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बच्चा पैदा नहीं कर पाई तो कर्नाटक में महीला को बाइक से बांधकर कई मीटर तक घसीटा गया
21/05/2025

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दिल का आकार एक छोटी कार के जितना बड़ा होता है इस जानवर का क्या आप जानते हो?
30/04/2025

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24/04/2025
02/03/2025

महाकुंभ- ठेले पर सवारी ढोकर बने लखपति:श्रद्धालुओं ने 30 हजार तक खर्च किए, होटलों का 2 साल का कारोबार; कैसे बदली यूपी की अर्थव्यवस्था
'महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’

सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। अनुमान के मुताबिक महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं ने परिवहन पर 1.50 लाख करोड़ खर्च किए। इसी तरह खानपान पर 33 हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च किया। संडे बिग स्टोरी में कुंभ की इस पूरी अर्थव्यवस्था को समझिए…

तस्वीर महाकुंभ के दौरान की है। 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई।
तस्वीर महाकुंभ के दौरान की है। 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई।
होटल इंडस्ट्री ने किया 40 हजार करोड़ का कारोबार
महाकुंभ से सबसे ज्यादा कमाई होटल इंडस्ट्री को हुई। प्रयागराज में 200 से ज्यादा होटल, 204 गेस्ट हाउस और 90 से ज्यादा धर्मशालाएं हैं। 50 हजार से ज्यादा लोगों ने अपने घरों को होम-स्टे में बदल दिया था। हमने इसके बिजनेस को लेकर कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र गोयल से बात की।

प्रयागराज आने वालों की संख्या का अंदाजा इन तस्वीरों से लगाया जा सकता है।
प्रयागराज आने वालों की संख्या का अंदाजा इन तस्वीरों से लगाया जा सकता है।
महेंद्र गोयल कहते हैं- महाकुंभ से पहले हमने अनुमान लगाया था कि होटल इंडस्ट्री का कारोबार 2500-3000 करोड़ रुपए का होगा, लेकिन महाकुंभ खत्म होने तक इसका कारोबार 40 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया।

वह कहते हैं- इस महाकुंभ में होटल के अंदर जो कमरे 3 हजार के थे, उन्हें 15-15 हजार रुपए तक में दिया गया। स्टेशन के पास जो कमरे 500-700 रुपए में मिल जाते थे, इस बार 4000-5000 में दिए गए। कुंभ में डोम सिटी बनाई गई। इसका 1 लाख से ज्यादा किराया रहा और फुल बुकिंग रही।

300 करोड़ रुपए टोल प्लाजा को मिले
प्रयागराज पहुंचने के कुल 7 रास्ते हैं। हर रास्ते पर टोल प्लाजा है। जो लोग निजी गाड़ियों से महाकुंभ आए, सभी टोल पर पेमेंट करके आए। प्रयागराज-मिर्जापुर मार्ग पर विंध्याचल में जो टोल प्लाजा है, वहां से कुंभ मेले में करीब 70 लाख गाड़ियां गुजरीं। इससे 50 करोड़ रुपए का राजस्व टोल प्लाजा को मिला। इसी तरह प्रयागराज-रीवा, प्रयागराज-चित्रकूट, प्रयागराज-कानपुर, प्रयागराज-लखनऊ मार्ग पर भी टोल प्लाजा हैं।

लखनऊ-प्रयागराज मार्ग पर तो 3 टोल प्लाजा हैं। एक कार वाले को करीब 350 रुपए देने पड़े। सभी का कुल आंकड़ा मिलाने पर पता चलता है कि करीब 300 करोड़ रुपए सिर्फ टोल प्लाजा को मिले।

मेले से 3 लाख लोगों को सीधा फायदा
महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हुई। इसके पहले से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचने लगे थे। कुंभ का पहला हफ्ता उम्मीद के मुताबिक ही बीता। दूसरे हफ्ते यानी 21 जनवरी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने लगे।

