26/06/2025
अरे भैय्या, राम-राम!
क्या हाल है भिंड के, मध्यप्रदेश के मेरे सभी किसान भाइयों को मेरा नमस्कार?
और अब जोर से बोलो जय भीम
सुना है आजकल खेती-बाड़ी के अलावा मोबाइल पे भी उंगलियाँ घुमा रहे हो सब?"
अपने पास के गाँव अख्तियार-पुर में एक हैं रामकिशन दादा।
उमर होगी कोई पचास-साठ साल, बाल थोड़े सफ़ेद हो गए हैं, पर दिमाग अभी भी बिल्कुल नया एंड्राइड फ़ोन जैसा चलता है।
मतलब ये कि, नया कुछ भी सीखने को बोलो तो ऐसे मुँह बनाते हैं जैसे खराब बिजली के बिल को देख लिया हो!
उनकी पत्नी, रामदुलारी दादी, हमेशा कहती हैं, "ए जी, इतनी उमर हो गई, पर अभी तक बचपन छोड़ा नहीं!
रामकिशन दादा सुबह-सुबह अपनी गायों को सहलाते, फिर खेत की तरफ निकल पड़ते।
लेकिन आजकल एक नई मुसीबत आ गई थी
उनके पोते, जो शहर से पढ़-लिखकर लौटे थे, उसका नाम था
बंटी जब देखो, अपने मोबाइल में घुसा रहता था।
खेत में भी जाता तो मोबाइल साथ ले जाता।
रामकिशन दादा का माथा तभी ठनक जाता जब बंटी मोबाइल की स्क्रीन पे "लूडो किंग" खेलते दिखता!
"अरे ओ बंटी के बाप!" रामकिशन दादा अपने बेटे से कहते, "ये तेरा छोरा मोबाइल में का भूसा भरता है?
खेत में काम करेगा या 'इंस्टाग्राम पे रील' बनाएगा?"
बंटी ने एक दिन सुना, तो मुस्कुराते हुए बोला, "दादाजी, मैं फेसबुक नहीं, इंस्टाग्राम चलाता हूँ।
और यहाँ खेती की नई-नई रील्स और वीडियो मिलते हैं, जो आपको भी देखने चाहिए।"
रामकिशन दादा ने आँखें बड़ी कर लीं "खेती की जानकारी? मोबाइल में?
अबे ओ! ये भी कोई बात हुई? खेती तो मिट्टी में हाथ डालकर सीखी जाती है, मोबाइल में अंगूठा घुमाकर नहीं!"
पास में सुखिया काका बैठे थे, जो बीड़ी फूंकते हुए बोले,
"हाँ रे बंटी, तुम्हारे शहर वाले तो हर चीज़ को मोबाइल में ठूँस रहे हैं।
कल को कहोगे, गोबर भी 'ऑनलाइन ऑर्डर' करके आ रहा है!"
बंटी ने हंसते हुए बोला "दादाजी, आप मानेंगे नहीं, पर मैंने एक वीडियो देखा
जिसमें एक किसान ने कम पानी में गेहूँ की इतनी तगड़ी फसल उगाई कि पूछो मत!"
रामकिशन दादा ने नाक सिकोड़ी "वीडियो?
अरे बंटी, ये सब शहरों की माया है।
हमारी खेती तो बारिश पे निर्भर करती है, और भगवान इंद्रदेव के 'स्टेटस' पे!"
सुखिया काका ने फिर तपाक से कहा, "हाँ रे बंटी, अपने गाँव में तो अगर भगवान इंद्रदेव नाराज़ हो गए,
तो मोबाइल का नेटवर्क भी 'एरर 404: नॉट फाउंड' हो जाता है, फसल की तो बात ही छोड़ो!"
गाँव में ऐसे ही मज़ाक चलता रहता था लेकिन बंटी ने मन बना लिया था
कि वो अपने दादाजी को सोशल मीडिया की ताकत दिखाएगा, खासकर खेती में।
और यहीं से शुरू हुई अख्तियार-पुर के किसानों की डिजिटल यात्रा, जिसमें खूब हँसी थी, थोड़ी उलझन थी, और बहुत कुछ नया सीखने को था…
और झूठ नहीं बोलूँगा, कुछ फ़ार्मर तो 'फार्मविल' खेलने लग गए थे मोबाइल पे!
