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असतो मा सद्गमय-जय जवान , जय किसान।राष्ट्रभक्ति ही मेरा धर्म है जहाँ सेवा, त्याग, तपस्या और कर्म सब समाहित हैं।
बिहार की ज़रूरत यही भक्ति है और मैं इसी बिहार की मिट्टी से हूँ।अगर तुम्हें ज़ंजीरें प्यारी हैं, तो बढ़ाओ उन्हें..हाँ, हाँ दुर्योधन ! बाँध मुझे!

पूरे परिवार के साथ डीएम सर को प्रशासन के द्वारा किए गए अत्याचार पर जांच करने हुए, एवं  पत्रकार संतोष राय को न्याय दिलाने...
12/09/2025

पूरे परिवार के साथ डीएम सर को प्रशासन के द्वारा किए गए अत्याचार पर जांच करने हुए, एवं पत्रकार संतोष राय को न्याय दिलाने, एवं हमारे परिवार की प्रशासनिक एवं राजनीतिक दुराचारियों से रक्षा के लिए पत्र समर्पण किया।।

--- न्याय की तलाश में भटकता पूर्व सैनिक और पत्रकार संतोष कुमार राय का परिवार।।

11/09/2025

किसी पॉलिटिशियन के खिलाफ आवाज उठाने के बाद एक पत्रकार का परिवार भी सुरक्षित नहीं रहता?
क्या पुलिस को किसी के भी मानव अधिकारों का हनन करने की छूट है?

09/09/2025

पूर्व सैनिक व निर्भीक पत्रकार संतोष कुमार राय पिछले 6 दिनों से जेल में अनशन पर हैं, उनकी जान खतरे में है।
अगर वे गिरते हैं तो समझ लीजिए लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही ढह जाएगा –
"आज आवाज उठाइए, वरना व्यवस्था की तपती जमीन पर कल आप भी राख होकर बिखर जाएंगे।"

जय हिंद !! , जय भारत !!

08/09/2025

आज अगर आवाज नहीं उठी, तो बिहार में मानव अधिकारों का अंत है यह।।

07/09/2025

और आवाज उठेंगे

06/09/2025

पत्रकार संतोष राय से जेल में मुलाकात।उनके परिवार और पत्रकार संतोष राय दोनों की जान को खतरा।

05/09/2025

पत्रकार संतोष कुमार राय विधायक संजीव के खरीदे प्रशासन द्वारा अमानवीय ढंग से प्रताड़ित कर, बीती रात4/9/2025 बेगूसराय जे/ल भेजे गये

04/09/2025

खगड़िया जिले कि आवाज रविकांत चौरसिया ने उठाई पत्रकार संतोष कुमार राय कि आवाज। आप क्या करते अगर आपके साथ ऐसा होता ।।

03/09/2025

परबत्ता विधायक संजीव कुमार के लोग लेगय संतोष राय को, जा/न को खतरा !!

बिहार में सुशासन का सरकार और विधायक संजीव कुमार अपनी दुनिया बसा रखी है! रावण राज परबत्ता ?(पूर्व सैनिक संतोष नारद ✍🏻)बिह...
03/09/2025

बिहार में सुशासन का सरकार और विधायक संजीव कुमार अपनी दुनिया बसा रखी है! रावण राज परबत्ता ?
(पूर्व सैनिक संतोष नारद ✍🏻)

बिहार में वर्षों पहले ही देह व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया था और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी जैसी ऐतिहासिक योजना लागू कर राज्य को नई दिशा देने का दावा किया। लेकिन हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर यह सब योजनाएँ परबत्ता विधानसभा जैसे इलाकों में दम तोड़ चुकी हैं।

परबत्ता क्षेत्र, जो वर्षों से सड़क और कनेक्टिविटी की कमी से जूझता रहा है, वहाँ सत्ता की छत्रछाया में अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। बताया जाता है कि विधायक संजीव कुमार अपने पिता, पूर्व मंत्री आर. एन. सिंह द्वारा स्थापित इस धंधे को आगे बढ़ा रहे हैं। यही कारण है कि अवैध शराब, हथियारबाज़ी और देह व्यापार जैसी गतिविधियाँ आज भी वहाँ खुलेआम जारी हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस शराबबंदी योजना को बिहार का सबसे सुंदर और नैतिक प्रयास बताया गया था, वही योजना सत्ता के संरक्षण में छलनी हो चुकी है। और अब तो हद तब हो गई जब विधायक के इशारे पर चलने वाले एक प्यादे ने खुलेआम पूर्व सैनिक व पत्रकार संतोष कुमार राय को खत्म करने की धमकी दे डाली।

यह केवल एक व्यक्ति को धमकी देने का मामला नहीं है, बल्कि यह बिहार की कानून व्यवस्था की पोल खोलने वाला उदाहरण है। सवाल यह है कि जब देश की सरहद पर दुश्मनों से लड़ने वाला एक पूर्व सैनिक अपने ही राज्य में असुरक्षित महसूस कर रहा है, तब आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?

