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रात में एक चोर हमारे घर में घुसा..। कमरे का दरवाजा खोला तो बरामदे पर एक बूढ़ी औरत सो रही थी।खटपट से उसकी आंख खुल गई। चोर...
20/09/2025

रात में एक चोर हमारे घर में घुसा..।

कमरे का दरवाजा खोला
तो
बरामदे पर एक बूढ़ी औरत सो रही थी।

खटपट से उसकी आंख खुल गई। चोर ने घबरा कर देखा
तो
वह लेटे लेटे बोली....

‘‘ बेटा, तुम देखने से किसी अच्छे घर के लगते हो,
लगता है किसी परेशानी से मजबूर होकर इस रास्ते पर लग गए हो।
चलो ....कोई बात नहीं।

अलमारी के तीसरे बक्से में एक तिजोरी
है ।
इसमें का सारा माल तुम चुपचाप ले जाना।

मगर

पहले मेरे पास आकर बैठो, मैंने अभी-अभी एक ख्वाब
देखा है । वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बता
दो।"

चोर उस बूढ़ी औरत की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया।

बुढ़िया ने अपना सपना सुनाना शुरु किया...

‘‘बेटा, मैंने देखा कि मैं एक रेगिस्तान में खो गइ हूँ।
ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने 3 बार जोर जोर
से बोला पंकज! पंक़ज! पंकज!!!

बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आंख खुल गई। .जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुई? ‘‘

चोर सोच में पड़ गया।

इतने में बराबर वाले कमरे से
बुढ़िया का नौजवान बेटा पंकज अपना नाम
ज़ोर ज़ोर से सुनकर उठ गया और अंदर आकर चोर की
जमकर धुनाई कर दी।

बुढ़िया बोली ‘‘बस करो अब
यह अपने किए की सजा भुगत चुका।"

चोर बोला, "नहीं- नहीं ! मुझे और कूटो , सालों!....

ताकि मुझे आगे याद रहे कि..... मैं चोर हूँ , सपनों का सौदागर नहीं।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला

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एक लड़की जब 16 से 20 वर्ष के बीच होती है, तो उसका मन किस प्रकार से बहलता है और शिकारी उसका शिकार कर लेते हैं। उन्हीं लड़...
20/09/2025

एक लड़की जब 16 से 20 वर्ष के बीच होती है, तो उसका मन किस प्रकार से बहलता है और शिकारी उसका शिकार कर लेते हैं। उन्हीं लड़कियों की तरह एक लड़की को शिकारी के चंगुल से बचा लिया गया है। जो इस पोस्ट में दर्शाया गया है।

एक दिन की बात है जब एक काम से मुझे 16 सितंबर को दिल्ली जाना पड़ा तो मैंने तत्काल स्लीपर टिकट लिया और कैफियत ट्रेन से रवाना हो गया और मेरे बैठने के ठीक तीन घंटे बाद एक सलवार सूट पहने हुए गोरी सी लड़की एक बैग लिए हुए मेरी सीट पर एक किनारे बैठ गई। और मैं हाथ में लिए हुए एक मैगजीन पढ़ रहा था और वह लड़की बार बार इधर उधर देख रही थी। वह बार बार मुझे भी देखें जा रही थी। शायद वह सोच रही थी कि कहीं मैं उसे अपनी सीट से उतार न दूं।

मैंने मैगजीन रखते हुए पूछा-- कहा जाना है? लड़की:— दिल्ली! लड़की:— आप कहा तक जाएंगे ? मैंने कहा:— मुझे भी दिल्ली जाना है, और आपकी सीट कहा है? मेरे पास जनरल टिकट है। मैंने कहा:— तो अभी टीटी आएगा तो टिकट बनवा लेना, शायद सीट भी कही दें दें। लड़की:— जी ठीक है मैं बनवा लुंगी लेकिन तब तक आप हमें बैठने दीजिए।:— मैंने कहा कोई बात नहीं बैठी रहो।

टीटी आया और स्लीपर का टिकट तो बना दिया किन्तु सीट नहीं दिया, बोला कोई सीट खाली नहीं है।

मैंने कहा आप करती क्या हो? लड़की:— कुछ नहीं। मैंने कहा:— मेरा मतलब पढ़ाई से है । जी मै ग्यारहवीं क्लास में पढ़ती हूं। मैंने:— अच्छा! और आपके घर में कितने लोग हैं। लड़की:— मम्मी पापा भाई बहन सब है।

थोड़ी देर बाद वह मोबाइल निकाली और उसमें सिमकार्ड लगाई और किसी से बात की। उधर से कौन था और क्या बात किया यह तो मुझे नहीं पता लेकिन यह लड़की अपना लोकेशन दें दिया।

मैंने कहा:— पापा से बात कर रही थी स्टेशन से रिसीव करने के लिए। लड़की:— जी नहीं पापा तो गांव में है। मैंने:— फिर भैया रहे होंगे। लड़की:— नहीं ओ.. मेरे..ओ.. थै । मैंने:— ओ थे मतलब! मुझे तो नहीं लगता कि अभी आपकी शादी हुई है। लड़की:— जी अभी तो नहीं हुई है, लेकिन दो तीन दिन में हों जाएगी। मैंने:— ओ अब समझा इसका मतलब प्रेम विवाह करने वाली हो। लड़की:— जी ! मुस्कुराने लगी। मैंने:— लड़का क्या करता है? लड़की:— दिल्ली में नौकरी करता है और बोल रहा था कि मुझे भी नौकरी दिला देगा, फिर हम दोनों लोग मौज से रहेंगे। मैंने कहा:— काफी स्मार्ट लड़का होगा । लड़की:— जी बहुत स्मार्ट है और बहुत अच्छे स्वभाव का है ।

मैंने कहा:— मैं भी प्रेम विवाह किया हूं। लड़की:— ( बड़ी उत्सुकता से) आप भी भाग कर शादी किए थे। मैंने:— नहीं! मै जिस लड़की को पसंद करता था वह लड़की भी मुझे भाग कर शादी करने के लिए कह रही थी लेकिन मैंने उससे कहा नहीं हम तुमसे प्रेम तो करते हैं किन्तु इसका मतलब यह तो नहीं कि जो मां हमें अपने गर्भ में रखा और हमारा बाथरूम साफ किया, जिस पिता ने हमें अंगुली पकड़कर चलना सिखाया, बाजार के सारे खिलौने दिए उसके प्यार को ठुकरा दूं। जो सम्मान बनाने में इतनी उमर गवा दिए, उनकी इज्जत को रौंद दूं। उनका सर समाज में हमेशा के लिए झुका दूं। मै शादी तो तुम्हीं से करूंगा लेकिन मां बाप को मना कर और फिर एक दिन माता पिता मान गए और हम दोनों की शादी हो गई।

