16/09/2025
जाट: सेवा, समर्पण और संकट — एक आत्ममंथन
जाट का मतलब है — सेवा, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा; चरित्र का साफ और बेदाग चेहरा; न्यायप्रियता; सत्य बोलने वाला; और अन्नदाता — जो हर इंसान और प्राणी को देता है। इसलिए जाट को 'जाट देवता' कहा गया।
लेकिन जिस कठिन परिश्रम, मेहनत और लगन से जाट समुदाय ने आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से उन्नति की, उसी प्रगति के साथ कुछ अनियंत्रित प्रवृत्तियाँ भी आईं। जैसे-जैसे जाट कौम मजबूत हुई, वैसे-वैसे कुछ लोग पैसा, पद और पावर का प्रदर्शन करने लगे। एकता, ताकत, और संख्याबल का धीरे-धीरे दुरुपयोग होने लगा। जो भी सामाजिक एकता और सुरक्षा मिली, उनके मिलने पर कुछ लोगों ने अहसान भूलते हुए समाज या अपने स्वार्थ के हिसाब से राजनीतिक लाभ उठाना शुरू कर दिया।
असल जाट की पहचान — राबड़ी, रोटी, रेवान, गाड़ी, गुडाळ की विरासत — पीछे छूटती गई। जो कभी देवता माने जाते थे, वे धीरे-धीरे मांगने वाले बनते गए। लोग समय के साथ अलग-थलग पड़ते गए। इसके बावजूद समाज के नेतृत्वकर्ताओं ने गहराई से कभी चिंता नहीं की, न ही बढ़ती सामाजिक कुरीतियों, असमानताओं, बिखराव और संस्कारहीनता को रोकने के प्रयास किए।
यह बेपरवाहियाँ और अनदेखी जहर उगलने, घोलने, डराने-धमकाने, नशे और चरित्रहीनता जैसी कृतियों तक पहुंच गए। धीरे-धीरे चौधरी से चौधरी, फिर किसान से जाट तक का नाम भी संदेह के घेरे में आ गया। हालाँकि मैं किसी ओहदे पर नहीं हूँ और न ही समाज का अधिकृत प्रवक्ता, पर जाट जाति में जन्म लेने के कारण मेरा अपना फर्ज, नैतिक कर्तव्य और दर्द है — और मैं उसे कलम के माध्यम से व्यक्त करता हूँ।
ऐसे दर्द और भावनाएँ सामाजिक मंचों पर ज़ाहिर होनी चाहिए, मगर मेरे जैसे लोगों को किसी सामाजिक कार्यक्रम या अधिकृत संस्था द्वारा मंच ही नहीं दिया जाता ताकि वे अपनी पीड़ा अपनों के बीच रख सकें। खैर, मेरी व्यक्तिगत स्थिति ठीक रहे भी तो भी समाज के 90 प्रतिशत लोगों की हालत मेरी तरह ही है। युवाओं के दर्द को सुनना तो दूर, उन्हें महसूस तक नहीं किया गया।
यह विसंगति बेहद दुखद है: जिस जाट समाज को छत्तीस बिरादरी का न्यायदेवता कहा जाता था, उसने अपने ही लोगों का गला घोंट दिया। हमने जहर का घूंट पीकर सत्य को दबा दिया; बोलने तक नहीं दिया गया। थक-हारकर लोग सामाजिक ठेकेदारी के सामने हथियार डाल चुके हैं। हालाँकि वर्तमान जाट समाज दिशा और नेतृत्वहीन, बेबस और लाचार नजर आ रहा है — शायद हमारे बुजुर्गों ने कभी ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि अगली पीढ़ी इतनी कमजोर हो जाएगी।
राजनीति और निजी स्वार्थ के कारण आज कोई भी किसी की गोद में बैठ कर समाज का सौदा कर सकता है। जिन ताकतों के खिलाफ सदियों से हमारे बुजुर्ग लड़े और अन्याय-सह कर आज़ादी की कीमत चुकाई, वही लोग आज थोड़े लाभ के लिए जाट समाज के कुछ लोग दूसरे के हाथों खेल रहे हैं — और समाज को गाली, नीचा दिखाने और विभाजन की राह पर धकेल रहे हैं।
गुटबाज़ी, बिखराव और संस्कारहीनता के कारण नियंत्रण खत्म हो चुका है। इसलिए जो जाट देवता माने जाते थे, वे अब मांगता नजर आने लगे हैं। सत्य, वचन, बात के धनी, चरित्रवान और न्यायप्रिय लोग — जो सर कटाने का साहस रखते थे — उनका तेज़ फीका पड़ गया है। आज समाज के लोग असामाजिक कृत्यों में लिप्त दिखाई दे रहे हैं।
कुछ लोग जिन्हें जाट की असल परिभाषा पता ही नहीं, वे दिन-रात समाज के प्रवक्ता बनकर दूसरे समाजों को गाली देते हैं और नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं, जबकि उन्हें समाज की तरफ से कोई अधिकृत भी नहीं किया गया। सोशल मीडिया पर ऑडियो, वीडियो और फोटो वायरल करके ये कहते रहते हैं कि किसी बाहरी तत्व ने हमारे जाट समाज को बदनाम किया।
सच तो यह है कि अब शांत रहकर समाज की सच्ची सेवा करना और अपना करियर बनाना ही जाट समाज के लिए सबसे बड़ा अहसान होगा। इसी बात का जवाब देने के लिए समाज में जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक संगठन और विभिन्न संस्थाएँ हैं — किन्तु आप लोगों की हरकतें समाज का भला करने के बजाय उसे बदनाम और नुकसान पहुंचा रही हैं।
