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आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 6500/- ...
13/05/2025

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...

5000/- में
100 पेज, 35 प्रतियाँ

6500/- में
100 पेज, 50 प्रतियाँ

8500/- में
100 पेज, 70 प्रतियाँ

12500 में
100 पेज, 100 प्रतियाँ

14500/- में
100 पेज, 130 प्रतियाँ

1. ISBN नम्बर के साथ -
2. आकर्षक कवर पृष्ठ अच्छी क्वालिटी के साथ
3. इनर बुक 80 GSM पेपर क्वालिटी
4. शाब्दिक/मात्रिक वर्तनी शुध्द कराने के पश्चात प्रकाशन
5. सोशलमीडिया एवं डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से प्रचार-प्रसार
6. भूमिका लिखवाने एवं समीक्षा कराने के लिए हमारी टीम द्वारा पूर्ण सहयोग रहेगा।
7. पुस्तकों के साथ प्रशस्ति पत्र भी प्रदान करेंगे।
8. रॉयल्टी भी प्रदान करेंगे।
9. पुस्तक का साइज 5.5 * 8.5 रहेगा... ।

सम्पर्क : श्री नर्मदा प्रकाशन
Mob. No. 6391393776, 9335688424
Email : [email protected]

पुस्तक समीक्षा : लम्हों का आईना लेखिका : सरस्वती धानेश्वरप्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशनलम्हों का आईना, सरस्वती धानेश्वर क...
13/05/2025

पुस्तक समीक्षा : लम्हों का आईना
लेखिका : सरस्वती धानेश्वर
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

लम्हों का आईना, सरस्वती धानेश्वर का प्रथम काव्य संग्रह, 80 कविताओं का एक भावपूर्ण और विचारोत्तेजक संकलन है, जो मानवीय भावनाओं, सामाजिक सरोकारों और आत्मचिंतन के विविध रंगों को दर्शाता है। श्री नमंदा प्रकाशन द्वारा 2025 में प्रकाशित यह 104 पृष्ठों की कृति कवयित्री की व्यक्तिगत अनुभूतियों को सार्वभौमिक सत्यों के साथ जोड़ने की क्षमता का प्रमाण है। यह एक ऐसा साहित्यिक दर्पण है, जिसमें पाठक अपने जीवन के प्रतिबिंब को देख सकते हैं।

अवलोकन और संरचना :
संग्रह की कविताएँ विविध विषयों को समेटती हैं, जैसे प्रेम और विरह (तुम्हारा इंतज़ार, नेह के बंध), सामाजिक आलोचना (पीड़ाओं का दंश, नारी की गर्जना), पारिवारिक रिश्ते (मेरे पापा कितने प्यारे हो तुम, ममता मयी माँ), और दार्शनिक चिंतन (जीवन चक्र, बिखरना भी ज़रूरी है)। प्रत्येक कविता स्वतंत्र रूप से प्रभावशाली है, फिर भी संग्रह एक सामंजस्यपूर्ण कथानक प्रस्तुत करता है, जो जीवन के क्षणभंगुर पलों को संवेदनशीलता के साथ उकेरता है।

विषय और सामग्री :
लम्हों का आईना की सबसे बड़ी ताकत इसकी विषयगत बहुमुखी प्रतिभा है। कविताएँ व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभवों के बीच संतुलन बनाती हैं, कच्ची भावनाओं को सामाजिक टिप्पणी के साथ मिश्रित करती हैं। उदाहरण के लिए, तुम्हारा इंतज़ार और लम्हों का आईना में प्रेम और बिछोह की पीड़ा को "यादों का काफिला" और "कदमों की खामोश गूँज" जैसे बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वहीं, पीड़ाओं का दंश महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे सामाजिक मुद्दों को उजागर करती है, जिसमें कवयित्री जोश के साथ कहती हैं, "जागो देश के प्रहरी, न्याय का बिगुल बजा दो।" यह दोहरापन - निजी चिंतन और सामाजिक जागरूकता - संग्रह को व्यापक पाठक वर्ग के लिए प्रासंगिक बनाता है।

