु बोला—
“राजकुमार विक्रम, सिंहासन पाने की इच्छा है न?”

विक्रम ने तलवार झुकाकर कहा—
“हाँ, परंतु भाई मेरे आगे खड़े हैं। जब तक वे जीवित हैं, ताज मेरे सिर पर नहीं आ सकता।”

साधु हँस पड़ा।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

रात अँधेरी थी। आकाश पर बादल घिरे हुए थे, और बिजली की चमक बार-बार महल की दीवारों को प्रकाशित कर रही थी। शाही महल, जो दि.....

     आकाश में बिजलियां इस तरह कड़क रही थी जैसे वह धरती को आज पूरी तरह से सुलगा देगी, मौसम भादो का नहीं था उसके बावजूद भी...
28/09/2025


आकाश में बिजलियां इस तरह कड़क रही थी जैसे वह धरती को आज पूरी तरह से सुलगा देगी, मौसम भादो का नहीं था उसके बावजूद भी आकाश में जिस तरह से गर्जना हो रही थी वह आज से पहले कभी किसी ने नहीं सुनी थी।

तांत्रिक चांडाला जो कस्बे से बाहर स्थित श्मशान घाट में एक छोटी सी पत्थरों की बनाई हुई गुफा में रहता था।

वह अपनी गुफा से निकल कर बाहर आकाश को देख रहा था और उसकी आंखों में एक क्रोध की लहर आने लगी थी।

"यह जो सब कुछ हो रहा है यह अप्राकृतिक है और इसका कारण है हैवान, उसने कुछ ऐसा किया है जो उसे नहीं करना चाहिए था। उसने अपनी शक्ति का अनुचित प्रयोग किया है"।

अगले ही पल वह अपनी गुफा में गया था और वहां रखी उसने एक खोपड़ी उठा ली थी और उसके ऊपर अपने मुंह से रक्त निकालकर खोपड़ी पर उगल दिया था।

"हैवान तुम जहां कहीं भी हो मेरे सामने उपस्थित हो जाओ।"

खोपड़ी की दोनों आंखों में अब एकदम से चमक पैदा होने लगी थी और अगले ही पल हैवान जो अपने भयानक रूप में था वहां आ पहुंचा था।

बादलों में चमक रही बिजलियां उस हैवान के ऊपर गिर रही थी और उसे हद से ज्यादा भयानक बना रही थी।

तांत्रिक चांडाला "क्या किया है तुमने हैवान.. मैंने तुम्हें सिर्फ शिप्रा के प्रतिशोध तक उसके पास रहने की आज्ञा दी थी , शिप्रा का प्रतिशोध पुरा हो गया है । तुम अभी भी कस्बे में यह सब क्या कर रहे हो । वापस इस कपाल खोपड़ी में प्रवेश कर जाओ।"

हैवान अब बेहद खतरनाक अंदाज में हंसने लगा था "तांत्रिक तुमने मुझे शिप्रा के अंतिम प्रतिशोध तक उसके पास रुकने के लिए कहा था ..पर शिप्रा ने तो अपना अंतिम प्रतिशोध लिया ही नहीं.. तो फिर मैं वापस भी नहीं आ सकता,, और अब कभी वापस आऊंगा भी नहीं क्योंकि कलुआ का अंत तो उसकी मां रामकली ने कर दिया।"

तांत्रिक चांडाला उससे भी ऊंची आवाज में" अगर तू वापस नहीं आना चाहता है तो कोई बात नहीं.. पर तू वह मत कर, जो तुझे नहीं करना चाहिए ।"

"मैंने एक बार तुझे मानव की जिंदगी में दखल देने की आज्ञा दे दी ।वह भी उस शिप्रा की वजह से क्योंकि मैं उसके ऊपर होने वाली हैवानियत को नहीं देख पाया, पर अब तू मानव जिंदगी में दखल नहीं देगा"।

हैवान "मैं तो कुछ भी नहीं कर रहा हूं । आपने ही मुझे शिप्रा के साथ रहने का आदेश दिया था तो मैं उसी आदेश का अभी भी पालन कर रहा हूं और यह बात बोलकर वह फिर से हंसने लगा था।

तांत्रिक चांडाला की आंखें बड़ी हो गई थी "तेरे कहने का मतलब है तू उस शिप्रा को फिर से इस दुनिया में लेकर आ रहा है।"

हैवान कुछ नहीं बोला था सिर्फ हंसने लगा था।

तांत्रिक चांडाला" तू यह ठीक नहीं कर रहा है शिप्रा की आत्मा को आजाद कर दे इसी में उसकी और तेरी भलाई है।"

हैवान" मुझे अब कुछ भी समझाने की आवश्यकता नहीं है तांत्रिक। मुझे क्या करना है अब इसका फैसला मैं खुद करूंगा । मैंने तुमसे जो वादा किया था मैं उसे ही पूरा करूंगा और हमेशा अब शिप्रा के साथ ही रहूंगा।"

