namah sidham

namah sidham jain , , #,jain dharm jankari, baate #,dharmik # post #

30/01/2025
30/01/2025

हादसे के समय शांतीधारा का वीडियो जो मोबाइल कैद हुआ

*तिजारा में प्राप्त प्रतिमा रात्रि करीब 9 बजे हुई देहरा मन्दिर में विराजमान**विराजमान से पूर्व शक्तियों का कराया अहसास, ...
21/09/2024

*तिजारा में प्राप्त प्रतिमा रात्रि करीब 9 बजे हुई देहरा मन्दिर में विराजमान*
*विराजमान से पूर्व शक्तियों का कराया अहसास, समाजजनों से लिया वचन*
तिजारा कस्बे के टोल टैक्स के पास निवासी सचिन पुत्र विक्रम जाति अहीर के घर खुदाई के दौरान लगभग ढाई वर्ष पूर्व अष्टधातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई। जिसे उसने अपने घर पर ही कपड़े में लपेटकर ही छूपा दिया और किसी को सूचना नहीं दी उसके साथ एक लोटा भी प्राप्त हुआ लेकिन उसमें उन्होंने बताया कि राख मिली थी।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया जैसे ही पिछले वर्ष भाद्र मास आया तो प्रतिमा ने अपना चमत्कार दिखाना प्रारंभ किया। यू कहें की उचित स्थान प्राप्त करने के लिए प्रतिमा ने कई प्रकार के परचम दिए। जिन्हें उस परिवार ने स्वयं बयान किया, उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष भाद्र माह में मेरी लगभग 20 से 25 गाय मर गई और मुझे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। घर में दादी,पत्नी व अन्य को प्रतिमा की आवाज स्वप्न में सुनाई देती थी कि मेरा सम्मान नहीं कर रहे हो। इस वर्ष भी भाद्र मास में उस परिवार का काफी नुकसान हुआ और एक तीव्र आवाज आई कि मेरा सम्मान क्यों नहीं किया जा रहा है। एक छोटी सी पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली। जिसके माध्यम से संपूर्ण तिजारा की समाज एकत्रित हुई और लगातार उनके परिवार से संपर्क स्थापित किया। जिसके परिणाम स्वरुप उन्होंने खुश होकर स्वयं ही इस प्रतिमा को तिजारा कमेटी को सुपुर्द कर दिया और अपनी गलती स्वीकार कर ली।
यह प्रतिमा *अष्ट धातु की पद्मासन लगभग 5 इंच* की है। जिस पर प्रशस्ति व चिन्ह स्पष्ट दृष्टि गोचर नही हो रहे हैं किंतु लोगो को ऐसा महसूस हो रहा है कि स्वस्तिक अंकित हो, उसी आधार पर सुपार्श्वनाथ भगवान की मान ली गयी है।
परम् पूज्य आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज की सुशिष्या आर्यिका श्री वर्धस्व नंदनी माताजी ससंघ के सानिध्य में देहरा समिति द्वारा अभी मानस्तम्भ पर प्रतिमा जी को विराजमान किया गया है और आगे की भूमिका बनाई जा रही है।
जब प्रतिमा को समाजजन उस अहीर परिवार के घर लेने पहुंचे तो वहां एक व्यक्ति को स्वत ही कुछ शक्तियों के आने का आभास हुआ और उन्होंने प्रतिमा ले जाने से पहले समाज से पूछा कि *तुम मुझे जहां ले रहे आ रहे हो वहां मेरा सम्मान तो करोगे* तब समाज जनों ने हाथ जोड़कर कहा कि हां बिल्कुल सम्मान जनक तरीके से आपको विराजमान करेंगे और आपको देहरा मंदिर तिजारा ले जा रहे हैं। लगभग कुछ मिनट तक वह शक्ति उन व्यक्ति में विराजमान रही।
प्रतिमा को जैसे ही किसी कपड़े में लपेटकर उस परिवार के द्वारा घर पर रखा जाता था तो कुछ समय बाद वह कपड़ा स्वतः ही फट जाता था उसमें छिद्र हो जाते थे लगभग ऐसे 20 से 25 बार कपड़ों का बदलाव परिवार के द्वारा किया गया। अनेको चमत्कारों के कारण प्रतिमा जी मन्दिर में विराजमान हो सकी।
संकलन व शब्द :- *संजय जैन बड़जात्या कामां, राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान*

