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SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाईशहर की तेजतर्रार एसपी...
05/09/2025

SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाई
शहर की तेजतर्रार एसपी आराध्या सिंह आज यूनिफॉर्म में नहीं, बल्कि एक आम महिला की तरह सजी-धजी अपनी रिश्तेदार की शादी में जा रही थी। नीली सिल्क की साड़ी, हल्के झुमके और चेहरे पर मुस्कान लिए वह अपनी गाड़ी खुद चला रही थी। ड्यूटी से छुट्टी मिलना मुश्किल था, लेकिन आज वह सिर्फ आराध्या थी – अपने परिवार के लिए, अपनी छोटी बहन रिया की शादी के लिए।

रास्ता लंबा था, लेकिन मन उत्साहित। किशोर कुमार के पुराने गाने गूंज रहे थे। अचानक, गाड़ी का पिछला टायर डगमगाने लगा। गाड़ी रोककर देखा तो टायर पंचर था। ड्राइवर भी साथ नहीं था और सड़क सुनसान। मोबाइल नेटवर्क गायब। आराध्या ने मन ही मन भगवान को याद किया, "अब क्या करूं?"

तभी दूर एक टीन की छत वाली पंचर की दुकान दिखी। उसने राहत की सांस ली और वहां पहुंच गई। दुकान पर एक बूढ़ा बैठा था। आराध्या ने कहा, "मुझे जल्दी शादी में पहुंचना है, टायर ठीक कर दीजिए।" बूढ़े ने जवाब दिया, "बिटिया, मेरा कारीगर आता ही होगा, बस 5 मिनट बैठिए।"

कुछ देर बाद एक दुबला-पतला मजदूर, चेहरे पर मास्क और सिर पर गमछा बांधे, दुकान पर आया। उसने बिना कुछ बोले टायर निकालना शुरू किया। आराध्या उसे गौर से देख रही थी। उसके हाथों की हरकतें, काम करने का तरीका – सबकुछ जाना पहचाना सा लगा। उसने पूछा, "मास्क क्यों पहना है?" मजदूर बोला, "सर्दी है, धूल मिट्टी से एलर्जी है।"
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SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाई
शहर की तेजतर्रार एसपी आराध्या सिंह आज यूनिफॉर्म में नहीं, बल्कि एक आम महिला की तरह सजी-धजी अपनी रिश्तेदार की शादी में जा रही थी। नीली सिल्क की साड़ी, हल्के झुमके और चेहरे पर मुस्कान लिए वह अपनी गाड़ी खुद चला रही थी। ड्यूटी से छुट्टी मिलना मुश्किल था, लेकिन आज वह सिर्फ आराध्या थी – अपने परिवार के लिए, अपनी छोटी बहन रिया की शादी के लिए।

रास्ता लंबा था, लेकिन मन उत्साहित। किशोर कुमार के पुराने गाने गूंज रहे थे। अचानक, गाड़ी का पिछला टायर डगमगाने लगा। गाड़ी रोककर देखा तो टायर पंचर था। ड्राइवर भी साथ नहीं था और सड़क सुनसान। मोबाइल नेटवर्क गायब। आराध्या ने मन ही मन भगवान को याद किया, "अब क्या करूं?"

तभी दूर एक टीन की छत वाली पंचर की दुकान दिखी। उसने राहत की सांस ली और वहां पहुंच गई। दुकान पर एक बूढ़ा बैठा था। आराध्या ने कहा, "मुझे जल्दी शादी में पहुंचना है, टायर ठीक कर दीजिए।" बूढ़े ने जवाब दिया, "बिटिया, मेरा कारीगर आता ही होगा, बस 5 मिनट बैठिए।"

कुछ देर बाद एक दुबला-पतला मजदूर, चेहरे पर मास्क और सिर पर गमछा बांधे, दुकान पर आया। उसने बिना कुछ बोले टायर निकालना शुरू किया। आराध्या उसे गौर से देख रही थी। उसके हाथों की हरकतें, काम करने का तरीका – सबकुछ जाना पहचाना सा लगा। उसने पूछा, "मास्क क्यों पहना है?" मजदूर बोला, "सर्दी है, धूल मिट्टी से एलर्जी है।"
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DM मैडम रात में शादी से लौट रहीं थी पुलिस ने बीच सड़क पर रोका और गंदी हरकत करने लगे फिर जो हुआ...उत्तर प्रदेश के सरायपुर...
05/09/2025

DM मैडम रात में शादी से लौट रहीं थी पुलिस ने बीच सड़क पर रोका और गंदी हरकत करने लगे फिर जो हुआ...
उत्तर प्रदेश के सरायपुर गांव की मिट्टी में जन्मी रिदा वर्मा ने अपनी मेहनत और लगन से आईएएस की परीक्षा पास की थी। वे अब जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थीं, लेकिन उनके दिल में गांव की खुशबू और बचपन की यादें हमेशा ताजा रहती थीं। शहर की भागदौड़ और सरकारी जिम्मेदारियों के बीच जब उनकी चचेरी बहन अनन्या की शादी का निमंत्रण आया, रिदा ने एक महीने की छुट्टी लेने का फैसला किया। यह छुट्टी उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने वाली थी।