राजनीतिक दलों से जुड़े अधिकृत नेता, कार्यकर्ता और पार्टियों का समर्थन या विरोध करना व्यक्तिगत अधिकार है, पर हर घटना या दुर्घटना में पूरे समाज को घसीटना और खाई पैदा करना अनुचित है। दूरियाँ पैदा करने का प्रमुख कारण बेलगाम लोग और फालतू टिप्पणियाँ हैं। जिनके पास जिम्मेदारी है, उन्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
जो समाज के मुखिया हैं और जो सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी हैं, वे समाज के नाम पर लाभ उठा रहे हैं — माला और साफा पहन रहे हैं — पर उनमें से कई नैतिक पतन और अन्य घटनाओं की जिम्मेदारी स्वीकार करने को तैयार नहीं। यह आपकी विफलता है कि समाज भटक रहा है। सही दिशा देने और कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
सबसे पहले यह देखिए कि समर्थक और विरोधी कौन हैं; जिन्होंने आधे से ज्यादा समाज को ठिकाने लगा दिया है, उन्हें ठिकाने लगाना होगा। यदि गरीब और अमीर दोनों के लिए न्याय अलग-अलग है तो आक्रोश फूटना तय है।
समाज का कोई भी अधिकृत व्यक्ति सिर्फ रजिस्टर करके नहीं बन जाता। खुद को साबित करने के लिए सदस्यता अभियान चलाने चाहिए और ग्राम से लेकर जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक अध्यक्ष और प्रतिनिधियों का चयन सर्व-सहमति और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए — तभी समाज उन्हें स्वीकार करेगा और लाभ मिलेगा।
अपराधों पर नजर डालें — हत्या, डकैती, लूट-अपहरण जैसे जघन्य अपराधों में समाज के लोग भी लिप्त हैं। नशे सहित तमाम अवैध कारोबारों में हाथ आज़मा रहे हैं। नैतिक पतन और चरित्रहीनता की सबसे ज्यादा घटनाएँ आज जाट समाज में ही हो रही हैं। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है और इसे रोकने की चिंता कौन करेगा?
अब तो इतनी घटनाएँ हो रही हैं कि आने से पहले ही डर बैठता है कि कहीं हमारे समाज का कोई व्यक्ति तो शामिल न हो। दूसरे समाज में कोई घटना होने पर हमारे लोग तुरंत उसे कटघरे में खड़ा कर देते हैं और प्रमाण पत्र बांट देते हैं, पर जब हमारे समाज का व्यक्ति अपराध करता है तो न्याय के देवता का नजरिया बदल जाता है। यही दोहरा रवैया और दोहरा चरित्र हमारी पहचान को धूमिल कर रहा है।
लिखने के लिए बहुत कुछ है और दर्द भी गहरा है क्योंकि दगा तो अपने ही लोगों ने दिया है। फिर भी मैंने यह दर्द सीने में दबा कर रखा — कभी समाज या किसी व्यक्ति के खिलाफ खुलेआम ज़हर नहीं उगला। मेरे जैसे लोगों के साथ अन्याय हुआ तो सहन किया और भूल गये, पर अब देखना मुश्किल हो रहा है कि न्याय का देवता समाज की बाज़ार में बिकता जा रहा है। छत्तीस बिरादरी को न्याय कौन देगा?
आप तो अंधे की भांति परिवार, समाज और जाट जाति को दबाने, कुचलने और ठिकाने लगाने में लगे हुए हैं — केवल बादशाहत कायम रखने के लिए। असली जाट बनना होगा, गौरव लौटाना होगा। गिरते नैतिक स्तर और चरित्र को संभालना होगा। बेलगाम पीढ़ी को कौन रोकेगा और टोकेगा? आखिर जाट को 'न्याय का देवता' ऐसे ही थोड़े ही कहा जाता है।
न्याय, चौधराहट और रुतबा कायम रखने के लिए उठो, जागो — चौधरियों, एक बार फिर कसम खाओ: न्याय होगा, वो भी पूरे समाज और छत्तीस बिरादरी के साथ — पुराना वैभव लौटेगा।
आज शिक्षकों और समाज के युवाओं का सबसे ज्यादा चरित्र गिर रहा है। नैतिक पतन और अवैध कारोबार तथा सामाजिक अपराधों में जाट समाज की हिस्सेदारी चिंताजनक है। जैसे-जैसे हम दूसरे समाजों के अपराधियों पर राय रखते हैं, वैसी ही नज़रिया हमें अपने समाज के अपराधियों पर भी रखना चाहिए — अपराध किसी व्यक्ति विशेष द्वारा होता है, पूरा समाज या बिरादरी शामिल नहीं होती। अपराध सिर्फ अपराध होता है — इस दृष्टिकोण की जरूरत है।
पंच बनने से पहले किसी को यह देखना चाहिए कि उसकी अपनी कमीज कितनी साफ़ है।