*चंचल जैन ने 35 की उम्र में संन्यासी बन लिया सल्लेखना का महाव्रत*🙏🙏🙏*लिवर कैंसर का पता चलने पर जीवन को मोक्ष की ओर मोड़ा...
16/09/2024

*चंचल जैन ने 35 की उम्र में संन्यासी बन लिया सल्लेखना का महाव्रत*🙏🙏🙏
*लिवर कैंसर का पता चलने पर जीवन को मोक्ष की ओर मोड़ा*
चंचल जैन (35 वर्ष) ने 4 साल में लीवरकैंसर से लड़ते हुए,मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में 90 कीमोथेरेपी के बाद भी कैंसर से निजात ना मिलने पर घर परिवार त्याग कर, संन्यास लेकर जैन रीति अनुसार संलेखना व्रत ले लिया।भोपाल शहर में 108 आचार्यश्री समय सागर जी महाराज एवं 105 श्रीमती गुरुमति माताजी की शिष्या
आर्यिका 105 श्रीमती दृढ़मति माताजी के सानिध्य में पूजाश्री माताजी (चंचल गृहस्थ जीवन का नाम) ने पर्यूषण पर्व के दौरान सल्लेखना व्रत का महा संकल्प लिया है।सल्लेखना या संतरा (मृत्यु तक उपवास) भोपाल सिटी के चौक जिनालय में 105 दृढ़मति माता जी के सानिध्य में चल रहा है। चौक जिनालय में यह अपने तरह की अनोखी साधना 10 सितंबर से शुरू हुई है जो पूजाश्री माता जी के मृत्यु तक चलेगी। दीक्षा लेने के बाद पूजाश्री माताजी मोन साधना में चली गई हैं।उनके परिवार एवं समाज जन लगातार णमोकार मंत्र एवं श्री भक्तांबर का पाठ जाप कर रहे हैं। पूजाश्री माताजी के लौकिक जीवन के पति कोलार नयापुरा निवासी सुधीर जैन ने बताया कि पूजाश्री माताजी का लौकिक नाम चंचल जैन था, उनकी उम्र 35 वर्ष है।पूजाश्री माताजी की 2 बेटी स्वस्ति उर्फ पीहू 9 साल एवं यशस्वी 4 साल है।
उल्लेखनीय है की चंचल जैन गृहस्थ जीवन में नयापुरा जैन मंदिर के अध्यक्ष अनिल जैन की भतीजी एवम सुधीर जैन की धर्मपत्नी हैं।चंचल की मां इंद्रा जैन ने बताया की चंचल बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की रही है, इतनी बड़ी बिमारी होने के बाद भी उन्होंने कभी धर्म नही छोड़ा।
सभी परिवार जन एवं रिश्तेदार पूजनीय पूजाश्री माता जी की सम्यक समाधी हो ऐसी प्रार्थना भगवान महावीर स्वामी से 24 घंटे कर रहे है।उनका संयुक्त परिवार है। चंचल को वर्ष 2021 जनवरी में चौथी स्टेज के लिवर कैंसर की जानकारी लगी थी,तब से ही मुंबई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के इलाज में उनकी 90 से अधिक कीमोथेरेपी हो चुकी हैं।
सुधीर ने बताया की इतना इलाज कराने पर भी सफलता न मिलने पर चंचल ने संन्यास लेकर सल्लेखना व्रत का महा संकल्प लेने की इच्छा जताई,चंचल की भावना थी की में कैंसर जैसी बिमारी को तो नही हरा सकती लेकिन में संन्यास लेकर सम्यक समाधी को प्राप्त करना चाहती हु।जिसके लिए दोनो परिवार ने अपनी स्वकृति प्रदान की।
10 सितंबर को चंचल जैन ने घर परिवार त्याग कर 108 आचार्यश्री समय सागर जी महाराज एवं 105 श्रीमती गुरुमति माताजी की शिष्या आर्यिका 105 श्रीमती दृढ़मति माताजी से दीक्षा लेकर सल्लेखना या संतरा (मृत्यु तक उपवास) का महाव्रत लेलिया।