मैंने कहा:— वैसे आप जिससे प्रेम करती है उसे आपके घर वाले जानते हैं। लड़की:— जी नहीं, कोई नहीं जानता। मैंने:— आप उसका घर देखी है और उसके घर वाले आपको जानते है। लड़की:— नहीं । मैंने कहा:— फ्राड ! तुम्हारे साथ फ्राड होने वाला है। लड़की:— नहीं वह ऐसा वैसा लड़का नहीं है। वह मुझसे बहुत प्यार करता है। मैंने:— एक बात बताऊं, जो प्यार करता है तो सिर्फ करता है ज्यादा जताने की कोशिश नहीं करता है और किसी अनुचित पर रोकता और डांटता भी है। और यह तुम्हारे धन, तुम्हारी सुन्दरता से प्रेम करता है। लड़की:— नहीं यह ग़लत बात है वह ऐसा नहीं कर सकता। मैंने कहा:— ठीक है मर्जी तुम्हारी पर मेरे पास एक उपाय है परीक्षा लेना चाहोगी ! लड़की:— क्या ? मैंने कहा:— उसे फोन करो और बोलो कि मेरे मम्मी पापा मान गए है मैरी शादी तुमसे करने के लिए और वो भी आने के लिए कह रहे है और वही दिल्ली में ही मेरे मामा मामी भी है वे भी आ जाएंगे और वो बोले है आखिर एक दिन शादी करनी ही है तो अभी तुम्हारे पसंद का ही कर देते हैं ताकि हम लोगों का मान सम्मान भी रह जाय और तुम लोगों की खुशी भी। इसलिए तुम अपने मम्मी पापा को भी बुला लो।

लड़की ने वैसा ही किया, फोन लगाईं और लड़का इसकी सब बातें सुनकर आगबबूला हो गया, और बोला। तेरी जैसी कितनी लड़कियां आई और चली गई और तुम मुझे बेवकूफ बनाने आई हो।पागल समझ रखा है। डांटते हुए फोन काट दिया।

लड़की:— फिर से फोन लगाईं, स्विच ऑफ बताने लगा। मैंने कहा:— अब उसका फोन कभी नहीं लगेगा क्योंकि ऐसे लड़के अलग अलग लड़कियों के लिए अलग अलग सिमकार्ड का उपयोग करते हैं।

अब सोचो घर से भागने का मतलब घर जा नहीं सकती। उनको अपनी परेशानी बता नहीं सकती और तुम्हारा उसके सिवा और कोई रहता नहीं। इसलिए वह तुम्हारे साथ अगर कोई बर्बरता करता तो तुम क्या करती या फिर एक दिन छोड़कर चला जाता,भाग जाता तो ऐसे में क्या करती। जानती हो ऐसे में लड़कियां आत्महत्या कर लेती है जो घर वालों को पता तक नहीं चल पाता।

लड़की रोने लगती है मैंने कहा:— ओ..हो.. रोना नहीं अभी तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ा है।अब एक काम करो अपने घर फोन लगाओ। लड़की फोन लगाती है। हैलो, हां पापा! लड़की रोने लगती है, पापा:— बिटिया कहा हों ? हम सभी लोग बिना खाए पिए तुम्हें ही खोज रहे है। लड़की:— पापा बस थोड़ा सा बहक गई थी पर अब ठीक हूं, कल तक घर आ जाउंगी। और मुझे धन्यवाद देते हुए अगले स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन से घर के लिए रवाना हो गई।

दोस्तों,, इसलिए कहा जाता है औलाद को इतनी मोहब्बत दो दो कि हर बात बताये छुपाये नही
कुछ लड़कियाँ घर से भाग जाती हैं जो कि गलत है और कोई ना कोई वजह से भागती हैं इसलिए उसकी बात सुने क्या चाहती है जबर्दस्ती उसपे अपना फैसला नहीं थोपना चाहिए हरेक माँ बाप को ये बात समझना चाहिए

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान बाड़मेर

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हल्दीघाटी युद्ध के बाद आमेर के राजा मानसिंह ने 23 जून, 1576 को गोगुन्दा पर अधिकार करके शाही सिपहसालारों को सौंप दिया। मह...
19/09/2025

हल्दीघाटी युद्ध के बाद आमेर के राजा मानसिंह ने 23 जून, 1576 को गोगुन्दा पर अधिकार करके शाही सिपहसालारों को सौंप दिया। महाराणा प्रताप कुम्भलगढ़ से कोल्यारी पहुंचे और वहां से गोगुन्दा की तरफ कूच किया।

बारिश के मौसम में महाराणा ने गोगुन्दा के महलों में तैनात मुगलों पर अचानक आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अपने निवास स्थान गोगुन्दा पर विजय प्राप्त की और वहां मांडण कूंपावत को नियुक्त किया।

गोगुन्दा के पास मजेरा गाँव में राणेराव के तालाब के पास में महाराणा प्रताप ने सैनिक छावनी बनाई और वहाँ से मेवाड़ के मैदानी भागों में तैनात मुगल थाने उठाए। गोगुन्दा के इस युद्ध में कईं मुगल मारे गए और बहुत से भाग निकले।

महाराणा प्रताप चाहते थे कि अकबर स्वयं मेवाड़ आए, इसलिए उन्होंने कुछ शाही सिपहसालारों को छोड़ते हुए व्यंग भरे शब्दों में कहा कि "अपने बादशाह से कहना कि राणा कीका ने याद किया है"

गोगुन्दा की भीषण पराजय और महाराणा के व्यंग ने मुगल बादशाह अकबर को मेवाड़ आने के लिए विवश कर दिया और 11 अक्टूबर, 1576 को उसने मेवाड़ की तरफ रुख किया।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला

सेठ मजदूर से बोला " राजू आज ये सारी बोरियाँ उधर डालनी है। कल यहाँ नया माल आयेगा।" राजू बोला " आधा घण्टे बाद मेरी ड्यूटी ...
19/09/2025