21 से 29 जनवरी तक तो प्रशासन के लिए भीड़ को कंट्रोल करना मुश्किल हो गया। हर तरफ श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आने लगे थे।

कुंभ नगरी में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ी, कारोबार से जुड़े लोगों की कमाई बढ़ती चली गई।
कुंभ नगरी में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ी, कारोबार से जुड़े लोगों की कमाई बढ़ती चली गई।
इस दौरान खाने-पीने की दुकानों से लेकर ट्रैवल्स, नाव और होटल इंडस्ट्री में बहुत तेजी से उछाल आया। इन सबसे करीब 3 लाख लोग जुड़े थे। सभी को उम्मीद से कहीं अधिक मुनाफा हुआ। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर भगदड़ के बाद भीड़ अचानक कम हो गई।

हमने कई दुकानदारों से बात की। वह कहते हैं- 29 जनवरी से लेकर 5 फरवरी तक लगा कि अपनी लागत निकालना मुश्किल होगा, लेकिन उसके बाद उमड़ी भीड़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

नोट-आंकड़े अनुमान के मुताबिक हैं।
नोट-आंकड़े अनुमान के मुताबिक हैं।
3 उदाहरण से समझिए…कैसे दुकानदारों की हुई कमाई
महाकुंभ के सेक्टर-2 में महाराजा कचौड़ी एंड प्रसाद भोग नाम से आउटलेट्स है। इसका टेंडर 92 लाख रुपए का हुआ था। यह पूरे साल का था। मेले में हर दिन करीब 8 से 9 हजार प्लेट कचौड़ी बिकी। एक प्लेट का रेट 50 रुपए था। इसके अलावा लड्डू, चाय, पानी बॉटल भी खूब बिकीं। एक दिन की अनुमानित बिक्री 5 लाख से ज्यादा रही। हालांकि दुकानदार कैमरे पर बिक्री और फायदे के बारे में नहीं बताते हैं।

खाने-पीने की दुकानों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। कुछ दुकानदारों ने रोज औसतन 5 लाख से ज्यादा की बिक्री की।
खाने-पीने की दुकानों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। कुछ दुकानदारों ने रोज औसतन 5 लाख से ज्यादा की बिक्री की।
महाकुंभ की सबसे प्राइम लोकेशन लेटे हुए हनुमान मंदिर के आसपास की है। यहां बजरंग भोग नाम से लड्डू की दुकान है। इस दुकान के संचालक ऑफ कैमरा बताते हैं, ‘हर दिन 2 से 3 टन लड्डू बिके। रोज 3 लाख की दुकानदारी हुई। कुल 48 लोग दुकान पर काम कर रहे हैं।’ आप यहां यह समझिए जो लड्डू पहले 160 रुपए किलो मिलते थे, उसकी कीमत बाद में 280 रुपए किलो थी। यहां भी मुनाफा 50-50 का रहा।

संगम से करीब 500 मीटर पहले संगम थाना है। इसी के पड़ोस में बलिया के सुशील गुप्ता पकौड़े-समोसे और कचौड़ी की दुकान लगाते हैं। यह दुकान ठेले पर है। सुशील कहते हैं, हमें यहां थाने के जरिए जगह मिल गई।

6 दिसंबर से दुकान लगाई। 400-500 प्लेट कचौड़ी रोज बिकी। समोसे-पकौड़े और चाय दिनभर बनती और बिकती रही। हर दिन 30-35 हजार रुपए की दुकानदारी हो जाती थी।’ हमने मुनाफे के बारे में पूछा तो कहते हैं, 60% लागत मान लीजिए, बाकी कमाई।

पकौड़े-समोसे व कचौड़ी बेचने वाले छोटे दुकानदारों ने भी खूब कमाई की।
पकौड़े-समोसे व कचौड़ी बेचने वाले छोटे दुकानदारों ने भी खूब कमाई की।

