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"जब अत्याचार इंसान के जीवन में अशांति लाती है,
तब कलम उठा लिया करो, यह भी क्रांति लाती है.!!

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मैं किसी युवती को सड़क पर सिगरेट पीते देखती हूँ, तो मेरे बदन में आग लग जाती हैं। उसी तरह आधी का जम्फर भी मुझे नही सोहाता...
08/07/2025

मैं किसी युवती को सड़क पर सिगरेट पीते देखती हूँ, तो मेरे बदन में आग लग जाती हैं। उसी तरह आधी का जम्फर भी मुझे नही सोहाता। क्या अपने धर्म की लाज छोड़ देने ही से साबित होगा कि हम बहुत फारवर्ड हैं? पुरुष अपनी छाती या पीठ खोले तो नहीं घूमते?'
'इसी बात पर बाईजी, जब मैं आपको आड़े हाथों लेती हूँ, तो आप बिगड़ने लगती हैं। पुरुष स्वाधीन हैं। वह दिल में समझता है कि मै स्वाधीन हूँ। वह स्वाधीनता का स्वाँग नहीं भरता।

— मानसरोवर भाग १ से । [ मनोवृति कहानी से ]

भौंरा और कबूतर की कहानीगर्मी के दिन थे। एक भौंरा पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। खोजते-खोजते वह एक झील के किनारे पह...
06/07/2025

भौंरा और कबूतर की कहानी

गर्मी के दिन थे। एक भौंरा पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। खोजते-खोजते वह एक झील के किनारे पहुँचा। झील का पानी नीचे था और भौरे को वहाँ तक पहुँचने के लिए एक पतले तिनके पर चढ़ना पड़ा।

जैसे ही वह तिनके पर चढ़ा, वह संतुलन खो बैठा और सीधे पानी में गिर गया। वह डूबने लगा और मदद के लिए फड़फड़ाने लगा।

उसी समय पास के एक पेड़ पर एक कबूतर बैठा हुआ था। उसने भौरे की हालत देखी और बिना समय गँवाए एक हरी पत्ती को तोड़कर झील में गिरा दी। भौंरा पत्ती पर चढ़ गया और तैरते-तैरते किनारे तक पहुँच गया। उसने राहत की साँस ली और कबूतर का धन्यवाद करने लगा।

तभी वहाँ एक शिकारी आ पहुँचा। उसने कबूतर को देखा और उस पर बंदूक तान दी। यह देखकर भौंरा दौड़ा और सीधा शिकारी के हाथ पर डंक मार दिया।

शिकारी दर्द से चिल्लाया और उसकी बंदूक नीचे गिर गई। इतने में कबूतर को खतरे का आभास हो गया और वह फुर्र से उड़ गया।

इस प्रकार, जिस कबूतर ने भौरे की जान बचाई थी रकी जान भी भौरे ने बचाकर मित्रता का सुंदर उदाहरण

कहानी: "मिट्टी का डेला और पत्ता" 🌿💧एक बार की बात है, एक हरा-भरा पत्ता और एक मिट्टी का डेला खेत की मिट्टी पर साथ-साथ रहते...
05/07/2025

कहानी: "मिट्टी का डेला और पत्ता" 🌿💧

एक बार की बात है, एक हरा-भरा पत्ता और एक मिट्टी का डेला खेत की मिट्टी पर साथ-साथ रहते थे। दोनों अच्छे दोस्त थे। पत्ता पेड़ की एक डाली पर झूलता था और डेला ज़मीन पर बैठा आराम करता था।

एक दिन अचानक मौसम बदल गया। बादल गरजे, और मूसलधार बारिश शुरू हो गई। पत्ता तो पानी के साथ झूलते हुए मुस्कुरा रहा था, लेकिन मिट्टी का डेला उदास और डरा हुआ था।

पत्ता मुस्कुराते हुए बोला,
"डेलू भाई, क्यों उदास हो? बारिश तो जीवन देती है, इससे तो खेत हरे-भरे हो जाते हैं।"