तांत्रिक चांडाला "नहीं अगर शिप्रा अगर दुनिया में दोबारा आएगी तो तू उसके साथ नहीं रहेगा उसे उसकी जिंदगी जीने देगा।"

हैवान" हां बिल्कुल तांत्रिक मैं उसे उसकी जिंदगी जीने दूंगा ।'"

तांत्रिक चांडाला" तो फिर जा चला जा यहां से ।"

हैवान एकदम से गायब हो गया था।

तांत्रिक चांडाला" इस हैवान ने तो मुझे मेरे ही वादों में उलझा कर रख दिया ।अब मैं अपने वादे तोड़ भी नहीं सकता"।

दूसरी तरफ

चमेली जिसका सिर बेहद भारी हो रहा था वह खड़ी भी नहीं रह पा रही थी और सोफे पर निढाल होकर पड़ी थी।

मदन उसके पास आते हुए "क्या हुआ तुम्हारी तबीयत तो ठीक है।'"

चमेली "हां ठीक है पर पता नहीं पेट में क्या हो रहा है अजीब सा भारीपन लग रहा है।"

मदन उसका सिर दबाते हुए"बाहर मौसम भी खराब है पता नहीं एकदम से मौसम को क्या हो गया मौसम ठीक हो जाएगा तो मैं तुम्हें अस्पताल में दिखा कर ले आऊंगा। चलो अंदर बिस्तर पर लेट जाओ यहां बैठना ठीक नहीं है।"

चमेली"" नहीं मेरा लेटने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा है और मेरा मन भी कच्चा हो रहा है उल्टी करने का दिल कर रहा है।"

"जाओ तुम रसोई में इमली रखी है तुम मेरे लिए इमली लेकर आओ,।"

मदन "ठीक है मैं अभी ला रहा हूं "।

और वह रसोई में चला गया था और इमली ढूंढने लगा था पर उसे इमली मिल ही नहीं रही थी।

"कहां रखी है इमली यहां तो किसी डब्बे में दिखाई नहीं दे रही है।"

अब एकदम से एक कोने में रखा डब्बा सरकते हुए मदन के सामने आ गया था।

"अरे यह डब्बा तो मैंने देखा ही नहीं"।

और फिर वह उसे खोलकर देखने लगा था।

"अरे मुझे ऐसे लगा जैसे डब्बा अपने आप खुल गया हो मेरे हाथ लगाते ही, शायद ढक्कन बहुत ढीला है इसका।"

मदन ने अब डब्बे के अंदर देखा था और उसे इमली के पीस नजर आ गए थे उसने जल्दी से उन्हें निकाल लिया था और डब्बे को वापस बंद करके रख दिया था।

वह जैसे ही पलट कर चला था डब्बा सरक कर वापस कोने में जाकर लग गया था।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

आकाश में बिजलियां इस तरह कड़क रही थी जैसे वह धरती को आज पूरी तरह से सुलगा देगी, मौसम भादो का नहीं था उसके बावजूद भी आक...

     "कहते हैं, अगर दिल से किसी को चाहो... तो कायनात भी उसे तुमसे मिलाने की साज़िश करती है।लेकिन... क्या हो जब कायनात भी...
28/09/2025


"कहते हैं, अगर दिल से किसी को चाहो... तो कायनात भी उसे तुमसे मिलाने की साज़िश करती है।
लेकिन... क्या हो जब कायनात भी किसी की मोहब्बत की गवाही देने से इनकार कर दे?"

ये कहानी है सांझ राठौड़ की —
महज़ 18 साल की एक सीधी-सादी, मासूम सी लड़की...
जिसकी दुनिया किसी चकाचौंध से नहीं, बल्कि एक नाम से रोशन थी — रुद्राय शेखावत।

वही रुद्राय...
राजस्थान की रेत जितना सख्त,
सूरज की तरह झुलसता हुआ तेज़,
और रिश्तों की गर्मी को ठुकरा देने वाला एक बर्फ़-सा ठंडा इंसान...

जो अपने दिल में नफरत से भी भारी कुछ और नहीं रखता — खासकर सांझ के लिए।

क्यों?

क्योंकि बचपन में, एक रस्म, एक रिवाज़, एक रीति ने...
उसे सांझ से बाँध दिया था — एक ऐसे रिश्ते में, जिसे वो कभी अपनाना ही नहीं चाहता था।
बाल विवाह — एक शब्द, जो उसके लिए बंधन बन गया।
और सांझ के लिए?
वो बंधन बन गया... मन्नत।

सांझ, जो हर दिन अपने 'हुकुम सा' की एक झलक के लिए तरसती रही...
हर करवाचौथ, हर जन्माष्टमी, हर रक्षाबंधन पर उसी के नाम की पूजा करती रही...
जबकि रुद्राय ने तो कभी पलट कर देखा तक नहीं।

उसे लगता है —
सांझ उसकी आज़ादी की बेड़ियाँ है।
एक जबरदस्ती थोपी गई कहानी है।
एक नाम, जिसे वो अपने नाम के आगे कभी जोड़ना नहीं चाहता।

लेकिन सांझ के लिए?
वो नाम ही उसकी पूरी कायनात है।
उसका रुद्राय... उसका 'हुकुम सा'... उसकी साँसों में बसा है।

वो इंतज़ार करती है...
हर सुबह उसके नाम से शुरू करती है,
और हर रात उसी की यादों में खोकर सो जाती है।

पर क्या होता है जब मोहब्बत एकतरफा हो...?
जब किसी का प्यार, किसी की नफरत से टकरा जाए...?

