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श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने जगाई और मताई को केवल एक ही शर्त पर अपनी शरण में स्वीकार किया था, कि उन्हें सारे दुर्व्यसनों क...
19/09/2025

श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने जगाई और मताई को केवल एक ही शर्त पर अपनी शरण में स्वीकार किया था, कि उन्हें सारे दुर्व्यसनों का त्याग करना होगा। अतः हमारे सारे शिक्षार्थियों को सावधान रहना चाहिए कि चार सिद्धांतों के पालन में कोई त्रुटि ना हो और इसके साथ-साथ महामंत्र जाप करने की प्रतिक्रिया का भी सख्ती के साथ पालन होना चाहिए।

(श्रील प्रभुपाद,19 सितंबर 1969, टीटैनहर्स्ट)
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"यदि हम कृष्ण की सेवा में निष्ठावान रहें, तो आवश्यकता पड़ने पर बोलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। भक्तों के इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं, और यहाँ तक कि ध्रुव और प्रह्लाद जैसे पाँच वर्ष के बालक भी इतनी अच्छी तरह बोलने में सक्षम थे।"

(श्रील प्रभुपाद,ब्रह्मानंद को पत्र,19 सितंबर 1969)
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क्षुर मतलब तीक्ष्ण धार। यदि आप सावधान हैं तो अच्छी तरह हजामत कर सकते हैं। यदि सावधान नही हैं तो तुरन्त खून निकल जायेगा। तो आध्यात्मिक जीवन भी ऐसा है। जैसे ही आप थोड़े से असावधान रहते हैं, तुरन्त माया दबोज लेगी, 'हाँ, आ जाओ।' फिर सबकुछ व्यर्थ हो जायेगा।

(श्रील प्रभुपाद, बम्बई, 19 सितम्बर 1973 )
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=496696&y=1

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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, की वेबसाइट पर *रजिस्टर करें* अपनी भाषा में ऑनलाइन माध्यम से मुफ़्त गीता सीखें 18 दिन मे मुफ़्त प्रमाणपत्र 👇

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👉प्रि-भक्ति शास्त्री पाठ्यक्रम (Pre Bhakti Shastri Course)
• अनुशासित प्रयासों के साथ तीन साल का कोर्स
• आपको 3,4,5 और इस्कॉन भक्ति शास्त्री डिग्री के स्तर तक ले जाता है
• उपस्थिति, साप्ताहिक असाइनमेंट सबमिशन और परीक्षाओं के साथ संगठित पाठ्यक्रम
• उन भक्तों के लिए अत्यधिक अनुशंसा की जाती है जो इस्कॉन में शिक्षण / उपदेश सेवाएं लेना चाहते हैं, दीक्षा और पुजारी सेवाएं प्राप्त करना चाहते हैं
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👉 इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से भगवद् गीता L-1 बैच (Hindi) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 2, Verse 4👇

अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4||

अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; कथम् कैसे; भीष्मम्-भीष्म को; अहम् मे; संख्ये-युद्ध मे; द्रोणम्-द्रोणाचार्य को; च-और; मधुसूदन-मधु राक्षस के दमनकर्ता, श्रीकृष्ण; इषुभिः-वाणों से; प्रतियोत्स्यामि प्रहार करूँगा; पूजा-अहौ-पूजनीय; अरि-सूदन-शत्रुओं के दमनकर्ता! ।

Translation👇

BG 2.4: अर्जुन ने कहा-हे मधुसूदन! हे शत्रुओं के दमनकर्ता! मैं युद्धभूमि में कैसे भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महापुरुषों पर बाण चला सकता हूँ जो मेरे लिए परम पूजनीय है।