डेला रोते हुए बोला,
"तुम तो पेड़ से जुड़े हो, तुम्हें बारिश से कोई डर नहीं। लेकिन मुझे देखो, जैसे-जैसे बारिश बढ़ती जा रही है, मैं गलता जा रहा हूं। थोड़ी देर में मैं मिट्टी बनकर बह जाऊंगा। मेरा तो वजूद ही खत्म हो जाएगा।"

पत्ता थोड़ी देर सोचता रहा, फिर बोला,
"लेकिन डेलू भाई, तुम ही तो वो हो, जो पेड़ को सहारा देते हो। तुम ही तो खेत की जान हो। तुम्हारे बिना न मैं पेड़ पर झूल पाता, न फूल खिलते, न फल आते। बारिश के बाद जब सूरज निकलेगा, तुम फिर से सूखकर मजबूत बनोगे। तुम मिटते नहीं हो, बस बदलते हो — और यही तो जीवन है।"

डेला मुस्कुरा पड़ा। उसे एहसास हुआ कि हर मुश्किल वक्त के बाद एक नई सुबह आती है। वो अब न डर रहा था, न दुखी। क्योंकि अब उसे पता चल गया था — वो मिटकर भी ज़िंदगी का हिस्सा बना रहता है।

सीख:
हर कठिन समय के बाद सुख आता है। हम चाहे किसी भी रूप में हों, अगर हम किसी का सहारा बनें, तो हमारा वजूद हमेशा ज़िंदा रहता है। 🌦️🌱

Writer prabhu

29/06/2025

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।
स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....
अन्न के कण को
"और"
आनंद के क्षण को...
Copy paste ✍️ 🧑‍🏫

Writer prabhu

12/06/2025

बोलना सभी को आता है ...

किसी की जुबान बोलती है!
किसी की नीयत बोलती है!
किसी का पैसा बोलता है!
किसी का समय बोलता है!
किसी का पद बोलता है!
परंतु जीवन के अंत में सिर्फ
इंसान का कर्म बोलता है ..!!💯✍️

Writer prabhu

दांपत्य जीवन में धैर्य का महत्व:बुधवार, 11 जून (ज्येष्ठ पूर्णिमा) को संत कबीर की जयंती है। कबीरदास जी एक संत, कवि और समा...
11/06/2025

दांपत्य जीवन में धैर्य का महत्व:

बुधवार, 11 जून (ज्येष्ठ पूर्णिमा) को संत कबीर की जयंती है। कबीरदास जी एक संत, कवि और समाज-सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उनसे जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिनमें जीवन को सुखी-सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। कबीर जयंती के अवसर पर जानिए एक ऐसा किस्सा, जिसमें कबीर जी ने बताया है कि वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और प्रेम बनाए रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए...

एक बार संत कबीर अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त थे, वे कपड़े बुन रहे थे। तभी एक युवक उनके पास आया और विनम्रता से प्रणाम किया। कबीर ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और सहजता से बोले कि तुम्हारे प्रणाम में ही झलक रहा है कि तुम कुछ परेशान हो। क्या बात है?

युवक ने संकोच के साथ उत्तर दिया कि गुरुदेव, मेरी गृहस्थी में बहुत कलह है। पत्नी और मेरे बीच कोई तालमेल नहीं बन पाता। बात-बात पर बहस होती है। मैं बहुत परेशान हूं। कृपया कोई समाधान बताइए।

कबीरदास जी युवक की बात सुनकर बोले कि मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का हल समझाता हूं। कुछ देर यहीं रुको। इसके बाद कबीरदास जी ने उन्होंने अपनी पत्नी लोई को आवाज दी और कहा कि एक लालटेन लेकर आओ और जलाकर लाना।

दोपहर का समय था, चारों ओर उजाला फैला हुआ था। युवक ने आश्चर्य से सोचा कि ऐसे समय लालटेन क्यों मंगाई जा रही है, कुछ ही देर में कबीर जी की पत्नी बिना किसी प्रश्न के जलती हुई लालटेन लेकर आ गईं और चुपचाप रखकर लौट गईं।