गांव पहुंचते ही परिवार ने उनका स्वागत किया। मां ने माथे पर टीका लगाया, पिता ने गले लगाया और अनन्या ने शादी की तैयारियों की लंबी सूची सुनाई। रिदा ने तय किया कि वे अपनी DM वाली पहचान छुपाकर, सादा सलवार-सूट पहनकर, बिना मेकअप के घर में घुल-मिल जाएंगी। दिनभर वे रिश्तेदारों के साथ हंसी-मजाक, मेहंदी, मिठाइयों और शादी की रस्मों में व्यस्त रहीं। शाम को गांव की गलियों में टहलते हुए बचपन की यादें ताजा हो जातीं। शादी का माहौल उत्साह और उमंग से भरा था।

लेकिन एक रात उनकी जिंदगी बदलने वाली थी। शादी से दो दिन पहले रिदा को नींद नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा, बाहर टहलने से मन हल्का हो जाएगा। रात के करीब दस बजे वे चुपके से घर से निकल गईं। सादे कपड़ों में, बिना किसी आभूषण के, वे गांव की सुनसान सड़क पर चलने लगीं। चांद की हल्की रोशनी सड़क पर बिखरी थी। दूर कहीं कुत्ते भौंक रहे थे। रिदा ने सोचा, बस थोड़ा घूमकर लौट जाएंगी।

तभी अचानक एक पुलिस जीप की रोशनी उनकी आंखों में पड़ी। जीप रुकी और उसमें से चार पुलिस वाले उतरे – दरोगा राम सिंह, कांस्टेबल विजय, राजेश और सुरेश। उनकी नजरें रिदा पर टिक गईं। राम सिंह ने कड़क आवाज में पूछा, “इतनी रात को अकेली लड़की कौन हो तुम?”
रिदा ने संयमित स्वर में जवाब दिया, “मैं यहीं की हूं, शादी में आई हूं।”
पुलिस वालों की मुस्कान में कुछ गलत था। रिदा ने उनकी संदिग्ध नजरों को भांप लिया, लेकिन खुद को संयमित रखा।
राम सिंह ने आगे बढ़कर फिर पूछा, “नाम क्या है? इतनी रात को बाहर क्यों घूम रही हो?”
रिदा ने सोचा, अगर वे अपनी DM वाली पहचान बता देंगी तो गांव में बात फैल जाएगी। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “मेरा नाम रिदा है। बहन की शादी के लिए आई हूं, बस थोड़ा घूमने निकली हूं।”
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बेटी की शादी हुई और 19 साल तक वापस नहीं लौटी, माता-पिता चुपचाप मिलने आए, लेकिन दरवाज़ा खोलते ही डर के मारे फूट-फूट कर रो...
05/09/2025

बेटी की शादी हुई और 19 साल तक वापस नहीं लौटी, माता-पिता चुपचाप मिलने आए, लेकिन दरवाज़ा खोलते ही डर के मारे फूट-फूट कर रोने लगे...
उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव, उत्तर प्रदेश में, लोग श्री ओम प्रकाश और उनकी पत्नी को बरामदे में बैठे देखते हैं, उनकी आँखें राष्ट्रीय राजमार्ग पर टिकी रहती हैं जहाँ से मुंबई जाने वाली लंबी दूरी की बसें गुजरती हैं। उनकी सबसे छोटी बेटी मीरा की शादी को उन्नीस साल हो गए हैं, और वह कभी वापस नहीं लौटी।
पहले तो मीरा फ़ोन करती और चिट्ठियाँ भेजती थी। लेकिन धीरे-धीरे, ख़बरें कम होती गईं और फिर गायब हो गईं। मीरा की माँ सुशीला अक्सर आँखों में आँसू लिए बरामदे में बैठी रहती:
- मुझे आश्चर्य है कि अब वह कैसी होगी... क्या वह इस गाँव को भूल गई है?
श्री ओम प्रकाश ने एक आह रोक ली, उनका दिल दुख रहा था, लेकिन वे अपनी बेटी को दोष नहीं दे सकते थे।
एक दिन, उन्होंने फैसला किया:
- माँ, मुझे उसे ढूँढ़ने मुंबई जाना है। चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे उसे अपनी आँखों से देखना है।
अंतरराज्यीय ट्रेन में कई दिन और रात बिताने के बाद, उन्हें आखिरकार पता मिल गया। ठाणे के बाहरी इलाके में एक शांत गली में एक छोटा सा कमरा था, जिसमें एक पुराना लकड़ी का दरवाज़ा और जर्जर दीवारें थीं।
सुशीला का दिल ज़ोर से धड़क रहा था जब उसने दस्तक दी। एक पल बाद, दरवाज़ा थोड़ा सा खुला, और मीरा प्रकट हुई। उनके सामने का दृश्य देखकर वे अवाक रह गए: उनकी बेटी का थका हुआ चेहरा, लाल आँखें, और बनावटी मुस्कान।
"मीरा... मेरी बच्ची..." ओम प्रकाश की आवाज़ रुँध गई।
मीरा दौड़कर बाहर आई और अपने माता-पिता को गले लगा लिया, उसके चेहरे पर आँसू बह रहे थे। सुशीला चौंक गई:
"मेरी बच्ची, उन्नीस साल हो गए, तुम एक बार भी हमारे पास वापस क्यों नहीं आई?"
मीरा के जवाब देने से पहले ही घर के अंदर से एक हल्की खाँसी की आवाज़ आई। उसके माता-पिता आश्चर्य से अंदर आए, फिर स्थिर हो गए। साधारण चारपाई पर एक आदमी निश्चल पड़ा था। उसका चेहरा पीला था, लेकिन उसकी आँखें उन्हें देखते हुए दयालु थीं।
वह मीरा का पति, अर्जुन था।
श्रीमती सुशीला काँप उठीं:
– हे भगवान... यह क्या है?...
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IPS मैडम भेष बदलकर उसी हॉस्टल में पहुँची जिसमें लड़कियों को एक रात के लिए बेचा जाता, फिर जो हुआ...आईपीएस मैडम का जांबाज ...
05/09/2025