कवयित्री का पारिवारिक रिश्तों के प्रति सम्मान मेरे पापा कितने प्यारे हो तुम में एक पिता की स्नेहिल उपस्थिति और ममता मयी माँ में माँ की असीम प्रेम को दर्शाता है, जो शहरी जीवन की उदासीनता में भी चमकता है। उनकी नारीवादी चेतना नारी की गर्जना और बेटियाँ में स्पष्ट है, जहाँ वे नारी की शक्ति और साहस का गुणगान करती हैं और पितृसत्तात्मक दमन को चुनौती देती हैं। तिरंगे की शान और योद्धा हो तुम में उनकी देशभक्ति की भावना झलकती है, जो शहीदों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
संग्रह में अस्तित्ववादी और आध्यात्मिक चिंतन भी प्रमुख है। जीवन चक्र जीवन की चक्रीय प्रकृति पर विचार करता है, जबकि बिखरना भी ज़रूरी है टूटने में निहित सृजन की सुंदरता को रेखांकित करता है। सर्वव्यापी हैं शिव और माँ ईश्वर की अनुपम कृति में कवयित्री अपनी भक्ति को मानवीय अनुभवों के साथ जोड़ती हैं।

शैली और भाषा :
सरस्वती धानेश्वर की काव्य शैली सरलता और भावनात्मक सच्चाई से परिपूर्ण है। उनकी भाषा सहज और गहन है, जो हिंदी काव्य की लय में रची-बसी है और एक आत्मीय संवाद की तरह प्रतीत होती है। वे दर्पण, लम्हे, नदियाँ और तारे जैसे रूपकों का उपयोग करती हैं, जैसे "वह एक लम्हा जो हृदय की वेदना बन जाता है / सदियों तक सुखद संवेदना देता है" (लम्हों का आईना)। उनकी बिम्बात्मकता संवेदी है, जो दृश्य, ध्वनि और स्पर्श को जीवंत करती है, जैसे "स्मृतियों की सरसराहट" या "बरसात में भीगी खुशबू" (बूँदों की छुअन)।
मुक्त छंद का उपयोग कवयित्री को सामग्री के अनुरूप रूप चुनने की स्वतंत्रता देता है, चाहे वह प्रेममयी कविताएँ हों या सामाजिक आलोचना। उनकी संवेदनशीलता शब्द चयन में झलकती है, जो कोमल और तीक्ष्ण दोनों हैं। उदाहरण के लिए, नारी की गर्जना में वे लिखती हैं, "उसके पैरों की बेड़ियाँ तोड़कर / तलाश लिया है अपना वजूद," जो विद्रोह और आशा का मिश्रण है।

प्रभाव और प्रासंगिकता :
लम्हों का आईना केवल एक काव्य संग्रह नहीं, बल्कि चिंतन, सहानुभूति और कार्य करने का आह्वान है। धानेश्वर की समाजसेवी पृष्ठभूमि उनकी रचनाओं में जिम्मेदारी की भावना लाती है, जो पाठकों को लैंगिक असमानता, सामाजिक उदासीनता और तकनीकी युग में मानवीय रिश्तों के क्षरण (गुम हुआ चिट्ठियों का वजूद) जैसे मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। होसलों के उजालों से जैसी कविताएँ अंधेरे में साहस का कारवाँ जलाने की प्रेरणा देती हैं।

2025 में प्रकाशित यह संग्रह, तेजी से बदलते विश्व में, अपने कालातीत विषयों के कारण प्रासंगिक है। यह प्रेम में सांत्वना, संघर्ष में प्रेरणा और अनकहे विचारों की अभिव्यक्ति चाहने वाले पाठकों के लिए एक अनमोल उपहार है।

ताकत और सुधार के क्षेत्र :
संग्रह की सबसे बड़ी ताकत इसकी भावनात्मक प्रामाणिकता है, जो कवयित्री के नारी, माँ और समाजसेवी के रूप में अनुभवों से प्रबल होती है। विविध विषय और संक्षिप्त कविताएँ पाठक का ध्यान बनाए रखती हैं। भूमिका और जीवनी विवरण संदर्भ जोड़ते हैं, जो पाठक की समझ को समृद्ध करते हैं।

