Vidyanand Singh

Vidyanand Singh पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं वंदनीय माता जी के विचार कों समस्त संसार में फैलाने हेतु पेज का निर्माण किया है!

(अपनों से अपनी बात)
*विचार क्रांति अभियान*
*हम बदलेंगे,युग बदलेगा,
हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा*
!अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है!

15/09/2025

गुजरात में स्थिति श्री सोमनाथ महादेव मंदिर के दिव्य अलौकिक दर्शन जहाँ समुद्र भी महादेव की सेवा में समर्पित है।

हर हर महादेव 🙏

‼ *मृतक भोज के सम्बन्ध में इस प्रकार भी सोचें (भाग 2)* ‼            ‼ *शांतिकुंज ऋषि चिंतन* ‼➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ 🌞 *15 September,...
15/09/2025

‼ *मृतक भोज के सम्बन्ध में इस प्रकार भी सोचें (भाग 2)* ‼
‼ *शांतिकुंज ऋषि चिंतन* ‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
🌞 *15 September, 2025 Monday* 🌞
🌼 *१५ सितंबर, २०२५ सोमवार* 🌼
*!! आश्विन माह, कृष्ण पक्ष, नवमी तिथि, संवत २०८२ !!*
‼ *सूर्योदय 6:06 AM, सूर्यास्त 6:19 PM*‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖

🔷 *इस मान्यता में कोई तथ्य नहीं कि घर में बहुत लोगों के भोजन करने से सूतक दूर होता और घर पवित्र होता है। कई बार इसी मान्यता के कारण बहुत से भाई किसी एक भाई के घर जाकर और खाकर पवित्र करते हैं। यदि ऐसा ही हो तो एक बड़े भोज का दण्ड देने के बजाय किसी ऐसी वस्तु की व्यवस्था की जा सकती है जिसमें किसी गरीब आदमी का बहुत कुछ खर्च न हो। ऐसी वस्तुओं से शक्कर या गुड़, शरबत जैसी वस्तुओं तक सीमित रहा जा सकत है।
🔶 *पुण्य पर प्रभाव पड़ने के कारण ही अच्छे और सच्चे सन्त महात्मा किसी का दान लेने अथवा अन्न खाने से यथासम्भव बचा करते हैं दान लेना और दान रूप अन्न को खाना पचाना सबके वश की बात नहीं है। इन दोनों चीजों का प्रभाव मनुष्य की आत्मा पर अवश्य पड़ता है वह सुनिश्चित तथ्य एवं सत्य है। किन्तु इसका प्रभाव इतने परोक्ष एवं सूक्ष्म रूप से पड़ता है कि साधारण विवेक का व्यक्ति उसे देख जान नहीं पाता। उसका पता तब चल पाता है जब सारे संस्कार विकृत हो जाते हैं और मनुष्य अपने आचरण में एक बड़ा और विपरीत परिवर्तन पाता है। किन्तु तब तक प्रभाव इतना गहरा हो चुका होता है कि उसको मिटा सकना टेढ़ी खीर बन जाता है। यही कारण है कि बुद्धिमान लोग दान रूप अन्न को समझ बूझकर ही खाते हैं।*
🔷 *यह व्यवस्था तो उस अन्न की है जिसमें देने अथवा खिलाने वाले की आत्मिक श्रद्धा तथा प्रसन्नता रहा करती है। इसके विपरीत जिन अन्य भोजन अथवा अन्न दान में देने वाले की श्रद्धा भक्ति तो दूर उल्टे पीड़ा पूर्ण आहें जुड़ी रहती हैं उसके भयंकर प्रभाव का तो अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता और निश्चय ही मृतक भोज का दण्ड भुगतने वाले की आत्मा के आंसू उसमें सम्मिलित रहते हैं।*