Commentary👇

श्रीकृष्ण के युद्ध करने के आह्वान की प्रतिक्रिया में अर्जुन अपनी व्यग्रता प्रदर्शित करते हुए कहता है कि भीष्म और द्रोण मेरे लिए आदरणीय और आराध्य हैं। भीष्म ब्रह्मचर्य की मूर्ति थे और अपने पिता को दिए गए वचन के पालन हेतु वे जीवन भर ब्रह्मचारी रहे। अर्जुन को शस्त्रविद्या प्रदान करने वाले गुरु द्रोणाचार्य युद्ध कला में निपुण थे और उन्हीं से विद्या प्राप्त कर अर्जुन धनुर्विद्या में पारंगत हुआ था। दूसरे पक्ष की ओर से कृपाचार्य भी एक अन्य महापुरुष थे जिनके प्रति अर्जुन सदैव श्रद्धाभाव रखता था। ऐसे उच्च आचरण वाले विद्वान लोगों के प्रति शत्रुता का व्यवहार करना संवेदनशील अर्जुन को अब घृणास्पद कार्य प्रतीत होने लगा था। उसके अनुसार जब इन श्रद्धेय महापुरुषों के साथ किसी प्रकार का तर्क करना भी अनुचित था तब फिर वह किस प्रकार उनके विरुद्ध हथियार उठा सकता था। अर्जुन ने कहाः हे कृष्ण! कृपया मेरी वीरता पर संदेह न करें। मैं युद्ध करने के लिए तैयार हूँ परन्तु नैतिक दायित्व निर्वहन के दृष्टिकोण से मेरा कर्त्तव्य अपने आचार्यगणों का आदर करना और धृतराष्ट्र के पुत्रों पर दया दर्शाना है।
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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से मंगल आरती सुबह 👉@4:30 बजे प्रतिदिन , महामंत्र जप सत्र सुबह 👉@ 5:00 बजे प्रतिदिन ,दर्शन आरती प्रातः👉 @7:10 बजे प्रतिदिन, भागवतम् क्लास संध्या काल👉@7:30 बजे प्रतिदिन, ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हो।

ज़ूम लिंक 👉https://t.ly/temple

मीटिंग आईडी👉494 026 3157

पासवर्ड 👉108

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भागवतम् क्लास (_*सभी भाषाओं में अनुवाद*_ )
प्रातः काल@ 8:00 बजे ,प्रतिदिन ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हों !

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मंगलाचरण 👇

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।

2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथनविथं तं सजीवम् ।।
सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।

3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।

तप्तकाञ्चनगौरंगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये।

4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

5) नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे
निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
*****

*तुलसी प्रणाम मंत्र*👇

वृन्दायै तुलसी देवयायै प्रियायै केशवस्य च।
कृष्णभक्ति प्रद देवी सत्यवत्यै नमो नमः॥
*****

*वैष्णव प्रणाम मंत्र*👇

वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

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आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रात: काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे ।
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महामंत्र 👉हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan 🤳

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#कल्कि

19/09/2025

"यदि हम कृष्ण की सेवा में निष्ठावान रहें, तो आवश्यकता पड़ने पर बोलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। भक्तों के इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं, और यहाँ तक कि ध्रुव और प्रह्लाद जैसे पाँच वर्ष के बालक भी इतनी अच्छी तरह बोलने में सक्षम थे।"

(श्रील प्रभुपाद,ब्रह्मानंद को पत्र,19 सितंबर 1969)
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श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने जगाई और मताई को केवल एक ही शर्त पर अपनी शरण में स्वीकार किया था, कि उन्हें सारे दुर्व्यसनों का त्याग करना होगा। अतः हमारे सारे शिक्षार्थियों को सावधान रहना चाहिए कि चार सिद्धांतों के पालन में कोई त्रुटि ना हो और इसके साथ-साथ महामंत्र जाप करने की प्रतिक्रिया का भी सख्ती के साथ पालन होना चाहिए।

(श्रील प्रभुपाद,19 सितंबर 1969, टीटैनहर्स्ट)
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क्षुर मतलब तीक्ष्ण धार। यदि आप सावधान हैं तो अच्छी तरह हजामत कर सकते हैं। यदि सावधान नही हैं तो तुरन्त खून निकल जायेगा। तो आध्यात्मिक जीवन भी ऐसा है। जैसे ही आप थोड़े से असावधान रहते हैं, तुरन्त माया दबोज लेगी, 'हाँ, आ जाओ।' फिर सबकुछ व्यर्थ हो जायेगा।