*अंकित जैन (गोल्डी) ओबेदुल्लागंज*

Celebrating my 1st year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉
28/08/2024

Celebrating my 1st year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉

28/08/2024

Jain # kahani #

🙏 रक्षा बंधन पर्व कथा 🙏 जैन धर्म के 19 वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ स्वामी के समय में हस्तिनापुर में महापद्म नामक चक्रवर्...
19/08/2024

🙏 रक्षा बंधन पर्व कथा 🙏
जैन धर्म के 19 वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ स्वामी के समय में हस्तिनापुर में महापद्म नामक चक्रवर्ती का राज्य था तथा उनकी रानी लक्ष्मी मति थी. उसके दो पुत्र विष्णुकुमार और पद्म थे|

जब राजा महापद्म को संसार भोगो के प्रति वैराग्य हुआ, तब उन्होंने दीक्षा लेने का विचार किया| फिर राजा ने अपना राज्य अपने बड़े पुत्र को देने का निश्चय किया, तो विष्णु कुमारजी ने राज्य लेने से मना कर दिया|

विष्णु कुमारजी ने अपने पिताजी पूछा कि आप यह चक्रवर्ती का पद, छह खंड का साम्राज्य, पूरा भरत क्षेत्र क्यों छोड़ रहे हो? तब राजा महापद्म ने कहा कि अब मैं जान गया हूँ कि इस संसार में सार नहीं है| तब फिर विष्णु कुमारजी ने पूंछा कि जब इस संसार में कोई सार नहीं है और आप स्वयं भी जब इस संसार को छोड़ रहे है, तो क्या आपको इस तरह की असार वस्तु को अपने बेटे को भेंट करना चाहिए?

जो सच्चे पिता होते हैं, वो अपने बेटे को अच्छी चीज़ ही देते हैं| हे पिता जी, मैं भी समझ रहा हूँ कि इस संसार में कोई सार नहीं है| मुझे भी अब वैराग्य आ गया है| अतः मुझे भी दीक्षा लेने की अनुमति प्रदान करें| तब राजा महापद्म ने अपने छोटे पुत्र पद्म को पूरा राज्य दे दिया| फिर राजा महापद्म तथा उनके सुपुत्र विष्णु कुमार ने जाकर सागरचन्द्र आचार्य से दीक्षा ले ली|

शीघ्र ही महापद्म मुनिराज ने घातिया कर्मो को नष्ट कर केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया और फिर मोक्ष में चले गये| लेकिन मुनि विष्णु कुमारजी घनघोर तपस्या में लीन रहे| तपस्या करते-करते उन्हें बहुत सी ऋद्धिया प्राप्त हो गयी|

इसी बीच उस समय के भारतवर्ष में एक और घटना घटती है, जो इस प्रकार से है –

अवन्ती देश की उज्जयिनी नगरी में राजा श्री वर्मा राज्य करते थे| उसके यहाँ चार मंत्री थे – बलि, ब्रहस्पति, प्रह्लाद और शुक्र|इन चारो की धार्मिक मान्यताये राजा से अलग प्रकार की थी|

एक बार परमयोगी दिगम्बर जैन मुनि अकंपनाचार्य अपने सात सौ मुनि शिष्यों के साथ ससंघ उज्जयिनी पधारे। तब उज्जयिनी के राजा और सारी प्रजा अष्ट द्रव्य का थाल सजा कर अत्यंत उत्साहपूर्वक मुनिराजो के दर्शन के लिए निकलती है| उसी समय मुनिश्री अकंपनाचार्य को अपने अवधिज्ञान से पता चला जाता है कि इस राज्य के सभी मंत्री दूसरे धर्म को मानने वाले हैं, इसलिए इस राज्य में किसी भी तरह का किसी से भी वार्तालाप, चर्चा या संपर्क मुनिसंघ के हित में नहीं है| इसलिए उन्होंने सारे संघ को उन्होंने आदेश दे दिया कि सब मौन धारण करेंगे|