अख्तियार-पुर गाँव में हर साल की तरह इस बार भी धान की फसल में दिक्कत आ गई थी।
रामकिशन दादा के खेत में धान के पौधे पीले पड़ रहे थे पानी की कमी थी, और जो था भी, उसमें कुछ तो गड़बड़ थी।
रामकिशन दादा ने माथा पकड़ लिया था "हे भगवान!
अबकी बार भी फसल हाथ से गई, तो बच्चों को क्या खिलाऊँगा?
मोबाइल पकड़ के 'सेल्फ़ी' खिंचाऊँगा क्या?"
सभी गाँव के बाकी किसान भी इसी हालत में थे।
सुभाष की टमाटर की फसल पर "बग" (कीट) लग गए थे, और जसवीर सिंह को अपनी गन्ने की उपज का सही दाम नहीं मिल रहा था।
सबने अपने-अपने पुराने नुस्खे आज़माए, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
चौपाल पर बस एक ही बात होती थी, "का करें भैय्या, अपनी 'नेटवर्क प्रॉब्लम' ही खराब है!"
एक शाम, रामकिशन दादा घर पर उदास बैठे थे। बंटी ने देखा, तो उनके पास आकर बैठ गया।
"दादाजी, क्यों परेशान हो? क्या 'डाटा पैक' खत्म हो गया है?"
"क्या बताऊँ रे बंटी," रामकिशन दादा ने आह भरी, "धान पीला पड़ रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा।
लगता है मेरी किस्मत में 'लोडिंग...' ही लिखा है।"
बंटी की आँखें चमक उठीं "दादाजी, मैंने कल एक 'कृषि महागुरु' का वीडियो देखा था।
उसमें ऐसी ही दिक्कत का समाधान बताया था एक बार देखें?"
रामकिशन दादा पहले तो झिझके, फिर निराशा में बोले, "देख ले भई, क्या पता मोबाइल ही मेरी किस्मत का 'सॉफ्टवेयर अपडेट' कर दे।"
बंटी ने तुरंत फ़ोन निकाला और एक वीडियो चलाने लगा वीडियो में एक आदमी बहुत आसान भाषा में धान के पीले पड़ने का कारण और उसका समाधान बता रहा था।
रामकिशन दादा और रामदुलारी दादी वीडियो को ऐसे देख रहे थे जैसे कोई "जुगाड़ मास्टर" नया इन्वेंशन दिखा रहा हो।
"देख दादाजी, ये बता रहा है कि अगर पौधा पीला पड़ रहा है तो उसमें 'जिंक' की कमी हो सकती है।
" बंटी ने बताया "या फिर पानी में 'आयरन मैन' जैसा लौह तत्व ज़्यादा हो सकता है।"
रामकिशन दादा भौंचक्के रह गए "जिंक? लौह? अरे बंटी, हम तो बस खाद डालना जानते हैं। ये 'जिंक-विंक' तो लगता है शहर की बीमारी है!"
अगले दिन, रामकिशन दादा ने वीडियो में बताए अनुसार कुछ जाँच करवाई।
नतीजा वही निकला जो वीडियो में बताया था! उन्हें यकीन नहीं हुआ।
उन्होंने तुरंत जिंक का छिड़काव किया और कुछ ही दिनों में धान के पौधों का रंग बदलने लगा!
ये खबर गाँव में आग की तरह फैल गई सुखिया काका, जो सबसे ज़्यादा मज़ाक उड़ाते थे, रामकिशन दादा के खेत पर आए और पौधों को देखकर अचरज में पड़ गए।
"रामकिशन, ये कैसे हो गया? तेरा मोबाइल क्या 'जादू की झप्पी' दे रहा है फसल को?"
रामकिशन दादा ने हँसते हुए कहा, "काका, ये जादू नहीं, ज्ञान है। बंटी के मोबाइल में 'खेती की गूगल बाबा' है।"
अब सुखिया काका को भी उत्सुकता होने लगी।
"तो फिर मुझे भी दिखा, मेरे टमाटरों पर जो कीट लगे हैं, उनका क्या इलाज है?