क्या सांझ की मासूम मोहब्बत, रुद्राय की बेरहम नफरत को पिघला पाएगी?
क्या वक़्त इन दोनों के बीच कोई पुल बनाएगा... या फिर ये फासला उम्र भर के लिए रह जाएगा?

कहते हैं...
अच्छाई के बदले अच्छाई मिलती है,
और प्यार के बदले प्यार।
लेकिन जब प्यार के बदले सिर्फ तिरस्कार मिले,
तो क्या कोई उम्मीद बचती है?

ये कहानी है...
मोहब्बत, इंतज़ार, रीति-रिवाज़ और तकरार की।
ये कहानी है — "सांझ और रुद्राय" की।

एक अधूरी शुरुआत...
एक अनकहा रिश्ता...
और एक सवाल —
"क्या प्यार जबरदस्ती नहीं हो सकता — ये नफरत भी क्या कभी मोहब्बत बन सकती है?"

जानने के लिए पढ़ते रहिए...
"सजा ए विवाह The heartless hukum "

हर रोज , सिर्फ के साथ।

चलिए कहानी में चलते हैं .....

"सांझ की हँसी, हवेली की रौनक"

ॐ गण गणपतये नमः।
जय श्री गणेशाय नमः।

सभी प्यारे पाठकों को मेरा स्नेह भरा नमस्कार।
आशा करती हूँ कि आप सब स्वस्थ, प्रसन्न और अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ रहे होंगे।

अब समय आ गया है कि हम एक बार फिर साथ मिलकर एक नई कहानी की दुनिया में प्रवेश करें —
एक ऐसी दुनिया, जहाँ रिश्तों की मिठास, परंपराओं की गरिमा, और दिलों की गहराई एक-दूसरे में रची-बसी है।

जहाँ हवेलियों की दीवारें सिर्फ ईंट-पत्थर की नहीं होतीं...
बल्कि हर दीवार में बसती है कहानियाँ, यादें, और वो खामोशियाँ जो बहुत कुछ कह जाती हैं।

तो आइए —
"सांझ और उसके हुकुम सा" की इस अनकही सी, अल्हड़ सी कहानी की पहली शाम में कदम रखते हैं।

---

राजस्थान की शामें हमेशा थोड़ी अलग होती हैं —
सूरज जैसे रेत में डूबने से पहले कुछ पल ठहरकर चारों ओर अपना सुनहरा आंचल बिछा देता है।

ऐसी ही एक शाम थी —
एक पुरानी हवेली के आँगन में फैला हुआ वो सोने जैसा प्रकाश,
दीवारों पर लगे झालर, तुलसी चौरे के पास जलती लौ,
और हवा में घुली केवड़ा और कपूर की मिलीजुली खुशबू।

पर इस शांत, स्थिर दृश्य को अचानक चीरती हुई एक खनकदार हँसी गूंजती है —

“मासा! थूं मने पकड़ कै देख तो सही!”

सतरंगी घाघरा-चोली पहने, हाथ में कांच की चूड़ियाँ खनकाती,
सोलह बरस की चंचल सी एक लड़की हवेली के आँगन में भाग रही थी।

“लाडो! रै लाडो!! रुक जा बेटा... पैलां रोटली खा ले, पाछै मस्ती करीज!”
उसके पीछे घाघरा समेटती हुई एक महिला दौड़ रही थी — वो थी पल्लवी रावत, उसकी माँ।

“ना-ना मासा! थूं पैलां मने पकड़ तो सही!”
लड़की ठिठोलियों में हँसती, गोरे गालों पर सूरज की रौशनी चमक रही थी।

उसकी पायल की छनक, चूड़ियों की खनक और हँसी की मिठास — पूरा आँगन जैसे जी उठा था।

“लाडो! थूं अब बड़ी हो गई है! थारे मं तो मस्ती थोड़ो घट जावणी चाही!”
पल्लवी की साँसे चढ़ी हुई थीं, पर चेहरे पर ममता से भरी मुस्कान फैली थी।

“मासा! मस्ती तो म्हारो जी है! बड़ी थावां या ब्याह रचावां... मस्ती तो कदी छूटसी नी!”
वो लड़की — सांझ रावत — अपनी लहराती चोटी को पीछे झटकती हुई बोली।

उसकी आंखों में एक ऐसी चमक थी, जो नादानी और सपनों के मेल से उपजी थी।
और उन सपनों के सबसे ऊपर था — "हुकुम सा"।

इतना कहते ही पल्लवी मुस्कराई और चुटकी ली —
“हूंम्म… अब तो हुकुम ही थाने सुधारसी!”

