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एक भक्त ने रामकृष्ण परमहंस जी से पूछा —"भगवान हमारे जीवन में दुख क्यों देते हैं? क्या ईश्वर को हमारे सुख-दुख की कोई चिंत...
08/07/2025

एक भक्त ने रामकृष्ण परमहंस जी से पूछा —
"भगवान हमारे जीवन में दुख क्यों देते हैं? क्या ईश्वर को हमारे सुख-दुख की कोई चिंता नहीं?"

रामकृष्ण परमहंस जी का उत्तर:
रामकृष्ण परमहंस जी मुस्कराए और बोले —
"बेटा, जब सोना आग में तपाया जाता है, तभी उसकी अशुद्धियाँ दूर होती हैं और वह खरा बनता है। उसी तरह जब मनुष्य दुखों की अग्नि में तपता है, तब उसका अहंकार, वासनाएँ और मोह धीरे-धीरे जलते हैं। भगवान अपने भक्तों को दुख इसलिए नहीं देते कि उन्हें पीड़ा पहुँचाना है, बल्कि इसलिए कि वे उन्हें शुद्ध और मजबूत बनाना चाहते हैं।

"जिस तरह माँ अपने बच्चे को कड़वी दवा देती है ताकि वह स्वस्थ हो जाए, वैसे ही भगवान भी हमें कभी-कभी कठिनाइयों की दवा देते हैं ताकि हम आत्मिक रूप से विकसित हो सकें।"

भावार्थ:
ईश्वर हमारे दुखों से उदासीन नहीं हैं, बल्कि वे हमारे आत्मिक कल्याण के लिए ही हमें कभी-कभी दुखों की अग्नि में डालते हैं। यदि हम श्रद्धा और धैर्य रखें, तो वही दुख हमें ईश्वर के और करीब ले जाते हैं।

ादेव





















ः_शिवाय

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रामकृष्ण परमहंस और 'एम' की बातचीत स्थान: दक्षिणेश्वर काली मंदिरसमय: रविवार, वर्ष 1882एम (महेंद्रनाथ गुप्त) पहली बार श्री...
08/07/2025

रामकृष्ण परमहंस और 'एम' की बातचीत

स्थान: दक्षिणेश्वर काली मंदिर
समय: रविवार, वर्ष 1882

एम (महेंद्रनाथ गुप्त) पहली बार श्रीरामकृष्ण परमहंस से मिलने दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंचे। उस समय श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ हास्य-प्रेम में लीन थे। एम कुछ उदास और जीवन से भ्रमित अवस्था में थे।

रामकृष्ण (मुस्कुराते हुए):
"तुम किसलिए आए हो? क्या तुम्हारा कोई प्रश्न है?"

एम (विनम्रता से):
"मैं जीवन का अर्थ समझना चाहता हूँ। संसार में दुख ही दुख है। शांति कहाँ है?"

रामकृष्ण (गंभीर होकर):
"संसार में दुख है, यह सत्य है। लेकिन परमात्मा ही शांति का स्रोत है। जब तक मनुष्य ईश्वर को नहीं जानता, तब तक उसे सच्ची शांति नहीं मिलती।"

एम:
"क्या हर कोई ईश्वर को जान सकता है?"

रामकृष्ण:
"हाँ, क्यों नहीं! ईश्वर तुम्हारे हृदय में है। जैसे कोई दीपक ढक दिया जाए तो प्रकाश नहीं दिखता, वैसे ही माया मनुष्य को ढँक देती है। जैसे-जैसे माया हटेगी, वैसे-वैसे ईश्वर का प्रकाश प्रकट होगा।"

एम (प्रभावित होकर):
"मैंने पहले कभी ऐसा नहीं सुना। आप कौन-से धर्म को मानते हैं?"

रामकृष्ण:
"सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं। राम, कृष्ण, ईसा, मोहम्मद – सब एक ही सत्य के अलग-अलग नाम हैं। प्रेम ही सच्चा धर्म है।"

एम का मन श्रीरामकृष्ण की वाणी और सादगी से अभिभूत हो गया। यह उनकी पहली गोष्ठी थी — और यहीं से उनके जीवन में आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ हुआ।

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