जब राजा और प्रजा ने वहां पर जाकर वंदना करने के पश्चात मुनिराजों से निवेदन किया कि हे ज्ञानवान गुरुवर, हमें धर्म का उपदेश दीजिये, जिससे हम अपने सम्पूर्ण जीवन को सफल बना सके, लेकिन किसी भी मुनिराज ने कोई भी जवाब नहीं दिया, क्योकि सब साधु मौन थे, प्रयास करने पर भी किसी भी मुनिराजों ने अपना मौन नहीं खोला,तब इन चारों मंत्रियो ने राजा को बोला कि अरे ये मुनिराज तो निरे अंगूठे-छाप हैं इनको कुछ आता नहीं है|

अगर इन मुनिराजो को कुछ आता होता, तो ये ऐसे मौन नहीं रहते| बस जैन साधु बनने पर इनको सम्मान, भोजन आदि मिल जाता है| यही कारण इनकी जैनेश्वरी दीक्षा लेने का है इसके सिवा कोई और कारण नहीं है, आप इनसे धर्मं का स्वरुप पूछ रहे हैं लेकिन ये सब मुनि जानते हैं कि इनको कुछ नहीं आता है| हे राजन, जब आपके साथ हमारे सरीखे इतने विद्वान् मंत्री हैं, तो ये कैसे कुछ बोले?

अतः ये चुप ही रह रहे हैं और कुछ नहीं बोल रहे हैं| इसके बाद राजा के साथ वे सब नगर की और लौटने लगे| तब रास्ते में इसी संघ के एक श्रुतसागर नामक मुनिराज को आता देख, इन चारो मंत्रियों में से एक मंत्री बोला –

अरे देखो, कैसा जवान बैल चला आ रहा है इन मुनिराज को पता नहीं था कि आचार्य श्री ने सबको मौन रहने आदेश किया है,अतः इन मुनिराज ने मौन व्रत नहीं लिया था इसलिए इन्होंने “स्यात” शब्द बोला, तो राजा को लगा ये साधु तो मौन नहीं है, तब राजा ने पूछा कि इसका अर्थ क्या है,

तब मुनिराज बोलते हैं कि इस संसार में भ्रमण करने वाला जीव कभी बैल योनी में भी उत्पन्न हो जाता है बैल में जवानी की दशा भी बनती है, तो उस भूतपूर्व अवस्था से आपके मंत्रियों ने सही कहा है| तो एक मंत्री बोलता है कि क्या आप मानते है पुनर्जन्म?

किसने देखा है पुनर्जन्म?

जो आँखों से नहीं देखा सा सकता, वो सत्य कैसे हो सकता है? तब मुनिराज तत्काल उत्तर देते हैं कि तुम्हारे माता, पिता की विवाह विधि हुई थी| क्या वो तुमने देखी थी? वो मंत्री कहता है कि हाँ हुई थी, तब मुनि बोलते हैं कि तुम कैसे कह सकते हो कि विवाह विधि हुई थी| तो मंत्री बोलता है कि हुई तो थी, लेकिन तुम तो बोल रहे हो कि जो आँखों से दिखता है, वही सच होता है| तो मंत्री बोलता है कि मैंने सुना है तो फिर मुनि बोले कि फिर तुम्हारी पहली बात झूठी सिद्ध हो रही है ये सुनते ही उस मंत्री को कुछ जवाब समझ में नहीं आया, तो फिर मुनिराज बोले कि जो हम आत्मा, परमात्मा की धारणा को लेकर चल रहे हैं, वो भी हमने सुनी है, हमने हमारे सदगुरु से, उन्होंने गणधर परमेष्ठी से गणधर परमेष्ठी ने उनके गुरु तीर्थंकर भगवान् – सर्वज्ञ से ये बात सुनी है| इस तरह अनादिकाल से आजतक यह मान्यता चली आ रही है| इसलिए हम भी उस पर अविश्वास नहीं करते हैं| इस प्रकार इन मंत्री के पास अब कोई जवाब नहीं था, अतः ये चारो मंत्री उन मुनिराज से परास्त हो गए, बात तो सच ही है| जो ज्ञानी महात्मा हैं, जिनको चारो अनुयोगो का ज्ञान है, उन आत्मज्ञानी महापुरुष को कोई जीत नहीं सकता है| वाद-विवाद में उनको कोई पराजित नहीं कर सकता है|