(श्रील प्रभुपाद, बम्बई, 19 सितम्बर 1973 )
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 2, Verse 4👇

अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4||

अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; कथम् कैसे; भीष्मम्-भीष्म को; अहम् मे; संख्ये-युद्ध मे; द्रोणम्-द्रोणाचार्य को; च-और; मधुसूदन-मधु राक्षस के दमनकर्ता, श्रीकृष्ण; इषुभिः-वाणों से; प्रतियोत्स्यामि प्रहार करूँगा; पूजा-अहौ-पूजनीय; अरि-सूदन-शत्रुओं के दमनकर्ता! ।

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मंगलाचरण 👇

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।

2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथनविथं तं सजीवम् ।।
सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।

3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।

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4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
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जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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#कल्कि

यह देखकर मुझे प्रसन्नता है कि मेरे जाने के पश्चात् भी सबकुछ ठीक चलता रहेगा। मुझे प्रसन्नता है कि मेरे अनेक गम्भीर शिष्य ...
18/09/2025

यह देखकर मुझे प्रसन्नता है कि मेरे जाने के पश्चात् भी सबकुछ ठीक चलता रहेगा। मुझे प्रसन्नता है कि मेरे अनेक गम्भीर शिष्य हैं जो इसे आगे बढ़ायेंगे। यह मेरी प्रसन्नता है।

(श्रील प्रभुपाद, मधुद्विष को पत्र, 18 सितम्बर 1974 )
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

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किसी दवाई की दुकान मे बहुत सी दवाइयां पडी हो सकती हैं, किन्तु कुछ सालों के बाद अगर निरीक्षण कर के देखा जाए तो पता चलेगा की अधिकांश दवाइयों की समाप्ति की तिथि बीत चुकी है। ऐसी दवाइयां लेने से अब कोई लाभ नही होगा।

उसी प्रकार कलियुग मे भी परमार्थ प्राप्ति के उपाय बहुत हैं जैसे कर्म, ज्ञान, योग इत्यादि किन्तु इस युग मे इन सब की समाप्ति की तिथि बीत चुकी है। अब बस एक ही उपाय काम करेगा और वह उपाय है हरिनाम।

(श्रीश्रीमद् राधागोविन्द दास गोस्वामी महाराज कपिल-देवहूति संवाद कथा)
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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 4, Verse 18👇

कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य: |
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत् || 18||

कर्मणि-कर्म; अकर्म-निष्क्रिय होना; यः-जो; पश्येत्-देखता है; अकर्मणि-अकर्म में; च-और; कर्म-कर्म; यः-जो; सः-वे; बुद्धिमान्–बुद्धिमान् है; मनुष्येषु-मनुष्यों में; सः-वे; युक्त:-योगी; कृत्स्न-कर्म-कृत्-सभी प्रकार के कर्मों को सम्पन्न करना।

Translation👇

BG 4.18: वे मनुष्य जो अकर्म में कर्म और कर्म में अकर्म को देखते हैं, वे सभी मनुष्यों में बुद्धिमान होते हैं। सभी प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी वे योगी कहलाते हैं और अपने सभी कर्मों में पारंगत होते हैं।

Commentary👇

अकर्म में कर्मः एक प्रकार का अकर्म वह है जिसमें व्यक्ति अपने सामाजिक कर्त्तव्यों को बोझ समझते हुए एक आलसी की भांति उनका त्याग कर देता है। ऐसे लोग शारीरिक रूप से कर्म का त्याग तो करते हैं किन्तु उनका मन निरन्तर इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है। इस प्रकार के लोग अकर्मण्य तो प्रतीत होते हैं लेकिन उनकी कृत्रिम अकर्मण्यता वास्तव में पापमय कार्य है। जब अर्जुन अपने कर्तव्य पालन से संकोच करता है तब श्रीकृष्ण उसे बोध कराते हैं कि ऐसा करने से उसे पाप लगेगा और वह अपनी इस अकर्मण्यता के कारण मृत्यु के पश्चात् निम्नतर लोकों में जाएगा।