लगता है उन्होंने कोई 'वायरस अटैक' कर दिया है!"
बंटी ने तुरंत कीट नियंत्रण पर वीडियो खोजा।
लेकिन दिक्कत तब हुई जब सुखिया काका ने खुद मोबाइल पकड़ लिया।
वे वीडियो को उल्टा पकड़ कर देख रहे थे, और ज़ोर-ज़ोर से बोल रहे थे, "अरे ओ भाई, तू ऐसे कैसे दिखा रहा है!
ज़रा मोबाइल को 'स्ट्रेट' कर!" बंटी और रामकिशन दादा हँसी रोक नहीं पाए।
फिर सुखिया काका ने गलती से वीडियो को 'पॉज़' कर दिया।
"ए बंटी, ये क्या हो गया? रुक क्यों गया? लगता है मेरा मोबाइल 'हैंग' हो गया है!"
"दादाजी, आपने पॉज़ कर दिया," बंटी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर से चला दिया।
सोशल मीडिया पर किसानों को उलझते और फिर सीखते देखना अपने आप में एक मज़ेदार अनुभव था।
ये उनके लिए एक नया संसार था, और शुरुआती हिचकिचाहट के बावजूद,
परेशानियों ने उन्हें मजबूर किया कि वे मोबाइल की स्क्रीन की तरफ देखें,
जहाँ 'सॉल्यूशन्स' उनका इंतज़ार कर रहे थे… बिलकुल 'मिस्ड कॉल' की तरह!
खुशहाली-पुर में अब माहौल बदलने लगा था रामकिशन दादा की धान की सफल फसल ने सुखिया काका जैसे कई 'ओल्ड-स्कूल' वालों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था।
बंटी को अब किसानों के लिए 'मोबाइल गुरु जी' का दर्जा मिल गया था।
बंटी ने देखा कि किसानों को सबसे ज़्यादा दिक्कत अपनी उपज का सही दाम पाने में, सही खाद चुनने में, और मौसम की 'लाइव अपडेट' मिलने में आती थी।
उसने सोचा कि सोशल मीडिया इन तीनों समस्याओं का 'वन-स्टॉप सॉल्यूशन' बन सकता है।
हमारे किसान भाई मेहनत तो बहुत करते हैं, पर हिसाब-किताब में थोड़ा कच्चा रह जाते हैं।
रामकिशन दादा को ही ले लो, फसल बेचने के बाद जब रामप्यारी दादी ने हिसाब माँगा तो वो सर खुजलाने लगे।
"अरे रामप्यारी, अब सब याद थोड़ी न रहता है!
बस इतना समझ ले कि 'बैटरी लो' नहीं हुई है!
" बंटी ने उन्हें एक 'किसान खाता बही ऐप' दिखाया "दादाजी, ये देखिए, इसमें आप अपनी खाद का खर्चा, बीज का खर्चा, मज़दूरों का खर्चा, और फसल की बिक्री सब लिख सकते हैं।
फिर ये अपने आप आपको बताएगा कि कितना फ़ायदा हुआ, बिलकुल 'प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट' जैसा!"
रामकिशन दादा ने पहले तो मुँह बनाया, "ये क्या नई झंझट है!
लगता है ये 'ईएमआई' वाला सिस्टम है!" पर जब उन्होंने देखा कि ऐप में हरे और लाल रंग में साफ़-साफ़ दिख रहा था।
कि किस फसल में कितना मुनाफ़ा हुआ, तो उनके चेहरे पर ख़ुशी आ गई।
सुखिया काका ने भी देखा और बोले, "ओहो! ये तो अपनी 'सीए' (चार्टर्ड अकाउंटेंट) की टेंशन ही खत्म!"
जसवीर सिंह हमेशा बिचौलियों से परेशान रहते थे, जो उनकी गन्ने की फसल का कम दाम देते थे।
बंटी ने उन्हें 'किसान मंडी ऑनलाइन' नाम का एक फेसबुक ग्रुप दिखाया।
"चाचा, यहाँ आप अपनी फसल की फोटो डालो, उसकी क्वालिटी बताओ, और सीधे ग्राहक से बात करो।
कोई 'ब्रोकर' नहीं!" जसवीर सिंह को ये बात जँची, उन्होंने अपनी गन्ने के खेत की एक शानदार फोटो खींची, लेकिन लिखते समय फंस गए।
"ए बंटी, इसमें क्या लिखूँ? 'फॉर सेल: गन्ना, फ़्रेश, ओन्ली फॉर सीरियस बायर्स!'