सेठ मजदूर से बोला " राजू आज ये सारी बोरियाँ उधर डालनी है। कल यहाँ नया माल आयेगा।" राजू बोला " आधा घण्टे बाद मेरी ड्यूटी खत्म हो जायेगी सेठ। उसके बाद मै घर जाऊंगा। आज बीवी बच्चों को मेला दिखाने ले जाना है। इसलिए बाकी का काम कल ही होगा। " सेठ बोला " अरे भाई ऑवर टाइम के पैसे दूंगा। फ्री मे थोड़े करवा रहा हूँ। " राजू बोला " मुझे पैसे नही चाहिए सेठ। मैंने बच्चों से वादा किया है आज रात उन्हे मेले मे जरूर ले जाऊंगा। " सेठ गुस्से मे बोला " घर मे आ रही लक्ष्मी के लिए क्यों मना कर रहा है। मेले मे कल चले जाना। मेला तो चार दिन चलेगा न? " राजू बोला " उस वादे का क्या करूँ सेठ जो बीवी बच्चों से कर आया हूँ। आज मुझे अपनो के साथ कुछ हंसी खुशी के पल बिताने है। मेला तो कल भी लगेगा मगर वो घर पर इंतजार कर रहे हैं। मेरे घर पर नही पहुँचने पर उनके चेहरे की मुस्कान बुझ जायेगी उसका मोल आपकी दिहाड़ी से बहुत ज्यादा है।" सेठ अंट गया बोला " मै रात की दुगुनी दिहाड़ी दूंगा। " राजू बोला "नही चाहिए!! " सेठ बोला " अरे यार पांच गुनी दिहाड़ी दूंगा। ये काम तो तुझे आज ही करना पड़ेगा। " राजू बोला " नही चाहिए सेठ। " सेठ आश्चर्य से राजू की तरफ देखता रहा । अपना सिर खुजाता रहा फिर काफी देर सोचने के बाद बोला " भाई तु और तेरा परिवार मुझसे ज्यादा अमीर है। आज मुझे समझ मे आ गया है कि अपनो के साथ "खुशी के पल" जीना ज्यादा जरूरी है। कमाई तो जीवनभर चलती रहेगी। हम यहाँ सिर्फ कमाने थोड़े आये हैं। जीने आए हैं। तु मेले जा। काम होता रहेगा। और इस बार मै तुझे पांच दिन की दिहाड़ी फ्री मे दूंगा। बच्चों को बोलना ताऊ जी ने भेजे हैं। मै भी आज अपने परिवार को लेकर मेले मे आ रहा हूँ।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला

नीलकंठेश्वर मंदिर, बसोदा, मध्यप्रदेश परमार राजाओं का एकमात्र जीवित राजसी मंदिर…भगवान शिव या नीलकंठ को समर्पित यह मंदिर भ...
18/09/2025

नीलकंठेश्वर मंदिर, बसोदा, मध्यप्रदेश
परमार राजाओं का एकमात्र जीवित राजसी मंदिर…

भगवान शिव या नीलकंठ को समर्पित यह मंदिर भोपाल के उत्तर-पश्चिम मध्य प्रदेश के गंज बसौदा जिले के छोटे से शहर उदयपुर में स्थित है।
विदिशा जिले में उदयपुर आज एक छोटा सा स्थान है। यह नीलकंठेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। लाल बलुआ पत्थर से बनी इस भव्य इमारत का निर्माण परमार राजा उदयादित्य ने करवाया था।उनका शासनकाल लगभग 1059-1086 के आसपास था। वह महान राजा भोज के पुत्र एवं उत्तराधिकारी थे। मंदिर को संभवतः उदयेश्वर नाम दिया गया था, किंतु समय के साथ इसका दूसरा और प्रसिद्ध नाम नीलकंठेश्वर हो गया। राजा उदयादित्य को अपने पूर्ववर्ती राजा भोज की तरह कला और साहित्य से लगाव था और उन्होंने अपनी विरासत को आगे बढ़ाया। नीलकंठेश्वर को संभवतः इसी परम्परा की एक श्रंखला माना जाता है। मध्य भारत में, सटीक रूप से दिनांकित मंदिरों को देखना तनिक कठिन है किंतु उदयेश्वर मंदिर कुछ में से एक है, जिसकी सटीक तिथि है। मंदिर पर उत्कीर्ण दो शिलालेखों में 1059 से 1080 के बीच परमारा राजा उदयादित्य के दौरान मंदिर के निर्माण का प्रमाण है।

वास्तुकला…..
यद्यपि खजुराहो की कुछ इमारतों के समान ही , वास्तुकला की दृष्टि से, मंदिर का शिखर भूमिजा या 'पृथ्वी से उत्पन्न' नामक वर्ग से संबंधित है। यह मंदिर निर्माण का एक प्रकार है जो मालवा क्षेत्र में उत्पन्न हुआ था। इस प्रकार के अन्य मंदिर नेमावर और ऊन खरगोन जिला में पाए जाते हैं। मंदिर की जटिल शैव प्रतिमा का अवलोकन अत्यंत मनमोहक है। नीलकंठेश्वर मंदिर में गर्भगृह के बाहरी भाग में शैव देवताओं की आकृतियां और आले दिखाई देते हैं। पूर्वी प्रवेश द्वार, पर अनेक तीर्थयात्रियों और मन्नत संबंधी अभिलेख उत्कीर्ण हैं। यह मंदिर उत्तर भारत में इमारत पर और उसके अंदर कई शिलालेखों के कारण अद्वितीय है, जिसमें पूर्वी प्रवेश द्वार पर विशेष सांद्रता पाई जाती है। प्रवेश द्वार के ठीक अंदर एक हाथी की मूर्ति पर एक शिलालेख उकेरा गया है। ‘उदलेश्वर’ उदयेश्वर की एक स्थानीय वर्तनी है, जो मंदिर के मुख्य देवता हैं, जिनका नाम परमार राजा उदयादित्य के नाम पर रखा गया है।