निष्कर्ष :
लम्हों का आईना एक प्रदीप्त प्रथम प्रयास है, जो जीवन के क्षणभंगुर पलों की सुंदरता और पीड़ा को समेटता है। सरस्वती धानेश्वर एक करुणामयी और दृढ़संकल्प कवयित्री के रूप में उभरती हैं, जिनकी कविताएँ सच्चाई और उद्देश्य के साथ गूंजती हैं। यह संग्रह न केवल कवयित्री की आत्मा का, बल्कि हर उस पाठक का दर्पण है, जो मानवीय अनुभवों के ताने-बाने में अर्थ खोजता है। हिंदी काव्य प्रेमियों और शब्दों की शक्ति में विश्वास रखने वालों के लिए यह एक अवश्य पढ़ने योग्य कृति है।

~ सत्यम सिंह बघेल

पुस्तक समीक्षा : "कलम का स्पर्श" लेखक : वंदना खरे 'मुक्त' प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन,वंदना खरे 'मुक्त' की प्रथम काव्य...
12/05/2025

पुस्तक समीक्षा : "कलम का स्पर्श"

लेखक : वंदना खरे 'मुक्त'
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन,

वंदना खरे 'मुक्त' की प्रथम काव्य कृति "कलम का स्पर्श" हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक सशक्त और संवेदनशील प्रयास है। यह काव्य संग्रह, जो साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग, भोपाल के सहयोग से प्रकाशित हुआ है, लेखिका की भावनाओं, जीवन के अनुभवों, और सामाजिक चेतना का एक सुंदर चित्रण प्रस्तुत करता है। संग्रह में कुल 83 कविताएँ शामिल हैं, जो विभिन्न विषयों जैसे प्रेम, प्रकृति, समाज, संस्कृति, नारी शक्ति, और अध्यात्म को छूती हैं।

काव्य संग्रह की संरचना :
"कलम का स्पर्श" में कविताएँ गीत, गजल, लोकगीत, और अनुकांत शैली में रची गई हैं। संग्रह की शुरुआत गुरु वंदना से होती है, जो ज्ञान और शिक्षक के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है। इसके बाद की कविताएँ विविध भावों को समेटती हैं, जैसे "मैं भारत की नारी हूँ" में नारी सशक्तीकरण, "करवा चौथ पर फेसबुक" में आधुनिकता और परंपरा का हास्यपूर्ण मिश्रण, और "बेटियाँ" में बेटियों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण। अनुक्रमणिका में प्रत्येक कविता का शीर्षक और पृष्ठ संख्या स्पष्ट रूप से दी गई है, जो पाठकों के लिए सुविधाजनक है।

विषय और भाव :
वंदना खरे की कविताएँ सादगी और गहराई का अनूठा संगम हैं। उनकी रचनाएँ आम जीवन की छोटी-छोटी बातों को बड़े कैनवास पर उकेरती हैं। संग्रह में निम्नलिखित प्रमुख थीम्स उभरकर सामने आती हैं:

1. नारी सशक्तीकरण : "मैं भारत की नारी हूँ" और "बेटियाँ" जैसी कविताएँ नारी की शक्ति, संघर्ष, और सम्मान को रेखांकित करती हैं। लेखिका ने नारी के विभिन्न रूपों—दुर्गा, काली, झाँसी की रानी, और आधुनिक युग की स्वतंत्र नारी—को प्रभावी ढंग से चित्रित किया है।

2. प्रेम और विरह : "ख्याल" और "साजन ले चल" जैसी रचनाएँ प्रेम की कोमलता और विरह की पीड़ा को व्यक्त करती हैं। इनमें भावनात्मक गहराई और सहजता है, जो पाठक के मन को छूती है।

3. सामाजिक चेतना : "जनसंख्या", "जलजला", और "रंग बदलते लोग" जैसी कविताएँ सामाजिक समस्याओं और मानवीय स्वभाव की जटिलताओं पर प्रकाश डालती हैं। लेखिका ने सामाजिक कुरीतियों और बदलते मानवीय मूल्यों पर तीखा व्यंग्य किया है।