" बंटी ने उन्हें सिखाया, "लिखो कि अख्तियार-पुर का मीठा गन्ना, सीधा खेत से आपके घर तक! 'होम डिलीवरी' अवेलेबल!' और अपना फ़ोन नंबर भी दे दो।
" जसवीर सिंह ने पहली बार अपनी फसल की 'ऑनलाइन मार्केटिंग' की।
कुछ ही दिनों में उन्हें एक शहर से बड़ा ऑर्डर मिला, और बिचौलिए से कहीं ज़्यादा दाम मिला!
जसवीर सिंह की ख़ुशी का ठिकाना न था उन्होंने चौपाल पर ऐलान कर दिया, "अब बिचौलिए नहीं, सीधा 'व्हाट्सएप पे ऑर्डर' चलेगा!"
मोहनलाल के टमाटरों पर लगे कीटों का इलाज अभी तक नहीं मिल पाया था।
बंटी ने उन्हें एक 'कृषि विज्ञान केंद्र' का व्हाट्सएप ग्रुप दिखाया "चाचा, यहाँ आप अपने टमाटर के पौधे की फोटो खींचो और ग्रुप में डाल दो।
विशेषज्ञ आपको तुरंत बताएँगे कि कौन सी दवा डालनी है। बिलकुल 'ऑनलाइन क्लीनिक' जैसा!
" मोहनलाल ने अपनी पुरानी घिसी हुई चप्पल पहनकर खेत में गए, बड़े ध्यान से फोटो खींची।
फिर ग्रुप में डालने की कोशिश की, लेकिन गलती से उन्होंने अपनी 'सेल्फ़ी' डाल दी!
पूरे ग्रुप में हँसी के ठहाके लग गए "अरे मोहनलाल चाचा, खेत की फोटो डालो, अपनी नहीं!
आपको 'ब्यूटी फ़िल्टर' नहीं चाहिए, 'पेस्ट फ़िल्टर' चाहिए!" एक विशेषज्ञ ने मज़े लेते हुए लिखा।
मोहनलाल शरमा गए! पर अगली बार उन्होंने सही फोटो डाली और कुछ ही मिनट में उन्हें सही दवा का नाम और उसकी मात्रा पता चल गई।
दो दिन में टमाटरों से कीट गायब! मोहनलाल ने ख़ुशी में पूरे गाँव में मिठाई बाँटी।
अख्तियार-पुर में मौसम की जानकारी का पुराना तरीका था - गाँव के बुजुर्गों का अनुभव, या फिर टीवी पर समाचार।
लेकिन ये हमेशा सही नहीं होता था, बंटी ने उन्हें 'आईएमडी वेदर ऐप' दिखाया, जो अगले 7 दिनों का सही पूर्वानुमान बताता था।
"दादाजी, ये देखिए, कल बारिश होगी या नहीं, सब यहाँ लिखा है बिलकुल 'गूगल मैप्स' पे 'लाइव ट्रैफिक' जैसा!"
बंटी ने ऐप दिखाते हुए कहा रामकिशन दादा ने फिर से नाक सिकोड़ी, "ये सब कहाँ से पता चलता है इन्हें?
क्या ऊपर भगवान से 'वीडियो कॉल' करते हैं बागेश्वर धाम की तरह?
" सुखिया काका ने भी कहा, "अरे बंटी, मोबाइल में देख कर खेती करेंगे तो हमारी 'एंसेस्ट्रल नॉलेज' का क्या होगा?"
