19/09/2025
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने जगाई और मताई को केवल एक ही शर्त पर अपनी शरण में स्वीकार किया था, कि उन्हें सारे दुर्व्यसनों का त्याग करना होगा। अतः हमारे सारे शिक्षार्थियों को सावधान रहना चाहिए कि चार सिद्धांतों के पालन में कोई त्रुटि ना हो और इसके साथ-साथ महामंत्र जाप करने की प्रतिक्रिया का भी सख्ती के साथ पालन होना चाहिए।
(श्रील प्रभुपाद,19 सितंबर 1969, टीटैनहर्स्ट)
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"यदि हम कृष्ण की सेवा में निष्ठावान रहें, तो आवश्यकता पड़ने पर बोलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। भक्तों के इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं, और यहाँ तक कि ध्रुव और प्रह्लाद जैसे पाँच वर्ष के बालक भी इतनी अच्छी तरह बोलने में सक्षम थे।"
(श्रील प्रभुपाद,ब्रह्मानंद को पत्र,19 सितंबर 1969)
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क्षुर मतलब तीक्ष्ण धार। यदि आप सावधान हैं तो अच्छी तरह हजामत कर सकते हैं। यदि सावधान नही हैं तो तुरन्त खून निकल जायेगा। तो आध्यात्मिक जीवन भी ऐसा है। जैसे ही आप थोड़े से असावधान रहते हैं, तुरन्त माया दबोज लेगी, 'हाँ, आ जाओ।' फिर सबकुछ व्यर्थ हो जायेगा।
(श्रील प्रभुपाद, बम्बई, 19 सितम्बर 1973 )
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?
https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=496696&y=1
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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 2, Verse 4👇
अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 4||
अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; कथम् कैसे; भीष्मम्-भीष्म को; अहम् मे; संख्ये-युद्ध मे; द्रोणम्-द्रोणाचार्य को; च-और; मधुसूदन-मधु राक्षस के दमनकर्ता, श्रीकृष्ण; इषुभिः-वाणों से; प्रतियोत्स्यामि प्रहार करूँगा; पूजा-अहौ-पूजनीय; अरि-सूदन-शत्रुओं के दमनकर्ता! ।
Translation👇
BG 2.4: अर्जुन ने कहा-हे मधुसूदन! हे शत्रुओं के दमनकर्ता! मैं युद्धभूमि में कैसे भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महापुरुषों पर बाण चला सकता हूँ जो मेरे लिए परम पूजनीय है।
Commentary👇
श्रीकृष्ण के युद्ध करने के आह्वान की प्रतिक्रिया में अर्जुन अपनी व्यग्रता प्रदर्शित करते हुए कहता है कि भीष्म और द्रोण मेरे लिए आदरणीय और आराध्य हैं। भीष्म ब्रह्मचर्य की मूर्ति थे और अपने पिता को दिए गए वचन के पालन हेतु वे जीवन भर ब्रह्मचारी रहे। अर्जुन को शस्त्रविद्या प्रदान करने वाले गुरु द्रोणाचार्य युद्ध कला में निपुण थे और उन्हीं से विद्या प्राप्त कर अर्जुन धनुर्विद्या में पारंगत हुआ था। दूसरे पक्ष की ओर से कृपाचार्य भी एक अन्य महापुरुष थे जिनके प्रति अर्जुन सदैव श्रद्धाभाव रखता था। ऐसे उच्च आचरण वाले विद्वान लोगों के प्रति शत्रुता का व्यवहार करना संवेदनशील अर्जुन को अब घृणास्पद कार्य प्रतीत होने लगा था। उसके अनुसार जब इन श्रद्धेय महापुरुषों के साथ किसी प्रकार का तर्क करना भी अनुचित था तब फिर वह किस प्रकार उनके विरुद्ध हथियार उठा सकता था। अर्जुन ने कहाः हे कृष्ण! कृपया मेरी वीरता पर संदेह न करें। मैं युद्ध करने के लिए तैयार हूँ परन्तु नैतिक दायित्व निर्वहन के दृष्टिकोण से मेरा कर्त्तव्य अपने आचार्यगणों का आदर करना और धृतराष्ट्र के पुत्रों पर दया दर्शाना है।
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मंगलाचरण 👇
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
1) ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जलाकया ।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।
2) वन्देऽहं श्रीगुरो: श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांचश्र ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथनविथं तं सजीवम् ।।
सद्वैतं सावधूतं परिजनहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान सहगणललिताश्रीविशाखानन्विताशार्च ।।
3) हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते।।
तप्तकाञ्चनगौरंगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये।
4) वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।
जय श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।
5) नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।
नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे
निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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*तुलसी प्रणाम मंत्र*👇
वृन्दायै तुलसी देवयायै प्रियायै केशवस्य च।
कृष्णभक्ति प्रद देवी सत्यवत्यै नमो नमः॥
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*वैष्णव प्रणाम मंत्र*👇
वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्र्च कृपासिंधुभय एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नामः ।।
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आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रात: काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे ।
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महामंत्र 👉हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan 🤳
🌐https://omtext.wixsite.com/inaryavart
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#कल्कि