4. प्रकृति और उत्सव : "सावन", "बारिश की बूँद", और "आई होली" जैसी कविताएँ प्रकृति के सौंदर्य और भारतीय त्योहारों की उमंग को जीवंत करती हैं। इनमें लोक संस्कृति और परंपराओं का सुंदर चित्रण है।

5. आध्यात्मिक चेतना : "माँ", "शंकर का त्रिशूल", और "रामजन्म" जैसी कविताएँ लेखिका की आध्यात्मिक आस्था को दर्शाती हैं। इनमें भक्ति और श्रद्धा का भाव प्रमुख है।

भाषा और शैली :
वंदना खरे की भाषा सरल, प्रवाहमयी, और आम बोलचाल से प्रेरित है, जो पाठकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है। उनकी रचनाओं में अलंकारों और छंदों का प्रयोग सीमित है, जैसा कि संग्रह की प्रस्तावना में धर्मराज देशराज ने भी उल्लेख किया है। फिर भी, उनकी कविताएँ भावनाओं की सघनता और यथार्थ की अनुभूति के कारण प्रभावशाली हैं। लोकगीतों और गजलों में लेखिका ने पारंपरिक शैली को आधुनिक संदर्भों के साथ जोड़ा है, जो उनकी रचनात्मकता को उजागर करता है।

प्रमुख रचनाएँ :
कुछ कविताएँ अपनी गहराई और संदेश के कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
"मैं भारत की नारी हूँ" : यह कविता नारी के सशक्त और स्वाभिमानी रूप को प्रस्तुत करती है। "कमजोर मुझे अब मत समझो, मैं भारत की नारी हूँ" जैसे पंक्तियाँ आत्मविश्वास और गर्व की भावना जगाती हैं।
"बेटियाँ" : बेटियों की कोमलता और उनके सामाजिक महत्व को रेखांकित करती यह कविता संवेदनशील और प्रेरणादायक है।
"करवा चौथ पर फेसबुक" : यह कविता आधुनिक जीवनशैली और परंपराओं के बीच के द्वंद्व को हास्य के साथ प्रस्तुत करती है, जो पाठकों को मुस्कुराने पर मजबूर करती है।
"सावन" : सावन के मौसम और पीहर की यादों को चित्रित करती यह कविता भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है।

लेखिका का परिचय और योगदान :
पुस्तक के अंत में लेखिका का विस्तृत परिचय दिया गया है, जो उनकी साहित्यिक और सामाजिक सक्रियता को रेखांकित करता है। वंदना खरे एक समाजसेविका, कवयित्री, और विभिन्न साहित्यिक मंचों की संयोजिका हैं। उन्होंने विश्व रिकॉर्ड, सामाजिक कार्यों, और 250 से अधिक सम्मानों के साथ अपनी पहचान बनाई है। उनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों, और फेसबुक लाइव सत्रों में प्रकाशित और प्रसारित हो चुकी हैं। यह संग्रह उनकी लेखन यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो उनके व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों का प्रतिबिंब है।

निष्कर्ष :
"कलम का स्पर्श" वंदना खरे 'मुक्त' की साहित्यिक प्रतिभा का एक सुंदर उदाहरण है। यह संग्रह न केवल काव्य प्रेमियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणादायक है जो जीवन, समाज, और मानवीय भावनाओं के गहरे अर्थों को समझना चाहते हैं। लेखिका ने अपनी पहली कृति के माध्यम से हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह पुस्तक निश्चित रूप से पाठकों के बीच अपनी जगह बनाएगी और लेखिका के भविष्य के कार्यों के लिए उत्सुकता जगाएगी।

"कलम का स्पर्श" एक ऐसी पुस्तक है, जो दिल को छूती है और विचारों को प्रेरित करती है। इसे हर साहित्य प्रेमी को अवश्य पढ़ना चाहिए।

~ सत्यम सिंह बघेल

पुस्तक समीक्षा : "कुछ भावनाएँ कुछ शब्द" लेखक : डॉ. मधुछन्दा चक्रवर्तीप्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशनपरिचय :"कुछ भावनाएँ कु...
11/05/2025

पुस्तक समीक्षा : "कुछ भावनाएँ कुछ शब्द"
लेखक : डॉ. मधुछन्दा चक्रवर्ती
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