ये सुनते ही सांझ के पैर थम गए... जैसे कोई चिर परिचित नाम कानों में गूंज गया हो।
उसने अचानक ऊपर आसमान की ओर देखा — बादलों में हल्का चांद झांक रहा था।

धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए बोली —
“हुकुम सा रा ही तो बाट जोह री हूं... पण कांई खबर कोनी, कद आवै, कद देखावै...”
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

"कहते हैं, अगर दिल से किसी को चाहो... तो कायनात भी उसे तुमसे मिलाने की साज़िश करती है। लेकिन... क्या हो जब कायनात भी किसी ...

     पिछले सीजन में आपने पढ़ा कि कैसे एकांश और मोही शादी के बंधन में बंध जाते हैं। एकांश जिसके मन में मोही के लिए भाव बदल...
28/09/2025


पिछले सीजन में आपने पढ़ा कि कैसे एकांश और मोही शादी के बंधन में बंध जाते हैं। एकांश जिसके मन में मोही के लिए भाव बदलने लगे थे वो शाइना की जगह मोही को देख कर हैरान रह जाता है। शाइना के पिता नरेन सिन्हा इस बात से नाराज हो आहूजा’स के साथ अपने सारे रिश्ते खत्म कर वहाँ से चले जाते हैं। एकांश इस बात से आहत हो कि शाइना की वजह से उसे और उसके परिवार को ऐसी शर्मिंदगी उठानी पड़ी इस शादी को मानने से इंकार करता है तो गुरुजी उसे समझाते हैं कि उसकी नियति यही थी। वो इसे नहीं बदल सकता! वो फिर भी इंकार करता है और वहाँ से जा ही रहा होता है कि सुलेखा उसे रोकती है और सब संभालने के लिए उसे मजबूर करती है।

सारा आहूजा परिवार बाहर खड़ी मीडिया के सामने जाता है और उन्हें बताता है कि कैसे ऐन वक्त पर शाइना और एकांश ने अपने लिए यह फ़ैसला किया कि वो शादी नहीं करेंगे। मीडिया ने मोही पर सवाल उठाया कि कहीं वो तो इस रिश्ते के टूटने के लिए जिम्मेदार नहीं है! तो एकांश जवाब देता है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है और फिर मोही का हाथ पकड़ अंदर जाने बढ़ जाता है।

एकांश, मोही को ले कमरे में आता है और फिर उसे अंदर की ओर धकेल कर उसकी ओर बढ़ने लगता है। मोही डर के मारे पीछे कदम लेती है और पलंग पर बैठ कर रह जाती है। एकांश उसके ऊपर परछाई बन झुकता है और आँखों में सख्ती लिए बोलता है।

“इसे सच मत मानना... मैं इस शादी को नहीं मानता।” एकांश ने गुस्से से भरी आवाज में कहा और फिर वहाँ से हट अपने कमरे से लगी स्टडी में चला गया। मोही हक्की-बक्की सी उसे जाते हुए देखती रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब उसके जीवन में और क्या होना है...

आइए पढ़ते हैं आगे-

एकांश स्टडी में यहाँ से वहाँ चक्कर काट रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शाइना ऐसे कैसे जा सकती है! अगर उसे यह शादी नहीं करनी थी तो उसने कहा क्यों नहीं! उससे भी ज्यादा हैरत और गुस्सा उसे रजत पर था! वो उसकी दोस्तों की चौकड़ी में से एक था! जतीन्द्र, रजत, तान्या और वो... उसे इस तरह के धोखे की उम्मीद उससे नहीं थी। अगर वो एक बार कह देता कि उसके मन में ऐसा कुछ है तो वो खुद उसके और शाइना के लिए सबसे बात करता लेकिन यह जो भी कुछ हुआ उसके बाद अब वो किस पर यकीन करे यह समझ नहीं पा रहा था!

जब एकांश से यह उलझन और बर्दाश्त नहीं हुई तो उसने अपने चेहरे को हथेलियों में भरा और जोर से चीख उठा।

कमरे में पलंग से टिकी, अपने घुटनों में मुँह छिपाए रो रही थी कि उसे एकांश के चीखने की आवाज आई। उसने सुबकते हुए सिर उठा कर स्टडी के दरवाज़े की ओर देखा और एक बार फिर रो पड़ी।

मथुरा से दिल्ली आते समय उसके मन में बस एक अरमान था, महक को डॉक्टर बनाना, उसके लिए भले ही उसका जीवन स्वाहा भी हो जाता तो उसे दुख नहीं था। लेकिन इस तरह का बदलाव कभी आएगा उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका जीवन उसे इस मोड पर ले आएगा। मोही को स्टडी में एकांश के सामान को इधर उधर फेंकने की आवाज आ रही थीं और वो समझ नहीं पा रही थी कि वो कैसे आने वाले समय में उसका सामना करेगी! कैसे इस सबको संभालेगी!