शैली…
नीलकंठेश्वर का निर्माण भूमिजा शैली में किया गया था, जो मालवा क्षेत्र की मंदिर वास्तुकला की एक विशेष शैली है। भूमिजा का शाब्दिक अर्थ है “पृथ्वी से उत्पन्न” या “पृथ्वी का”। शायद इसीलिए यह मंदिर ऐसा प्रतीत होता है मानो यह अचानक धरती से बाहर आ गया हो और इसके चारों ओर कोई चबूतरा न हो। ऐसा लगता था जैसे वहाँ कुछ रखा गया हो, सजाया गया हो और थाली में परोसा गया हो। पूरे ढांचे की लघु प्रतिकृतियों को सभी तरफ़ से सजाया गया है। लघु प्रतिमाओं की संख्या और आकार धीरे-धीरे ऊपर की ओर घटते जाते हैं। इससे संरचना को एक चिकना और कोणीय प्रभाव मिलता है, जैसे कि कोई सादी दीवारें नहीं हैं। इन सभी लघु प्रतिमाओं की नक्काशी जटिल, जटिल और सममित है।

इस मंदिर को मुख्य ऊर्ध्वाधर मंदिर के पीछे की ओर घूमने वाली इस संरचना की भाँति बनाया गया है। छत के सभी आकृतियों में बहुत अधिक समरूपता, चरणबद्ध, क्रमिक शैली है।गर्भ गृह में सुबह सूर्य की पहली किरणें सीधे शिवलिंग पर पड़ती हैं। पीतल के शिवलिंग को मूल शिवलिंग के ऊपर ढक दिया गया है ताकि उसकी रक्षा हो सके। पीतल के शिवलिंग को केवल महाशिवरात्रि के त्यौहार के दौरान पूजा के लिए मूल शिवलिंग को दिखाने के लिए ऊपर उठाया जाता है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने एक बड़ी सुंदर एवं अनोखी सपाट छत वाली संरचना जिसे वेदी के नाम से जाना जाता है। एक कक्ष में दोनों ओर दो बड़ी बेंचें, जालीदार दीवारें, खिड़कियाँ लाल बलुआ पत्थर के एक ही खंड से बनी हैं। इस प्रकार के स्थान मंदिर में शास्त्रीय गायन, संगीत और नृत्य के लिए प्रयोग हुआ करते थे।मंदिर में सब कुछ अति अलंकृत और अविस्मरणीय है।

इस मंदिर की सबसे विचित्र आकर्षक और अस्पष्ट विशेषता है एक अकेली आकृति, शानदार संरचना के शिखर पर, कलश के ठीक नीचे बैठी है। यह आकृति बाहर निकली हुई है। मंदिर के द्वार में प्रवेश करते समय सबसे पहले इसी पर ध्यान जाता है। उसकी पीठ द्वार की ओर है। इस आकृति का शिल्पकला अद्भुत है, पीठ का आर्च, पैरों की स्थिति और क्रॉसिंग हाथ, आभूषणों की बारीकियाँ। सिर का दुपट्टा और कमर के चारों ओर का कपड़ा, ऐसा लगता है जैसे वे हवा में बह रहे हों। इतनी बारीकियाँ और वह भी ज़मीन से बहुत ऊपर एक अकेली आकृति के लिए, आश्चर्य है। इस आकृति से सम्बंधित कोई कहानी, कोई कथा, कोई किंवदंती, कोई लोककथा कुछ नहीं है।देखने पर इस मानव आकृति के मुख पर बहुत शांति और संतुष्टि दिखती है।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला
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आजकल पेशवा बाजीराव को पढ़ रहा हूँ। आश्चर्य हो रहा है कि इतने बड़े योद्धा के बारे में हम कितना कम जानते हैं। अतिशयोक्ति लगे...
18/09/2025

आजकल पेशवा बाजीराव को पढ़ रहा हूँ। आश्चर्य हो रहा है कि इतने बड़े योद्धा के बारे में हम कितना कम जानते हैं। अतिशयोक्ति लगेगी, पर पिछले दो हजार वर्षों में भगवा भारत का सबसे बड़ा नक्शा उसी योद्धा ने बनाया था। ईसा के बाद हिन्दुओं का सबसे बड़ा साम्राज्य उसी के समय खड़ा हुआ।
पेशवा बाजीराव अपने जीवन में कुल 43 युद्ध लड़ते हैं और उनमें 43 जीतते हैं। शत प्रतिशत जीत! दस से अधिक युद्ध लड़ने वाले योद्धाओं में ऐसा रिकॉर्ड किसी और का नहीं। बाबर का नहीं, औरंगजेब का नहीं, बल्कि अकबर का भी नहीं। रुकिये! नेपोलियन का भी नहीं, सिकन्दर का भी नहीं...
सिकन्दर तो भारत में ही दो बार हारे, अकबर कभी मेवाड़ से जीत नहीं सके, औरंगजेब की सेना को बीसों बार अहोम हराये। नेपोलियन तो पराजित हो कर कैद में मरे... पर बाजीराव अपने एक भी अभियान में असफल नहीं हुए। बाजीराव कभी पराजित नहीं हुए। वे इकलौते योद्धा थे जिनके लिए कहा जा सकता है- जो जीता वह बाजीराव!
उस युग में भारत की कोई ऐसी शक्ति नहीं थी जो बाजीराव बल्लाळ भट्ट से पराजित न हुई हो। मुगल, निजाम, पुर्तगाली... अपने युग के उस सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार ने समूची भूमि अपने पैरों तले रौंद दी थी।
शिवाजी महाराज के पोते क्षत्रपति साहू जी महाराज लगभग 15 वर्षों तक मुगलों के यहाँ बंधक रहे थे। उन्ही शाहूजी महाराज के ध्वज तले बाजीराव ने केवल पाँच सौ घुड़सवारों के बल पर मुगल सम्राट को तीन दिन तक लालकिले में लगभग बंधक बनाये रखा। और यह भी हुआ तब, जब मुगल भारत की सबसे बड़ी शक्ति थे।
सन 1299 में महाराज कर्णदेव बघेल की अलाउद्दीन खिलजी से पराजय के साथ ही गुजरात विदेशियों के कब्जे में गया, उसे साढ़े चार सौ वर्ष बाद बाजीराव ने छुड़ाया। मालवा 1305 से विदेशियों का गुलाम था, उसे भी बाजीराव ने मुक्ति दिलाई।
वे भारत में हिन्दू पद पादशाही का लक्ष्य लेकर निकले और जीवन पर्यंत उसके लिए लड़ते रहे। बीर शिवाजी के सपनों का देश बनाने की शुरुआत की बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ ने, उसे पूरा किया बाजीराव ने, और उसे सजाया, सँवारा और आगे बढ़ाया उनके पुत्र बालाजी बाजीराव ने.... अटक से कटक तक हिन्दू साम्राज्य! भगवा ध्वज! हर हर महादेव का जयघोष...
बाजीराव की चर्चा उनके छत्रसाल कुमारी मस्तानी से प्रेम के कारण भी होती है। अफसोस कि उनके जीवन का सबसे सुन्दर अध्याय ही सबसे भयावह अध्याय भी है। प्रेम सदैव शुभ नहीं होता न...
वे युद्ध के लिए बने थे। तपते मध्यप्रदेश की भीषण लू उस महान योद्धा को अल्पायु में ही खा गई। इंदौर के निकट रावड़खेड़ी नाम अनजान स्थान पर इस महायोद्धा की समाधि है।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला
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बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे, द्वार खुली होने के कारण उनकी आवाजें साफ साफ बाहर कमरे में बैठी माँ को भी सुनाई...
18/09/2025

बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे, द्वार खुली होने के कारण उनकी आवाजें साफ साफ बाहर कमरे में बैठी माँ को भी सुनाई दे रहीं थीं.....

बेटा---" अपने job के कारण हम माँ का ध्यान नहीं रख पाएँगे, उनकी देखभाल कौन करेगा ?
क्यूँ ना, उन्हें वृद्धाश्रम में दाखिल करा दें, वहाँ उनकी देखभाल भी होगी और हमलोग भी कभी कभी उनसे मिलते रहेंगे। "
बेटे की बात पर बहु ने जो कहा, उसे सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए।
बहु---" पैसे कमाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है जी, लेकिन माँ का आशीष जितना भी मिले, वो कम है। उनके लिए पैसों से ज्यादा हमारा संग-साथ जरूरी है।
मैं अगर job ना करूँ तो कोई बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा। मैं माँ के साथ रहूँगी।
घर पर ही tution पढ़ाऊँगी, इससे माँ की देखभाल भी कर
पाऊँगी। याद करो, तुम्हारे बचपन में ही तुम्हारे पिता
नहीं रहे और घरेलू काम धाम करके तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया।
तब उन्होंने कभी भी पड़ोसन के पास तक नहीं छोड़ा, कारण तुम्हारी देखभाल कोई दूसरा अच्छी तरह नहीं करेगा,
और तुम आज ऐंसा बोल रहे हो।
तुम कुछ भी कहो, लेकिन माँ हमारे ही पास रहेंगी,
हमेशा, अंत तक। "

बहु की उपरोक्त बातें सुन, माँ रोने लगती है और रोती हुई ही, पूजा घर में पहुँचती है।
और ईश्वर के सामने खड़े होकर माँ उनका आभार मानती है
और उनसे कहती है---" भगवान, तुमने मुझे
बेटी नहीं दी, इस वजह से कितनी ही बार मैने तुम्हे भला बुरा कहती रहती थी, लेकिन ऐंसी भाग्यलक्ष्मी देने के लिए आपका आभार मैं किस तरह मानूँ...?
ऐंसी बहु पाकर, मेरा तो जीवन सफल हो गया, प्रभु। "

17/09/2025

WhatsApp Delete Chat देखने का सिक्रेट तरीका !! WhatsApp Delete Chat hidden features and tricks 2026

 #गाँव के किनारे एक टूटी-फूटी झोपड़ी थी, जिसके बाहर नीम का पेड़ खड़ा रहता था। उसी झोपड़ी में एक औरत रहती थी जिसका नाम सा...
17/09/2025

