10/09/2025
गाँव के एक शांत किनारे पर, पुराने बरगद के पेड़ के नीचे एक टूटी-फूटी झोपड़ी खड़ी थी। उसी झोपड़ी में रहीं ममता।
लोग अक्सर कहते ये औरत पढ़ी-लिखी नहीं, नाम तक लिखना नहीं जानती। लेकिन ममता के दिल में ज्ञान की सबसे बड़ी किताब लिखी हुई थी अपने बेटे के लिए माँ का प्यार। ममता का पति कई साल पहले बीमारी के कारण चल बसा।
उस समय उनका बेटा, अंशु, बस छह साल का था।
घर में न कोई आय का साधन, न कोई मदद करने वाला रिश्तेदार। लोग कहते अनपढ़ औरत क्या कर पाएगी?
बेटा बड़ा होगा तो देख लेंगे।
पर ममता ने ठान लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, अंशु को पढ़ा-लिखा इंसान बनाएंगी। सुबह से शाम तक ममता खेतों में मेहनत करती।
कभी धान रोपती, कभी गेहूँ काटती, कभी दूसरों के घर झाड़ू-पोंछा। उसके हाथ फट जाते, पैरों में छाले पड़ जाते, मगर दिल में सिर्फ़ एक सपना था अंशु को स्कूल भेजना। अंशु छोटा था, खेलना उसे बहुत पसंद था।
कई बार वह ममता से पूछता माँ, मैं स्कूल क्यों जाऊँ?
तुम तो पढ़ी-लिखी नहीं, फिर मैं क्यों पढ़ूँ?
ममता की आँखों में आँसू भर आते, लेकिन वह धीरे से कहती बेटा, मैं नहीं पढ़ पाई इसलिए आज दूसरों के घर काम करना पड़ता है। अगर तू भी पढ़ा-लिखा इंसान नहीं बनेगा, तेरी जिंदगी भी मेरी तरह कठिन होगी। मैं चाहती हूँ तू अफ़सर बने और लोग तुझसे सलाम करें।
धीरे-धीरे अंशु समझदार होने लगा।
ममता सुबह काम पर जाती, तो उसके लिए टिफिन बनाती और कहती बेटा, भूखा मत रहना। चाहे मैं भूखी रह जाऊँ, पर तुझे खाना ज़रूर मिलेगा।
कई बार वह खुद रात को सूखी रोटी और पानी से काम चला लेती, लेकिन अंशु के लिए दूध, फल और पोषण का इंतज़ाम कर देती। गाँव के लोग ताने कसते ये औरत पागल है, अनपढ़ होकर भी बेटे को अफ़सर बनाने का सपना देखती है। पर ममता हर ताने को चुपचाप सह लेती, क्योंकि उसे विश्वास था कि एक दिन उसका बेटा ही उसकी इज़्ज़त और मेहनत का फल देगा।
समय बीतता गया।
अंशु ने गाँव के स्कूल से दसवीं पास की।
जब वह सर्टिफिकेट लेकर ममता के पास आया, तो ममता ने आँसू पोंछते हुए कहा मुझे पढ़ना नहीं आता बेटा, पर तेरी ये काग़ज़ की पर्ची मेरे लिए भगवान का आशीर्वाद है। बारहवीं के बाद अंशु शहर जाकर कॉलेज में दाख़िला लेना चाहता था। फीस बहुत ज़्यादा थी।
ममता ने अपने कानों के झुमके और गले की छोटी सी चेन, जो शादी की यादें लिए थीं, बेच दी। पड़ोसी हँसते थे इसने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर दी, बेटा पढ़-लिखकर कौन सा बड़ा आदमी बनेगा? पर ममता के दिल में अटूट विश्वास था।
अंशु शहर गया।
हॉस्टल में रहता, पढ़ाई करता और कभी-कभी चिट्ठियाँ लिखता। ममता उन्हें अपने पास रखती, आँखों से लगाती, लेकिन पढ़ नहीं पाती। कई बार पड़ोस के बच्चों से पढ़वाती अंशु ने लिखा है कि वो आपकी बहुत याद करता।
