06/12/2023
एंटी इनकंबेंसी थी, नहीं तो 12 मंत्री नहीं हारते !
'जो जीता वही सिकन्दर' इस जुमले को 'प्राउड' के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। जीत का ये मतलब कतई नहीं कि सिकन्दर लोकप्रिय है, बल्कि सही अर्थ तो यह होता है कि 'अंततः' सिकन्दर जीत गया ! मध्यप्रदेश में बीजेपी ने भारी 'एंटी इनकंबेंसी' के बीच विधानसभा के चुनाव लड़े और प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी भी की, लेकिन यह कहना सही नहीं है कि यह चमत्कार सिर्फ लाड़ली बहना योजना के कारण हुआ। हां, यह योजना भी एक कारण थी, पर इतना बड़ा कारण नहीं कि प्रचण्ड जीत दिला दे। 33 में से 12 मंत्रियों का हारना इसे ठोस कारण मानने से इनकार कर रहा है। मंत्री यानी 'लोकप्रिय सरकार' के चेहरे। यदि 3 मंत्रियों के टिकट नहीं काटे जाते तो हारने वाले मंत्रियों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा होती। 'लाभार्थी बहनें' तो छिंदवाड़ा में भी थी, फिर वहां एक भी सीट पर इसका असर क्यों नहीं हुआ ? 2018 के चुनाव के समय भी संबल और भावान्तर जैसी 'नकदी' योजना प्रस्तुत की गईं थीं, लेकिन फिर भी बीजेपी एंटी इनकंबेंसी से नहीं बच सकी। सवाल यह है कि इस बार फिर चमत्कार कैसे हो गया ? जाहिर है, इसके पीछे 4 प्रमुख कारण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति, संगठन की कड़ी मेहनत और कार्यकर्ताओं के मन में कमलनाथ के 15 महीने के शासन की यादें ! चौथा कारण, सनातन धर्म जैसे बयान और मुद्दे रहे। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जानता था कि भारी एंटी इनकंबेंसी है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री को 'गारन्टी' देनी पड़ी और अमित शाह को खुद ऐसे नेताओं को मनाना पड़ा जो यदि बगावत कर चुनाव लड़ते तो समीकरण बिगाड़ सकते थे। हर अंचल के मतदाताओं को लगे कि उनका नेता मुख्यमंत्री बनने जा रहा है, इसलिए हर अंचल में बड़े चेहरे चुनाव में उतार दिए गए। यह सबसे असरदार रणनीति रही। बाकी कसर कमलनाथ जी ने पूरी कर दी। वे दोपहर बाद चुनाव प्रचार छोड़ घर लौट आते थे। आखिर, उनके पास 'मुख्यमंत्री चेहरा' और प्रदेश अध्यक्ष जैसी दोहरी जिम्मेदारी जो थी ! रहा सवाल, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का तो राजस्थान ने 'रोटी पलटने' की अपनी परम्परा इस बार भी निभाई। जबकि, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल 'आयुष्मान भारत' और 'प्रधानमंत्री आवास' जैसी केंद्रीय योजनाओं के आड़े आ रहे थे। बघेल के कारण जनता को इनका लाभ नहीं मिल पा रहा था। दर्जनों घोटाले और व्यापारी वर्ग की नाराजगी भी कांग्रेस को भारी पड़ गई। भूपेश बघेल अपने राज्य में क्रिकेट मैच और सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने को ही 'अच्छा शासन' समझने की भूल करते रहे ! बहरहाल, कांग्रेस को इन चुनावों से नए सिरे से सबक लेने की जरूरत है। कांग्रेस को संगठन के बूते नहीं, बल्कि एंटी इनकंबेंसी के कारण राज्यों में सत्ता मिल पा रहीं हैं। फिर चाहें, 2018 में मप्र, छग और राजस्थान हो, या हालिया कर्नाटक, हिमाचल या फिर तेलांगना हो। सत्ता में लगातार वापसी ही बताती है कि संगठन कितना मजबूत है ? जबकि, बीजेपी नेतृत्व को अब तय करना है कि जिन राज्यों में चुनाव जीते हैं, वहां नई लीडरशिप को कैसे तैयार किया जाए। खासतौर पर मध्यप्रदेश में, जहां पिछले दो दशक में एक भी नया और बड़ा चेहरा स्थापित नही हो पाया है !
@ अनिल सिंह कुशवाह