25/06/2025
अच्छी थी पगडंडी अपनी !
सड़कों पर तो जाम बहुत है
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो!
सबके पास काम बहुत हैं
नहीं जरूरत बूढों की अब !
हर बच्चा बुद्धिमान बहुत हैं
उजड़ गए सब बाग बागीचे !
दो गमलों शान बहुत हैं
मठ्ठा दही नही खाते हैं!
कहते है जुकाम बहुत हैं
पीते है जब चाय कहीं!
कहते है आराम बहुत हैं
बंद हो गई चिट्ठी पत्री!
फोनो पर पैगाम बहुत हैं
आदी हैं ए ,सी के इतने !
कहते बाहर घाम बहुत हैं
झुके झुके स्कूली बच्चे !
बस्तों में सामान बहुत हैं
सुविधाओं का ढेर लगा है !
पर इंसान परेशान बहुत हैं 🙏💕