ठेला खींचने वाले निमित कुमार बिंद कहते हैं- हमारे इस ठेले की पहले कोई इज्जत नहीं थी, लेकिन कुंभ में बड़े से बड़े आदमी बैठते थे। दिनभर में 2-3 हजार रुपए कमा लेते थे। हमारे जैसे करीब 500 ठेले वालों (सवारियां ढोने) के लिए कुंभ अवसर बनकर आया। इतनी कमाई हम पांच साल में नहीं कर पाते।

सिविल लाइंस के साइड से मेले में एंट्री करते हुए तमाम ठेले नजर आते हैं। यहीं हमें पिंटू मिले। हमने पूछा कितनी कमाई रही? पिंटू कहते हैं- 3000 रुपए तक कमा लेते थे। पहले इसी ठेले (ठेलिया) के जरिए शहर में कबाड़ का काम करते थे।

मेला प्राधिकरण ने 8 हजार से ज्यादा दुकानों के लिए जगह बेची
महाकुंभ में कॉमर्शियल दुकानों के लिए जगह को लेकर शुरुआत से ही मारामारी रही। इसलिए जमीनों के दाम ज्यादा रहे। मेला प्राधिकरण ने इस बार करीब 8 हजार दुकानों का अलॉटमेंट किया। इसमें दुकानों की कीमत 10 हजार से लेकर 50 लाख रुपए तक रही।

कुंभ का बहुत सारा एरिया कैंटोनमेंट में आता है। यहां से भी दुकानों का अलॉटमेंट हुआ। यहां कई दुकानों की सालाना कीमत 10 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपए तक थी। शहर में दुकानों के लिए जगह का अलॉटमेंट नगर निगम की तरफ से हुआ।

2019 में मेला प्राधिकरण ने 5 हजार 721 दुकानों के लिए जगह बेची थी। उस वक्त इससे कितना पैसा आया था, प्राधिकरण ने नहीं बताया था। 2013 के महाकुंभ में ऑफलाइन व्यवस्था थी। उस वक्त 2 हजार से ज्यादा दुकानों का अलॉटमेंट हुआ था। इस साल दुकानों के रेट पिछली बार के मुकाबले 4-5 गुना अधिक रहे। हालांकि कमाई के मामले में भी दुकानदार पहले से ज्यादा आगे रहे।

डिमांड बढ़ी तो लोगों को मुंहमांगी कीमत मिली
महाकुंभ में भारी भीड़ उमड़ी। इसके चलते चीजों की आपूर्ति प्रभावित होने लगी। खाने के सामानों की जितनी खपत थी, उस हिसाब से शहर में वह आ नहीं पा रहे थे। मेले के अंदर और आसपास चीजों के रेट दोगुना हो गए। जैसे जो 1 लीटर की पानी बॉटल 20 रुपए में मिलनी चाहिए, वह 30 रुपए की हो गई। शिकंजी, कुल्फी, चने समेत खाने की जो भी चीजें कुंभ से पहले जिस भी रेट में थीं, वह मेले के दौरान दोगुने रेट पर बिकने लगीं। लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे खरीदा।

ठेलिया चलाने वाले कहते हैं- इतनी कमाई तो सालभर में नहीं कर पाते, जितना यहां कमा लिया।
ठेलिया चलाने वाले कहते हैं- इतनी कमाई तो सालभर में नहीं कर पाते, जितना यहां कमा लिया।
8 और 9 फरवरी को महाकुंभ में कुछ इस कदर भीड़ उमड़ी कि शहर को जोड़ने वाले सभी 7 रास्तों पर लंबा जाम लग गया। उस दिन हाईवे पर जो भी ढाबे थे, वहां एक चाय की कीमत 50 रुपए और खाने की एक प्लेट की कीमत 300 रुपए तक पहुंच गई।

बाकी के दिनों में भी यहां जो रेट रहा, वह पहले के मुकाबले अधिक रहा। इसी तरह से रिक्शे वालों ने भी मौका देखकर फायदा उठाया। 1-2 किलोमीटर के लिए भी 200-300 रुपए वसूले। बाइक वालों ने भी प्रति सवारी 1000 रुपए तक लिए। पुलिस ने अलग-अलग समय पर 100 से ज्यादा बाइक सीज कीं।