परिचय :
"कुछ भावनाएँ कुछ शब्द" डॉ. मधुछन्दा चक्रवर्ती का पहला काव्य संग्रह है, जिसमें 54 कविताएँ शामिल हैं। यह कृति मानवीय संवेदनाओं, अनुभवों और सामाजिक यथार्थ को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करती है। लेखिका ने अपनी आत्मानुभूति और जीवन के विभिन्न रंगों को काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है, जो पाठक को भावनात्मक और वैचारिक स्तर पर गहराई से प्रभावित करता है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य में एक संवेदनशील और विचारोत्तेजक योगदान है।

विषयवस्तु और थीम :
काव्य संग्रह की कविताएँ जीवन के विविध आयामों को समेटती हैं। इनमें व्यक्तिगत अनुभवों से लेकर सामाजिक मुद्दों तक, जैसे रिश्तों की जटिलता, बचपन की स्मृतियाँ, भूख, अपमान, स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, और स्त्री जीवन की चुनौतियाँ शामिल हैं। कुछ प्रमुख थीम्स निम्नलिखित हैं:

1. मानवीय संवेदनाएँ : कविताएँ जैसे "रिश्ते", "बचपन से आज तक", और "एक दिन" व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं को सरल किंतु गहन तरीके से प्रस्तुत करती हैं। ये कविताएँ पाठक को अपनी यादों और अनुभवों से जोड़ती हैं।
2. सामाजिक यथार्थ : "भूख", "रास्ते के भिखारी", और "मानवता का ये कैसा विकास?" जैसी कविताएँ सामाजिक असमानता, गरीबी, और मानवता के पतन पर तीखा प्रहार करती हैं। लेखिका ने समाज के दोहरे मापदंडों को उजागर किया है।
3. स्त्री विमर्श : "आदर्श पत्नी" और "आदर्श नारी या आदर्श पुरुष" जैसी कविताएँ स्त्री जीवन पर सामाजिक अपेक्षाओं और दबावों को उजागर करती हैं। ये कविताएँ स्त्री की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के प्रश्न को सशक्त रूप से उठाती हैं।
4. देशभक्ति और बलिदान : "गलवान के वीर", "सच्चे सिपाही", और "वीर की कलम से" जैसी कविताएँ सैनिकों के बलिदान और देशभक्ति की भावना को श्रद्धांजलि देती हैं।
5. आत्मनिर्भरता और जीवन दर्शन : "स्वच्छन्दता", "आत्मनिर्भरता", और "क्या गम है?" जैसी कविताएँ जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास को प्रेरित करती हैं।

शैली और भाषा :
डॉ. मधुछन्दा की लेखनी सरल, सहज, और प्रवाहमयी है। उनकी कविताएँ रोजमर्रा की भाषा में लिखी गई हैं, जो पाठक के लिए सहजता से समझ में आती हैं। वे साधारण शब्दों में असाधारण भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम हैं। कविताओं में मुहावरों, लोकोक्तियों, और प्रतीकों का उपयोग प्रभावी ढंग से किया गया है, जो काव्य को और गहन बनाता है। उदाहरण के लिए, "रिश्ते" कविता में रिश्तों की जटिलता को "चलती बस की खिड़की से छूटते नजारे" जैसे प्रतीक के माध्यम से व्यक्त किया गया है।

कविताओं में छंदबद्धता और मुक्त छंद दोनों का समन्वय है। कुछ कविताएँ गीतात्मक शैली में हैं, जो पाठक को भावनात्मक रूप से बाँधती हैं, जबकि अन्य विचारोत्तेजक और चिंतनात्मक हैं। लेखिका ने हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भावनाओं को भी अपनी कविताओं में स्थान दिया है, जो उनकी बहुभाषी पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