#गाँव के किनारे एक टूटी-फूटी झोपड़ी थी, जिसके बाहर नीम का पेड़ खड़ा रहता था। उसी झोपड़ी में एक औरत रहती थी जिसका नाम सावित्री था। लोग उसे "अनपढ़" कहते थे, क्योंकि वो अपना नाम तक नहीं लिख पाती थी। पर उसके दिल में दुनिया की सबसे बड़ी किताब लिखी हुई थी — अपने बेटे के लिए माँ का प्यार।
सावित्री का पति बहुत साल पहले बीमारी से चल बसा था। उस समय उसका बेटा राजू सिर्फ़ पाँच साल का था। घर में न कमाई का सहारा, न कोई रिश्तेदार जो मदद करे। लोग कहते थे, “अरे अनपढ़ औरत क्या कर पाएगी, बेटा बड़ा होगा तो देख लेंगे।” पर सावित्री ने ठान लिया कि चाहे खुद कितनी भी तकलीफ़ें झेलनी पड़े, पर बेटे को पढ़ा-लिखा इंसान बनाएगी।
सुबह से शाम तक वो खेतों में मजदूरी करती। कभी धान रोपती, कभी गेहूँ काटती, कभी दूसरों के घर में झाड़ू-पोंछा करती। उसके हाथ फट जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, मगर दिल में सिर्फ़ एक सपना था—राजू को स्कूल भेजना है।
राजू छोटा था, उसे खेलना अच्छा लगता था। कई बार वो माँ से कहता, “माँ, मैं स्कूल क्यों जाऊँ? तुम भी तो अनपढ़ हो, फिर मैं क्यों पढ़ूँ?” सावित्री आँखों में आँसू भरकर कहती, “बेटा, मैं नहीं पढ़ पाई इसलिए आज दूसरों के घर काम करना पड़ता है। अगर तू भी नहीं पढ़ेगा तो तेरी ज़िंदगी भी मेरी तरह होगी। मैं चाहती हूँ तू अफ़सर बने, सब तुझे सलाम करें।”
राजू धीरे-धीरे समझदार होने लगा। माँ सुबह काम पर जाती, तो उसके लिए टिफिन बनाती और कहती, “बेटा, भूखा मत रहना। चाहे मैं भूखी रह जाऊँ, पर तुझे खाना ज़रूर मिलेगा।” कई बार वो खुद रात को सूखी रोटी पानी के साथ खा लेती, लेकिन बेटे के लिए दूध और फल का इंतज़ाम कर लेती।
गाँव के लोग ताने कसते, “ये औरत पागल है, अनपढ़ होकर भी बेटे को पढ़ा-लिखा अफ़सर बनाने के सपने देखती है।” पर सावित्री हर ताना चुपचाप सह लेती, क्योंकि उसे विश्वास था कि एक दिन उसका बेटा ही उसकी इज़्ज़त लौटाएगा।
दिन बीतते गए। राजू ने गाँव के स्कूल से दसवीं पास की। जब वो सर्टिफिकेट लेकर माँ के पास आया तो माँ ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मुझे तो पढ़ना नहीं आता बेटा, पर तेरी ये काग़ज़ की पर्ची ही मेरे लिए भगवान का आशीर्वाद है।”
बारहवीं के बाद राजू शहर जाकर कॉलेज में दाख़िला लेना चाहता था। फीस बहुत ज़्यादा थी। सावित्री ने अपने कानों के झुमके और गले की छोटी सी चेन, जो उसकी शादी की याद थी, बेच दी। पड़ोसी हँसते थे, “इस औरत ने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। बेटा पढ़-लिखकर कौन सा बड़ा आदमी बन जाएगा?” लेकिन सावित्री के दिल में अटूट विश्वास था।
राजू शहर चला गया। वहाँ हॉस्टल में रहता, पढ़ाई करता, कभी-कभी माँ को चिट्ठियाँ लिखता। सावित्री उन चिट्ठियों को अपने पास रखती, आँखों से लगाती, लेकिन पढ़ नहीं पाती। कई बार पड़ोस के बच्चों से पढ़वाती। जब बच्चे बोलते—“आमा, राजू ने लिखा है कि वो आपकी बहुत याद करता है”—तो सावित्री का चेहरा खिल उठता। वो सोचती, काश मैं भी पढ़ पाती तो बेटे के हाथों लिखे अक्षर खुद पढ़ती।
सालों की मेहनत और त्याग रंग लाया। राजू ने बड़ी मेहनत से पढ़ाई की और सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली। जब गाँव में खबर आई कि “सावित्री का बेटा अब अफ़सर बन गया है,” तो वही लोग जो कभी मज़ाक उड़ाते थे, अब उसकी तारीफ़ करने लगे। सब कहते, “वाकई इस औरत की मेहनत रंग लाई।”
राजू की नियुक्ति शहर में हुई। पहले ही दिन जब वो गाँव आया तो बड़ी गाड़ी से उतरा, वर्दी में, सीना तानकर खड़ा। पूरा गाँव देखने के लिए जमा हो गया। माँ सावित्री दूर से देख रही थी, आँखों में आँसू थे और दिल गर्व से भर गया था।
राजू ने माँ के पैर छुए और कहा, “माँ, आज मैं जो भी हूँ तेरी वजह से हूँ। तूने मुझे पढ़ाया, अपना सब कुछ त्याग दिया।” माँ ने सिर पर हाथ रखकर कहा, “बेटा, बस तू खुश रह, यही मेरी कमाई है।”
कुछ दिन बाद राजू को एक समारोह में सम्मानित किया जाना था। वहाँ मंत्री, अफ़सर, पत्रकार सब मौजूद थे। जब मंच पर राजू से पूछा गया कि “आपकी सफलता का श्रेय किसे जाता है?” तो उसने कहा, “मेरी माँ को।” और वो माँ को मंच पर बुलाने लगा।
सावित्री झिझकते हुए मंच पर आई। उसके पैरों में पुरानी चप्पलें थीं, साड़ी जगह-जगह से फटी हुई थी। लेकिन जब राजू ने माइक पकड़ा और कहा, “ये मेरी माँ है, जो खुद अनपढ़ रही लेकिन मुझे पढ़ाने के लिए अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर दी। आज मैं अफ़सर बना हूँ तो सिर्फ़ इनके कारण,” तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा।
सावित्री की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने कहा, “मुझे पढ़ना नहीं आता, मेरा नाम तक मैं नहीं लिख सकती। पर मैंने एक ही सपना देखा था कि मेरा बेटा पढ़-लिखकर लोगों की सेवा करे। आज वो सपना पूरा हुआ।”
लोगों की आँखें भर आईं। कई लोग मंच पर जाकर सावित्री के पैर छूने लगे।
उस रात जब माँ और बेटा घर लौटे तो राजू ने माँ को कहा, “माँ, अब तू भी पढ़ना सीखेगी। अब मैं तुझे खुद अक्षर सिखाऊँगा। तू अपना नाम खुद लिखेगी।” सावित्री हँसते-रोते बोली, “अब बुढ़ापे में पढ़ाई कहाँ से होगी?” पर राजू ने कहा, “जब तक सांस है, सीखने की उम्र होती है।”
राजू हर रात माँ को अक्षर सिखाता। पहले ‘अ’ लिखना, फिर ‘आ’। सावित्री के हाथ काँपते, लेकिन दिल खुश होता। कई हफ्तों की मेहनत के बाद एक दिन माँ ने पहली बार अपने हाथ से अपना नाम लिखा—“सावित्री।” उस काग़ज़ को देखकर उसकी आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे। उसने नाम को सीने से लगाया और बोली, “अब मुझे लगता है जैसे मैं भी ज़िंदगी में कुछ बन गई हूँ।”
उस पल राजू ने माँ को गले लगाकर कहा, “माँ, तू मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी पढ़ी-लिखी औरत है।”
उस झोपड़ी में रोशनी थी, नीम का पेड़ जैसे गर्व से झूम रहा था। और आसमान के तारे भी जैसे कह रहे थे—माँ की मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
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पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला
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बटेश्वर के मंदिर, मुरैना, मध्यप्रदेशयहाँ खंडहर का हर टुकड़ा इतिहास के पन्नों में खोए हुए समय की यादें समेटे हुए है…मध्य ...
16/09/2025

बटेश्वर के मंदिर, मुरैना, मध्यप्रदेश
यहाँ खंडहर का हर टुकड़ा इतिहास के पन्नों में खोए हुए समय की यादें समेटे हुए है…

