14/10/2025
"गाँव का डॉक्टर" – डॉ. रमन किशोर की कहानी
(Wordsmith Hero Series)
कॉलेज में फर्स्ट ईयर का इंट्रो सेशन चल रहा था। बाल मुंडाए, सर झुकाए मैं भी बाकी लड़कों के साथ लाइन में खड़ा था। सामने खड़े थे कॉलेज के सबसे दुर्दांत सीनियर— अमरेंद्र प्रताप सिंह और उनके चार साथी।
“क्या मोटू, क्यों बनना चाहते हो डॉक्टर?” बड़े डॉक्साब की भारी आवाज़ गूंजी।
“जी बॉस! गांव में अच्छा अस्पताल नहीं है, तो मैं वहां जाकर लोगों की सेवा और गरीबों का मुफ्त इलाज करना चाहता हूं।”
सब ठहाके लगाकर हंस पड़े। डॉ. अमरेंद्र बोले —
“वहीं घिसा-पिटा जवाब। तुम अपनी सेवा करने के लिए डॉक्टर बन रहे हो। समाज तुम्हारी कितनी सेवा करेगा बे! पहले पांच साल MBBS करो, फिर बात करते हैं।”
वो दिन बीत गया, पर उनकी बात मन में बैठ गई।
सालों बाद, जब अस्पतालों में हिंसा, मारपीट और डॉक्टरों के खिलाफ माहौल बढ़ने लगा — तब वो वाक्य सच लगने लगा। लगा कि “अगर मैं सबकी सेवा करूं, तो मेरी सेवा कौन करेगा?”
फिर एक दिन, पटना के एक कार्यक्रम में मेरी मुलाकात हुई डॉ. रमन किशोर से —
जो हमारे आज के Wordsmith Hero हैं।
शालीन स्वभाव, हमेशा मुस्कुराता चेहरा और ज़मीन से जुड़े व्यक्ति।
उनसे मिलते ही एहसास हुआ कि अगर सच्ची नीयत हो, तो डॉक्टर होना आज भी एक कर्तव्य है, पेशा नहीं।
साल 2012 में डॉ. रमन किशोर ने MBBS में दाखिला लिया।
पहले ही वर्ष में उन्हें पता चला कि उनकी मां एक टर्मिनल बीमारी से जूझ रही हैं — और अगर समय पर इलाज मिला होता, तो शायद वे बच जातीं।
यही था उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट।
उन्होंने संकल्प लिया कि इलाज हर उस घर तक पहुंचेगा,
जहां लोग डॉक्टर की फीस तो दूर, क्लीनिक तक जाने का किराया नहीं दे सकते।
और तब से लेकर आज तक,
डॉ. रमन किशोर ने 38,000 से अधिक मरीजों का निःशुल्क इलाज किया है।
लोग उन्हें प्यार से “गांव का डॉक्टर” कहते हैं।
कोई डोनेशन दे, तो साफ मना कर देते हैं।
अपनी सैलरी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा गरीबों और असहायों के इलाज में खर्च करते हैं।
AIIMS पटना से MD की डिग्री लेने के बाद भी उन्होंने अपना सफर जारी रखा —
ग्रामीण इलाकों में 266 से अधिक निःशुल्क हेल्थ कैंप, हजारों लोगों तक दवाइयाँ और उम्मीद पहुंचाई।
हम Wordsmith की ओर से नमन करते हैं डॉ रमन किशोर को — जो वाकई अपने गांव, अपने लोगों और अपने पेशे से सच्चा वादा निभा रहे हैं।