
02/06/2025
# # # 🌿 **"वो थाली जो रोज़ अलग रखी जाती थी..."**
बहू रोज़ सारा खाना परोसती, पर सास की थाली अलग रखती थी।
सास कुछ नहीं कहती, बस चुपचाप खा लेती।
एक दिन छोटी बहू बोली –
"दीदी मम्मी जी की थाली में वो सब नहीं होता जो हम खाते हैं, क्यों?"
बड़ी बहू बोली –
"उन्हें गैस की दिक्कत है, मसाले नहीं चलते, ये सब उन्हीं की भलाई के लिए है।"
सास मुस्कराई।
उस मुस्कान में कई सालों की भूख और अपनेपन की तड़प थी।
वो बोली –
"भलाई के नाम पर जब अलग किया जाता है, तो खाना कम और तन्हाई ज़्यादा लगती है।"
उस दिन पहली बार बड़ी बहू ने सास के लिए वही खाना परोसा जो सब खा रहे थे –
और देखा, *आज सास ने पेट से ज्यादा दिल भरकर खाया।*
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**सीख:**
*"कभी-कभी भलाई के नाम पर जो किया जाता है, वो अपनापन नहीं, दूरी बनाता है।"*
रिश्तों में अलग करने से नहीं, साथ रखने से मिठास आती है।
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