🔶 *भले ही मजबूरन कोई प्रथा-पालन की विवशता में मृतक भोज दें और कितनी ही प्रसन्नता क्यों न दिखाये और खाने वालों को धन्यवाद देकर आभार प्रकट करे, पर वास्तविकता यही होती है कि यह सारा शिष्टाचार ऊपरी होता है भोज देने वाला मन ही मन रोया करता होगा। एक तो जिसका कोई स्वजन मर गया हो दूसरे उसे ऊपर से अपनी सामर्थ्य के बाहर मृतक भोज जैसे आर्थिक दण्ड को भुगतना पड़े और तब जब किसी की मृत्यु में उसका कोई अपराध नहीं, कोई हाथ नहीं, तो वह रोयेगा नहीं क्या हंसेगा, खुश होगा? वह न सही उसकी मूक आत्मा अवश्य ही इसके लिये समाज को कोसेगी। इसलिये, इस प्रकार मृत्यु-भोज का अन्न किसी भी खाने वाले के लिये हितकर नहीं है।*

*.... क्रमशः जारी*
*✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
*📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 83*

।। हरे कृष्ण ।।प्रातः कालीन प्रणाम 🙏सर्वे भवन्तु सुखिन
15/09/2025

।। हरे कृष्ण ।।

प्रातः कालीन प्रणाम 🙏

सर्वे भवन्तु सुखिन

13/09/2025

*👉 श्राद्ध का रहस्य (भाग 01)*

🔵 *श्रद्धा से श्राद्ध शब्द बना है। श्रद्धा पूर्वक किये हुए कार्य को श्राद्ध कहते हैं। सत्कार्यों के लिए, सत्पुरुषों के लिए आदर की, कृतज्ञता की, भावना रखना श्रद्धा कहलाता है।* उपकारी, तत्वों के प्रति आदर प्रकट करना, जिन्होंने अपने को किसी प्रकार लाभ पहुंचाया है उनके लिए कृतज्ञ होना श्रद्धालु का आवश्यक कर्तव्य है। ऐसी श्रद्धा हिन्दू धर्म का मेरु दंड है। इस श्रद्धा को हटा दिया जाय तो हिन्दू धर्म की सारी महत्ता नष्ट हो जायगी और वह एक निःस्वत्व छूंछ मात्र रह जायगा। *श्रद्धा हिन्दू धर्म का एक अंग है इसलिये श्राद्ध उसका धार्मिक कृत्य है।*
🔴 *माता पिता और गुरु के प्रयत्न से बालक का विकास होता है। इन तीनों का उपकार मनुष्य के ऊपर बहुत अधिक होता है।* उस उपकार के बदले में बालक को इन तीनों के प्रति अटूट श्रद्धा मन में धारण किये रहने का शास्त्रकारों ने आदेश किया है। *‘‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव’’ इन श्रुतियों में इन्हें देव-नरतन धारी देव-मानने और श्रद्धा रखने का विधान किया है।* स्मृतिकारों ने माता को ब्रह्मा, पिता को विष्णु और आचार्य को शिव का स्थान दिया है। यह कृतज्ञता की भावना सदैव बनी रहे, इसलिए गुरुजनों का चरण स्पर्श, अभिवन्दन करना नित्य के धर्म कृत्यों में सम्मिलित किया गया है। यह कृतज्ञता की भावना जीवन भर धारण किये रहना आवश्यक है।
🔵 *यदि इन गुरुजनों का स्वर्गवास हो जाय तो भी मनुष्य की वह श्रद्धा कायम रखनी चाहिये।* इस दृष्टि से मृत्यु के पश्चात् पितृ पक्षों में मृत्यु की वर्ष तिथि के दिन, पर्व समारोहों पर श्राद्ध करने का श्रुति स्मृतियों में विधान पाया जाता है। *नित्य की संध्या के साथ तर्पण जुड़ा हुआ है।* जल की एक अंजली भर कर हम स्वर्गीय पितृ देवा के चरणों में उसे अर्पित कर देते हैं। उसके नित्य चरण स्पर्श अभिवन्दन की क्रिया दूसरे रूप में इस प्रकार पूरी होती है। *जीवित और मृत पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का यह धर्मकृत्य किसी न किसी रूप में मनुष्य पूरा करता है और एक आत्म संतोष का अनुभव करता है।*

