31/07/2022
याद करो ओ काण्ड भयावह ,
जलियाँवाला बाग़ को बूढ़ों-बच्चों की सिसकी,
उस चीख-पुकार की राग को सिक्खों का त्यौहार बैसाखी,
चुपके रोया करता है जलियाँ वाला बाग़ घाव को,
अब भी धोया करता है चिपके सीने से माँओ के ,
शिशुओं को मरवाया था ओडायर के आदेशों को,
डायर खूब निभाया था उस भगदड़ में जान बचाने,
लोग कुँआ में कूद पड़े फिर भी जान बचा न पाए,
गिरकर उस में मरे पड़े सुनकर ऐसी जघन्य कृत्य ,
खड़े रोंगटे हो जाते हैं तभी तो भारत माँ के बेटे,
ऊधम सिंह हो जाते हैं ऊधम सिंह यह दृश्य देख ,
खून के आंसू रोया था माटी लेकर हाथों में,
विस्फोटित बीज को बोया था दर-दर की वह ठोकर खाया,
किन्तु तनिक न हारा था अपनी जान से ज्यादा उसको,मातृभूमि यह प्यारा था आखिर मौक़ा हाथ लगा, उसको इक्कीस सालों में रखकर पिस्टल पुस्तक में,
घुसा काकस्टन हालों में ऊधम सिंह भारत का योद्धा, लन्दन तक घबराया था ओडायर को मार के गोली,
अपना कसम निभाया था पेंटेंनविले में हुयी थी फांसी, वीर सावरकर रोया था शेरे-हिन्द का वीर लड़ाका,
जिसको भारत खोया था यह पंजाब का वीर सिख था,और जिला संगरूर है गांव सुनाम बदहाल आज भी, जीने को मजबूर है आज शहीदे-आजम का,
शहीद दिवस फिर आया है आओ मिलकर पुष्प चढ़ाए, ऐसा इतिहास बनाया है