16/09/2025
आयुर्वेद अनुसार सोरायसिस(Psoriasis)
आयुर्वेद में सोरायसिस नाम से रोग वर्णित नहीं है, परन्तु इसके लक्षण कुष्ठ रोग के कुछ प्रकारों जैसे –
एककुष्ठ (Eka-Kushtha)
किटिभकुष्ठ (Kitibha Kushtha)
सिद्मकुष्ठ (Sidma Kushtha)
से बहुत मिलते हैं।
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दोष और धातु की भूमिका
वात दोष → शुष्कता, परतदार पपड़ी (scaling), फटाव
कफ दोष → मोटापन, खुजली, चिकनाहट
पित्त दोष → लालिमा, जलन, सूजन
👉 इसलिए इसे अधिकतर त्रिदोषज कुष्ठ माना जाता है, जिसमें रक्त धातु और मांस धातु भी दूषित हो जाते हैं।
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रोग उत्पत्ति (संप्राप्ति)
अनुचित आहार (खट्टा, नमकीन, तैलीय, मांस, मछली, शराब, दही आदि)
अग्नि मंद्य (पाचन दोष) → आम (विषद्रव्य) का निर्माण
दोष + आम = रक्त व त्वचा में जाकर चिरकालिक त्वचा रोग उत्पन्न करते हैं।
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आयुर्वेदिक चिकित्सा
1. शोधन चिकित्सा (Panchakarma – शरीर शुद्धि)
वमन – कफ प्रधान अवस्था में
विरेचन – पित्त प्रधान अवस्था में (लालिमा, जलन)
रक्तमोक्षण (जौंक/सिरा वेध) – स्थानीय खुजली या मोटे दाग में
बस्ती (औषधि एनिमा) – वात प्रधान व चिरकालिक अवस्था में
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2. शमन चिकित्सा (औषधियां)
महामंजिष्ठादि क्वाथ – रक्तशुद्धि
पंचतिक्त घृत गुग्गुलु – पुराने त्वचा रोग
खदिरारिष्ट – खुजली व फुंसी
आरोग्यवर्धिनी वटी – पाचन सुधारे, आम नाशक
गंधक रसायण – खुजली व रोग प्रतिरोधक
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3. स्थानीय प्रयोग (Lepa / Taila)
निम्ब तेल, करंज तेल, महातिक्त घृत – सूखी, परतदार त्वचा पर
जट्यादि तेल – फटी हुई त्वचा पर
हल्दी + एलोवेरा लेप – जलन व लालिमा में
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4. पथ्य–अपथ्य (Diet & Lifestyle)
✅ पथ्य (खाने योग्य)
पुराना चावल, जौ, मूंग दाल, घी
नीम, करेला, मेथी, हरित सब्जियाँ
हल्का व सुपाच्य भोजन
योग, ध्यान, तनाव नियंत्रण
❌ अपथ्य (बचने योग्य)
खट्टा, नमकीन, मसालेदार भोजन
दही, अचार, मांस, मछली, शराब
दूध + मछली, दूध + नमक (विरुद्ध आहार)
तैलीय, फास्टफूड, धूम्रपान
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संक्षेप में
सोरायसिस आयुर्वेद में त्रिदोषज कुष्ठ के रूप में वर्णित है। इसकी चिकित्सा में –
पंचकर्म द्वारा शोधन,
रक्तशुद्धि एवं त्वचा-रक्षक औषधियां,
तेल व लेप का बाह्य प्रयोग,
तथा आहार-विहार का विशेष पालन
मुख्य भूमिका निभाते हैं।