03/09/2024
"सूने घरों की दीवारें भी अपने वाशिंदों को ढूंढती है"
दिखने में बहुत मनमोहक दृश्य... झोपड़ी और छप्पर की ओरियानी पर हरियाली छाई हुई है।
लेकिन .... ये वीरान घर कई सवाल छोड़ जाते हैं.??
बात चाहे जो भी उस खंडहर हुए घर को देखकर ना जाने कितने ख्याल मन में आते हैं।
क्या यह सच है.?
क्या सच में घरों को भी अपने में रहने वाले लोगों की याद आती है..?
गांव में आज भी ऐसे कई घर खंडहर बने पड़े है, जो कभी किसी ने "दिन-रात" परिश्रम करके इस उम्मीद से बनाए होंगे की "मेरी आने वाली पीढ़ी को सिर छिपाने के लिए आसरा रहेगा!"
जिस आंगन में झाङियां उग आई, मानो वहां अब कोई चहल-पहल नहीं रहती।
कभी कभी झोंपे की दीवारों में बने आलों में जमी कालिख देख कर पता चलता है। कि वहां चिमनी रखी गई होगी। शाम होते ही या तो गृह स्वामिनी ने घर में रोशनी की होगी।
कभी टूटे हुए दरवाजे के पास थोङी सी बची हुई दीवार पर लगी हल्दी की थाप, सफेदी के मांडणे देखकर पता चलता है कि यहां कोई नवविवाहिता विदा होकर आंसू बहाती ससुराल गई होगी। शगुन भी और उसकी याद भी बनी रहे इसलिए हल्दी से रंगे हुए हाथ की छाप लगवा ली होगी।
ये सूना आंगन कभी शादियां, मुंडन, कनछेदन होने पर आज जो उजाङ पङा है वह आंगन रौनक से भर गया होगा।
कभी घर में दादाजी की रौबदार आवाज सुनते ही चुपचाप घरवाले अपने अपने काम में लग जाते होंगे ।
कितना मजबूर हो जाता होगा वह इंसान जिसे अपना घर छोड़कर जाना पङता है, खून पसीने की कमाई से घर बनवाए होंगे कितने अरमानों से घर बनवाए जाते हैं। बनवाने वाला तो निश्चित हो जाता है कि अब वह और उसका परिवार इनमें रहेगा।
आने आने वाली पीढ़ियों को बना बनाया घर मिल जाएगा लेकिन हमेशा तो ऐसा नहीं होता। संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। इतिहास उठाकर देख लो कि इसी धरती पर बङी बङी सभ्यताएं विकसित हुई और नष्ट हो गई। उनके स्थान पर नई सभ्यताएं बनी। सही है जब सबकुछ नश्वर है तब छोङे हुए घर भले ही किसी दूसरे का हो उससे देखना मन को दुखी कर जाता है पर यही तो संसार का चलन है कि हर वस्तु का मालिक बदलता रहे अतः यह मोह व्यर्थ है।
कौतूहल सी जिजीविषा
Jogendra Godara ...✍️