कर्म में अकर्मः कुछ दूसरे प्रकार के अकर्म भी होते हैं जो योगियों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं। वे बिना फल की आसक्ति के अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं और अपने कर्मों के फलों को भगवान की सेवा में समर्पित करते हैं। यद्यपि वे सभी प्रकार के कर्म करते हैं किन्तु उनके कर्मफल नहीं भोगते क्योंकि उनका निजी सुख प्राप्त करने का मनोरथ नहीं होता। भारतीय इतिहास में ध्रुव, प्रह्लाद, युधिष्ठिर पृथु और अम्बरीष कई ऐसे महान राजा हुए हैं जिन्होंने अपनी पूर्ण योग्यता से अपने राजसी कर्त्तव्यों का निर्वहन किया और फिर भी उनका मन किसी प्रकार की लौकिक कामनाओं में लिप्त नहीं रहा। इसलिए उनके कार्यों को अकर्म कहा गया। अकर्म का एक अन्य नाम कर्मयोग भी है जिसकी विस्तृत चर्चा पिछले दो अध्यायों में की गयी है।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
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2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
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सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।

3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।

तप्तकाञ्चनगौरंगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये।

4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

5) नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे
निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
*****

*तुलसी प्रणाम मंत्र*👇

वृन्दायै तुलसी देवयायै प्रियायै केशवस्य च।
कृष्णभक्ति प्रद देवी सत्यवत्यै नमो नमः॥
*****

*वैष्णव प्रणाम मंत्र*👇

वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

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आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रात: काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे । जय माता दी।
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महामंत्र 👉हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan 🤳

🌐https://omtext.wixsite.com/inaryavart

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#कल्कि #शिवचरण

माता  #वैष्णो_देवी यात्रा शुरु आज 17 सितंबर को 22 दिन के बाद यात्रा शुरू हो गई ।माता  #वैष्णो_देवी की यात्रा शुरू होने स...
17/09/2025

माता #वैष्णो_देवी यात्रा शुरु आज 17 सितंबर को 22 दिन के बाद यात्रा शुरू हो गई ।माता #वैष्णो_देवी की यात्रा शुरू होने से #श्रद्धालुओं में भारी उत्साह हर तरफ गूंज रहे हैं जय माता दी के जय घोष।

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=506239&y=1

माता वैष्णो देवी नवरात्रि की कुछ पुरानी तस्वीर के साथ इन्दिरा एकादशी व शिल्पकला कौशल में सर्वोच्च एवं श्रृष्टि के रचयिता भगवान विश्वकर्मा जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

भगवान श्री हरि विष्णु आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें। एकादशी पे इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, द्वारा भगवद गीता के 700 श्लोको का एक विशेष पाठ होता है आज का लाइव यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक 👉

https://www.youtube.com/live/eb70ydsOa80?si=6lzoY38QmLDq9UPS

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 75 वें जन्मदिन पर इस्कॉन वृंदावन के 75 पुजारियों ने एक साथ हरे कृष्ण महामंत्र का जाप किया और उनकी दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना की।

https://www.facebook.com/share/r/14V5xS5VwcU/

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एक भक्त को इस बात में कोई रुचि नहीं होती है, कि उसे स्वर्ग जाना है अथवा नर्क। भक्त के लिए तो वहीं ईश्वर के साम्राज्य का विस्तार होता है, जहां उसे भगवान की सेवा करने का अवसर मिल सके।

(श्रील प्रभुपाद,17 सितंबर 1975, वृंदावन)

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आजकल तीसरे-चौथे दर्जे के लोग राष्ट्रपति और राजा की वेशभूषा में घूम रहे हैं, किन्तु उनका कार्य नागरिकों का धन लूटना तथा गायों की हत्या करना है। ऐसे हैं कलियुग के राजा। राजा के कपड़े परन्तु अन्दर से शूद्र। गौ-हत्या में बिल्कुल दक्ष।

