16/07/2025
आर्य पुत्री पाठशाला : एक क्रांतिकारी कदम!
उस समय की कल्पना कीजिए जब लड़कियों का भविष्य केवल घर के कामों और शादी तक ही सीमित था। जहाँ शिक्षा उनके लिए एक दूर का सपना थी। ऐसे समय में, आर्य पुत्री पाठशाला की स्थापना एक क्रांतिकारी कदम था!
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का मानना था कि जहाँ भी आर्य समाज की कोई शाखा स्थापित की जाए, वहाँ साथ ही एक कन्या पाठशाला (लड़कियों का स्कूल) भी बनाया जाए। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करना था, क्योंकि उस समय समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत निम्न थी और विद्या की कमी थी। आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 में मुंबई में की गई थी।
इसलिए, "आर्य पुत्री पाठशाला" नाम के कई स्कूल आर्य समाज आंदोलन के हिस्से के रूप में पूरे भारत में, खासकर पंजाब में स्थापित किए गए।
यह सिर्फ एक स्कूल नहीं था, बल्कि एक ऐसी लहर थी जिसने समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती दी। इस पाठशाला ने लड़कियों को किताबें पकड़ने, ज्ञान प्राप्त करने और अपने सपनों को पूरा करने का अवसर दिया। इसने साबित कर दिया कि लड़कियाँ भी समाज का एक अहम हिस्सा हैं और उन्हें भी बराबर के अवसर मिलने चाहिए।
आर्य पुत्री पाठशाला ने अनगिनत लड़कियों की ज़िंदगी बदल दी और उन्हें एक बेहतर भविष्य दिया! चित्र में बठिंडा की #आर्य_पुत्री_पाठशाला है जिसका नाम अब आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल है!
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