04/07/2024
(ताज़िया दारी उलमाए अहले सुन्नत की नज़र में)
👉कुछ लोग समझते हैं कि ताज़िए दारी सुन्नियों का काम है और इससे रोकना मना करना वहाबियों का।
हालांकि जब से यह ग़ैर शरई ताज़िए दारी राइज हुई है किसी भी ज़िम्मेदार सुन्नी आलिम ने उसे अच्छा नहीं कहा है।
हिन्दुस्तान में दौरे वहाबियत से पहले के आलिम व बुज़ुर्ग हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मोहद्दिसे देहलवी رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ लिखते हैं: अशरए मुहर्रम में ताज़िया दारी और क़ब्र व सूरत वग़ैरा बनाना जाइज़ नहीं।
📗फ़तावा अज़ीज़िया' जिल्द-1, सफ़ा 75
✍️फिर चन्द सतर के बाद तहरीर फ़रमाते हैं: ताज़िया दारी जैसा कि बद् मज़हब करते हैं बिदअत है।
और ऐसे ही ताबूत, क़ब्रों की सूरत और अलम वग़ैरा यह भी बिदअत है और ज़ाहिर है कि बिदअते सैय्यिह है।
📗फ़तावा अज़ीज़िया' जिल्द-1, सफ़ा 75
✍️और तहरीर फ़रमाते हैं: यह ताज़िया जोकि बनाया जाता है ज़ियारत के क़ाबिल नहीं है बल्कि इस क़ाबिल है कि इसे नीस्त व नाबूद किया जाए जैसा कि ह़दीस शरीफ़ में आया है कि तुम में से जो शख़्स कोई बात ख़िलाफ़े शरअ़ देखे तो उसे अपने हाथ से ख़त्म करे और अगर हाथ से ख़त्म करने की क़ुदरत न हो तो ज़बान से मना करे और अगर ज़बान से भी मना करने की क़ुदरत न हो तो दिल से बुरा जाने और यह सब से कमज़ोर ईमान है।
📗फ़तावा अज़ीज़िया' जिल्द-1, सफ़ा 76
✍️किसी तरह ताज़िया दारी की मदद करना कैसा है🤔
इस सवाल के जवाब में तहरीर फ़रमाते हैं: यह भी जाइज़ नहीं है इस लिये कि गुनाह पर मदद है और गुनाह पर मदद करना ना जाइज़ है।
📗फ़तावा अज़ीज़िया' जिल्द-1, सफ़ा 77
✍️आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरैलवी رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ जो इमाम अहले सुन्नत कहलाए जाते हैं जिनका फतवा अरब व अजम में माना जाता रहा है वह फरमाते हैं: अब के ताज़िए दारी इस तरीक़ा ना मुर्ज़िया का नाम है कतअ़न बिदअत व नाजाइज़ व हराम है।
📗फ़तावा रज़विया' जिल्द-24, सफ़ा 513
✍️आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ फ़रमाते हैं: ताज़िया मम्नूअ़् है शरअ़ में कुछ अस्ल नहीं, और जो कुछ बिद्आत इन के साथ की जाती हैं सख़्त ना जाइज़ हैं।
ताज़िया पर जो मिठाई चढ़ाई जाती है अगर्चे हराम नहीं हो जाती मगर उस के खाने में जाहिलों की नज़र में एक अम्र ना जाइज़ की वक़अ़त बढ़ाने और उस के तरक में उस से नफरत दिलानी हैं, लिहाज़ा न खाई जाए।
ढोल बजाना ह़राम है।
ताज़िया की तअज़ीम बिद्अ़त।
ताजिया बनाना ना जाइज़ है।
📗फ़तावा रज़विया' 10/189, 3/258, 6/186)
📗ख़ुत्बाते मुह़र्रम' पेज़ नं 517/520)
👉जो लोग कहते हैं कि ताज़िया बनाना अहले सुन्नत का काम है वह आला हज़रत की किताबों का मुताला करें पचासों जगह उनकी किताबों में ताज़िए दारी को नाजाइज़ व हराम और गुनाह लिखा है बल्कि पूरा एक रिसाला इसी बारे में तस्नीफ़ फ़रमाया है जिसका नाम है “अआली अल-इफ़ादा फ़ी ताज़िया अल-हिन्द व बयान शहादते”।
✍️मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द मौलाना शाह मुस्त़फ़ा रज़ा ख़ाँ अलैहिर्रहमा' फ़रमाते हैं ताज़िए दारी शरअन नाजाइज़ है।
📗फ़तावा मुस्तफ़्वीया' सफ़ा 534
✍️मुस़न्निफ ए बहारे शरीअत” हज़रत सदरूश्शरीआ़ सदरुल मौलाना अमजद अ़ली आज़मी रज़वी अ़लैहिर्रहमा' फ़रमाते हैं:
ताज़िया दारी में जो कुछ किया जाता है सब लग़्व व खुराफ़ात हैं उनसे हरगिज़ सय्यिदिना हज़रत इमामे हुसैन रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु' ख़ुश नहीं यह तुम ख़ुद ग़ौर करो कि उन्होंने एह़या-ए-दीन व सुन्नत के लिये यह ज़बरदस्त कुर्बानियाँ दीं और तुमने मआ़ज़ल्लाह उसको बिदआ़त का ज़रिआ़ बना लिया।