(श्रील प्रभुपाद, वृन्दावन, 17 सितम्बर 1976
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"यदि आप लापरवाही से जप करते हैं, तब भी सफलता मिलती है, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा। और यदि आप बहुत सावधानी से, नियमों और विनियमों का पालन करते हुए जप करते हैं, तो इस जीवन में आपकी सफलता सुनिश्चित है। इसलिए हम अपना चुनाव कर सकते हैं, क्योंकि कृष्ण हमें हमेशा अपना चुनाव करने का अवसर देते हैं।"

(श्रील प्रभुपाद, वृन्दावन, 17 सितम्बर 1976
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=496696&y=1
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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, की वेबसाइट पर *रजिस्टर करें* अपनी भाषा में ऑनलाइन माध्यम से मुफ़्त गीता सीखें 18 दिन मे 👇

🔗 पंजीकरण लिंक ➔ https://t.ly/gita

👉प्रि-भक्ति शास्त्री पाठ्यक्रम (Pre Bhakti Shastri Course)
• अनुशासित प्रयासों के साथ तीन साल का कोर्स
• आपको 3,4,5 और इस्कॉन भक्ति शास्त्री डिग्री के स्तर तक ले जाता है
• उपस्थिति, साप्ताहिक असाइनमेंट सबमिशन और परीक्षाओं के साथ संगठित पाठ्यक्रम
• उन भक्तों के लिए अत्यधिक अनुशंसा की जाती है जो इस्कॉन में शिक्षण / उपदेश सेवाएं लेना चाहते हैं, दीक्षा और पुजारी सेवाएं प्राप्त करना चाहते हैं
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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 11, Verse 43👇

पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् |
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो
लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव || 43||

पिता-पिता; असि-आप हैं; लोकस्य–पूर्ण ब्रह्माण्ड; चर-चल; अचरस्य–अचल; त्वम्आप हैं; अस्य-इसके; पूज्य:-पूज्यनीय; च-भी; गुरु:-आध्यात्मिक गुरु; गरीयान्–यशस्वी, महिमामय; न–कभी नहीं; त्वत्-समः-आपके समान; अस्ति-है; अभ्यधिक:-बढ़ कर; कुत:-किस तरह सम्भव है; अन्य:-दूसरा; लोक-त्रये तीनों लोकों में; अपि-भी; अप्रतिम-प्रभाव-अतुल्य शक्ति के स्वामी।

Translation👇

BG 11.43: आप समस्त चर-अचर के स्वामी और समस्त ब्रह्माण्डों के जनक हैं। आप परम पूजनीय आध्यात्मिक गुरु हैं। हे अतुल्य शक्ति के स्वामी! जब तीनों लोकों में आपके समतुल्य कोई नहीं है तब आप से बढ़कर कोई कैसे हो सकता है।

Commentary👇

अर्जुन कहता है कि श्रीकृष्ण महानतम और सर्वश्रेष्ठ हैं। पिता पुत्र से सदैव जयेष्ठ होता है। श्रीकृष्ण सभी जनकों के जनक हैं। समान रूप से वे विद्यमान सभी आध्यात्मिक गुरुओं के गुरु हैं। स्रष्टा ब्रह्मा प्रथम आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान दिया और जो गुरु परम्परा के अंतर्गत निरन्तर जारी रहा। किन्तु ब्रह्मा ने श्रीकृष्ण से वैदिक ज्ञान अर्जित किया था। श्रीमद्भागवत् (1.1.1) में उल्लेख है- "तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये" अर्थात् श्रीकृष्ण ने प्रथम जन्मे ब्रह्मा के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रकट किया। इसलिए वे परम आध्यात्मिक गुरु हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद् में उल्लेख है-

न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते (श्वेताश्वतरोपनिषद्-6.8)

"भगवान के समतुल्य कोई नहीं है और न ही कोई उनसे श्रेष्ठ है।" श्रीकृष्ण वेदों के ज्ञाता हैं यह मानकर अर्जुन उनके संबंध में उपर्युक्त गुणों का वर्णन कर रहा है।
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👉 इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से भगवद् गीता L-1 बैच (Hindi) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4nhOfwGAa8v1FxmX1924Ur&si=wU9axplDIfIZHyXo