बंटी ने समझाया, "काका, पुरानी परंपरा और नया ज्ञान मिलकर ही तो कमाल करते हैं।
अगर आपको पहले से पता होगा कि कब बारिश होगी, तो आप अपनी फसल को बचा सकते हो, या बुवाई सही समय पर कर सकते हो।
ये 'स्मार्ट फार्मिंग' है!" धीरे-धीरे, किसानों ने इस ऐप पर भरोसा करना शुरू कर दिया।
कई बार अचानक होने वाली बारिश से उनकी फसल बच गई क्योंकि उन्हें पहले से चेतावनी मिल गई थी।
पहले जहाँ सरकारी योजनाओं की जानकारी देर से और अधूरी मिलती थी, वहीं अब किसान सरकारी विभागों के सोशल मीडिया पेजों को 'फ़ॉलो' करते थे।
उन्हें तुरंत पता चल जाता था कि कौन सी नई योजना आई है, कैसे आवेदन करना है और क्या डॉक्यूमेंट लगेंगे।
एक बार सरकार ने किसानों के लिए सोलर पंप पर सब्सिडी की योजना निकाली। बंटी ने ग्रुप में तुरंत जानकारी डाली।
गाँव के आधे से ज़्यादा किसानों ने समय पर आवेदन किया और उन्हें सोलर पंप मिल गए।
इससे सिंचाई का खर्चा कम हो गया और वे बिजली कटौती की परेशानी से भी बच गए।
अब उनके खेत भी 'सोलर-पावर्ड' हो गए थे!
इस तरह, अख्तियार-पुर में फ़ोन सिर्फ़ बातचीत का ज़रिया नहीं, बल्कि खेत की 'डिजिटल यूनिवर्सिटी' बन गया था।
हर समस्या का समाधान, हर जानकारी का स्रोत, अब उनकी जेब में था।
और हाँ, इन सबके बीच खूब हँसी-मज़ाक, गलतियाँ और सीखने का सिलसिला चलता रहा।
गाँव की चौपाल अब सिर्फ़ गपशप की जगह नहीं थी, बल्कि मोबाइल पर वीडियो देखने और खेती की नई बातें सीखने का 'वाई-फ़ाई ज़ोन' बन गई थी।
शुरुआत में सुखिया काका और कुछ 'ओल्ड-स्कूल' वाले किसान सोशल मीडिया और मोबाइल खेती का मज़ाक उड़ाते थे।
"ये सब शहरों की हवा है," वे कहते, "हमारी खेती तो मिट्टी और पसीने से होती है, मोबाइल से 'स्वेट' नहीं आता!"
लेकिन जब रामकिशन दादा की धान की फसल ने कमाल दिखाया, और जस्सा सिंह ने अपनी गन्ने की फसल का अच्छा दाम पाया, तो बात थोड़ी गंभीर हो गई।
फिर मोहनलाल के टमाटरों पर जब कीट नियंत्रण वाला नुस्खा काम आया, तो सुखिया काका का 'नेटवर्क प्रॉब्लम' भी धीरे-धीरे 'फुल सिग्नल' में बदलने लगा।
एक दिन, सुखिया काका खुद बंटी के पास आए। "ए बंटी, वो वाला ऐप क्या था, जिसमें मौसम की खबर मिलती है?
मेरे प्याज़ की फसल को बचाने के लिए देखना है लगता है उसे भी 'क्लाउड स्टोरेज' की ज़रूरत है!" बंटी मुस्कुराया।
"काका, आप तो कहते थे ये सब माया है!" "अरे बंटी, अब देख लिया!
जब तक 'नोटिफ़िकेशन' नहीं आती, तब तक 'एक्सेप्ट' कहाँ करते हैं!
" सुखिया काका ने हँसते हुए कहा।
गाँव में अब 'फसल की चौपाल' के साथ-साथ 'मोबाइल की चौपाल' भी लगने लगी।
शाम को किसान एक जगह जमा होते, अपने-अपने फ़ोन निकालते और बंटी उन्हें नए-नए वीडियो दिखाता।
कभी फसल की नई वैरायटी के बारे में, कभी सिंचाई के आधुनिक तरीकों के बारे में, और कभी सरकारी योजनाओं के बारे में।
एक बार एक वीडियो में एक किसान ने बताया कि कैसे वो कम जगह में ज़्यादा सब्ज़ियाँ उगाता है ('वर्टिकल फार्मिंग')।
रामकिशन दादा ने देखा और हैरान हो गए "अरे!
ये तो अपनी घर की छत पर भी खेती कर रहा है!
