10/07/2025
कुछ दिन पहले की बात है, हमने उत्तरकाशी के मनेरा झूला पुल के बारे में एक पोस्ट की थी। उसमें हमने बताया था कि इस पुल पर किस तरह दोपहिया वाहन दौड़ाए जा रहे है।
जवाब में हमें सुनने को मिला कि प्रशासन ने वहाँ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया है— "झूला पुल पर दोपहिया वाहनों की आवाजाही सख्त मना है।" हमने सोचा, चलो, अब तो लोग नियम मानेंगे। लेकिन भारत की बात ही निराली है, यहाँ लिखे हुए नियमों को पढ़ने या मानने की आदत कम ही लोगों को होती है।
आज जब हम मनेरा झूला पुल पर पहुँचे, तो हमारी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं। ना तो वहाँ कोई चेतावनी का बोर्ड दिखा, ना ही कोई नियमों की परवाह करता हुआ। उत्तरकाशी की "समझदार" जनता पूरे जोश में थी—दोपहिया वाहनों को दबाकर झूला पुल पर दौड़ा रही थी, मानो यह कोई रेसिंग ट्रैक हो। इंजनों की गड़गड़ाहट, और पुल की हल्की-सी काँपती रस्सियाँ—सब मिलकर जैसे किसी अनहोनी की आहट दे रहे थे।
हम खड़े-खड़े सोच में पड़ गए। शायद जब तक कोई बड़ा हादसा न हो, तब तक ना प्रशासन की नींद खुलेगी, ना ही लोगों की अक्ल ठिकाने आएगी। और अगर, ना जाने कब, कोई दुर्घटना हो गई, तो वही नेता और अधिकारी, जो आज इस लापरवाही को रोक सकते हैं, सबसे पहले संवेदना जताने की कतार में खड़े मिलेंगे। उनके मुँह से बड़े-बड़े शब्द निकलेंगे, आँसुओं की बातें होंगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
जनता को भी तो समझना होगा। मनेरा जाने के लिए झूला पुल ही एकमात्र रास्ता नहीं है। कई और सुरक्षित रास्ते हैं, जो शायद थोड़े लंबे हों, लेकिन जान जोखिम में डालने से तो बेहतर हैं। शॉर्टकट का लालच कभी-कभी बहुत भारी पड़ सकता है। क्या हम सचमुच उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं, जब यह झूला पुल किसी अनहोनी की कहानी का हिस्सा बन जाए? सोचिए, अभी भी वक्त है—नियम बनाइए, और उन्हें मानिए, क्योंकि जान से कीमती कुछ भी नहीं।