ममता का चेहरा खिल उठता, और वह सोचती काश मैं भी पढ़ पाती, तो बेटे के अक्षर खुद पढ़ पाती। सालों की मेहनत और त्याग रंग लाए।
अंशु ने कठिन परिश्रम से सिविल सेवा की परीक्षा पास की। गाँव में खबर फैलते ही, वही लोग जो कभी मज़ाक उड़ाते थे, अब उसकी तारीफ़ करने लगे। सब कहते वाकई इस औरत की मेहनत रंग लाई।
अंशु की नियुक्ति शहर में हुई।
पहले ही दिन जब वह गाँव आया, बड़ी गाड़ी से उतरा, वर्दी में, सीना तानकर खड़ा। पूरा गाँव देखने आया।
ममता दूर से देख रही थी, आँखों में आँसू और दिल गर्व से भरा। अंशु ने माँ के पैर छुए और कहा माँ, आज मैं जो भी हूँ, तेरी वजह से हूँ। तूने मुझे पढ़ाया, अपना सब कुछ त्याग दिया।
ममता ने सिर पर हाथ रखकर कहा बेटा, बस तू खुश रह, यही मेरी कमाई है। कुछ दिन बाद अंशु को एक समारोह में सम्मानित किया जाना था। मंच पर मंत्री, अफ़सर, पत्रकार सब मौजूद थे।
जब उनसे पूछा गया आपकी सफलता का श्रेय किसे जाता है?
अंशु ने कहा मेरी माँ को।
और ममता को मंच पर बुलाया।
ममता झिझकते हुए आई।
उसके पैरों में पुराने चप्पलें थीं, साड़ी थोड़ी फटी हुई थी, लेकिन जब अंशु ने माइक पकड़ा और कहा ये मेरी माँ हैं, जो खुद पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर मुझे पढ़ाने के लिए अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर दी। आज मैं अफ़सर बना हूँ, सिर्फ़ इनके कारण, तो पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा। ममता की आँखों से आँसू बह रहे थे।
उसने कहा मुझे पढ़ना नहीं आता, मेरा नाम तक मैं नहीं लिख सकती। पर मैंने सिर्फ़ एक सपना देखा था अंशु पढ़-लिखकर लोगों की सेवा करे। आज वो सपना पूरा हुआ।
उस रात जब माँ-बेटा घर लौटे, अंशु ने कहा माँ, अब तू भी पढ़ना सीखेंगी। अब मैं तुझे अक्षर सिखाऊँगा।
तू अपना नाम खुद लिख पाएगी।
ममता हँसते-रोते बोली अब बुढ़ापे में पढ़ाई कहाँ से होगी? अंशु ने कहा जब तक सांस है, सीखने की उम्र होती है।
हर रात अंशु माँ को अक्षर सिखाता।
पहले ‘अ’ लिखना, फिर ‘आ’।
ममता के हाथ काँपते, लेकिन दिल खुश होता।
कई हफ्तों की मेहनत के बाद, एक दिन उसने पहली बार अपने हाथ से अपना नाम लिखा ममता। उसने नाम को सीने से लगाया और कहा अब मुझे लगता है जैसे मैं भी ज़िंदगी में कुछ बन गई हूँ। अंशु ने माँ को गले लगाकर कहा माँ, तू मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी पढ़ी-लिखी औरत है।
झोपड़ी में रोशनी फैल गई, बरगद का पेड़ गर्व से झूम रहा था, और आसमान के तारे भी कह रहे थे माँ की मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
“माँ का त्याग और प्यार कभी खाली नहीं जाता। हर छोटा कदम, हर त्याग, जीवन में चमत्कार लाता है।”