क्या यही है बिहार का "सुशासन"? या फिर यह मान लेना होगा कि सत्ता और प्रशासन की मिलीभगत से गुंडाराज ने सुशासन की नींव हिला दी है?

👉 बिहार सरकार को तत्काल इस मामले में संज्ञान लेकर न केवल धमकी देने वाले तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि यह भी साबित करना चाहिए कि यहाँ अब भी कानून का राज है, न कि विधायकों के चकले और उनके प्यादों का।

सत्ता के संरक्षण में अपराध विधायक संजीव कुमार की पत्नी के प्रितम का फैसला : परबत्ता की सच्चाई"बिहार की राजनीति में "जनप्...
03/09/2025

सत्ता के संरक्षण में अपराध विधायक संजीव कुमार की पत्नी के प्रितम का फैसला : परबत्ता की सच्चाई"

बिहार की राजनीति में "जनप्रतिनिधि" और "जनसेवक" जैसे शब्द आज खोखले लगने लगे हैं। परबत्ता विधानसभा इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ जनता की सुरक्षा और विकास की जगह अवैध शराब का कारोबार, हथियारों की तस्करी और वेश्यावृत्ति का अड्डा पनपता रहा है। सवाल यह है कि आखिर यह सब बिना सत्ता और संरक्षण के कैसे संभव हो सकता है?

विधायक संजीव कुमार पर यह आरोप है कि वे अपने क्षेत्र में अपराध जगत की ढाल बने हुए हैं। विरोध करने वालों पर दबाव, गाली-गलौज और अब तो सीधे-सीधे हत्या की धमकी तक दी जा रही है। हालिया प्रकरण इसका प्रमाण है, जहाँ निलेश कुमार पासवान ने खुलेआम सोशल मीडिया पर यह लिख डाला कि पूर्व सैनिक सह पत्रकार संतोष कुमार राय को दस दिनों के भीतर खत्म कर देगा। और इस धमकी के पीछे उसने विधायक की पत्नी से जुड़े रिश्तों और ऊँचे प्रशासनिक अधिकारियों (IAS-IPS) के संरक्षण की बात भी कही।

यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है। एक ओर जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधि से सुरक्षा और विकास की उम्मीद करती है, वहीं दूसरी ओर वही प्रतिनिधि अपने गुर्गों से पत्रकारों और समाज के जागरूक लोगों को डराने और खत्म करने की साजिश रचता है।
(पूर्व सैनिक संतोष नारद ✍🏻)

पूर्व सैनिक सह पत्रकार संतोष कुमार राय की आवाज़ को दबाने की कोशिश यह दर्शाती है कि सच बोलना आज भी सत्ता को सबसे ज्यादा खटकता है। लेकिन लोकतंत्र की ताकत यही है कि सच चाहे जितना दबाया जाए, वह और बुलंद होकर सामने आता है।

सियाह चेहरे के साथ के साथ कैसे मिल लेता है विधायक संजीव कुमार.. जबकि इसका भाई निलेश कुमार पासवान?(पूर्व सैनिक संतोष नारद...
03/09/2025

सियाह चेहरे के साथ के साथ कैसे मिल लेता है विधायक संजीव कुमार.. जबकि इसका भाई निलेश कुमार पासवान?
(पूर्व सैनिक संतोष नारद ✍🏻)

बिहार की राजनीति में अक्सर हम देखते हैं कि नेता अपनी पहचान, चमक-दमक और ऊँची सिफ़ारिशों के दम पर जनता के बीच खुद को "महानायक" की तरह प्रस्तुत करते हैं। वे बड़े-बड़े मंचों पर भाषण देते हैं, कैमरों के सामने हंसते-खिलखिलाते दिखाई देते हैं और ऊँचे पद पर बैठे लोगों से हाथ मिलाते हुए अपनी तस्वीरें छपवाते हैं।

लेकिन जब उनके असली व्यवहार, शब्दों और करतूतों पर नज़र डालते हैं तो सामने आती है वह सच्चाई जो समाज को शर्मिंदा कर देती है। जिस व्यक्ति को जनता ने विधायक जैसे ज़िम्मेदारी वाले पद पर बैठाया हो, अगर वही व्यक्ति गिरी हुई भाषा और दबंगई का प्रयोग करे तो सवाल उठना लाज़मी है कि यह "डॉ." और "माननीय" की उपाधि का असली हक़दार है भी या नहीं।

नेता जी की तस्वीरें भले ही ऊँची शख्सियतों के साथ खिंच जाएं, लेकिन समाज उनकी पहचान उन तस्वीरों से नहीं बल्कि उनके आचरण और जनता के साथ किए गए व्यवहार से करता है। अगर शब्दों में शालीनता नहीं, तो पद और उपाधि मात्र दिखावे के गहने हैं — भीतर से खोखले और बाहर से चमकते।

जनता सब जानती है। मंच और मीडिया की रोशनी में चाहे सच को कितनी भी देर तक दबा लिया जाए, लेकिन अंततः सच वही उभरकर आता है जो जनता के अनुभव से जुड़ा हो।

यही कारण है कि ऐसे नेताओं के लिए कहा जाता है — "नाम बड़े और दर्शन छोटे।"

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