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के पडावली गांव में स्थित है बटेश्वर मंदिर समूह। जिसे पहले धारों या परावली के नाम से जाना जाता था, बाद में पडावली का निर्माण क्षत्रिय वंश के गुर्जर-प्रतिहार द्वारा किया गया था, जो खुद को सूर्यवंशी मानते थे और कहा जाता है कि वे महाकाव्य रामायण के लक्ष्मण के वंशज हैं। 8-11वीं शताब्दी ईस्वी के बीच, गुप्त काल के बाद, इस अवधि के दौरान कुल मिलाकर लगभग 200 मंदिर बनाए गए थे। 13वीं शताब्दी के अंत में, मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। मंदिरों में कई तरह की दिलचस्प मूर्तियां भी हैं। कुछ मंदिरों में प्रवेश द्वार के ऊपर 'नटराज' है, जबकि अन्य मंदिरों में 'लकुलीशा' है। शिव-पार्वती की नक्काशी काफी आम है, जैसे कि ब्रह्मा और विष्णु की उपस्थिति में शिव और पार्वती का विवाह। भागवत पुराण, नवग्रह या नौ ग्रहों, विष्णु के दशावतार और सप्तमातृकाओं के दृश्यों को दर्शाती मूर्तियां बटेश्वर में धार्मिक विषयों की बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाती हैं। इसके अलावा, कामुक जोड़े, विभिन्न संगीत वाद्ययंत्र बजाती महिलाएं, हाथी पर सवार पुरुष आदि जैसे धर्मनिरपेक्ष विषय भी यहां प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यहाँ के सबसे पुराने मंदिरों की विशेषता सादे चौकोर छतें हैं, जबकि कलात्मक शंक्वाकार छत वाले मंदिर बाद के काल के हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, शंक्वाकार छत वाले ये बटेश्वर मंदिर मध्य भारत में 'मंडपिका' मंदिरों की शुरुआत का प्रतीक हैं। ऐसे मंदिर बुनियादी और न्यूनतम हिंदू मंदिरों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इसे एकल गुफा कक्ष डिजाइन से एक कदम आगे ले जाते हैं। वर्तमान बटेश्वर को बिखरे हुए खंडहरों के बीच व्यवस्थित छोटे मंदिरों की पंक्तियों के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पूरा स्थल टूटे हुए खंभों, टूटी हुई भित्तिचित्रों और खंडित मूर्तियों से भरा हुआ है। बीच में नारंगी सिंदूर से लिपटी एक हनुमान प्रतिमा है और स्थानीय लोग आज भी उसकी पूजा करते हैं। बटेश्वर में कलाकृतियों की प्रचुरता से आज भी भक्त अभिभूत हो जातें हैं।

एकल गुफा कक्ष डिजाइन से एक कदम आगे, लगभग छोटे मुक्त खड़े हिंदू नागर शैली के मंदिर हैं, उनमें से अधिकांश में एक समान शैली और व्यवस्था है, जिसमें शिओकारा (टॉवर) के प्रत्येक तरफ 5 ऊर्ध्वाधर ऑफसेट हैं। मंदिर परिसर 2 संस्कृत हिंदू मंदिर वास्तुकला ग्रंथों, 4 वीं शताब्दी ईस्वी में रचित मानसरा शिल्प शास्त्र और 7 वीं शताब्दी ईस्वी में लिखे गए मायामाता वास्तु शास्त्र में शुरू किए गए स्थापत्य सिद्धांतों पर बनाये गये हैं। परिसर में पहला मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसका मंदिर पहाड़ी के उत्तर-पश्चिमी ढलान पर स्थित है और आगे भगवान शिव और देवी शक्ति के लिए बनाए गए छोटे मंदिरों की कई पंक्तियाँ हैं, जो भगवान शिव की पत्नी पार्वती का स्वरूप हैं। मंदिरों का निर्माण बिना किसी गारे के बलुआ पत्थर की सामग्री का उपयोग करके किया गया है, जिसमें जगत, वेदीबंध, प्रग्रीवा, मंडप, अंतराल, आंतरिक मार्ग, गर्भगृह, विमान, मुकुट आभूषण, कलश, शिखर और कुंड जैसे वास्तुशिल्प तत्व शामिल हैं, जिसमें एक साधारण स्तंभ वाली दीवार है, जिसका चौड़ा किनारा गर्भगृह से आगे तक फैला हुआ है ताकि प्रवेश द्वार को भी छाया मिल सके। विभिन्न मंदिरों पर उभरी हुई आकृतियों में कीर्ति मुख में नटराज (भगवान शिव) को दर्शाया गया है। लकुलीसा की उत्कृष्ट नक्काशी, भगवान शिव पार्वती का हाथ थामे हुए, कल्याण-सुंदरम की कथा का वर्णन करते हुए, या शिव और पार्वती के विवाह में विष्णु, ब्रह्मा और अन्य उपस्थित, विष्णु मंदिरों में वीणा या ढोल बजाती महिलाओं की छोटी मूर्तियाँ, जो यह सुझाव देती हैं कि 11वीं शताब्दी से पूर्व के भारत में संगीत के पेशे ने महिलाओं को संगीतकार के रूप में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, प्रणय और अंतरंगता के विभिन्न चरणों में जोड़े, धर्मनिरपेक्ष दृश्य जैसे हाथियों पर सवार पुरुष, कुश्ती लड़ते पुरुष, शेर, भागवत पुराण की कथाएँ, जैसे कृष्ण लीला दृश्य जैसे देवकी ने शिशु कृष्ण को पकड़ रखा है जो एक महिला द्वारा संरक्षित जेल में उसके वक्षों को पी रहे हैं; शिशु कृष्ण जहरीले वक्षों से राक्षस के जीवन को पी रहे हैं आदि।

सबसे बड़ा मंदिर भगवान शिव का था, जिसे स्थानीय रूप से "भूतेश्वर" के नाम से जाना जाता था। इसमें 6.75 फीट (2.06 मीटर) की भुजा वाला एक चौकोर गर्भगृह है, जिसमें अपेक्षाकृत छोटा 20 वर्ग फीट का महामंडप है। गर्भगृह के द्वार के दोनों ओर नदी देवियाँ गंगा और यमुना थीं। टॉवर अधिरचना एक पिरामिडनुमा वर्ग था जो एक सपाट छत पर 15.33 फीट (4.67 मीटर) की भुजा वाले वर्ग से शुरू होता था, फिर लयबद्ध रूप से पतला होता जाता था। भूतेश्वर मंदिर के उत्तर-पश्चिम में स्थित छोटे मंदिरों में से एक में संवत 1107 (1050 ई.) का एक छोटा शिलालेख था, जिससे इस स्थल की अवधि स्थापित होती है। नागर शिखर जो संभवतः उस समय तक पश्चिमी भारत में प्रमुख रहे होंगे, मध्य भारत में अधिक प्राचीन जड़ों वाले मंदिर ग्रिड योजनाओं में सबसे सरल थे। इन मंदिरों का महत्व यह है कि वे मंदिर निर्माण के विभिन्न विचारों को मिलाते हैं और उनका प्रयोग करते हैं, जैसे कि नागर शिखरों को सबसे ऊपर रखना जो संभवतः उस समय पश्चिमी भारत में प्रमुख थे, मध्य भारत में अधिक प्राचीन जड़ों वाले मंदिर ग्रिड योजनाओं में से सबसे सरल पर। ये सभी शांतिपूर्ण माहौल के साथ मिलकर पूरे मंदिर परिसर को एक महत्वपूर्ण मूल्य देते हैं। मंदिर अब एक शहरी संरचना से घिरा हुआ है, लेकिन अभी भी अपने अद्वितीय मूल्यों के साथ खड़ा है।
🙏🙏