संगम में नाव के जरिए स्नान करने को लेकर मारामारी रही। इसकी डिमांड इतनी बढ़ी कि जिस घाट से संगम तक आम दिनों में 50 रुपए लगते हैं, महाकुंभ के दौरान 5-5 हजार रुपए तक लिए गए। तमाम लोगों ने शिकायत भी दर्ज करवाई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।

दिल्ली-पटना-जयपुर के लिए जो प्राइवेट बसें चलीं, उन्होंने भी अपना किराया दोगुना कर रखा था। दिल्ली तक आम दिनों में 1000-1200 रुपए किराया होता है, कुंभ के दौरान 2 हजार रुपए से ज्यादा लगा।

नाव की सवारी करने के लिए लोगों को लाइन में लगना पड़ा।
नाव की सवारी करने के लिए लोगों को लाइन में लगना पड़ा।
7,500 करोड़ खर्च करके 4 लाख करोड़ कमाना बड़ी बात
हमने महाकुंभ का अर्थशास्त्र समझने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत घोष से मुलाकात की। वह कहते हैं- इतनी लंबी अवधि का कोई भी सांस्कृतिक-राजनीतिक या अन्य प्रकार का कोई आयोजन विश्व में कहीं नहीं होता। 45 दिनों का यह महाकुंभ 4 हजार हेक्टेयर में फैला रहा। जितनी भीड़ यहां आई, उतनी अब तक कहीं भी इकट्ठा नहीं हुई। 66 करोड़ लोग आए। तीन बड़े देश अमेरिका, रूस और इंग्लैंड की आबादी भी इतनी नहीं है।

प्रशांत घोष कहते हैं- कुंभ में अर्थव्यवस्था को लेकर कहा गया कि 3 लाख करोड़ का राजस्व हासिल होगा। इसे आसान भाषा में समझिए। 66 करोड़ लोगों का अगर औसत 5 हजार रुपए प्रति व्यक्ति खर्च भी मानते हैं, तो यह 3 लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगा।

स्थानीय अर्थव्यवस्था, राज्य अर्थव्यवस्था और देश की अर्थव्यवस्था को इससे फायदा होगा। अगर 7,500 करोड़ लगाकर 3 लाख करोड़ रुपए की आमदनी इकट्ठा हो रही है, तो यह विलक्षण बात है।

पूरे यूपी की GDP 25 लाख करोड़ की है। इस हिसाब से कुंभ का योगदान इसमें 12% होगा। देश की GDP 295 लाख करोड़ है। देश के हिसाब से कुंभ की GDP करीब 1% होगी। हालांकि आधिकारिक आंकड़े आने में समय लगेगा।

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02/03/2025

2012 में पाकिस्तान गया, फिर नहीं लौटा:संभल का उस्मान बना अलकायदा का हैंडलर, लाहौर जेल में कैद
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UP के संभल में शाही मस्जिद के सर्वे के दौरान 24 नवंबर, 2024 को हिंसा भड़क गई। पुलिस ने कहा कि हिंसा का पाकिस्तान कनेक्शन हो सकता है। इसमें दाऊद गैंग के शारिक साठा के अलावा अल कायदा से जुड़े सईद अख्तर, शरजील अख्तर और उस्मान का नाम आया है। शारिक साठा दुबई में है। सईद 13 साल और शरजील 27 साल से लापता है। उस्मान भी 2012 में पाकिस्तान चला गया था।

21 जनवरी 2025 को दिल्ली में गृह मंत्रालय के फॉरेन अफेयर्स डिवीजन को एक लेटर मिला। इसमें पाकिस्तान में कैद 33 भारतीयों के नाम थे। इनमें एक नाम उस्मान का भी था। पता चला कि संभल के दीपासराय का रहने वाला उस्मान लाहौर की सेंट्रल जेल में बंद है। उसे 21 मई, 2024 को हिरासत में लिया गया था। उस्मान पर फॉरेन एक्ट में केस दर्ज है।