फिर कबीर बोले कि लोई, इनके लिए कुछ मीठा ले आओ।

कबीर जी की पत्नी ने थाली में नमकीन ले आईं और वहां रखकर चली गईं। अब युवक से रहा नहीं गया। उसने कबीर से पूछा कि गुरुदेव, ये सब क्या हो रहा है? आपने मीठा मंगवाया और वह तो नमकीन ले आईं, आपने दोपहर में लालटेन मंगाई और वह बिना कुछ कहे ले आईं?

कबीरदास जी ने मुस्कुराकर जवाब दिया कि देखो, तुमने गौर किया होगा कि मेरी पत्नी ने न तो लालटेन लाने पर बहस की और न ही मीठे की जगह नमकीन लाने पर कोई बहाना बनाया। मैंने लालटेन मंगाई, जबकि वह समय उसका नहीं था, फिर भी वह लेकर आ गईं। मैंने मीठा लाने को कहा, लेकिन हो सकता है घर में इस समय मीठा न हो तो उसने नमकीन दे दिया। मैंने कोई सवाल नहीं उठाया और उसने भी कोई बहस नहीं की।

गृहस्थ जीवन में यदि हर छोटी बात पर तर्क या बहस होने लगे तो रिश्ते टूटने में देर नहीं लगती। अगर दोनों एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें, धैर्य रखें और बहस को टालें तो जीवन सहज, सुखी और मधुर हो सकता है, आपसी प्रेम बना रह सकता है।

संत कबीर की सीख

संत कबीर के इस प्रसंग की सीख न केवल विवाहित जीवन के लिए, बल्कि किसी भी रिश्ते या टीम वर्क के लिए अत्यंत उपयोगी है। पारिवारिक जीवन में, विशेषकर पति-पत्नी के बीच, दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं:

धैर्य: हर बात का तत्काल उत्तर देना जरूरी नहीं होता। कई बार चुप रह जाना, समझना और सोच-समझकर प्रतिक्रिया देना ज्यादा प्रभावी होता है।
बहस से बचाव: एक छोटी सी बहस भी भावनात्मक दूरी बढ़ा सकती है। आवश्यक नहीं कि हर बार अपनी बात को सही साबित किया जाए। बहस से बचाव ही रिश्तों को मजबूती देता है।
संत कबीरदास का यह प्रसंग हमें ये बताता है कि जीवन की जटिल समस्याओं का हल अक्सर सरल व्यवहार में छिपा होता है। घर-परिवार में, विशेषकर दांपत्य जीवन में, यदि हम तर्क की जगह समझ और आरोप की जगह संवाद को स्थान दें तो न केवल समस्याएं सुलझेंगी, बल्कि जीवन में स्थायी शांति भी बनी रहेगी।

जब आपका ससुराल मुजफ्फरपुर में हो.. 😍
09/06/2025

जब आपका ससुराल मुजफ्फरपुर में हो.. 😍

आज का विचार 💯🌞✍️Writer prabhu
07/06/2025

आज का विचार 💯🌞✍️

Writer prabhu

शुभ रात्रि मित्रों 🌠🥱Writer prabhu
04/06/2025

शुभ रात्रि मित्रों 🌠🥱

Writer prabhu

22/05/2025

लोग तोल देते है चंद बातो पर किरदार…
बारी अपनी हो तो उन्हें तराजू नहीं मिलता...💯

मैंने सीखा है — अपने लिए जीना होता हैज़िंदगी की भीड़ में चलते-चलते मैंने बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सहा और बहुत कुछ सीखा। अ...
10/05/2025

