Mansoor Raza 786

Mansoor Raza 786 Har Gustakhe Rasoolﷺ Ko Ham Kafir Murtad Jahannami Mante Hai
Or Koi Rishta Nhi Rakhte

31/10/2025

27/10/2025

Assalamu alaikum
Kaise ho ap sab

Big thanks to Wahidullah Tahirfor all your support! Congrats for being top fans on a streak 🔥!Shukriya
26/10/2025

Big thanks to Wahidullah Tahir

for all your support! Congrats for being top fans on a streak 🔥!
Shukriya

25/10/2025

15/10/2025

Ek Durwesh sher Ki Doosti

13/10/2025

10/10/2025

Quame loot par azaab khubsoorat vedio
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https://youtu.be/Xom22l0ItsoShare or like
01/10/2025

https://youtu.be/Xom22l0Itso
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ताकते तुम्हारी है और खुदा हमारा है न्यू कलाम एक बार ज़रूर सुने by Mansoor Raza Shahjahanpuri #...

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23/09/2025

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ये एक अल्लाह का नाम जो रातों रात आप को किस्मत बदल दे एक बार ये अमल ज़रूर करे‎⁨⁩ ...

12/07/2025

Assalamu alaikum

तवाफ़ की आख़िरी आरज़ू – एक 96 साल माँ की कहानी❤️😱हिंदुस्तान के एक छोटे से गाँव में रहने वाली अम्मा बीबी, उम्र 96 साल, जि...
01/06/2025

तवाफ़ की आख़िरी आरज़ू – एक 96 साल माँ की कहानी❤️😱

हिंदुस्तान के एक छोटे से गाँव में रहने वाली अम्मा बीबी, उम्र 96 साल, जिनकी पूरी ज़िन्दगी अल्लाह और रसूल की मोहब्बत में गुज़री। बचपन से ही नमाज़ की पाबंद, कुरआन की तिलावत करने वाली, हर रमज़ान रोज़ा रखने वाली – वो एक मिसाल थीं अपनी नस्ल के लिए।

उनकी एक ही ख्वाहिश थी — “मेरे रब के घर का दीदार हो जाए, मैं अपने आख़िरी सांसें काबा शरीफ़ की दीवारों के साये में लेना चाहती हूं।”

बेटों ने कई बार कोशिश की लेकिन उनकी उम्र और बीमारियाँ बीच में आ जातीं। फिर एक दिन डॉक्टरों ने कह दिया:
“अब ज़्यादा वक़्त नहीं है, जो करना है जल्दी करें।”

उनके बेटों ने तुरंत उमरा का इंतज़ाम किया। व्हीलचेयर और मेडिकल सहायता के साथ उन्हें मक्का ले जाया गया। जिस वक़्त अम्मा बीबी ने हरम की ज़मीन पर क़दम रखा, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे।

“या अल्लाह! तूने बुलाया, अब तू ही मेहरबानी कर।”

लेकिन तवाफ़ करना उनके लिए आसान नहीं था। डॉक्टर ने मना किया, लेकिन अम्मा बीबी ने कहा:

“मेरे लिए यह तवाफ़, मेरी ज़िन्दगी का आख़िरी मक़सद है।”

उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाया गया, मेडिकल मशीनें साथ लगाईं गईं, और फिर शुरू हुआ वो तवाफ़ — एक सच्चे ईमान की पराकाष्ठा। भीड़ में लोग रास्ता दे रहे थे, कुछ लोग रो रहे थे, कुछ वीडियो बना रहे थे, लेकिन अम्मा बीबी की निगाहें सिर्फ़ काबा पर थीं। सात चक्कर पूरे हुए। हर चक्कर के साथ उनके लबों पर यही था:

“लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक…”

तवाफ़ के बाद वो ज़रा मुस्कराईं, अपने बेटे का हाथ पकड़ा और कहा:

“अब मैं तैयार हूँ जाने के लिए…”

चंद दिन बाद, मक्का में ही उनकी रूह परवाज़ कर गई। लोग कहते हैं कि जब उन्हें जन्नतुल मुअल्ला में दफ़नाया गया, तब मक्का की हवा भी ख़ामोश थी।

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