उस्मान कैसे पाकिस्तान पहुंचा और कैसे आतंकी बना, दैनिक भास्कर ने इसकी पड़ताल शुरू की। इसी दौरान दो आतंकियों मोहम्मद आसिफ और जफर मसूद के कबूलनामे की जानकारी मिली, जो पाकिस्तान में उस्मान से मिले थे। इन दोनों को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2015 में अरेस्ट किया था। आसिफ और जफर भी संभल के रहने वाले हैं। आगे पढ़िए उस्मान के पाकिस्तान और आतंकी लिंक की पूरी कहानी।

मोहम्मद उस्मान को 16 दिसंबर, 2024 को काउंसलर एक्सेस मिला था। इसी से पता चला कि वो लाहौर जेल में कैद है।
मोहम्मद उस्मान को 16 दिसंबर, 2024 को काउंसलर एक्सेस मिला था। इसी से पता चला कि वो लाहौर जेल में कैद है।
उस्मान पहली बार 1999 में बिजनेस के बहाने पाकिस्तान गया
दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में मोहम्मद आसिफ और जफर मसूद के बयान शामिल हैं। इन बयानों से पता चला कि उस्मान पहली बार 1999 में पान-कत्था का बिजनेस करने की बात कहकर पाकिस्तान गया था। तब वो ट्रेनिंग लेकर भारत लौट आया था। उसे आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन से ट्रेनिंग मिली थी।

दूसरी बार 2012 में संभल से दिल्ली जाने की बात कहकर निकला और पाकिस्तान चला गया। इसके बाद भारत नहीं लौटा। संभल में रह रहे उसके भाई फरमान के मुताबिक, तभी से उन्हें उस्मान के बारे में पता नहीं है।

उस्मान को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 12 जुलाई, 2016 को भगोड़ा घोषित किया था। वो भारत में पाकिस्तानी आतंकियों के छिपने का इंतजाम कराता था। पता चला है कि उसे पाकिस्तान में अरेस्ट किया गया, तब वो ड्राइवर का काम कर रहा था। उस्मान दूसरी बार पाकिस्तान कैसे गया, इसकी अब तक जानकारी नहीं मिली है।

काउंसलर एक्सेस से मोहम्मद उस्मान के बारे में जानकारी मिली। इसके मुताबिक उस्मान के बाएं अंगूठे पर कट का निशान है।
काउंसलर एक्सेस से मोहम्मद उस्मान के बारे में जानकारी मिली। इसके मुताबिक उस्मान के बाएं अंगूठे पर कट का निशान है।
भाई बोला- ज्यादातर दिल्ली में रहता था, घर कम ही आता था
मोहम्मद फरमान, उस्मान के बड़े भाई हैं। पेशे से ट्रक ड्राइवर हैं। संभल के दीपा सराय में पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं। उस्मान के बारे में पूछने पर फरमान बताते हैं, ‘मुझे तो 15 दिन पहले पुलिसवालों ने बताया कि उस्मान पाकिस्तान की जेल में है। वो किसी से बात नहीं करता था। घर आता था, तभी बात होती थी।’

उस्मान का परिवार संभल के दीपा सराय में रहता है। उस्मान 4 भाई और 3 बहन हैं।
उस्मान का परिवार संभल के दीपा सराय में रहता है। उस्मान 4 भाई और 3 बहन हैं।
फरमान बताते हैं, ‘उस्मान 1995-96 में दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहा था। उसने एसी मैकेनिक का डिप्लोमा किया है। इसके बाद बहुत ज्यादा घर नहीं आता था। 2012 में आखिरी बार आया था। लौटते वक्त कुछ बताकर नहीं गया। वो ज्यादातर दिल्ली में रहता था। हमने कभी जाकर देखा भी नहीं कि कहां रहता है और क्या करता है।’