IPS मैडम भेष बदलकर उसी हॉस्टल में पहुँची जिसमें लड़कियों को एक रात के लिए बेचा जाता, फिर जो हुआ...
आईपीएस मैडम का जांबाज मिशन
दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी में एक महिला आईपीएस अफसर भावना राठौड़ अपने सरकारी क्वार्टर में बैठी थीं। उनके सामने एक फाइल थी, जिसमें तिहाड़ महिला जेल से आई एक गुमनाम चिट्ठी थी। उसमें लिखा था – “मैडम, मैं नाम नहीं बता सकती, लेकिन जेल के अंदर जो हो रहा है, वो कानून के नाम पर कलंक है। दरोगा रंजीत यादव हर रात किसी न किसी महिला कैदी को अपने ऑफिस बुलाता है, धमकी देता है, और उनकी इज्जत से खेलता है। विरोध करने वाली को खाना, दवा, कोर्ट पेशी तक नहीं मिलती। कोई सुनने वाला नहीं है।”

भावना कई सालों से सेवा में थीं, सैकड़ों केस देख चुकी थीं, लेकिन यह मामला उन्हें अंदर तक हिला गया। उन्होंने तय कर लिया – रिपोर्ट बनाना, नोटिंग करना, या सिर्फ जांच टीम भेजना काफी नहीं है। यहां खुद जाना होगा, उस नरक को भीतर से देखना होगा। उन्होंने अपने भरोसेमंद कांस्टेबल सतीश से कहा, “मुझे एक फर्जी पहचान चाहिए, नाम होगा गौरी मिश्रा, केस घरेलू हिंसा का। एफआईआर, मेडिकल, सब तैयार करो। मैं खुद जेल जाऊंगी।”

सतीश ने पहले विरोध किया, “मैम, आपकी जान को खतरा है।” भावना ने कहा, “अगर रोज़ ये औरतें मर रही हैं तो मेरा अफसर बनना किस काम का?” अगले ही दिन सब तैयार हो गया – फर्जी एफआईआर, मेडिकल रिपोर्ट, पड़ोसियों की गवाही, और एक वीडियो जिसमें भावना खुद गौरी बनकर झगड़ा करती दिखीं। अदालत में पेशी हुई, सरकारी वकील ने कहा, “गौरी मिश्रा घरेलू हिंसा की आरोपी है, न्यायिक हिरासत में भेजा जाए।” जज ने 14 दिन की तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया।

जेल की वैन में बैठते वक्त भावना का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। अब वह आईपीएस नहीं, सिर्फ एक आम महिला कैदी थी। तिहाड़ के गेट पर मोटे लोहे का दरवाजा, ऊंची दीवारें, सीसीटीवी कैमरे, औरतें – सब कुछ डरावना था। अंदर घुसते ही एक महिला पहरेदार ने मजाक उड़ाया, “नई माल आई है?” भावना ने सिर झुका लिया। बैरक में बदबू, सीलन, गीला कंबल, और 12 औरतें – सबकी आंखों में डर, अपमान, और टूटन थी।