👉 इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से भगवद् गीता L-2 बैच (Hindi ) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4N6I3fTQT8bCpcUsoq3xaP&si=ZgUsjPqDjDzQrJTc
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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से मंगल आरती सुबह 👉@4:30 बजे प्रतिदिन , महामंत्र जप सत्र सुबह 👉@ 5:00 बजे प्रतिदिन ,दर्शन आरती प्रातः👉 @7:10 बजे प्रतिदिन, भागवतम् क्लास संध्या काल👉@7:30 बजे प्रतिदिन, ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हो।

ज़ूम लिंक 👉https://t.ly/temple

मीटिंग आईडी👉494 026 3157

पासवर्ड 👉108

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भागवतम् क्लास (_*सभी भाषाओं में अनुवाद*_ )
प्रातः काल@ 8:00 बजे ,प्रतिदिन ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हों !

ज़ूम लिंक:
https://us02web.zoom.us/j/83155853450?pwd=pmWl5YVZyv5hRf17QggM5RgQn8POHD.1

मीटिंग आईडी: 83155853450

पासवर्ड : 108
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मंगलाचरण 👇

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।

2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथनविथं तं सजीवम् ।।
सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।

3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।

तप्तकाञ्चनगौरंगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये।

4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

5) नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे
निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
*****

*तुलसी प्रणाम मंत्र*👇

वृन्दायै तुलसी देवयायै प्रियायै केशवस्य च।
कृष्णभक्ति प्रद देवी सत्यवत्यै नमो नमः॥
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*वैष्णव प्रणाम मंत्र*👇

वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

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आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रात: काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे । जय माता दी।
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महामंत्र 👉हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan 🤳

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#कल्कि #शिवचरण





इन्दिरा एकादशी व शिल्पकला कौशल में सर्वोच्च एवं श्रृष्टि के रचयिता भगवान विश्वकर्मा जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...
17/09/2025

इन्दिरा एकादशी व शिल्पकला कौशल में सर्वोच्च एवं श्रृष्टि के रचयिता भगवान विश्वकर्मा जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

वैष्णो देवी यात्रा शुरु आज 17 सितंबर को 22 दिन के बाद यात्रा शुरू हो गई ।

आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रात: काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन। जय माता दी।

भगवान श्री हरि विष्णु आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें। एकादशी पे इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, द्वारा भगवद गीता के 700 श्लोको का एक विशेष पाठ होता है आज का लाइव यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक 👉

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माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 75 वें जन्मदिन पर इस्कॉन वृंदावन के 75 पुजारियों ने एक साथ हरे कृष्ण महामंत्र का जाप किया और उनकी दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना की।

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एक भक्त को इस बात में कोई रुचि नहीं होती है, कि उसे स्वर्ग जाना है अथवा नर्क। भक्त के लिए तो वहीं ईश्वर के साम्राज्य का विस्तार होता है, जहां उसे भगवान की सेवा करने का अवसर मिल सके।

(श्रील प्रभुपाद,17 सितंबर 1975, वृंदावन)

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आजकल तीसरे-चौथे दर्जे के लोग राष्ट्रपति और राजा की वेशभूषा में घूम रहे हैं, किन्तु उनका कार्य नागरिकों का धन लूटना तथा गायों की हत्या करना है। ऐसे हैं कलियुग के राजा। राजा के कपड़े परन्तु अन्दर से शूद्र। गौ-हत्या में बिल्कुल दक्ष।

(श्रील प्रभुपाद, वृन्दावन, 17 सितम्बर 1976
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"यदि आप लापरवाही से जप करते हैं, तब भी सफलता मिलती है, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा। और यदि आप बहुत सावधानी से, नियमों और विनियमों का पालन करते हुए जप करते हैं, तो इस जीवन में आपकी सफलता सुनिश्चित है। इसलिए हम अपना चुनाव कर सकते हैं, क्योंकि कृष्ण हमें हमेशा अपना चुनाव करने का अवसर देते हैं।"

(श्रील प्रभुपाद, वृन्दावन, 17 सितम्बर 1976
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=496696&y=1
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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, की वेबसाइट पर *रजिस्टर करें* अपनी भाषा में ऑनलाइन माध्यम से मुफ़्त गीता सीखें 18 दिन मे 👇