अभी वो अपने आप में खोई, आने वाली संभावनाओं से डरी हुई सोच ही रही थी कि कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। तान्या थी।

“एकांश! एकांश!!” तान्या ने एकांश का नाम लिया लेकिन वो तो स्टडी में था! मोही ने एक नज़र स्टडी पर डाली और फिर उठ कर उसने कमरे के दरवाज़े खोल दिए। तान्या की नज़र मोही के आँसुओं से भरे चेहरे पर पड़ी तो उसने मोही का चेहरा अपनी हथेलियों में भरा और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।

“तनु दी, यह सब आपने क्या करवा दिया हमसे!”
“जो हुआ है उसी में सबकी भलाई है मोही। तुम दुखी मत रहो! देखना एक दिन दुनिया की सारी खुशियां तुम्हारे कदम चूमेंगी! अच्छा, एकांश कहाँ है?” तान्या ने पूछा तो मोही ने उसे स्टडी की ओर इशारा किया और एक बार फिर सुबक पड़ी।

वो उसे बताना चाहती थी जो एकांश ने उससे कहा कि वो इस शादी को नहीं मानता लेकिन जितनी उथल-पुथल इस समय मची हुई थी वो और कोई नया बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी। तान्या ने उसके गाल पर एक थपकी दी और उसे रुकने के लिए कह स्टडी की ओर बढ़ गई।

“एकांश! एकांश! दरवाज़े खोल।” तान्या ने दरवाज़े पर दस्तक देते हुए कहा। उसे भी अंदर से सामान फेंकने की आवाज आ रही थी। तान्या ने घबरा कर एक नज़र मोही पर डाली और फिर थोड़ी और जोर से दरवाज़े खटखटाए।

“एकांश! एक बार बात तो सुन ले भाई!” तान्या ने कहा तो अंदर से आवाज़ें आना बंद हो गईं। कुछ पलों में उसने आकर दरवाजा खोल दिया। तान्या अंदर गई और फिर दरवाजा बंद कर लिया।

मोही अपनी जगह पर खड़ी तान्या को अंदर जाते देख रही थी, तान्या ने दरवाज़े बंद किये तो मोही की आँखों से एक बार फिर आँसू बरसने शुरू हुए और वो निढाल शरीर लिए पलंग के एक कोने में जाकर सिमट कर बैठ गई।

-=-

“यह क्या हो गया है तुझको! बाहर मोही है वो डर रही है तुझे इस तरह पेश आते देख!” तान्या ने कहा तो एकांश ने पलट कर उसकी ओर देखा और बोला।

“शाइना चली गई थी तो मुझे क्यों नहीं बताया! उसे दुल्हन बना कर वहाँ बैठाने की क्या जरूरत थी!” एकांश ने चीख कर कहा तो तान्या ने उसे एक बार फिर शांत होने के लिए कहा और उसकी ओर बढ़ते हुए बोली।

“सब्र कर भाई! मैं तुझे सब समझा सकती हूँ लेकिन एक मौका तो दे कुछ बोलने का!”
“क्या मौका दूँ! इतना कुछ हो गया और तुम लोगों ने मुझे बताना जरूरी भी नहीं समझा! मेरे जीवन का फ़ैसला था और मुझे ही नहीं पता कि मेरी...” कहते हुए एकांश ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा और फिर नम आँखों से तान्या की ओर देख कर बोला।

“वो यहाँ से गई कैसे!” एकांश ने पूछा तो तान्या ने अपना निचला होंठ दबाया और सिर झुका लिया।

“मैं नहीं जानती।” तान्या ने झूठ कहा। इस समय उसे यही सही लगा। जिस तरह से एकांश का गुस्सा उसे दिखाई पड़ रहा था वो समझती थी कि सारा सच जानने के बाद वो आसमान सिर पर उठा लेगा।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

🌺🌺🌺 पिछले सीजन में आपने पढ़ा कि कैसे एकांश और मोही शादी के बंधन में बंध जाते हैं। एकांश जिसके मन में मोही के लिए भाव ....

     त्रेता युग के अवसान से लेकर कलयुग के प्रारंभ तक, ब्रन्दावन के तपस्वी ऋषि-मुनियों के पूज्य गुरुवर शिवराम पंडित जी एक...
28/09/2025


त्रेता युग के अवसान से लेकर कलयुग के प्रारंभ तक, ब्रन्दावन के तपस्वी ऋषि-मुनियों के पूज्य गुरुवर
शिवराम पंडित
जी एक पवित्र उत्तरदायित्व का निर्वाह करते आ रहे थे—
श्रीकृष्ण जी
की एक
दिव्य मूर्ति
की रक्षा और सेवा। यह मूर्ति मात्र पत्थर नहीं, अपितु स्वयं प्रभु का प्रतीक थीं, जिनमें एक दिव्य चेतना निवास करती थी।

एक संध्या, जब संपूर्ण ब्रज वास शांत था और मंद-मंद बयार तुलसी दलों को सहला रही थी,
शिवराम
जी दीपक की लौ के सम्मुख हाथ जोड़कर प्रभु की आराधना कर रहे थे। नेत्र मूंदकर उन्होंने हृदय में निवेदन किया—