जिनको इस्लाम तो इस्लाम इन्सानी तहज़ीब भी जाइज़ नहीं रखती, ऐसी बुरी हरकात इस्लाम हरगिज़ जाइज़ नहीं रखता।
अफ़्सोस कि मह़ब्बते अहले बैते किराम के दअ़्वा और ऐसी बेजा ह़रकतें यह वाक़िआ़ तुम्हारे लिये नसीह़त था और तुमने उसको खेल, तमाशा बना लिया।
यह सब ना’जाइज़ और गुनाह के काम हैं।
मुसलमानों पर लाज़िम है कि ऐसे उमूर से परहेज़ करें और ऐसे काम करें जिनसे अल्लाह और रसूल ﷺ राज़ी हों कि यही निजात का रास्ता है।
📗हिन्दी बहारे शरीअत' जिल्द-2, पेज़ नं 680
✍️हज़रत मौलाना शाह मुफ़्ती मुहम्मद अजमल साहब संभली फरमाते हैं: अब चूंकि ताज़िए दारी बहुत मम्नूआ़ते शरईया और उमूर नाजाइज़ पर मुश्तमिल है लिहाज़ा ऐसी सही नक़ल भी नहीं बनानी चाहिए।
📗फ़तावा अज्मलीया' जिल्द-4, सफ़ा 15
✍️हज़रत मौलाना हशमत अली खाँ बरैलवी رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ फ़रमाते हैं: ताज़िए बनाना उन्हें बाजे ताशे के साथ धूम धाम से उठाना उनकी ज़्यारत करना उनका अदब और ताज़ीम करना उन्हें सलाम करना उन्हें चूमना उनके आगे झुकना और आंखों से लगाना बच्चों को हरे कपड़े पहनाना घर-घर भीख मंगवाना करबला जाना वग़ैरह शरअन नाजाइज़ व गुनाह हैं।
📗शमअ–ए-हिदायत' हिस्सा-सोम, सफ़ा 30
✍️फ़क़ीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन साहब अम्जदी رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ फरमाते हैं: हिन्दुस्तान में जिस तरह के आम तौर पर ताज़िए दारी राइज है वह बेशक हराम व नाजाइज़ व बिदअते सैयआ है।
📗फ़तावा फ़ैज़ुर्रसूल' जिल्द-2, सफ़ा 563
👉यहां यह बात भी क़ाबिले ज़िक्र है कि 1388 हिजरी में अब से तक़रीबन 47 साल पहले ताज़िए दारी के हराम व नाजाइज़ होने से मुतअ़ल्लिक़ एक फतवा मरकज़ अहले सुन्नत बरैली शरीफ़ से शाए हुआ था जिस पर उस ज़माने के हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों के 75 बड़े-बड़े सुन्नी उ़लमाए किराम के दस्तख़त थे सभी ने ताज़िए दारी के हराम और नाजाइज़ होने की तस्दीक़ की थी और वह फतवा उस ज़माने में पोस्टर की शक्ल में शाए किया गया था उसकी तफ़्सील उलमाए किराम के नाम के साथ हज़रत मौलाना मुफ़्ती जलालुद्दीन साहब अलैहिर्रहमा' की तस्नीफ़ ख़ुत्बाते मुह़र्रम' सफ़ा 469) पर देखी जा सकती है गोया कि ताज़िए दारी हराम होने पर इज्माए उम्मत है।
📗मुहर्रम में क्या जायज़ क्या नाजाइज़' पेज़ नं 25)
📗ख़ुत्बाते मुह़र्रम' पेज़ नं 524/529)
✍️इस्लामी भाइयों! यह दिल है उसको जिसमें लगाओगे यह लग जाएगा गानों, बाजों, मेलों, तमाशों खुराफ़ातों में लगाओगे तो उसमें लग जाएगा।
और उसी दिल को नमाज़ रोज़े और क़ुरआन व तिलावत में लगाओगे तो उसमें लग जाएगा।
अफ़्सोस कि तुमने अपने दिल को मेलों, ठेलों, और तमाशों में लगा लिया।
और मौत क़रीब आ रही है मरने से पहले इस दिल को नमाज़ रोज़े क़ुरआन की तिलावत और दीनी किताबों के मुताले वग़ैरह अच्छी बातों में लगा लो।
🕋क़ुरआने करीम' में अल्लाह तआ़ला' इरशाद फ़रमाता है: और उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और उन्हें दुनिया की जिन्दगी ने धोखा दे दिया है।
📖सूरए अनआम' आयत 70)
और एक जगह फ़रमाता है: जिन लोगों ने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन्हें धोखे में डाल दिया आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा उन्होंने उस दिन के मिलने का ख़्याल छोड़ रखा था और जैसा वह हमारी आयतों से इंकार करते थे।
📖सूरए: अअराफ़' आयत 51)
☝️इन आयतों को आप ध्यान से पढ़े तो आज की ताज़िए दारी और उ़र्सों के नाम पर जो मेले ठेले नाच तमाशे और क़व्वालियां हो रही हैं यह सब चीज़ें याद आ जाएंगी और नज़र इंसाफ़ कहेगी कि वाक़ई़ यह लोग है जिन्होंने इस्लाम को तमाशा बना कर रख दिया और मज़्हब को हंसी खेल की शक्ल दे दी?
🤲ख़ुदाए तआ़ला' तौफ़ीक दे।