
12/10/2025
प्राप्तिवाले महापुरुष समाज के बीच कभी अन्तर नहीं डाल सकते ! यह तो अधकुचलो की देन है जो उस परम का दिग्दर्शन और मूल की स्थिति वाला है,जो कण-कण में व्याप्त है,वह समाज में भेद-भाव नहीं डाल सकता ! वह कभी नही कह सकता कि भारत में ही राम है,बाहर नहीं ! यदि कोई ऐसा कुछ कहता है तो सिद्ध है कि वह अभी ईश्वर-तत्व को नहीं जानता ! महापुरुषों के पश्चात् उनके नाम पर अपनी ख्याति अर्जित करनेवाले अथवा उदर-पोषण की प्रवृत्ति लेकर जीने-खाने वाले लोग ही सम्प्रदायवाद ,रुढ़िवाद एवं मानव का विभाजन कर देते है ! 'कबीर "ऐसे लोगों को लक्ष्य करके कहते है .......... कोई सफा न देखा दिल का ! साँचा बना झिलमिल का !!
कोई सफा न देखा दिल का ! काजी देखा मुल्ला देखा,
पण्डित देखा छल का !! औरों को बैकुण्ठ बतावे, आप नरक में सरका !! बिल्ली देखा बगुला देखा ,
सर्प जो देखा बिल का !!
ऊपर-ऊपर बनल सफेदी,
भीतर घोला जहर का !! पढ़े लिखे कुछ वेद शास्त्र , भरे गुमान वरण-जाति का !!
कहत कबीर सुनो भाई साधो, लानत ऐसे तन का !!