"प्रभु, मुझे ज्ञात है कि कलयुग अपने चरम पर है। अन्याय और अधर्म की आंधी तेज़ होती जा रही है। अब समय आ गया है कि आप पुनः अवतरित हों।"

किन्तु उसी क्षण, भीतर से करुणा की पुकार सुनाई दी। उनकी धर्मपत्नी,
महारानी सुशीला
, प्रसव पीड़ा से व्याकुल हो उठी थीं। पूरा आश्रम व्यस्त हो गया। क्षण भर में ही एक शुभ समाचार ने वातावरण को पुलकित कर दिया—महारानी ने
जुड़वा पुत्रों
को जन्म दिया है।

शिवराम
जी प्रसन्नता से अभिभूत हो उठे। वे प्रभु-चिंतन को विस्मृत कर, उन्मुक्त हृदय से अपने नवजात पुत्रों के दर्शन हेतु दौड़े। जब उन्होंने उन्हें देखा, तो एक क्षण के लिए उनके अंतर्मन में हलचल सी मच गई—
एक शिशु पूर्णतः श्वेत, दूध की तरह उज्ज्वल, और दूसरा गहन अंधकार जैसा श्यामवर्ण!
किन्तु उस वैषम्य में भी, एक पिता का स्नेह बाधित नहीं हुआ। उन्होंने दोनों को हृदय से लगाया और प्रेम से झुलाने लगे।

नामकरण की रहस्यपूर्ण बेला

कुछ दिवस पश्चात् नामकरण संस्कार की विधि आरंभ हुई। समस्त परिजन, गुरुजन और ब्रज के प्रतिष्ठित जन एकत्र हुए।
शिवराम
जी अपने पवित्र आसन पर विराजमान थे, समर्पण भाव से पुत्रों की कुंडलियाँ देखकर सोच में डूब गए। मन ही मन बोले—

"यह कैसे संभव है? जिस क्षण इनका जन्म हुआ, उस दिन तो चंद्रग्रहण का कोई योग नहीं था। मैंने स्वयं पंचांग देखा था। फिर यह विचित्र गणना क्यों?"

जैसे-जैसे उन्होंने गणना आगे बढ़ाई, एक चौंकाने वाला सत्य उनके समक्ष प्रकट हुआ—

"यदि ये दोनों पुत्र बारह वर्ष की अवस्था में आमने-सामने आए, तो एक-दूसरे के प्राण शत्रु बन जाएंगे!"

विचारों की जटिलता में उलझे शिवराम जी के मुख से धीरे-धीरे शब्द फूटे—

"यह कैसी अलौकिक कुंडली है? क्या यह उसी दिन की प्रभु-चर्चा का प्रतिफल है? क्या यह प्रभु की कोई लीला है?"

और फिर, कुंडलियों में ही प्रकट हुआ—दोनों बालकों के दो-दो नाम—'
अंत
' और '
अनंत
'।

सभा में मौन छा गया। सबकी दृष्टि
शिवराम
जी पर टिकी थी। उन्होंने नेत्र मूंदकर ध्यान किया, और फिर निर्णय सुनाया—

"मेरे बड़े पुत्र, जो श्यामवर्ण हैं, उनका नाम होगा 'अंत', और छोटे पुत्र, जो गौरवर्ण हैं, उनका नाम होगा 'अनंत'।"

और यहीं से प्रारंभ हुई एक अद्भुत गाथा...
जहाँ
अंत
और
अनंत
, समय की रेखा पर दो विपरीत ध्रुव बनकर, ब्रह्मांड के संतुलन को चुनौती देंगे।

ब्रन्दावन के ऋषि-मुनियों के गुरु
शिवराम पंडित
जी का परिवार त्रेता युग के अंत से लेकर कलयुग के प्रारंभ तक श्री कृष्ण जी की एक मूर्ति की रक्षा कर रहा था।

1 जनवरी 2012

अनहोनी का संकेत

ब्रज की पावन रात्रि थी। दिशाएँ शांत थीं और आकाश तारों से सज्जित। आश्रम में उल्लास का वातावरण था, क्योंकि शिवराम जी के दोनों पुत्रों का बारहवाँ जन्मदिवस था।
शिवराम
और
सुशीला
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

1 जनवरी 2000 महान शक्तियों का जन्म ब्रजधाम की रज में जन्मी कथा त्रेता युग के अवसान से लेकर कलयुग के प्रारंभ तक, ब्रन्दा....

