
10/06/2025
ओ इश्क !
क्यों बार-बार दस्तक देते हो
दिल के दरवाजे पर तुम
रत्ती भर भरोसा नहीं मुझे तुम्हारी फितरत पर
खोलूंगी नहीं दरवाजा
सुना है तुम दग़ाबाज़ बहुत हो
पैर बहुत नाज़ुक है मेरे
चल नहीं पाऊंगी तुम्हारे साथ
कदम से कदम मिलाकर
सुना है तेरी राह में कांटे बहुत हैं
एक के साथ कभी स्थिर रहते नहीं
कभी इसके कभी उसके हो जाते हो
एक से दूर होते ही खटखटाते हो दूसरा दरवाज़ा
सुना है तुम बेवफा बहुत हो
जिसने भी किया संग तुम्हारा
विरह की आग में जलता रहा
रो -रो कर वह तड़पता रहा
सुना है तुम रुलाते बहुत हो
ख्वाब अनगिनत दिखाते हो
फिर टुकड़े -टुकड़े कर उनके
सीने में नश्तर से उतरते हो
सुना है तुम बेरहम बहुत हो