प्रमुख कविताएँ और उनका प्रभाव :
1. रिश्ते : यह कविता रिश्तों की नाजुकता और जटिलता को दर्शाती है। "कितना बड़ा सबक है ये, पर समझते नहीं" जैसे पंक्तियाँ रिश्तों के प्रति मानवीय असंवेदनशीलता पर प्रहार करती हैं।
2. भूख : यह कविता गरीबी और भूख की त्रासदी को मार्मिक ढंग से चित्रित करती है। "हाथ उठाकर आशीष देते हैं, माँगते केवल दो मूठ चावल" जैसी पंक्तियाँ पाठक के हृदय को झकझोर देती हैं।
3. आदर्श पत्नी : यह कविता स्त्री पर थोपी गई सामाजिक अपेक्षाओं की कटु आलोचना करती है। "पत्नी तुम्हें पढ़ी-लिखी चाहिए, मगर वह गी गड़िया होनी चाहिए" जैसी पंक्तियाँ समाज के पितृसत्तात्मक ढांचे पर प्रश्न उठाती हैं।
4. गलवान के वीर : यह कविता सैनिकों के बलिदान को श्रद्धांजलि देती है और देशभक्ति की भावना को प्रेरित करती है। "भारत माता के सच्चे सपूत ये" जैसी पंक्तियाँ गर्व का अनुभव कराती हैं।
5. क्या गम है? : यह कविता जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। "अकेले ही कट जाएगी जिन्दगी, यूँ ही कटते-कटते" जैसी पंक्तियाँ आत्मनिर्भरता और आशावाद को प्रेरित करती हैं।

सकारात्मक पहलू :
संवेदनशीलता : कविताएँ मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उकेरती हैं, जो पाठक को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती हैं।
सामाजिक चेतना : लेखिका ने सामाजिक मुद्दों को साहसपूर्वक उठाया है, जो काव्य को प्रासंगिक और विचारोत्तेजक बनाता है।
सहजता और गहनता का समन्वय : सरल भाषा में गहरे विचारों का समावेश काव्य को सभी वर्गों के लिए सुलभ बनाता है।
विविधता : कविताएँ व्यक्तिगत, सामाजिक, और राष्ट्रीय विषयों को समेटती हैं, जो संग्रह को समृद्ध बनाता है।
स्त्री दृष्टिकोण : लेखिका ने स्त्री जीवन की चुनौतियों को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया है, जो हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श को मजबूती प्रदान करता है।

निष्कर्ष :
"कुछ भावनाएँ कुछ शब्द" एक संवेदनशील और विचारोत्तेजक काव्य संग्रह है, जो डॉ. मधुछन्दा चक्रवर्ती की साहित्यिक प्रतिभा को स्थापित करता है। यह कृति मानवीय भावनाओं, सामाजिक यथार्थ, और स्त्री विमर्श को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। लेखिका की सरल किंतु गहन शैली पाठक को भावनात्मक और वैचारिक यात्रा पर ले जाती है। हालांकि, संपादन और छंद संरचना में सुधार की गुंजाइश है, फिर भी यह संग्रह हिंदी साहित्य में एक मूल्यवान योगदान है। यह पुस्तक कविता प्रेमियों, सामाजिक चेतना के इच्छुक पाठकों, और स्त्री विमर्श में रुचि रखने वालों के लिए एक उत्कृष्ट पठन है।

अनुशंसा : यह कृति उन पाठकों के लिए आदर्श है जो भावनाओं और सामाजिक मुद्दों को काव्य के माध्यम से अनुभव करना चाहते हैं। यह हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों और कविता प्रेमियों के लिए भी संग्रहणीय है।

~ सत्यम सिंह बघेल

नजरिया'नजरिया' एक ऐसा बाल उपन्यास है, जो न केवल बच्चों के मन को छूता है, बल्कि समाज के हर वर्ग को एक गहरे संदेश के साथ आ...
11/05/2025