     "मुझे इंटरव्यू लेने का शौक नहीं। मैं सिर्फ़ चीज़ें खरीदता हूँ... और आज, मैं तुम्हे खरीदना चाहता हूँ । मेरी कॉन्ट्रै...
28/09/2025


"मुझे इंटरव्यू लेने का शौक नहीं। मैं सिर्फ़ चीज़ें खरीदता हूँ... और आज, मैं तुम्हे खरीदना चाहता हूँ । मेरी कॉन्ट्रैक्ट वाइफ के तौर पर।"

ये शब्द थे वेदांश आहूजा के। मुंबई का वो नाम, जिसके एक इशारे पर बाज़ार झुक जाता है । मैं यशस्वी देशपांडे, उस पल काँप उठी जब उसने ये ऐलान किया। मैं तो एक नैनी के इंटरव्यू में आई थी, अपने भाई की साँसें बचाने के लिए। पर यहाँ आकर पता चला, ये सिर्फ़ एक नौकरी नहीं, बल्कि उस पत्थरदिल आदमी के साथ ज़िंदगी भर का एक ऐसा झूठा रिश्ता था, जहाँ मुझे उसकी पत्नी और एक अजनबी बच्ची की माँ बनने का नाटक करना था। 'ये क्या बदतमीज़ी है?' मैं वहाँ से भागने वाली थी, अपनी इज़्ज़त और पहचान बचाने के लिए।

पर तभी मेरे फ़ोन पर हॉस्पिटल से एक कॉल आई, "यशी तेरा भाई... वो मर रहा है! प्लीज जल्दी आ!"

उस एक कॉल ने मेरी पूरी दुनिया तबाह कर दी। मैं बेबस थी। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था, सिवाय अपनी आँखें मूँदकर, उस बेदर्द वेदांश आहूजा के सामने दोबारा जाने के। वो बैठा था, एक ऐसी ख़ामोशी में जो चीख़ती हुई थी। मैंने हिम्मत करके उसकी आँखों में देखा – वो काली, गहरी, और इतनी बेरहम थीं कि लगा मेरी रूह तक काँप जाएगी। और फिर, बिना एक पल भी गंवाए, उसकी आवाज़ गूँजी, जैसे कोई फ़रमान हो, जो मैंने पहले भी उसके मुंह से सुना था।

मैं टूट चुकी थी। जब मैं वापस उसके सामने आई, तो मेरी नज़रें झुकी हुई थीं। मेरे होंठ काँप रहे थे, पर आवाज़ में दर्द था, हार नहीं, "मैं तैयार हूँ..."

वो मेरी तरफ़ घूमा, उसकी निगाहों में वही ठंडापन था, "अपनी कीमत बताओ।"

उसकी बातें मेरे दिमाग में ज़हर की तरह घुल रही थीं। क्या वो सच में इतना क्रूर था? क्या मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था, सिवाय इस अंधे कुएँ में कूदने के? क्या मैं सच में उसकी नफ़रत की दीवार को तोड़ पाऊँगी? क्या मैं उस छोटी सी तानी की माँ बनकर अपने भाई की ज़िंदगी बचा पाऊँगी, या ये कॉन्ट्रैक्ट मुझे हमेशा के लिए उस नफरत भरे महल में क़ैद
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

"मुझे इंटरव्यू लेने का शौक नहीं। मैं सिर्फ़ चीज़ें खरीदता हूँ... और आज, मैं तुम्हे खरीदना चाहता हूँ । मेरी कॉन्ट्रैक.....

     एक लड़का तपती धुप मे कान से फोन लगाए गुस्से मे खड़ा था, ऐसा लग था था की वो किसी पर चिल्ला रहा है। उसकऐ सुर्ख लाल होंठ...
28/09/2025


एक लड़का तपती धुप मे कान से फोन लगाए गुस्से मे खड़ा था, ऐसा लग था था की वो किसी पर चिल्ला रहा है।

उसकऐ सुर्ख लाल होंठ, गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा, एक हाथ मे फोन और दूसरा हाथ जेब मे था।

उसके आस पास कई लोग काले कपड़े मे खडे थे ऐसा लग रहा था वो लोग उसे प्रोटेक्ट कर रहे थे।

उन लोगो के बिच मे खड़ा वो लड़का फोन पर गुस्से से बोला,,,,-" जल्दी कार लेकर पहुँचो बेवकूफ मुझें लेट हो रहा है। "

" जी सर मैं बस दस मिनट मे वहाँ आ जाऊंगा। " सामने से उसकी असिस्टेंट की डरी हुई आवाज आई।

" जल्दी। "

बोलकर उस लडके नें फ़ोन कट कर दिया।

बगल मे ही ऑटो स्टेण्ड था जहाँ पर खडे लोग उसे ही घूर रहे थे।

लड़कियों नें तो मानो अपना होश ही खो बैठी थी उस लडके को देखकर।

उसकी कसी हुई बॉडी, 6 फिट लम्बा, चौड़ा सीना ऊपर से उसके बिखरे बाल जो आखों को ढ़के हुये थे गर्दन से हल्के निचे आते बाल उसकी पर्सनालिटी को और भी ज्यादा चार्मिंग बना रही थी।

" ये सान्वी उधर देख ना कितना हैंडसम लड़का खड़ा है। "

एक लड़की सामने खडे लडके को देखकर फोन मे बीजी अपनी एकलौती बेस्ट फ़्रैंड से कहा जो उस लडके की तरफ ना देखकर कब से अपने फोन मे बीजी थी।