पहली रात ही भावना को डिप्टी जेलर के ऑफिस बुलाया गया। दरोगा रंजीत यादव सामने बैठा था, बीड़ी सुलगाते हुए। उसने भावना को घूरा, “बहुत चर्चे हैं तेरे तेवरों के। अब यहां आ गई है, ताव छोड़ दे।” वह कुर्सी से उठा, भावना की ठुड्डी पकड़ने की कोशिश की। भावना पीछे हट गई। उसके कंधे में छुपा रिकॉर्डिंग डिवाइस चालू था। रंजीत ने धमकी दी, “अगर सहयोग करेगी तो अच्छा खाना, बिस्तर, फोन सब मिलेगा। वरना भटकती रह जाएगी।” भावना ने कांपती आवाज में कहा, “मैं बस सोना चाहती हूं।” रंजीत हंसा, “ठीक है, पहली रात छोड़ देता हूं। लेकिन कल से कोई बहाना नहीं चलेगा।”

बैरक लौटते वक्त रुबीना नाम की एक बुजुर्ग महिला ने भावना की तरफ देखा, “हर नई लड़की के साथ यही होता है। विरोध करने वाली गायब हो जाती है या पागल घोषित कर दी जाती है।” भावना ने सोचा, “यह लड़ाई एक दिन में नहीं जीती जा सकती।”

अगले कुछ दिन भावना ने कैदियों से दोस्ती बढ़ाई। अंजलि, सीमा, नेहा – सबकी अपनी-अपनी दुखभरी कहानियां थीं। कोई चोरी के झूठे केस में फंसी थी, कोई पति की साजिश का शिकार, कोई बस इसलिए जेल में थी क्योंकि उसका वकील छुट्टी पर था। भावना ने धीरे-धीरे सबकी बातें रिकॉर्ड कीं – दवा में गड़बड़ी, पेशी रोकना, खाना बंद करना, और सबसे बड़ी बात – रंजीत का रात में बुलाना।

एक दिन रुबीना ने बताया, “मेरे पास मेरे अब्बा की डायरी थी, जिसमें जेल के भ्रष्टाचार, नेताओं और अफसरों के नाम थे। लेकिन वो डायरी उसी दिन गायब हो गई जब मैंने दरोगा की बात मानने से इंकार किया।” भावना को लगा, “अगर डायरी मिल जाए तो केस मजबूत हो सकता है।”

भावना ने बबीता नाम की महिला स्टाफ से दोस्ती की। बबीता ने बताया, “एक बार देखा था, कुछ पुरानी किताबें लोहे की अलमारी में बंद हैं। चाबी रंजीत के पास रहती है।” भावना ने मौका तलाशा। एक दिन खाना पहुंचाने के बहाने ऑफिस गई, अलमारी खोली, और अंदर से लाल रंग की डायरी निकाली – “शांति सेवा जेल संस्मरण, श्री हाशिम अली, रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर।” डायरी में रंजीत यादव, लोकल नेता, जूनियर अफसरों के नाम, और महिला बंदियों के शोषण की सारी घटनाएं दर्ज थीं। भावना ने मिनी कैमरे से फोटो खींच लिए।

अब उसके पास सबूत था – रिकॉर्डिंग, डायरी के पन्ने, कैदियों की गवाही। लेकिन उसे बाहर निकलना था। रुबीना ने बताया, “जेल के पीछे मेडिकल स्टोर रूम है, वहां एनजीओ की मीटिंग होती है। महीने की पहली तारीख को दोपहर में रंजीत जेल प्रशासनिक बैठक में जाता है। उसी दिन मौका है बाहर निकलने का।”

भावना ने सतीश को मेडिकल के बहाने नंबर भिजवा दिया – “पहली तारीख, मेडिकल स्टोर के पीछे, सबूत तैयार।” तय दिन महिला आयोग की अधिकारी मीना चौधरी, दो पत्रकार, और एनजीओ प्रतिनिधि जेल के मुख्य गेट पर पहुंचे। सतीश ने कहा, “हमारे पास जेल के शोषण की रिकॉर्डिंग और डायरी है।” अंदर सिग्नल मिलते ही भावना को मेडिकल स्टोर के पीछे से निकाला गया। उसकी पहचान उजागर हुई – “मैं आईपीएस भावना राठौड़ हूं। पिछले 14 दिन से इस जेल में कैदी बनकर रह रही थी। जो देखा है, सब रिकॉर्ड किया है।”

रंजीत यादव को उसी वक्त गिरफ्तार किया गया। जेल स्टाफ के दो लोग सस्पेंड हुए। डायरी सार्वजनिक रूप से पेश की गई। लोकल मीडिया में खबर फैली – “आईपीएस अफसर ने विधवा बनकर जेल में खुलासा किया शोषण का रैकेट।” पहली बार किसी ने पूछा – कौन सी औरत कब से यहां है और क्यों?