जो लोग थोडा बहुत पढ़ कर तर्क-वितर्क करने लग जाते हैं, वो अपनी ही बात से खुद ही पराजित हो जाते हैं | इस तरह स्यादवाद के धारक मुनिराज ने सबको पराजित कर दिया और वो सब मंत्री गण परास्त होकर म्लान मुख हो चले जाते हैं| इसके बाद मुनि श्रुतसागर जी आचार्य अकम्पनाचार्य जी के पास जाते है तथा उनको सब मंत्रियों से हुए समस्त वार्तालाप को बता देते हैं कि रास्ते ये घटना हुई तो मुझे थोड़ा सा शास्त्रार्थ करना पड़ा और वो परास्त हो गये तब वे आचार्य बोलते हैं कि तुमने मुनि संघ के ऊपर संकट ला दिया है, अब इस संकट से बचने का एक मात्र उपाए यही हो सकता है कि तुम पुनः उसी स्थान पर चले जाओ और कायोत्सर्ग मुद्रा में मौन होकर खड़े हो जाओ इससे संकट भी टल जायेगा और कायोत्सर्ग करने से तुमसे गुरु की आज्ञा की अनजाने में जो भूल हो गयी है, उसका भी प्रायश्चित हो जायेगा|

तब वे मुनि श्रुतसागर आचार्यश्री को नमस्कार कर चले गए और उसी स्थान पर जाकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हो गये| उधर उन चारो मंत्रियो ने बैठक में विचार किया कि इन साधुओं के कारण हमारी ऐसी बदनामी हुई है, अतः हम अब इन सब मुनियों को मार डालेंगे, तो दूसरा बोला कि सब मुनियों की हत्या करना व्यर्थ है|

अंत में निर्णय यह निकलता है कि जिस मुनि के कारण हमको इतनी बदनामी हुई है, उसी मुनि की हत्या करनी चाहिए अतः अब हम रातो-रात उस मुनि को मार डालेंगे| फिर चारो मंत्रीगण रात को उसी मार्ग से निकलते हैं रास्ते में चांदनी रात में श्रुतसागर मुनिराज को कायोत्सर्ग मुद्रा में देख कर पहचान लेते हैं और सोचते हैं कि चलो अच्छा हुआ, हमारा दुश्मन तो यही खड़ा है चारो मंत्रियों ने तलवार उठा ली और जैसे ही वो मारने को होते हैं, तब उस जगह का वन देवता उनके हाथो को कीलित कर देता है, जिससे उनके शरीर जकड़ जाते हैं और वे रात भर इसी मुद्रा में खड़े रह जाते हैं|

सुबह जब जनता मुनिराजो को वंदना के लिए निकलती है, तब रास्ते में इन दुष्टों को मुनिराज को मारने के लिए तलवार उठाये कीलित मुद्रा में देख कर अत्यंत क्रोधित होकर राजा को बताती है तब राजा बहुत कुपित होता है कि इन दुष्टों ने इतना नीचा कार्य करने की कोशिश की फिर राजा उन चारो मंत्रियो को अपमान पूर्वक देश निकाले का दंड देकर अवन्ती देश से निष्काषित कर देते हैं |

इसी बीच हस्तिनापुर के राजा पद्म पर सिंहबल नामक राजा चढ़ाई करता है, तब ये चारो मंत्री अपने छल-बल से सिंहबल राजा को बंदी बनाकर राजा पद्म के सामने ले आते हैं तब राजा पद्म बहुत प्रसन्न होता है, और बोलता है कि तुम सभी को मैं मंत्री बनाता हूँ और साथ में तुमको अगर कोई वरदान मांगना हो, तो मांग़ लो|