‘उसके पाकिस्तान जाने के बारे में कुछ नहीं पता। ये तो पुलिस ही बता रही है। 2012 के बाद तो कभी बात ही नहीं हुई। अगर बात होती, तो सबको पता लग जाता। कॉन्टैक्ट भी तभी करते, जब उसका पता-ठिकाना होता।’

मोहम्मद आसिफ का कबूलनामा, जिससे उस्मान के बारे में पता चला

‘AQIS चीफ सनाउल हक और उस्मान से पाकिस्तान के वजीरिस्तान में मिला था’

14 दिसंबर 2015 की दोपहर दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद आसिफ को अरेस्ट किया था। उसे सीलमपुर फ्लाईओवर के पास वेलकम बस स्टैंड से पकड़ा गया। मोहम्मद आसिफ ने स्पेशल सेल के सामने ये बयान दिया था...

पश्चिमी यूपी में मेरे जैसे कई लड़कों का ब्रेनवॉश किया गया। मैं अल कायदा से जुड़ गया। अल कायदा इन इंडियन सब-कॉन्टिनेंट यानी AQIS का मेंबर बना। मुझे ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान के वजीरिस्तान भेजा गया। मैं AQIS चीफ सनाउल हक के संपर्क में था। वो भी संभल का रहने वाला था। वजीरिस्तान में मैं सनाउल हक के अलावा उस्मान और सईद अख्तर से मिला।

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मैं 23 जून, 2013 को पाकिस्तान जाने के लिए निकला था। ईरान होते हुए पाकिस्तान पहुंचा। मेरे साथ मोहम्मद रेहान और मोहम्मद शरजील अख्तर थे। शरजील संभल और रेहान दिल्ली का रहने वाला है।

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हमने दिल्ली के कनॉट प्लेस में मीनार ट्रैवल्स से टिकट बुक कराई थी। हमने दिल्ली से ईरान की राजधानी तेहरान के लिए एयर टिकट बुक की थीं। 23 जून को हम तेहरान के लिए निकले। 10 जुलाई, 2013 को तेहरान से दिल्ली की रिटर्न टिकट थी, लेकिन तीनों में से कोई नहीं लौटा।’

पासपोर्ट खोने का बहाना बनाया, एक साल बाद भारत लौटा
मोहम्मद आसिफ एक साल बाद 26 अगस्त 2014 को तुर्की (अब तुर्किये) पहुंचा। विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, आसिफ तुर्की के रास्ते इंडिया लौटना चाहता था। उसने इस्तांबुल में भारतीय कॉन्सुलेट में झूठ बोला कि ‘मैं तुर्की टूर पर आया था। मेरा पासपोर्ट खो गया है।’

काउंसलर जनरल ने उसकी सिटिजनशिप की जांच कराई। 29 सितंबर 2014 को आसिफ का इमरजेंसी सर्टिफिकेट जारी किया गया। इसके बाद वो भारत लौट आया।

आसिफ का बयान वेरिफाई करने के लिए दिल्ली पुलिस ने मीनार ट्रैवल्स के डायरेक्टर पीएस दुग्गल का बयान भी लिया था। पीएस दुग्गल ने 23 दिसंबर, 2015 को बयान दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद शरजील अख्तर और मोहम्मद रेहान की इंडिया से ईरान की फ्लाइट टिकट बुक की थी। ईरान से लौटने की भी टिकट बुक थी। दोनों टिकट के पैसे कैश में दिए गए थे।

उस्मान से जुड़े जफर ने पत्नी के अकाउंट में पैसे मंगाए, फिर आसिफ को दिए
पुलिस की चार्जशीट में ये भी जिक्र है कि भारत से पाकिस्तान जाने के लिए आसिफ और उसके साथियों को पैसे कहां से मिले। इसके लिए उस्मान के करीबी जफर मसूद ने 1 लाख रुपए कैश दिए थे।