भावना की बहादुरी ने जेल के भीतर बंद औरतों को आवाज दी। उनके दर्द, उनकी चीखें, अब सिर्फ दीवारों में कैद नहीं थीं। भावना ने साबित किया – कानून की असली ताकत सिर्फ वर्दी नहीं, इंसानियत है। उसके मिशन ने सिस्टम की गंदगी को उजागर किया, औरतों को न्याय दिलाया और देश को दिखाया कि एक अकेली औरत भी बदलाव ला सकती है।

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जिले की Dm साहिबा ने 21 साल के भिखारी लड़के से सादी किउ की | Dm साहिबा और भिकारी लड़काजेठ की तपती दोपहर थी। सूरज आसमान में...
05/09/2025

जिले की Dm साहिबा ने 21 साल के भिखारी लड़के से सादी किउ की | Dm साहिबा और भिकारी लड़का
जेठ की तपती दोपहर थी। सूरज आसमान में आग बरसा रहा था और सड़कें किसी तवे की तरह तप रही थीं। शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल लाल था। गाड़ियों की लंबी कतार खामोशी से हरी बत्ती का इंतजार कर रही थी। इन्हीं गाड़ियों के बीच सरकारी गाड़ी में जिले की डीएम साहिबा गुलिस्ता बैठी थीं। एसी की ठंडी हवा के बावजूद उनका ध्यान बाहर की दुनिया पर था। उनकी नजरें हमेशा अपने जिले के हालात को परखती रहती थीं।

अचानक उनकी नजर एक दुबले-पतले, बीस-इक्कीस साल के लड़के पर पड़ी। उसने फटे पुराने कपड़े पहन रखे थे और गाड़ियों के बीच घूम-घूमकर भीख मांग रहा था। बाकी भिखारियों से अलग उसमें एक अजीब सी झिझक थी। वह जब किसी गाड़ी के पास जाता और कोई पैसे देने से मना कर देता, तो दोबारा हाथ नहीं फैलाता, बस चुपचाप आगे बढ़ जाता। उसकी आंखों में लाचारी के साथ-साथ खुद्दारी भी थी, जो गुलिस्ता को चौंका गई।

सिग्नल हरा हुआ, गाड़ियां चलने लगीं। गुलिस्ता ने अपने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी साइड में लगाओ।” वह गाड़ी से उतरीं और थोड़ी दूरी बनाकर उस लड़के का पीछा करने लगीं। लड़का एक छोटी सी किराने की दुकान से थोड़ा सा आटा खरीदकर एक गली में मुड़ गया। गुलिस्ता ने देखा कि वह एक दोमंजिला, साफ-सुथरे घर में घुस गया। यह देखकर गुलिस्ता हैरान रह गईं—जो लड़का दिन में भीख मांगता है, वह इतने अच्छे घर में कैसे रह सकता है?
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फटे कपड़ों में बेइज़्ज़ती हुई… लेकिन सच्चाई जानकर Plan की सभी यात्रीने किया सलाम!फटे कपड़ों में छुपा हुआ हीरा: एक विमान ...
05/09/2025

फटे कपड़ों में बेइज़्ज़ती हुई… लेकिन सच्चाई जानकर Plan की सभी यात्रीने किया सलाम!
फटे कपड़ों में छुपा हुआ हीरा: एक विमान यात्रा की सच्ची कहानी
दिल्ली से मुंबई जाने वाली एक सुबह की फ्लाइट थी। यात्रियों की चहल-पहल से विमान का केबिन गूंज रहा था। हर कोई अपनी-अपनी सीट ढूंढ रहा था, केबिन क्रू व्यस्तता से यात्रियों की मदद कर रहा था। इसी भीड़ में अचानक एक बेमेल शख्सियत वाला व्यक्ति अंदर आया। उम्र लगभग पचास साल, गहरे रंग की त्वचा पर थकान की रेखाएं साफ दिख रही थीं। उसके बाल बेतरतीब थे और चेहरे पर गहरी उदासी थी, जैसे वह भीड़ में भी अकेला था। उसने पुराना सा ब्लेजर पहना था, जिसके नीचे की शर्ट का ऊपरी बटन खुला था। चेहरा शहरी लगता था, लेकिन उसकी सामाजिक स्थिति समझना मुश्किल थी।

वह व्यक्ति हाफते हुए अपनी टिकट दिखाकर खिड़की वाली सीट नंबर 17 ढूंढकर बैठ गया। उसे देखकर बगल में बैठी एक आधुनिक महिला ने तिरस्कार भरी नजरों से नाक पर रुमाल रख लिया। उसकी आंखों का भाव कह रहा था – क्या यह शख्स वाकई इस फ्लाइट का यात्री है? दूर से एयर होस्टेस प्रिया उसे देख रही थी। संदेह भरी नजरों के साथ वह पास आई और बोली, “क्षमा करें सर, क्या मैं आपका बोर्डिंग पास एक बार फिर देख सकती हूं?” वह शख्स शांतिपूर्वक मुस्कुरा कर बोला, “हां जरूर, लीजिए।” प्रिया ने बोर्डिंग पास लिया और संदिग्ध नजरों से उसके चेहरे की ओर देखा। फिर सिर हिलाकर वापस चली गई।
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बॉलीवुड ने खो दिया एक महान एक्टर को | Bollywood Actor Jitendersee more👉👉👉  https://rb.celebshow247.com/vrx9
05/09/2025