लगता है 'मल्टी-स्टोरे फ़ार्म' बना रहा है!" सुखिया काका ने तुरंत टिप्पणी की, "ये तो फ़ोन का कमाल है भई, जो हमें अपनी पुरानी सोच से 'सॉफ्टवेयर अपडेट' कर रहा है!"
गाँव में अब छोटे-छोटे 'किसान ग्रुप्स' बन गए थे, जहाँ वे व्हाट्सएप पर एक-दूसरे से जुड़ते थे।
अगर किसी को कोई दिक्कत आती, तो वो फोटो खींचकर ग्रुप में डाल देता, और दूसरे किसान या बंटी उसे तुरंत जवाब देते थे।
एक बार गाँव में नेटवर्क चला गया। सुखिया काका ने फ़ोन को आसमान की तरफ करके खूब हिलाया और बोले, "ए टावर!
कहाँ चला गया रे! मेरी खेती का नुस्खा नहीं दिख रहा! लगता है तू भी 'फ़्लाइट मोड' पे चला गया है!
" गाँव वाले हँस-हँसकर लोट-पोट हो गए। बाद में बंटी ने उन्हें बताया कि नेटवर्क आने का इंतज़ार करना होगा।
कुछ किसानों को डर था कि सोशल मीडिया पर सब कुछ सच नहीं होता।
बंटी ने उन्हें सिखाया कि सिर्फ़ 'वेरिफाइड अकाउंट्स' (जैसे कृषि विश्वविद्यालय, सरकारी पेज, जाने-माने विशेषज्ञ) से ही जानकारी लें।
उसने उन्हें ये भी सिखाया कि कैसे किसी जानकारी की सच्चाई को जाँचा जाए।
"हर 'फॉरवर्ड मैसेज' सच नहीं होता, दादाजी!"
अब गाँव के कुछ युवा किसान अपने खेतों के वीडियो बनाने लगे थे और उन्हें सोशल मीडिया पर डालने लगे थे।
वे गर्व से दिखाते थे कि उन्होंने कैसे नई तकनीक का उपयोग करके अच्छी फसल उगाई है।
जस्सा सिंह के बेटे ने तो अपनी गन्ने की सफल फसल पर एक 'सुपरहिट रील' बना दिया था, जिसके 'व्यूज़' उसकी उम्र से भी ज़्यादा थे!
सोशल मीडिया ने अख्तियार-पुर के किसानों के लिए सिर्फ़ खेती को आसान नहीं बनाया,
बल्कि उन्हें एक-दूसरे से जोड़ा, उन्हें आत्मविश्वास दिया और उन्हें ये महसूस कराया कि वे अकेले नहीं हैं।
प्रतिरोध अब 'एक्सेप्ट' में बदल गया था, और मोबाइल अब गाँव का 'सुपरस्टार' बन चुका था… बिलकुल एक 'ट्रेंडिंग टॉपिक' की तरह!
खुशहाली-पुर गाँव में अब एक अद्भुत बदलाव आ चुका था।
मोबाइल अब केवल एक 'कॉलिंग मशीन' नहीं था, बल्कि किसानों की समृद्धि का एक अहम हिस्सा बन गया था।
रामकिशन दादा अब बिना मोबाइल देखे खेत पर नहीं जाते थे, और सुखिया काका भी अपनी नई-पुरानी फसल की तस्वीरें खींचकर ग्रुप में 'अपलोड' करते थे।
अब गाँव के किसान एक-दूसरे को सिर्फ़ समस्याएँ नहीं बताते थे, बल्कि 'इंस्टेंट सॉल्यूशन्स' भी साझा करते थे।
अगर किसी ने कोई नई खाद इस्तेमाल की और उसे फ़ायदा हुआ, तो वो तुरंत उसकी जानकारी ग्रुप में 'ब्रॉडकास्ट' कर देता था।
बंटी को भी अब कम मेहनत करनी पड़ती थी क्योंकि किसान खुद ही एक-दूसरे के 'आईटी सपोर्ट' बन रहे थे।
इससे गाँव में 'सेल्फ़-रिलायंस' बढ़ी उन्हें अब हर छोटी-बड़ी बात के लिए बाहर के लोगों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।
वे खुद 'रिसर्च' करते थे, वीडियो देखते थे और एक-दूसरे के अनुभव से सीखते थे।
जस्सा सिंह के ऑनलाइन गन्ना बेचने के अनुभव से प्रेरित होकर, कई और किसानों ने अपनी सब्ज़ियाँ और फल सीधे शहर के ग्राहकों को बेचना शुरू कर दिया था।
उन्होंने छोटे-छोटे 'किसान प्रोड्यूसर ग्रुप्स' (FPO) बनाए और एक साथ ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर अपनी उपज बेचने लगे।
इससे उन्हें बिचौलियों से छुटकारा मिला और फसल का ज़्यादा दाम मिलने लगा, 'डिस्काउंट' की बजाए 'प्रीमियम'!