ये रुपए जफर मसूद की पत्नी के बैंक अकाउंट से दो बार में निकाले गए। एक बार 35 हजार और दूसरी बार में 65 हजार रुपए। यही पैसे आसिफ ने टिकट के लिए दो बार में ट्रैवल एजेंसी को दिए थे। 15 जून 2013 को 24,650 रुपए और 18 जून 2013 को 48,268 रुपए दिए थे। इसकी पुष्टि ट्रैवल एजेंसी के डायरेक्टर ने भी की थी।

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आसिफ भारत लौटा, दिल्ली में 2 लाख रुपए मिले
मोहम्मद आसिफ ने अपने बयान में बताया कि मैं सनाउल हक, सईद अख्तर और उस्मान के साथ ही काम करता था। पाकिस्तान में ट्रेनिंग के बाद दिल्ली लौट आया। इसके बाद सईद अख्तर ने मेरे लिए 2 लाख रुपए भिजवाए थे। दिल्ली के लाहौरी गेट के पास नया बाजार में चौधरी ट्रेडिंग कंपनी के जरिए मुझे रुपए मिले।

इस बयान से साफ हो गया कि मोहम्मद आसिफ 2013 में पाकिस्तान गया था, तब उस्मान वहां मौजूद था।

मोहम्मद आसिफ और जफर मसूद पर बनाई गई पुलिस की रिपोर्ट, जिसमें उस्मान के साथ सईद और शरजील का नाम भी है।
मोहम्मद आसिफ और जफर मसूद पर बनाई गई पुलिस की रिपोर्ट, जिसमें उस्मान के साथ सईद और शरजील का नाम भी है।
अब जफर मसूद का कबूलनामा

उस्मान के कहने पर दिल्ली में दो पाकिस्तानी आतंकियों को रुकवाया
दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में जफर मसूद का बयान भी है। जफर को 16 दिसंबर 2015 को संभल से गिरफ्तार किया गया था। जांच में पता चला कि वो सनाउल हक और उस्मान का करीबी था। उसने बताया...

मैं हरकत उल मुजाहिदीन से जुड़ा था। मुझे पाकिस्तान में ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया था। 1999 में मैं कारोबार के बहाने पाकिस्तान पहुंचा। वहां हरकत उल मुजाहिदीन के कैंप में रुका। कैंप में सईद अख्तर और सनाउल हक से मिला। मुझे हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद मैं भारत लौट आया।

मार्च, 2001 में उस्मान ने मुझसे कॉन्टैक्ट किया। बोला कि पाकिस्तान से दो लोग आएंगे। उनके नाम सैयद मोहम्मद उर्फ हमजा और मकसूद अहमद उर्फ अली हैं। दोनों को दिल्ली के जामिया इलाके में ठहराना है। मैंने उनके रुकने का इंतजाम कराया था। हालांकि पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।

पुलिस को मुझ पर शक हो गया था। इसलिए छिपने के लिए मैं गुजरात चला गया। वहां फेसबुक पर जफर मसूद शेख नाम से एक अकाउंट देखा। उसकी उम्र और फोटो मुझसे मिलती-जुलती थी। मैंने उसके नाम से फर्जी पासपोर्ट बनवा लिया। इसके बाद मेरा नाम हो गया जफर मसूद शेख।

मोहम्मद आसिफ, शरजील अख्तर और मोहम्मद रेहान को पाकिस्तान में ट्रेनिंग के लिए भिजवाने का इंतजाम मैंने ही कराया था। इसके लिए सईद अख्तर के कहने पर मैंने 1 लाख रुपए दिए थे। उनकी दिल्ली से तेहरान की हवाई टिकट कराई गई थी। सभी तेहरान से अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान गए थे।