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👉प्रि-भक्ति शास्त्री पाठ्यक्रम (Pre Bhakti Shastri Course)
• अनुशासित प्रयासों के साथ तीन साल का कोर्स
• आपको 3,4,5 और इस्कॉन भक्ति शास्त्री डिग्री के स्तर तक ले जाता है
• उपस्थिति, साप्ताहिक असाइनमेंट सबमिशन और परीक्षाओं के साथ संगठित पाठ्यक्रम
• उन भक्तों के लिए अत्यधिक अनुशंसा की जाती है जो इस्कॉन में शिक्षण / उपदेश सेवाएं लेना चाहते हैं, दीक्षा और पुजारी सेवाएं प्राप्त करना चाहते हैं
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पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् |
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो
लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव || 43||

पिता-पिता; असि-आप हैं; लोकस्य–पूर्ण ब्रह्माण्ड; चर-चल; अचरस्य–अचल; त्वम्आप हैं; अस्य-इसके; पूज्य:-पूज्यनीय; च-भी; गुरु:-आध्यात्मिक गुरु; गरीयान्–यशस्वी, महिमामय; न–कभी नहीं; त्वत्-समः-आपके समान; अस्ति-है; अभ्यधिक:-बढ़ कर; कुत:-किस तरह सम्भव है; अन्य:-दूसरा; लोक-त्रये तीनों लोकों में; अपि-भी; अप्रतिम-प्रभाव-अतुल्य शक्ति के स्वामी।

Translation👇

BG 11.43: आप समस्त चर-अचर के स्वामी और समस्त ब्रह्माण्डों के जनक हैं। आप परम पूजनीय आध्यात्मिक गुरु हैं। हे अतुल्य शक्ति के स्वामी! जब तीनों लोकों में आपके समतुल्य कोई नहीं है तब आप से बढ़कर कोई कैसे हो सकता है।

Commentary👇

अर्जुन कहता है कि श्रीकृष्ण महानतम और सर्वश्रेष्ठ हैं। पिता पुत्र से सदैव जयेष्ठ होता है। श्रीकृष्ण सभी जनकों के जनक हैं। समान रूप से वे विद्यमान सभी आध्यात्मिक गुरुओं के गुरु हैं। स्रष्टा ब्रह्मा प्रथम आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान दिया और जो गुरु परम्परा के अंतर्गत निरन्तर जारी रहा। किन्तु ब्रह्मा ने श्रीकृष्ण से वैदिक ज्ञान अर्जित किया था। श्रीमद्भागवत् (1.1.1) में उल्लेख है- "तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये" अर्थात् श्रीकृष्ण ने प्रथम जन्मे ब्रह्मा के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रकट किया। इसलिए वे परम आध्यात्मिक गुरु हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद् में उल्लेख है-

न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते (श्वेताश्वतरोपनिषद्-6.8)

"भगवान के समतुल्य कोई नहीं है और न ही कोई उनसे श्रेष्ठ है।" श्रीकृष्ण वेदों के ज्ञाता हैं यह मानकर अर्जुन उनके संबंध में उपर्युक्त गुणों का वर्णन कर रहा है।
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👉 इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से भगवद् गीता L-1 बैच (Hindi) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4nhOfwGAa8v1FxmX1924Ur&si=wU9axplDIfIZHyXo

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भागवतम् क्लास (_*सभी भाषाओं में अनुवाद*_ )
प्रातः काल@ 8:00 बजे ,प्रतिदिन ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हों !

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पासवर्ड : 108
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मंगलाचरण 👇

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।

2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथनविथं तं सजीवम् ।।
सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।

3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।

तप्तकाञ्चनगौरंगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये।

4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

5) नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे
निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
*****

*तुलसी प्रणाम मंत्र*👇

वृन्दायै तुलसी देवयायै प्रियायै केशवस्य च।
कृष्णभक्ति प्रद देवी सत्यवत्यै नमो नमः॥
*****

*वैष्णव प्रणाम मंत्र*👇

वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।

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हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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