मैंने सीखा है — अपने लिए जीना होता है

ज़िंदगी की भीड़ में चलते-चलते मैंने बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सहा और बहुत कुछ सीखा। अनगिनत चेहरों से मिला, अनगिनत बातों से गुज़रा। कुछ बातों ने सीधा दिल को चीर दिया, तो कुछ फुसफुसाहटों ने आत्मा को झकझोर दिया। शुरुआत में यह सब बहुत तकलीफ देता था। लगता था जैसे अपने ही लोग पीछे से वार कर रहे हैं। सामने मीठी मुस्कान, और पीठ पीछे तीखा ज़हर—इस दोहरेपन को समझने में वक़्त लग गया।

मैं सोचता था—मैंने किसी का क्या बिगाड़ा? मैंने तो सबको अपना समझा, सबके लिए अच्छा चाहा। लेकिन फिर एक दिन अहसास हुआ—हर कोई अपना नहीं होता। हर कोई आपके भले की दुआ नहीं करता। कुछ लोग तो बस इस इंतज़ार में होते हैं कि आप कब गिरें, कब टूटें, ताकि वे चुपचाप उस दृश्य का आनंद ले सकें।

उसी दिन मैंने ठान लिया—अब और नहीं। अब अपनी शांति, अपनी इज़्ज़त मैं खुद संभालूंगा। अब किसी की बातों से मेरा दिल नहीं दुखेगा। जब किसी ने कहा, “तुमसे नहीं होगा,” मैंने मुस्कराकर चुप रहना चुना, क्योंकि मुझे अब यह पता चल गया है—मैं अपनी कहानी का लेखक खुद हूँ। मेरी असफलताएँ भी मेरी हैं, और मेरी सफलताएँ भी।

मैंने सीखा है—हर बात का जवाब देना ज़रूरी नहीं होता।
हर अपमान का विरोध करना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी चुप रहकर आगे बढ़ जाना ही सबसे बड़ी जीत होती है। चुप्पी कमजोरी नहीं होती—वो आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।

अब मैंने अपनी ज़िंदगी का रास्ता बदल लिया है।
जब लोग पीठ पीछे बातें करते हैं,
मैं अपने सामने के रास्ते को और साफ़ करता हूँ।
जब वे मुझे नीचे गिराने की कोशिश करते हैं,
मैं और ऊपर उठने की ठान लेता हूँ।
जब वे ज़हर फैलाते हैं,
मैं गुलाबों की खुशबू में खो जाता हूँ।

अब मैं किसी के लिए रुकता नहीं।
अब मैं किसी के तुच्छ आनंद का साधन नहीं बनता।
अब मैं अपने लिए जीता हूँ।
एक कप चाय की गर्माहट में सुकून पाता हूँ।
अपनी पसंदीदा किताबों में खुद को ढूंढ़ता हूँ।
छत पर बैठकर आसमान से बातें करता हूँ।
पुरानी तस्वीरों में बीते लम्हों की मासूमियत को महसूस करता हूँ।

मैंने सीखा है—कुछ रिश्तों को छोड़ देने से ज़िंदगी हल्की हो जाती है।
कुछ कड़वाहटों को दिल से निकाल देने से साँसें गहरी हो जाती हैं।
हर किसी को साथ लेकर नहीं चला जा सकता—इस सच्चाई को स्वीकार करना पड़ता है।
क्योंकि ज़िंदगी की राह अकेले ही तय करनी होती है—
सिर्फ अपनी परछाई को साथ लेकर।

आज मैं आभारी हूँ—
उन सभी चोटों का, जिन्होंने मुझे तोड़ा नहीं, बल्कि मुझे और मजबूत बनाया।
उन सभी अकेले पलों का, जिन्होंने मुझे खुद से प्यार करना सिखाया।

अब मुझे किसी को कुछ साबित नहीं करना।
मैं किसी की कहानी नहीं हूँ।
मैं अपनी कहानी हूँ।
अपना ही निर्माण हूँ।
अपनी ही ताकत हूँ।

जाती नहीं, धर्म पूछा अभी भी समय है,जागो हिंदुओं, जागो,सभी एक हो..!!
23/04/2025

जाती नहीं, धर्म पूछा
अभी भी समय है,
जागो हिंदुओं, जागो,
सभी एक हो..!!

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