लाहौर जेल में उस्मान से मिले काउंसलर, सरपंच की जगह पूर्व सांसद का नाम
पाकिस्तान जेल से उस्मान के बारे में आई रिपोर्ट में लिखा है कि काउंसलर लाहौर सेंट्रल जेल में उससे मिले थे। ये मुलाकात 16 दिसंबर, 2024 को हुई थी। उस्मान ने पिता का नाम खुर्शीद हुसैन बताया। दो भाई और तीन बहनों के बारे में बताया। एरिया के किसी सरपंच या हेडमास्टर के बारे में पूछने पर संभल के पूर्व सांसद शफी-उर-रहमान का नाम लिखवाया।

संभल के नौजवानों को सनाउल ने आतंकी बनाया
पुलिस के मुताबिक, संभल में युवाओं को आतंकी बनाने वाला सनाउल हक था। उसके परदादा ब्रिटिश सरकार में मजिस्ट्रेट रहे थे। परिवार में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे। वहीं दादा सरपंच थे।

सनाउल हक को अमेरिका ने 30 जून, 2016 को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया था। 1995 में वो पाकिस्तान चला गया था। वहां हरकत उल मुजाहिदीन जॉइन कर लिया।

अल कायदा के लीडर अल-जवाहिरी ने वीडियो जारी कर सितंबर, 2014 में अलकायदा इन द इंडियन सब-कॉन्टिनेंट (AQIS) बनाने की घोषणा की थी। इसका चीफ सनाउल हक को बनाया गया। नेशनल डायरेक्टेरट ऑफ सिक्योरिटी अफगानिस्तान ने 8 अक्टूबर 2019 को ट्वीट कर दावा किया था कि अमेरिका के हमले में सनाउल मारा गया है। उसकी मौत 23 सितंबर 2019 को मौसा कला जिले में हुई थी।

उस्मान के जरिए सनाउल से मिले आसिफ और जफर
सनाउल से पहले उस्मान जुड़ा। उस्मान के जरिए जफर मसूद और मोहम्मद आसिफ जुड़े। आसिफ और जफर मसूद अब जेल से बाहर आ चुके हैं। यूपी पुलिस की इंटरनल रिपोर्ट में लिखा है कि आसिफ और जफर को 14 फरवरी, 2023 को कोर्ट ने 7 साल 5 महीने की सजा सुनाई थी।

इससे पहले दोनों इतना वक्त जेल में बिता चुके थे। इसलिए 2 महीने की सजा और काटने के बाद रिहा हो गए। आसिफ 6 मई, 2023 और जफर मसूद 9 मई 2023 को रिहा होकर संभल आ गए थे।

SP बोले- उस्मान के मामले पर नजर, जांच भी चल रही
संभल SP कृष्ण कुमार बिश्नोई बताते हैं, ‘विदेश मंत्रालय से उस्मान के बारे में पता चला है। वहां से मिली जानकारी पर वेरिफिकेशन कराया गया है। उसका परिवार संभल में रहता है। परिवार से बात की गई है। उन्होंने बताया कि उस्मान 2012 में आखिरी बार घर से निकला था। उसके दो बार पाकिस्तान जाने की पुष्टि हुई है।'

'मामले पर नजर रखी जा रही है। कैसे वो पाकिस्तान पहुंचा, किन लोगों से संपर्क में रहा, इसकी इंटरनल जांच चल रही है। ये रिपोर्ट विदेश मंत्रालय को भेज दी है।’
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पाकिस्तान में कैद तेजबीर पर ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए

जिस तेजबीर के मर्डर में 4 अरेस्ट, वो पाकिस्तान में; पिता बोले- जिंदा है तो लाकर दो

पाकिस्तान से आई कैदियों की लिस्ट में उस्मान के साथ गाजियाबाद के तेजबीर का नाम भी है। तेजबीर का घर नईपुर गांव में है। हैरानी की बात ये है कि तेजबीर की हत्या के आरोप में 4 लोग जेल जा चुके हैं। हालांकि तेजबीर के पिता अब भी नहीं मानते कि उनका बेटा जिंदा है। वे कहते हैं कि अगर वो जिंदा है, तो उसे लाकर दे दो।

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