एक बार रामकिशन दादा के बेटे ने ऑनलाइन अपनी गेहूँ की क्वालिटी के बारे में एक पोस्ट डाली।
एक बड़ी आटा मिल ने उसे देखा और सीधे रामकिशन दादा से संपर्क किया।
रामकिशन दादा को पहली बार अपनी गेहूँ की फसल का इतना अच्छा दाम मिला कि उन्होंने गाँव में सबके लिए 'ग्रांड पार्टी' का आयोजन किया।
"ये सब बंटी के मोबाइल का कमाल है!" रामकिशन दादा ने गर्व से कहा।
पहले जहाँ सरकारी योजनाओं की जानकारी देर से और अधूरी मिलती थी, वहीं अब किसान सरकारी विभागों के सोशल मीडिया पेजों को 'फ़ॉलो' करते थे।
उन्हें तुरंत पता चल जाता था कि कौन सी नई योजना आई है, कैसे आवेदन करना है और क्या डॉक्यूमेंट लगेंगे।
एक बार सरकार ने किसानों के लिए सोलर पंप पर सब्सिडी की योजना निकाली।
बंटी ने ग्रुप में तुरंत जानकारी डाली गाँव के आधे से ज़्यादा किसानों ने समय पर आवेदन किया और उन्हें सोलर पंप मिल गए।
इससे सिंचाई का खर्चा कम हो गया और वे बिजली कटौती की परेशानी से भी बच गए। अब उनके खेत भी 'सोलर-पावर्ड' हो गए थे!
कुछ युवा किसानों ने तो सोशल मीडिया पर अपने खेतों की सुंदर तस्वीरें और वीडियो डालकर कृषि पर्यटन (एग्री-टूरिज्म) को बढ़ावा देना शुरू कर दिया।
शहर के लोग अख्तियार-पुर गाँव आने लगे, खेतों को देखने, ताज़ा सब्ज़ियाँ खरीदने और ग्रामीण जीवन का अनुभव लेने।
इससे गाँव की आर्थिक स्थिति और भी मज़बूत हुई। अख्तियार-पुर अब सिर्फ़ एक गाँव नहीं, बल्कि एक डिजिटल और समृद्ध गाँव के रूप में जाना जाने लगा, जहाँ हर कोना 'इंस्टा-वर्दी' था!
ये सब देखकर रामकिशन दादा ने एक दिन सुखिया काका से कहा, "काका, बंटी सही कहता था।
डॉ. अंबेडकर जी ने शिक्षा और ज्ञान की बात कही थी। आज ये मोबाइल हमें वही ज्ञान दे रहा है।
जब हम सब एक होकर इस ज्ञान का उपयोग करते हैं, तभी असली बदलाव आता है।
ये जो हम अलग-अलग होकर भटकते थे, अब एक साथ मिलकर आगे बढ़ रहे हैं, बिलकुल 'वाईफ़ाई नेटवर्क' की तरह!"
सुखिया काका ने भी सिर हिलाया, "हाँ रे रामकिशन, ये मोबाइल अपनी 'पॉलिटिकल जड़' (खेती) को नहीं छुड़वा रहा, बल्कि उसे और मज़बूत कर रहा है।
जैसे एक बरगद का पेड़ अपनी जड़ों को फैलाकर मज़बूत होता है, वैसे ही हम किसान भी ज्ञान और एकता से मज़बूत होंगे, और कोई हमें 'अनफ़्रेंड' नहीं कर सकता!"
अख्तियार-पुर के किसानों ने दिखा दिया कि मिट्टी और मोबाइल दोनों मिलकर कमाल कर सकते हैं!