बॉलीवुड ने खो दिया एक महान एक्टर को | Bollywood Actor Jitender
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"जिस दिन हमने तलाक के कागज़ात पर दस्तखत किए, उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा कि शुक्र मनाओ कि मैं चुपचाप जा सकती हूँ। मुझे...
04/09/2025

"जिस दिन हमने तलाक के कागज़ात पर दस्तखत किए, उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा कि शुक्र मनाओ कि मैं चुपचाप जा सकती हूँ। मुझे घर, गाड़ी, यहाँ तक कि बच्चे भी नहीं मिले। छह महीने बाद, मेरे एक फ़ोन ने ही उसे एक करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए, एक पैसा भी कम नहीं।"
मैं अनिका हूँ, 32 साल की, और अंधेरी (मुंबई) की एक छोटी सी निजी कंपनी में अकाउंटेंट थी। राघव से मेरी मुलाक़ात 27 साल की उम्र में हुई थी, जब वह मुंबई और ठाणे में मोबाइल एक्सेसरीज़ की दुकानों की एक श्रृंखला चला रहा था। उस समय, मुझे लगा कि मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे एक प्रतिभाशाली, परिपक्व व्यक्ति मिला। राघव मुझसे 5 साल बड़ा था, अच्छी तरह बोलता था, और महिलाओं को खुश करना जानता था। उसने एक बार कहा था:
"मुझसे शादी कर लो, तुम सिर्फ़ खुश रहोगी। जो औरतें पैसों के बारे में बहुत ज़्यादा सोचती हैं, वे पुरुषों को अपने पास नहीं रख सकतीं।" मैंने मूर्खता से यह मान लिया कि मैं एक अपवाद हूँ।
शादी के तीन साल बाद, मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और बच्चों की परवरिश के लिए घर पर ही रहने लगी। सारा खर्च राघव पर निर्भर था। बांद्रा वाले अपार्टमेंट की ज़मीन के मालिकाना हक़ पर मेरा नाम नहीं था, और उसका बचत खाता भी मेरे नाम पर था। कार शादी से पहले खरीदी गई थी। सारी संपत्ति "गलती से" एक ऐसे अस्पष्ट क्षेत्र में चली गई जहाँ कानून पहुँच ही नहीं सकता था।
फिर एक दिन, मुझे पता चला कि राघव का किसी के साथ अफेयर चल रहा है। सिर्फ़ एक ही व्यक्ति नहीं, बल्कि कई लोगों के साथ - लोअर परेल की एक सेक्रेटरी से लेकर बीकेसी में इंटर्नशिप कर रहे एक नए ग्रेजुएट तक। मैंने खूब हंगामा किया। जवाब में, उसने बेरुखी से कहा:
"तलाक चाहिए तो दस्तखत कर दो। घर मेरा है, कार मेरी है। तुम बच्चे की परवरिश नहीं कर सकती, मुझे करने दो।"
मैं इस हद तक हैरान रह गई कि मेरे मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। मैंने अपनी जवानी प्यार और त्याग में विश्वास करते हुए बिताई थी। लेकिन अदालत ने, जैसा उसने कहा था, फैसला सुनाया: घर अलग संपत्ति है, कार शादी से पहले खरीदी गई थी, बच्चा किसी ऐसे व्यक्ति को दिया गया था जिसके पास आर्थिक संसाधन हों। मैं कुछ कपड़े, थोड़ी बचत और टूटे दिल के साथ वहाँ से चली गई।
मैं कुछ समय के लिए नागपुर वापस चली गई, अपने माता-पिता के साथ रहने। मैं हर रात रोती थी। लेकिन एक दिन, मेरी माँ ने मेरी आँखों में सीधे देखते हुए कहा:
“रोने के बजाय, तुम खड़ी क्यों नहीं हो जातीं? तुम स्कूल में सबसे अच्छी छात्रा हुआ करती थीं। अब तुम उस आदमी को खुद पर हँसने दोगी?”
यह वाक्य मेरे मुँह पर तमाचे जैसा था। मैंने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी। मैंने एक ऑनलाइन डिजिटल मार्केटिंग कोर्स में दाखिला लिया, फिर एक फ्रीलांस नौकरी के लिए आवेदन किया। पहले मैंने किराए पर कंटेंट लिखा, फिर मुंबई में एक कपड़ों की दुकान के लिए फेसबुक/इंस्टाग्राम पर विज्ञापन दिए। पैसे ज़्यादा नहीं थे, लेकिन मुझे लगा कि मैं आगे बढ़ रही हूँ।
तीन महीने बाद, मेरी मुलाकात प्रिया से हुई - मेरी पुरानी कॉलेज की दोस्त, जो अब पुणे में टेक इंडस्ट्री में काम कर रही है। प्रिया यह जानकर हैरान रह गई कि मैं तलाकशुदा हूँ। उसने मुझे एक छोटे से स्टार्टअप ग्रुप से मिलवाया जहाँ आहत महिलाएँ वापसी की कोशिश कर रही थीं। मैंने बहुत कुछ सीखा, खासकर व्यक्तिगत डेटा को डिजिटल बनाने, लेन-देन का पता लगाने और डिजिटल फोरेंसिक के बारे में।
गलती से अपने पुराने फोन को देखते हुए, मुझे राघव द्वारा अपनी प्रेमिका को भेजे गए संदेश और तस्वीरें मिलीं, जो मेरी आंखों के सामने दिखाई दे रहा था, उससे मैं हैरान रह गई...👇👇🥹
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मेरे पति के अंतिम संस्कार के बाद, मेरा बेटा मुझे शहर के किनारे ले गया और बोला, "बस से यहीं उतरना है। अब हम तुम्हारा खर्च...
04/09/2025