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला
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एक बिन माँ बाप की लड़कीं थी। अपने ननिहाल में पल पोश कर बड़ी हो रही थी। कुछ ही क्लास पढ़ा लिखा कर घर में ननिहाल वाले सारा का...
16/09/2025

एक बिन माँ बाप की लड़कीं थी। अपने ननिहाल में पल पोश कर बड़ी हो रही थी। कुछ ही क्लास पढ़ा लिखा कर घर में ननिहाल वाले सारा काम करवाते थे। कभी कभी साग सब्जी लेने बाजार जाती रहती थी। एक दिन उस के लड़की से कही रुपया गिर गया। वह लड़कीं घबरा कर, कई सब्जी वालो से कहने लगी। कि आप सब्जी उधार दे दीजिये। मैं दो चार दिन में आप को पैसे दे दूँगी। लेकिन कोई सब्जी वाला उधार देने को तैयार नही था। यह बात एक लड़का सुन कर बोला कि, मैडम! आप को कितने पैसों की जरूरत हैं। उसने ₹५०० की नोट निकाल कर देते हुए बोला कि, आप के पास जब हो जाएगा। तो वापस कर देना। लड़कीं बोली कि सर! आप को कहाँ खोजूँगी। लड़का बोला कि, मैं बहुत बड़ा आदमी नही हूँ। प्रतिदिन हम इसी समय सब्जी या फल लेने बाजार आया करता हूँ। लड़कीं जब भी बाजार आती थी। लड़का भी संयोग से मिल जाता था। लड़कीं मिल कर बहुत शर्मिंदगी महसूस करती थी। लड़का भी कुछ नही कहता था। जब एक हप्ता हो गया। तो लड़कीं पूरी बात बताई की सर! मैं अपने ननिहाल में रहती हूँ। सब्जी में से रोज कुछ पैसे बचाती हूँ। तो वही इकठ्ठा कर के दे दूँगी। लड़का बोला कि, हमे आप से कोई पैसे नही चाहिये। अगर कभी भी जरूरत पड़े तो हम आप की मदद और कर देंगे। उस दिन से वह लड़कीं जब देखती थी। तो सर! नमस्ते कहती थी। वह लड़का भी नमस्ते कर के चल देता था। लेकिन उस लड़के से वह मिल कर बहुत खुश होती थी। लड़का भी उस लड़की से मिलने के बहाने आया करता था। कभी कभी लड़कीं के ननिहाल वाले ताने मारते थे। कि जवान हो गयी हैं। मर भी नही गयी। अब तो शादी का सारा खर्च हम लोग को ही उठाना हैं। एक दिन उस लड़की ने उस लड़के से बोली कि, सर! क्या आप अपने घर झाड़ू पोछा मारने के लिये, मुझे रख लेंगे। हमे अब ननिहाल में घुटन महसूस होता हैं। लड़का हँसते हुए बोला कि, ठीक हैं। हमको अपने मम्मी पापा से पूछ लेने दीजिये। संयोग देखिये, वह एक जरुरी काम से बाहर चला गया। लड़कीं जब भी बाजार आती। उसी लड़के को, उसकी नजरे ढूढ़ती थी। वह लड़कीं निराश हो गयी। किसी ने शिकायत भी कर दी। सब्जी लेने के बहाने किसी लड़के से मिलती हैं। अब रोज ननिहाल वाले प्रताड़ित करने लगे थे। लड़कीं उब कर मन में सोच ली। कि आज अगर वह लड़का नही मिला तो आत्महत्या कर लूँगी। अजीब संयोग देखिये। उस दिन वह लड़का तब तक दिखाई दे दिया। लड़कीं उस लड़के को देख कर अपने आँसुओं को रोक न सकी। और नम आँखों से बोली कि सर! आप कहाँ चले गए थे। लड़कीं के नम आंखों को, देख लड़का बोला कि, आप से एक बात बोलूँ! आप नाराज तो नही होंगी। लड़कीं कही कि सर बोलिये! लड़का बोला कि, क्या आप मुझसे शादी करेंगी। कोई दबाव नही हैं। यह सुन लड़कीं फफक कर रोने लगी। लड़का हाथ को बढ़ाते हुए गले लगा लिया। वह खुद अपनी आँसुओं को रोक न सका। लड़कीं को ऐसा लग रहा था। कि दुनिया ही मिल गयी। लड़के ने कहा कि, कल अपने हम मम्मी पापा को लेकर आप के ननिहाल आएंगे। हमें कुछ नही चाहिये। बस लोग आप को ताने न मार सके कि, आप ने भाग कर शादी की। घर सबको जाकर बता देना। फिर भी लड़कीं घर कुछ नही बताई। अचानक एक बहुत कीमती कार खड़ी होती हैं। उसमे से वह लड़का व उसके मम्मी पापा निकलते हैं। लड़कीं के ननिहाल वाले चौक गए। वह बोले कि आप सब! लड़के की मम्मी पापा बोले कि, आप की भांजी का हाथ माँगने आये हैं। हमने मुहूर्त निकाल कर सब इन्तजाम कर लिया हैं। आप केवल लड़कीं लेकर आ जाना। हमारे बारे में अगर जानकारी करना चाहते हो तो पता कर लेना। शहर का सबसे बड़ा रहीस हूँ। मुझे कुछ नही चाहिये। हमारे लिये दुल्हन ही दहेज हैं। लड़के के मम्मी पापा अपने सारे खर्च से बड़ी धूमधाम से विवाह की। वह लड़कीं ससुराल पहुँच कर घर में अपने सास ससुर के मरते वक्त तक बहुत सेवा व देखभाल की।

पोस्ट लेखक - छैलसिंह चौहान राणासर कल्ला
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