बलि मंत्री बोला, जब वक़्त होगा तब मागेंगे और इस तरह वो सभी हस्तिनापुर राज्य के मंत्री बन जाते हैं एक बार इस राज्य में भी अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनिराजो का संघ चौमासा के लिए आता है| अब जैसे ही इन मंत्रियों को इस बात का पता चलता है, वे सभी राजा पद्म के पास जाते हैं और राजा से वरदान में सात दिन का राज्य मानते हैं| अब ये चारो मंत्री राजा बनते ही मुनिसंघ के चारो ओर एक बाड़ी लगा देते है फिर उसमे अग्नि जलाकर यज्ञ प्रारंभ करते हैं और लकड़ी आदि जलाने लगते हैं तब चारो ओर बहुत सारा धुवाँ फ़ैल जाता है. यह धुवां मुनिराजों के गले, नासिका में चले जाने से मुनिराजो को अत्यंत कष्ट हो जाता है लेकिन फिर भी वो सभी मुनिराज समता धारण कर वही पर अपने आत्म चिन्तन में लीन हो जाते हैं और आहार-जल का त्याग कर देते हैं| इधर इस यज्ञ का धुवाँ दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था और मुनिराजों का दर्द भी बढ़ता जा रहा था| छठी रात को इस अत्यंत पीड़ादायक घटना से श्रवण नक्षत्र भी कम्पायमान हो उठता है|

इस स्थल से बहुत दूर विराजमान अवधिज्ञान के धारी आचार्य सागरचन्द्रजी ने इस कम्पित नक्षत्र को देखकर जाना कि ये बहुत अमंगलकारी अशुभ संकेत है और फिर वे मुनिराज अपने अवधिज्ञान से जान गए कि अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनिराजों पर प्राण संकट आया हुआ है तब एकदम से उनके मुख से “आह… !” ये शब्द निकलते हैं|

तब उन्होंने संघ में एक क्षुल्लकजी जिनके पास आकाशगामिनी विद्या थे, उनको आधी रात को ही बुलाया और बोला कि तुम तत्काल जाकर धरणीभूषण पर्वत पर विराजमान विष्णु कुमार मुनि को जाकर बता देना कि वे विक्रिया ऋद्धिधारी मुनि हैं और इन 700 मुनिराजों पर आये इस भीषण संकट का निवारण सिर्फ वे ही कर सकते हैं|

तब वे क्षुल्लक जी आकाश मार्ग से चले जाते है और विष्णु कुमार मुनि को सब बताते हैं. तब इन मुनिराज को याद आता है कि हस्तिनापुर का राज्य तो मेरे पूर्व भाई का राज्य है. फिर उनके राज्य में 700 मुनिराजों पर यह विकट संकट कैसे आया? साथ ही उनको खुद की कठोर तपस्या में लीन रहने से यह पता ही नहीं चला था कि उनको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हो गयी है अतः वे मुनिराज इस ऋद्धि को जांचने के लिए अपना हाथ आगे बढाते हैं, तो वो उनका हाथ पर्वतो को पार करता हुआ, समुद्रो को पार करता हुआ, मनुष्य लोक की अंतिम सीमा तक चला गया और फिर उन्होंने अपने हाथ को वापस कर लिया और समझ गए कि मुझे ये ऋद्धि तो प्राप्त हो गयी है फिर वे विष्णुकुमार मुनि तत्काल वहां से आकाश मार्ग से हस्तिनापुर आ जाते हैं और अपने पूर्व के छोटे भाई राजा पद्म से पूंछते हैं कि तुम्हारे राजा होते हुए इन 700 मुनिराजों पर इतना बड़ा संकट क्यों आया?

राजा पद्म बताता है कि अगर मैं राजा होता तो कभी ये नहीं होने देता लेकिन अभी मेरा राज्य सात दिनों के लिए उन मंत्रियो के पास है. अतः मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ| कृपया आप कुछ उपाय करे क्योकि इस वीभत्स कार्य से हम सब अत्यंत दुखी और परेशान हैं तब विष्णुकुमार मुनि विक्रिया ऋद्धि से अपना रूप बदल कर वामन का रूप धारण करते हैं. फिर वे वहां जाकर बड़ी सुन्दर आवाज में वीणा को लेकर वेदपाठ प्रारम्भ करते हैं तब बलि राजा बहुत अच्छे से उस वामन का स्वागत करते है और पूछते हैं कि हे विप्र आप क्या चाहते हो?