मेरे पति के अंतिम संस्कार के बाद, मेरा बेटा मुझे शहर के किनारे ले गया और बोला, "बस से यहीं उतरना है। अब हम तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकते।" लेकिन मेरे मन में एक ऐसा राज़ था जिसका पछतावा उन्हें ज़िंदगी भर रहेगा...
"जिस दिन मेरे पति को दफ़नाया गया, उस दिन हल्की बारिश हो रही थी। छोटा सा काला छाता मेरे दिल के अकेलेपन को छुपाने के लिए काफ़ी नहीं था। मैं अगरबत्ती पकड़े, नई खोदी गई कब्र को देख रही थी, जिसकी मिट्टी अभी भी गीली थी, मैं काँप रही थी। लगभग चालीस साल का मेरा साथी - मेरा राजन - अब बस एक मुट्ठी भर ठंडी मिट्टी रह गया था।"
अंतिम संस्कार के बाद, मुझे दुःख में डूबने का वक़्त नहीं मिला। मेरे सबसे बड़े बेटे, रवि, जिस पर मेरे पति पूरा भरोसा करते थे, ने झट से घर की चाबियाँ ले लीं। कुछ साल पहले, जब राजन अभी भी स्वस्थ थे, उन्होंने कहा, "तुम बूढ़ी हो, मैं बूढ़ा हूँ, सब कुछ अपने बेटे को दे जाओ। अगर सब उसके नाम होगा, तो वही ज़िम्मेदार होगा।" मैंने कोई आपत्ति नहीं की - कौन माता-पिता अपने बच्चे से प्यार नहीं करता? मकान और ज़मीन के कागज़ात, पट्टा/ज़मीन का दस्तावेज़ (लाल किताब), सब रवि के नाम कर दिए गए।
अंतिम संस्कार के सातवें दिन, रवि ने मुझे टहलने के लिए बुलाया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि उस दिन का सफ़र चाकू की तरह तेज़ होगा। गाड़ी लखनऊ के किनारे ऑटो-रिक्शा पार्किंग के पास रुकी, रवि ने ठंडे स्वर में कहा:
— यहीं उतर जाओ। तुम्हारी पत्नी और मैं अब तुम्हारा साथ नहीं दे सकते। अब से, तुम्हें अपना ख्याल रखना होगा।
मेरे कानों में घंटी बज रही थी, मेरी आँखें चक्कर खा रही थीं। मुझे लगा कि मैंने ग़लत सुना है। लेकिन उसकी आँखें दृढ़ थीं, मानो वह मुझे तुरंत नीचे धकेल देना चाहता हो। मैं सड़क के किनारे, एक बोतल की दुकान के पास, बस एक कपड़े के थैले में कुछ कपड़े लिए, बेसुध सी बैठी रही। वह घर—जहाँ मैं रहती थी और अपने पति और बच्चों की देखभाल करती थी—अब उसके नाम पर था। मुझे वापस लौटने का कोई हक़ नहीं था।
लोग कहते हैं, "जब आप अपने पति को खो देती हैं, तब भी आपके बच्चे होते हैं", लेकिन कभी-कभी बच्चे होना उनके न होने जैसा होता है। मुझे मेरे ही बच्चे ने एक कोने में धकेल दिया था। हालाँकि, रवि को पता नहीं था: मैं पूरी तरह से कंगाल नहीं थी। अपनी जेब में हमेशा एक बैंक पासबुक रखती थी—वो पैसे जो मैंने और मेरे पति ने ज़िंदगी भर जमा किए थे, तीन करोड़ रुपये से भी ज़्यादा। हमने उसे अच्छी तरह छिपाकर रखा था, अपने बच्चों या किसी और को पता नहीं चलने दिया। मिस्टर राजन कहा करते थे, "लोग तभी अच्छे होते हैं जब आपके हाथ में कुछ होता है।"
उस दिन, मैंने चुप रहने का फैसला किया। मैं भीख नहीं माँगूँगी, अपना राज़ नहीं बताऊँगी। मुझे देखना था कि रवि और ज़िंदगी मेरे साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
पहले दिन जब मुझे पीछे छोड़ा गया, मैं चाय की दुकान के छज्जे के नीचे दुबकी बैठी रही। मालकिन—आंटी लता—को मुझ पर दया आ गई और उन्होंने मुझे एक गरमागरम चाय पिलाई। जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने अभी-अभी अपने पति को खोया है और मेरे बच्चों ने मुझे छोड़ दिया है, तो उन्होंने बस आह भरी:
— आजकल ऐसी कई परिस्थितियाँ होती हैं, बहन। बच्चे कभी-कभी प्यार से ज़्यादा पैसों को महत्व देते हैं।
मैंने अस्थायी रूप से एक छोटा सा बोर्डिंग हाउस किराए पर लिया, और अपनी पासबुक के ब्याज से भुगतान किया। मैं बहुत सावधान थी: मैंने कभी किसी को यह नहीं बताया कि मेरे पास बहुत पैसा है। मैं सादा जीवन जीती थी, पुराने कपड़े पहनती थी, सस्ती रोटी और दाल खरीदती थी, और किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं करती थी।
कई रातें ऐसी भी थीं जब मैं पुराने लकड़ी के बिस्तर पर दुबकी रहती थी, मुझे पुराने घर की याद आती थी, छत के पंखे की चरमराहट की आवाज़, श्रीमान राजन द्वारा बनाई गई मसाला चाय की खुशबू। पुरानी यादें बहुत दुखदायी थीं, लेकिन फिर मैंने खुद से कहा: जब तक मैं ज़िंदा हूँ, मुझे चलते रहना है।
मैं नई ज़िंदगी में घुलने-मिलने लगी। दिन में, मैं मंडी बाज़ार में मदद माँगती थी: सब्ज़ियाँ धोना, सामान ढोना, सामान लपेटना। लोग कम पैसे देते थे, लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, दया पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी। बाज़ार के व्यापारी मुझे "कोमल शांति" कहते थे। उन्हें पता नहीं था, हर बार बाज़ार खत्म होने पर, मैं अपने किराए के कमरे में लौटता, अपनी बचत खाता खोलता, फिर उसे ध्यान से रख देता। यही जीने का राज़ था।
एक बार, मेरी मुलाक़ात अचानक एक पुराने परिचित से हुई... तब से
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मुझे शक था कि मेरी माँ का 60 साल की उम्र में भी एक जवान प्रेमी है, हर रोज़ वह चुपके से पैसे लेकर रात 10 बजे घर से निकल ज...
04/09/2025