ज्ञान कहीं से भी मिले, उसे अपनाना चाहिए, बस अपने असली जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए। जय जवान, जय किसान, जय 'डिजिटल क्रांति'!
दोस्तों ये कहानी अख्तियार-पुर के हर किसान के लिए एक सबक है।
आज सोशल मीडिया ने हमें एक ऐसा मंच दिया है जहाँ हम सब एक साथ आ सकते हैं, एक-दूसरे से सीख सकते हैं और अपनी समस्याओं का 'लाइव सॉल्यूशन' ढूँढ सकते हैं।
जैसे हमारे रामकिशन दादाजी और सुखिया काका ने शुरुआत में मोबाइल को मज़ाक समझा
पर बाद में उसकी ताकत को पहचाना, वैसे ही हमें भी नई चीज़ों को अपनाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए।
याद रखना, 'चेंज इज़ द ओन्ली कांस्टेंट' इन लाइफ, एंड इन फार्मिंग टू!
एक बात हमेशा याद रखें, भिंड के मेरे भाइयों
अपनी असली 'पॉलिटिकल जड़' को न छोड़ें।
इसका मतलब है अपनी खेती, अपनी ज़मीन और अपनी पहचान को कभी न भूलें।
सोशल मीडिया इन सबको मज़बूत करने का एक औज़ार है, न कि उन्हें बदलने का।
ये आपका 'बेस स्टेशन' है!
सोशल मीडिया पर बहुत सारा ज्ञान उपलब्ध है।
सही जानकारी को पहचानें और उसे अपनी खेती में लागू करें।
हर 'नोटिफ़िकेशन' को इग्नोर मत करना!
जैसे अख्तियार-पुर के किसानों ने ग्रुप बनाकर एक-दूसरे की मदद की, वैसे ही आप भी अपने आस-पास के किसानों के साथ जुड़ें।
अपनी समस्याएँ और समाधान साझा करें 'टुगेदर वी ग्रो' वाला फंडा!
शुरुआत में गलतियाँ होंगी, मज़ेदार पल भी आएँगे उनसे सीखें और आगे बढ़ें।
ये 'फार्मिंग गेम' का 'लेवल-अप' है!
अगर आपको कोई शिकवा या दिक्कत है, तो उसे दूर करें,
लेकिन अपने असली दल यानी अपनी किसान समुदाय की एकता
और अपने लक्ष्यों को छोड़कर बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आज़ाद समाज पार्टी में नहीं जाएँ।
क्योंकि अभी तक और कोई सही विकल्प नहीं है जो हमें एकजुट होकर आगे बढ़ाए, 'यूनाइटेड वी स्टैंड, डिवाइडेड वी फ़ॉल'!
आज यदि कोई चमार या जाटव नाम का झंडा उठा रहा है, या किसी भी जाति का झंडा उठा रहा है, तो उनकी आलोचना करें।
क्योंकि हमारा 'अनरिटन कॉन्ट्रैक्ट' है सभी अन्य समुदायों से, कि हम डॉ. अंबेडकर जी के मिशन से हटेंगे नहीं, यानी हम ज्ञान, समानता और एकता के पथ पर चलेंगे।
हमारा 'कम्युनिटी गाइडलाइंस' यही हैं!
अगर आप अपने किसान समुदाय की एकता को छोड़ोगे, और डॉ. अंबेडकर जी के मिशन से हटोगे तो आलोचना तो होगी।
और जो नहीं करेंगे, वे आपके दुश्मन ही होंगे, मित्र नहीं। उन्हें 'ब्लॉक' कर देना!
याद रखिए, आपकी ताकत आपकी एकता में है, आपके ज्ञान में है, और आपके एक-दूसरे का साथ देने में है।
तो 'एक हो जाओ', 'सीखो', और अपनी खेती को डिजिटल ताकत के साथ 'स्काई-हाई' ले जाओ!
क्या भिंड के किसान भाइयों को अब समझ आया कि मोबाइल सिर्फ़ बात करने के लिए नहीं, बल्कि खेती चमकाने के लिए भी है?
अब बताओ, अगली बार कौन सी 'फार्मिंग हैक' सीखना चाहोगे?
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