03/08/2025
भरतपुर- इलाज के लिए आ रहे हैं तो हो जाइए सावधान- यहां अनेक बीमारियां आप पर आक्रमण कर सकती हैं- क्योंकि अस्पताल अधीक्षक व ठेकेदार को आपकी परवाह नहीं है ।संभाग के सबसे बड़े अस्पताल आरबीएम में बायो वेस्ट गंदगी का अंबार- बीमारियां फैलने का डर- क्या ठेकेदार को नहीं किया जाना चाहिए ब्लैक लिस्ट-क्या पीएमओ के खिलाफ नही हो जांच ।
जैव कचरा (Bio waste) को हिंदी में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट या जैव-खतरनाक अपशिष्ट कहा जाता है। यह अपशिष्ट अस्पतालों, क्लीनिकों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं से उत्पन्न होता है, जिसमें संक्रामक या संभावित संक्रामक सामग्री होती है. इसमें मानव और पशु ऊतक, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, सुई, सीरिंज, और अन्य दूषित सामग्री शामिल हो सकती है.
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के प्रकार:
संक्रामक अपशिष्ट:
इसमें रोगजनक सूक्ष्मजीवों (जैसे बैक्टीरिया, वायरस) से दूषित सामग्री शामिल होती है, जो संक्रमण फैला सकती है.
शरीर के अंग और ऊतक:
इसमें मानव या पशु शरीर के अंग, ऊतक और शरीर के तरल पदार्थ शामिल हैं.
नुकीली वस्तुएं:
इसमें सुई, सीरिंज, स्केलपेल, और टूटे हुए कांच जैसी नुकीली वस्तुएं शामिल हैं.
फार्मास्यूटिकल अपशिष्ट:
इसमें अप्रयुक्त दवाएं, टीके और अन्य दवाएं शामिल हैं.
रासायनिक अपशिष्ट:
इसमें कीटनाशक, सॉल्वैंट्स और अन्य रसायन शामिल हैं जो जैव-चिकित्सा प्रक्रियाओं में उपयोग किए जाते हैं.
रेडियोधर्मी अपशिष्ट:
इसमें रेडियोधर्मी आइसोटोप के साथ दूषित सामग्री शामिल है.
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का प्रबंधन:
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का उचित प्रबंधन महत्वपूर्ण है ताकि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा न बने. इसके लिए, अपशिष्ट को स्रोत पर अलग करना, सुरक्षित रूप से संग्रहीत करना, उपचार करना और फिर सुरक्षित रूप से निपटान करना आवश्यक है.
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के उपचार के तरीकों में शामिल हैं:
भस्मीकरण:
उच्च तापमान पर कचरे को जलाना.
ऑटोक्लेविंग:
भाप और दबाव का उपयोग करके कीटाणुरहित करना.
रासायनिक कीटाणुशोधन:
रसायनों का उपयोग करके कीटाणुरहित करना.
डीप लैंडफिलिंग:
कचरे को एक विशेष रूप से निर्मित गड्ढे में दफनाना.