मुझे शक था कि मेरी माँ का 60 साल की उम्र में भी एक जवान प्रेमी है, हर रोज़ वह चुपके से पैसे लेकर रात 10 बजे घर से निकल जाती थीं। एक दिन मैं चुपके से उनका पीछा करने लगा और होटल का दरवाज़ा खोलकर अपनी आँखों के सामने जो नज़ारा देखा, वह देखकर मैं दंग रह गया। मैं अंदर भागा और जब मुझे पता चला कि...
हाल के महीनों में, मैंने देखा कि मीरा की माँ पूरी तरह बदल गई थीं।
60 साल की होने के बावजूद, वह अब भी अपने रूप-रंग का ध्यान रखती थीं, साफ़-सुथरे कपड़े पहनती थीं और हल्का मेकअप करती थीं। ख़ास तौर पर, हर रात ठीक 10 बजे वह लाजपत नगर वाले घर से चुपके से अपना बैग लेकर निकल जाती थीं, "स्वस्थ रहने के लिए रात में टहलने" का बहाना बनाकर। लेकिन अब मैं इतना भोला नहीं रहा था कि इस पर यकीन कर लूँ।
इसके अलावा, हर हफ़्ते मैं अपनी माँ को आम बचत खाते से कुछ हज़ार रुपये चुपके से निकालते देखता था। मुझे शक होने लगा... कि मेरी माँ का कोई प्रेमी है।
एक दिन, मैंने उनका पीछा करने का फ़ैसला किया।
रात के ठीक 10 बजे, मेरी माँ ने सलीके से कपड़े पहने और घर से निकलने के लिए ऑटो-रिक्शा लिया। मैं भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ा, मेरी धड़कनें तेज़ हो रही थीं। आखिरकार वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास, पहाड़गंज के पास एक सुनसान गली में एक साधारण से लॉज के सामने रुकीं।
मैं स्तब्ध रह गया। मेरे काँपते हाथ ने फ़ोन पकड़ लिया।
खुद को रोक न पाने के कारण, मैं माँ के कदमों की आहट सुनकर सीधा उनके पास पहुँचा और दरवाज़ा धक्का देकर खोला।
दरवाज़ा खुला... मैं स्तब्ध रह गया।
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