नजरिया

'नजरिया' एक ऐसा बाल उपन्यास है, जो न केवल बच्चों के मन को छूता है, बल्कि समाज के हर वर्ग को एक गहरे संदेश के साथ आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है। लेखक विजय बेशर्म जी, जो स्वयं एक शिक्षक हैं, ने अपनी संवेदनशील और सशक्त लेखनी के माध्यम से शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूल के भीतर छिपे सामाजिक भेदभाव की कड़वी सच्चाई को उजागर किया है। उनकी लेखनी में एक शिक्षक की जिम्मेदारी, संवेदना और समाज को बेहतर बनाने की प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से झलकती है।
यह उपन्यास एक स्कूल की पृष्ठभूमि में बुनी गई कहानी है, जहाँ आजादी के इतने वर्षों बाद भी जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियाँ अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। कहानी उस दौर और सामाजिक ताने-बाने को दर्शाती है, जहाँ गरीब और निचले तबके के बच्चों को एक वरिष्ठ शिक्षक की तिरछी नजर का सामना करना पड़ता है। लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमता है कि वही बच्चा, जिसे हेय दृष्टि से देखा जाता है, अपने मानवीय मूल्यों और जिम्मेदारी के बल पर उसी शिक्षक की जान बचाता है। यह कहानी नजरिए को बदलने की ताकत को रेखांकित करती है—एक ऐसा नजरिया, जो भेदभाव को मिटाकर मानवता को सर्वोपरि रखता है।

विजय बेशर्म जी की लेखनी की सबसे बड़ी खूबी है कि यह पाठक को शुरू से अंत तक बाँधे रखती है। बच्चों के लिए लिखा गया यह उपन्यास केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित करने का माध्यम भी है। 'नजरिया' हमें सिखाता है कि सच्ची शिक्षा वही है, जो हमें इंसानियत की राह दिखाए और हर बच्चे के भीतर छिपी संभावनाओं को सम्मान दे।

यह पुस्तक हर उस पाठक के लिए एक प्रेरणा है, जो यह मानता है कि छोटे-छोटे कदमों से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। 'नजरिया' केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक विचार है, एक दृष्टिकोण है, जो समाज को एक नई दिशा देने का सामर्थ्य रखता है।

विजय बेशर्म एक समर्पित शिक्षक और संवेदनशील लेखक हैं, जिनकी लेखनी में शिक्षा और समाज के प्रति उनकी गहरी समझ और जिम्मेदारी का समावेश है। 'नजरिया' उनकी इस सोच का जीवंत प्रमाण है, जो पाठकों को न केवल सोचने पर मजबूर करता है, बल्कि बदलाव की प्रेरणा भी देता है।

~ सत्यम सिंह बघेल

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 6500/- ...
11/05/2025

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...
5000/- में
100 पेज, 35 प्रतियाँ

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8500/- में
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12500 में
100 पेज, 100 प्रतियाँ

14500/- में
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1. ISBN नम्बर के साथ -
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💯 "पंखिया जनि काटऽ" (भोजपुरी काव्य संग्रह)लेखक - कनक किशोरप्रकाशक - श्री नर्मदा प्रकाशननमस्ते, साहित्य प्रेमियों और विचा...
10/05/2025

💯 "पंखिया जनि काटऽ" (भोजपुरी काव्य संग्रह)

लेखक - कनक किशोर
प्रकाशक - श्री नर्मदा प्रकाशन

नमस्ते, साहित्य प्रेमियों और विचारशील पाठकों!
"पंखिया जनि काटऽ" एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो नारी के जीवन के गहन सत्य, उसके दर्द, संघर्ष और आकांक्षाओं को व्यक्त करता है।

कनक किशोर जी की यह कृति भोजपुरी साहित्य में एक सशक्त स्वर है, जो नारी की मौन चीख, उसके बंधनों और उड़ान की चाह को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक केवल कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि एक सामाजिक विमर्श भी है, जो पुरुष प्रधान समाज की संरचना पर सवाल उठाती है और नारी के आत्मसम्मान व स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद करती है।

इस संग्रह की प्रत्येक रचना—चाहे वह "नागफनी" हो, "देह" की शृंखला हो, या "कोख" और "सोना के पिंजरा"—नारी के जीवन के विविध रंग-रूपों को चित्रित करती है। इसमें दर्द है, क्रोध है, करुणा है, और सबसे अधिक है—सशक्त होकर अपने अधिकार माँगने का साहस। लेखक ने भोजपुरी भाषा की सहजता और गहराई के साथ नारी के मन की बात को उजागर किया है, जो पाठक के हृदय की गहराइयों को छू लेता है।

