आस

आस मैं उस ईश्वर को मानता हूँ , दुनियाँ जिसे इंसान कहती है।

सुधार की आवश्यकता स्वयं से शुरू होकर समाज के उस आखिरी इकाई को है, अगर आज हमने कदम नहीं उठाया तो अपने आनेवाली पीढ़ी को हो सकता है कि हम संसाधन उपलब्ध करा दें परन्तु संस्कार देने से हम चूक जायेंगे.

10/08/2024

ये आंदोलनों का कौन सा रूप है?
अपने ही राष्ट्र के प्रतिनिधियों का ऐसा अपमान कौन से भविष्य की तैयारी है?

कट्टर सांप्रदायिक सोच पोषित ये भीड़ किसी भी देश की सगी नही है।

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