वो दोनों लड़की स्कूल यूनिफार्म मे थी।

" छोड़ ना काजल क्यूँ कोई हैंडसम लड़का देखकर तेरा दिल धड़कनें लगता है? " वो लड़की जिसका नाम सान्वी था वो बोली।

" यार तू एक बार देखेगी तो तुझे समझ मे आएगा मैंनें आज तक इतना खूबसूरत लड़का नहीं देखा।"

" तूने अपनी 18 साल की उम्र मे कौन सी दुनियां देख ली, उसे छोड़कर पेपर पर फोकस कर कुछ दिन मे मिड टर्म होने वाला है। "

" एग्जाम को मार गोली पहले उसकी तरफ देख। "

बोलते हुये काजल नें सान्वी का चेहरा उस तरफ कर दिया जिस तरफ वो लड़का खड़ा था।

सान्वी तुरंत अपना चेहरा छुड़ाने लगी।

" छोड़ कमीनी,,,,!"

" तू पहले देख ना। "

सान्वी नें जबरदस्ती उस लडके की तरफ देखा।

" कुछ खास भी नहीं है और उसकी उम्र भी 30 से कम नहीं है। उसकी उम्र और खुद की उम्र का तो लिहाज कर। " सान्वी मुँह बनाते हुये बोली।

" इश्क़ मे उम्र का लिहाज नहीं होता है। "

" बस कर, चल हमारी बस आ गई स्कूल के लिए लेट हो रहे है। "

सान्वी अपना बैग लेकर जाने लगी।

काजल मन मार कर उसके पीछे गई पर वो अभी भी उसी लडके को घूर रही थी।

सान्वी अपनी सीट पर बैठ गई और उसकी नजर उस लडके पर गई जो बार - बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहा था।

" दिखा तो ऐसे रहा है जैसे इसके पास वक़्त ही ना हो, यही देश का प्राइम मिनिस्टर है!"

काजल उसी को देखते हुये जा रही थी। और देखते ही देखते बस वहाँ से चली गई।

_____________

" सॉरी सर मुझें लेट हो गया वो रास्ते मे ट्रेफिक बहोत ज्यादा था ऊपर से आज स्कूल के बच्चों नें स्कूल के खिलाफ अनशन किया था। "

उस लडके का असिस्टेंट डरते हुये बोला।

" आज तो बच गए पर हर बार नहीं बच पाओगे। "

कहते हुये वो लड़का अपनी कार मे बैठ गया।

" अब चलो की खडे - खडे मेरा चेहरा देखते रहोगे। " वो लड़का गुस्से मे बोला।

" जी सर!"

कहते हुये असिस्टेंट ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

वो लोग वहाँ से निकल गए।

_____________

" सर आपकी प्रेस कॉन्फ्रेंस थोड़ी देर मे शुरू होने वाली है। "

" ठीक है!"

" सर वो आपके डैड का कॉल आया था, वो बोल रहे थे की आज आप उनसे मिलने के लिए उनके घर जाये। "

" उन्हें फोन करके मना कर दो। "

" पर सर!"

" रौशन!"

" सॉरी सर! मैं अभी कॉल करके मना कर देता हूँ।"

" गुड!"

उसकी भारी भरकम आवाज ही काफ़ी थी सबको डराने के लिए।

वो एक बार खुद को आईने मे देखकर मुस्कुराया और बाहर चला गया।

वो लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस रूम मे गए।

उसे देखते ही सब लोग उसकी फोटो लेने लगे।

वो जाकर स्टेज पर रखी चेयर पर आराम से बैठ गया।

" हैल्लो! मिस्टर शान, आप कैसे है? "

शान नें कोई जवाब नहीं दिया।

( शान, पूरा नाम शान मेहरा। उम्र 30 साल, गोरा रंग, स्काई ब्लु ( नीली ) आँखे, चेहरे पर कोई भाव नहीं। )

( ज्यादा डिटेल्स नहीं दूंगी, आगे खुद ही पता चल जायेगा। )
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें।

एक लड़का तपती धुप मे कान से फोन लगाए गुस्से मे खड़ा था, ऐसा लग था था की वो किसी पर चिल्ला रहा है। उसकऐ सुर्ख लाल होंठ, गुस...

Address

Sona Towers, 4th Floor, No. 2, 26, 27 And 3, Krishna Nagar Industrial Area, Hosur Main Road
Bangalore
560034

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Pratilipi Hindi posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Pratilipi Hindi:

Share

प्रतिलिपि हिंदी में आपका स्वागत है !

प्रिय लेखक और पाठक,

प्रतिलिपि हिंदी में आपका स्वागत है !

प्रतिलिपि भारत का सबसे बड़ा स्टोरीटेलिंग प्लेटफॉर्म है। आप अपनी रचना को प्रतिलिपि के एंड्राइड एप और वेबसाइट पर निशुल्क रूप से लिख व प्रकाशित कर सकते हैं।

उसी तरह, आप निशुल्क रूप से 12 भाषाओं में रचनाएँ पढ़ भी सकते हैं।