जिसके वज़न से कंधो में सबसे पहले दर्द हुआ
जिसे देख देख कर सिरदर्द हुआ
फिर भी आज ज़िन्दगी ने वजी रुख मोड़ लिया
जिन्हे याद करने को रोज रात अतिरिक्त जातां हुआ
फिर भी भूलकर हर एक दिन पतन हुआ
सोकर जागकर रोज रात याद कर
नींदो को छोड़कर सपनो को तोड़कर
जिनको न भूलने का रोज ठान लिया
आज फिर ज़िन्दगी ने वही रुख मोड़ लिया
जिनको रट-रट कर जुवां ने दुआ मांगी
जिनको लिख-लिख कर हाथों ने पनाह मांगी
जिनको दोहरा कर भूलना भी एक खेल हुआ
जिन्हे अक्सर दिमाग भी समझने में फेल हुआ
लेकिन आज फिर ज़िन्दगी ने वही मोड़ लिया
अब हटा दी है हर धूल जो उनसे रिस्ता है जो जोड़ लिया
अब चख लूंगा हर स्वाद वो जो वादा है खुद से कर लिया
अब न ही हारूंगा न थकूंगा
क्योंकि आज ज़िन्दगी ने फिर वही रुख मोड़ लिया
इतिहास सीखा भूगोल सीखा इन्ही से ही तो सविधान सीखा
बस कुछ ज्यादा नहीं दोस्तों इन्ही से तो इंसान सीखा
न गोरा देखा न काला देखा बस इसी ने तो अलख जगाया
न जाति देखि न धर्म देखा बस इसी ने तो भेदभाव मिटाया
एक किताब ही तो है जिसके चाँद पन्नो में पूरा ब्रह्माण्ड समाया लिया
इसीलिए करता हु आज जिक्र यारो किताब का
क्योंकि आज ज़िन्दगी ने फिर वही रुख मोड़ लिया