🟣 *इन्हीं विशेष अवसरों पर श्राद्ध पर्वों में—हम अपने पूर्वजों के लिये ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, पात्र आदि का दान करते हैं, और यह आशा करते हैं कि यह वस्तुएं हमारे पितृ देवों को प्राप्त होंगी।* इस सम्बन्ध में आज एक तर्क उपस्थित किया जाता है कि दान की हुई वस्तुएं पितरों को न पहुंचेंगी। स्थूल दृष्टि से—भौतिक वादी दृष्टिकोण से—यह विचार ठीक भी है। *जो पदार्थ श्राद्ध में दान दिये जाते हैं वे सब उसी के पास रहते हैं जिस दिये जाते हैं।*
🔵 *खिलाया हुआ भोजन निमन्त्रित व्यक्ति के पेट में जाता है तथा अन्न, वस्त्र आदि उसके घर जाते हैं। यह बात इतनी स्पष्ट है जिसके लिये कोई तर्क उपस्थित करने की आवश्यकता नहीं। जो व्यक्ति श्राद्ध करता है वह भी इस बात को भली प्रकार जानता है कि जो वस्तुएं दान दी गईं थीं वे कहीं उड़ नहीं गईं वरन् जिसने दान लिया था उसी के प्रयोग में आई हैं। इस प्रत्यक्ष बात में किसी तर्क की गुंजाइश नहीं है।*

*🌹.... क्रमशः जारी*
*🌹 पुस्तक:- कुछ धार्मिक प्रश्नों का उचित समाधान, पृष्ठ 7*

12/09/2025

भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में आदरणीय श्री सी.पी राधाकृष्णन जी को शपथ लेने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

निश्चित रूप से आपके सामाजिक एवं प्रशासनिक अनुभवों से देश की संवैधानिक व्यवस्था को और अधिक मजबूती मिलेगी।

Big thanks to Prabhu Nath Dubey Dubey, Neelam Rani, Anil Chouhan, Birjita Lakda, Ashok Jha, Vinay Ankit, Joginder Sharma...
12/09/2025

Big thanks to Prabhu Nath Dubey Dubey, Neelam Rani, Anil Chouhan, Birjita Lakda, Ashok Jha, Vinay Ankit, Joginder Sharma, Mahi Namdeo, Madhu Khattri, Sanjeevkumarchaudhary Sanjeevraj, Seema Mathur, Shiv Tilak, ऑलइंडियाओबीसीरेलवेएम्प्लॉइजयूथ फेडरेशन

for all your support! Congrats for being top fans on a streak 🔥!

‼ *क्या मैं शरीर ही हूँ-उससे भिन्न नहीं? (भाग 4)* ‼            ‼ *शांतिकुंज ऋषि चिंतन* ‼➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ 🌞 *12 September, 2025...
12/09/2025

‼ *क्या मैं शरीर ही हूँ-उससे भिन्न नहीं? (भाग 4)* ‼
‼ *शांतिकुंज ऋषि चिंतन* ‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
🌞 *12 September, 2025 Friday* 🌞
🌸 *१२ सितंबर, २०२५ शुक्रवार* 🌸
*!! आश्विन माह, कृष्ण पक्ष, पंचमी तिथि, संवत २०८२ !!*
‼ *सूर्योदय 6:04 AM, सूर्यास्त 6:22 PM*‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖

🔵 *अरे स्वजन और मित्र कहलाने वाले लोगों-इस अत्याचार से मुझे बचाओ। अपनी आँखों के आगे ही मुझे इस तरह जलाया जाना तुम देखते रहोगे। मेरी कुछ भी सहायता न करोगे। अरे यह क्या-बचाना तो दूर उलटे तुम्हीं मुझमें आग लगा रहे हो। नहीं-नहीं, मुझे जलाओ मत-मुझे मिटाओ मत। कल तक मैं तुम्हारा था- तुम मेरे थे-आज ही क्या हो गया जो तुम सबने इस तरह मुझे त्याग दिया? इतने निष्ठुर तुम सब क्यों बन गये? मैं और मेरा संसार क्या इस चिता की आग में ही समाप्त हुआ? सपनों का अन्त-अरमानों का विनाश-हाय री चिता-हत्यारी चिता- तू मुझे छोड़। मरने का जलने का मेरा जरा भी जी नहीं है। अग्नि देवता, तुम तो दयालु थे। सारी निर्दयता मेरे ही ऊपर उड़ेलने के लिए क्यों तुल गये?*
🔴 *लो, सचमुच मर गया। मेरी काया का अन्त हो ही गया। स्मृतियाँ भी धुँधली हो चलीं। कुछ दिन चित्र फोटो जिये। श्राद्ध तर्पण का सिलसिला कुछ दिन चला। दो तीन पीढ़ी तक बेटे पोतों को नाम याद रहे। पचास वर्ष भी पूरे न हो पाये कि सब जगह से नाम निशान मिट गया। अब किसी को बहुत कहा जाय कि इस दुनिया में ‘मैं’ पैदा हुआ था। बड़े अरमानों के साथ जिया था, जीवन को बहुत सँजोया, सँभाला था, उसके लिए बहुत कुछ जिया था, पर वह सारी दौड़, धूप ऐसे ही निरर्थक चली गई। मेरी काया तक ने मेरा साथ न दिया-जिसमें मैं पूरी तरह घुल गया था। जिस काया के सुख को अपना सुख और जिसके दुःख को अपना दुःख समझा। सच तो यह है कि मैं ही काया था-और काया ही मैं था हम दोनों की हस्ती एक हो गई थी; पर यह क्या अचम्भा हुआ, मैं अभी भी मौजूद हूँ।
🔵 *वायुभूत हुआ आकाश में मैं अभी भी भ्रमण कर रहा हूँ। पर वह मेरी अभिन्न सहचरी लगने वाली काया न जाने कहाँ चली गई। अब वह मुझे कभी नहीं मिलेगी क्या? उसके बिना मैं रहना नहीं चाहता था, रह नहीं सकता था, पर हाय री निर्दय नियति। तूने यह क्या कर डाला। काया चली गई। माया चली गई। मैं अकेला ही वायुभूत बना भ्रमण कर रहा हूँ। एकाकी-नितान्त एकाकी। जब काया ने ही साथ छोड़ दिया तो उसके साथ जुड़े हुए परिवारी भी क्या याद रखते-क्यों याद रखते? याद रखे भी रहे हों तो अब उससे अपना बनना भी क्या है?*

*.... क्रमशः जारी*
*✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
*📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 4*

12/09/2025

अहंकार और आत्मविश्वास में फर्क समझना हर साधक के लिए ज़रूरी है।

👉 वीडियो देखें और जानें विश्वास बनाम अहंकार का सत्य।
full video watch- click now:- ⚓⚓⚓
https://youtu.be/UF8p3o_zSj8?si=alCZigR4vpT9WWcA

डॉ. चिन्मय पंड्या जी का यह प्रेरक Pravachan बताता है कि सच्चा आत्मविश्वास वहीं है, जहाँ नम्रता और ईश्वर समर्पण हो। आत्म समीक्षा ही अहंकार से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है।

*"सार्थक जीवन के लिए विवेकपूर्ण मार्ग चुनें, भीड़ का हिस्सा न बनें"**पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य**सच्चे सौभाग्यशाली वे है...
12/09/2025

*"सार्थक जीवन के लिए विवेकपूर्ण मार्ग चुनें, भीड़ का हिस्सा न बनें"*
*पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य*

*सच्चे सौभाग्यशाली वे हैं जो जीवन के हित-अनहित को समझते हैं और भीड़ के अंधानुकरण से बचते हैं। अभागे लोग लालच, व्यामोह, कुसंस्कार, दुर्व्यसन और अहंकार में फँसकर जीवन की दिशा भटका देते हैं। ईश्वर भले ही किसी को उच्च शिक्षा न दे, लेकिन इतना विवेक अवश्य होना चाहिए कि मनुष्य जीवन की अमूल्यता को पहचान सकें और आत्मनिर्णय लेकर सत्पथ पर चलें। विवेक से चुना गया मार्ग ही सार्थकता की ओर ले जाता है।
*❤️ Like | 💬 Comment | 🔁 Share | 🔔 Subscribe*

युग निर्माण के सूत्रधार पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने एक दिव्य सपना देखा — नवयुग का निर्माण, जहाँ हर व्यक्ति भीतर से देवत्व को जागृत करे, समाज स्वच्छ और संस्कारित बने, और धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो।

🔷 युग निर्माण योजना के ज़रिए उन्होंने ऐसे विचार दिए जो आज भी हमें प्रेरित करते हैं:

✅ स्वस्थ शरीर – क्योंकि स्वस्थ तन में ही देवत्व का वास होता है।
✅ मन में स्वच्छता और विचारों में पवित्रता – यही है सच्चा मानव धर्म।
✅ हर जीव में आत्मा का दर्शन (आत्मवत् सर्वभूतेषु) – सेवा, सहानुभूति और करुणा का संदेश।
✅ सभ्य समाज का निर्माण – जहाँ हर व्यक्ति संस्कारित हो, और एक-दूसरे की भावना को समझे।
✅ वसुधैव कुटुंबकम् – पूरी धरती हमारा परिवार है।
✅ धरती पर स्वर्ग का अवतरण – यही है युग परिवर्तन का अंतिम लक्ष्य।

🌟 यह सिर्फ विचार नहीं, एक क्रांति का आह्वान है – विचार क्रांति, चरित्र निर्माण, और समाज निर्माण की ओर एक पवित्र यात्रा।

🙏 आइए, हम सब मिलकर पूज्य गुरुदेव के इस युग निर्माण अभियान का हिस्सा बनें और अपने जीवन को एक मिशन में बदलें।

#युगनिर्माण

युग निर्माण के सूत्रधार पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने एक दिव्य सपना देखा — नवयुग का निर्माण, जहाँ हर व्यक...
10/09/2025

युग निर्माण के सूत्रधार पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने एक दिव्य सपना देखा — नवयुग का निर्माण, जहाँ हर व्यक्ति भीतर से देवत्व को जागृत करे, समाज स्वच्छ और संस्कारित बने, और धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो।

🔷 युग निर्माण योजना के ज़रिए उन्होंने ऐसे विचार दिए जो आज भी हमें प्रेरित करते हैं:

✅ स्वस्थ शरीर – क्योंकि स्वस्थ तन में ही देवत्व का वास होता है।
✅ मन में स्वच्छता और विचारों में पवित्रता – यही है सच्चा मानव धर्म।
✅ हर जीव में आत्मा का दर्शन (आत्मवत् सर्वभूतेषु) – सेवा, सहानुभूति और करुणा का संदेश।
✅ सभ्य समाज का निर्माण – जहाँ हर व्यक्ति संस्कारित हो, और एक-दूसरे की भावना को समझे।
✅ वसुधैव कुटुंबकम् – पूरी धरती हमारा परिवार है।
✅ धरती पर स्वर्ग का अवतरण – यही है युग परिवर्तन का अंतिम लक्ष्य।

🌟 यह सिर्फ विचार नहीं, एक क्रांति का आह्वान है – विचार क्रांति, चरित्र निर्माण, और समाज निर्माण की ओर एक पवित्र यात्रा।

🙏 आइए, हम सब मिलकर पूज्य गुरुदेव के इस युग निर्माण अभियान का हिस्सा बनें और अपने जीवन को एक मिशन में बदलें।

#युगनिर्माण

⭐🌼 *संयम और श्रद्धा से जीवन*  👉 श्राद्ध पक्ष में संयम और श्रद्धा का विशेष महत्त्व है। संयम से मन शांत रहता है और अनुशासन...
08/09/2025

⭐🌼 *संयम और श्रद्धा से जीवन*

👉 श्राद्ध पक्ष में संयम और श्रद्धा का विशेष महत्त्व है। संयम से मन शांत रहता है और अनुशासन से साधना का फल जल्दी मिलता है। श्रद्धा से पूर्वजों के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट होता है। साधना करते समय मन में स्थिरता लाकर सरल जीवनशैली अपनाना चाहिए। अपने विचारों को शुद्ध रखकर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। संयम से इन्द्रियों पर नियंत्रण होता है और श्रद्धा से आंतरिक शक्ति मिलती है। इन दोनों का समन्वय जीवन में संतुलन और सकारात्मकता लाता है। श्राद्ध पक्ष हमें आत्मचिंतन का समय देता है।

⭐🙏 *श्रद्धा से मन बलवान*

08/09/2025

विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है...

Address

Barhari, Goradih
Bhagalpur
813105

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Vidyanand Singh posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share