आपका इतना सुन्दर वेदपाठ सुनकर हम प्रसन्न हो गये हैं आज किमिचिक दान का दिन है आपको जो भी माँगना है, वो मांग लो तब वह वामन ऋषि कहते हैं कि हमें संपत्ति तो नहीं चाहिए, लेकिन तीन डग जमीन चाहिए तब राजा बलि उसे तीन डग जमीन देने का वादा करते हैं तब विष्णु कुमार मुनि बोलते है “लो बलि राजा, मैं तीन डग जमीन नापता हूँ ”

ऐसा बोलते ही उनके शरीर का आकर बढ़ना प्रारंभ हो जाता है,और इतना विशाल हो जाता है कि ज्योतिष पटल [ तारा मंडल ] से उनका सर टकराता है, फिर वो एक पैर तो जम्बूदीप की वेदी पर रखते है, दूसरा सुमेरु पर्वत पर रखते हैं यानी दो पैर में उन्होंने सुमेरु पर्वत से मानुषोत्तर पर्वत तक सम्पूर्ण मनुष्य लोक को नाप लिया, अब तीसरा पैर के लिए उनके लिए कोई स्थान बचा ही नहीं था अतः उनका पैर हवा पर लहरा रहा था तब देव लोक में हलचल मच गयी, मध्य लोक के देवता लोग भी घबरा गये, उन सबने विचार किया कि अगर अभी इन मुनिराज को शांत नहीं किया, तो उनकी नज़र मात्र से तीनो लोक कंपित हो सकते हैं और असमय में प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है तब देवता गण उनको शांत करने के लिए चार वीणा मंगवाते है, और फिर वीणा से इतना सुन्दर संगीत बजाते हुए क्षमा के गीत गाते हैं तब मुनिराज शांत होकर फिर से सामान्य रूप में दिगंबर मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तब राजा बलि आश्चर्य में पड़ जाता है कि जैन साधु में इतनी क्षमता कि दो डग में पूरा मनुष्य लोक नाप लिया और मैं बड़ा दान वीर बना फिरता था|

सभी देवताओ ने फिर बलि आदि मंत्रियों को बाँध दिया और इन मुनिराजो के चरणों में डाल दिया तब ये सभी मंत्री समस्त 700 मुनिराजों से माफ़ी मांगते हैं, तब मुनिराज उसको क्षमा कर देते हैं| साथ ही उन मुनिराजो का उपसर्ग भी देवता लोग मिटा देते हैं और वातावरण को भी सुमुधर तथा सुगंधित बना देते हैं लेकिन जो धुवां उन मुनिराजो के अन्दर चला गया था, उससे उनको बहुत तकलीफ हो रही थी फिर सुबह जब पूर्णिमा का यह रक्षाबंधन का दिन उदित होता है, तब सभी 700 मुनिराजजी आहार के लिए जाते हैं, तो पूरी हस्तिनापुर नगरी के श्रावक लोग ऐसा सुमुधर आहार निर्माण करते हैं जिससे इन सभी 700 मुनिराजों की कंठ की पीड़ा ठीक हो जाए फिर इन सभी 700 मुनिराजों को खीर में घी डालकर उसका आहार देते हैं. इस आहार से मुनि महाराजो के गले में शांति होती है और वे सभी लोगो को उनके कल्याण का उपदेश देते हैं|

इस दिन पूरे राज्य और देश में एक अद्भुत वात्सल्य का, एक दूसरे के प्रति सम्मान और आदर का भावुक वातावरण बन गया फिर सभी लोगो ने एक दूसरे के हाथो में पतला सा धागा सूत्र बांधा और संकल्प लिया, कसम खायी कि कभी भी देव-शास्त्र-गुरु पर संकट आयेगा, तो हम सब मिलकर उनका सामना करेगे| इसके बाद वे विष्णुकुमार मुनि अपने गुरु के पास जाते हैं और अपने इस रूप बदलने का प्रायश्चित लेते हैं और अंत में वे विष्णुकुमार मुनिराज भी उसी जन्म में सभी धातिया और अधातिया कर्मो का नाश कर उसी भव से मोक्ष चले जाते हैं|
इस तरह चैतन्यदेव की सर्वोच्च शक्ति को दर्शाने वाले आत्म धर्म के शास्त्रों में परमपूज्य मोक्षगामी विष्णुकुमार मुनिराज की यह अद्भुत कथा जैन शास्त्रों में रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनायी जाती है|

Address

Bhagwan Mahavir Marg Baraut
Baraut
250611

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when namah sidham posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to namah sidham:

Share