"पंखिया जनि काटऽ" एक प्रतीक है—नारी की स्वतंत्रता और उड़ान का। यह पुस्तक हम सभी को इस प्रश्न से रूबरू कराती है कि क्या हम वास्तव में नारी को उसका आकाश दे पाए हैं? क्या हम उसके मन, उसकी इच्छाओं और उसके सपनों का सम्मान करते हैं? यह रचना समाज के हर वर्ग के लिए एक दर्पण है, जो हमें अपनी सोच और व्यवहार पर गहराई से विचार करने के लिए विवश करती है।

आइए, हम सब मिलकर इस काव्य यात्रा में शामिल हों, जो नारी के दर्द को बयान करती है, उसके साहस का गीत गाती है, और उसकी मुक्ति का मार्ग दिखाती है। यह पुस्तक न केवल पढ़ने योग्य है, बल्कि हर हृदय में बसने वाले सामाजिक परिवर्तन के सपने को जीवित रखने योग्य है।

श्री नर्मदा प्रकाशन के सहयोग से प्रस्तुत यह संग्रह आप सभी के समक्ष है। आशा है कि यह कृति आपके मन पर गहरी छाप छोड़ेगी और समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरित करेगी।

~ सत्यम सिंह बघेल

समीक्षा : ख्यालों की यायावरी लेखक : अरुण चट्ठा 'अरुण'प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन'ख्यालों की यायावरी'— यह शीर्षक स्वयं ...
10/05/2025

समीक्षा : ख्यालों की यायावरी

लेखक : अरुण चट्ठा 'अरुण'

प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

'ख्यालों की यायावरी'— यह शीर्षक स्वयं में एक काव्यात्मक यात्रा का आह्वान है। 'ख्याल' अर्थात् विचार, भावनाएँ और प्रेम की वे अनुभूतियाँ जो मन की गहराइयों में जन्म लेती हैं, और 'यायावरी' अर्थात् वह स्वच्छंद भटकन, जो इन ख्यालों को आत्मा की अनंत राहों पर ले जाती है। यह पुस्तक, अरुण चट्ठा 'अरुण' जी की लेखनी का वह अनमोल उपहार है, जिसमें प्रेम की आत्मिक और रूहानी परिभाषा गद्य और पद्य के माध्यम से उकेरी गई है।
अरुण जी, एक संवेदनशील कवि और वकील, अपनी रचनाओं में प्रेम को उसकी शाश्वत और पवित्र अवस्था में प्रस्तुत करते हैं। उनकी रचनाएँ प्रेम को केवल दैहिक आकर्षण तक सीमित नहीं रखतीं, बल्कि उसे आत्मा की गहराइयों से जोड़ती हैं। यह प्रेम वह है, जो मन को सुकून देता है, जीवन को अर्थ प्रदान करता है और आत्मा को रूहानी आलिंगन में बाँधता है। प्रत्येक रचना में भावों की ऐसी गहराई है, मानो लेखक ने प्रेम के हर रंग को स्वयं जिया हो और उसे शब्दों में सावधानीपूर्वक पिरोया हो।

'ख्यालों की यायावरी' की रचनाएँ पाठक को एक ऐसी यात्रा पर ले जाती हैं, जहाँ हर शब्द अंतर्मन की गहराइयों से अंकुरित हुआ प्रतीत होता है। ये शब्द न केवल भावनाओं को स्पर्श करते हैं, बल्कि उन्हें शाश्वत अनुभूति में बदल देते हैं। यह पुस्तक प्रेम के उस स्वरूप को उजागर करती है, जो जीवन का आधार है—आत्मिक, रूहानी और अनंत।

इस संग्रह के माध्यम से अरुण जी ने 'ख्यालों की यायावरी' के अर्थ को सार्थक किया है। यह पुस्तक न केवल प्रेम की गहराई को समझने का माध्यम है, बल्कि यह एक निमंत्रण है—उस यात्रा का, जहाँ ख्याल अपनी यायावरी में आत्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं। पाठकगण इस संग्रह में निश्चित ही अपने मन के किसी कोने में छिपे प्रेम को पाएँगे, जो उनकी आत्मा को सुकून और प्रेरणा देगा।

अरुण चट्ठा 'अरुण', एक कुशल वकील होने के साथ-साथ हृदय से कवि और लेखक हैं। उनकी लेखनी में प्रेम, संवेदना और जीवन के गहन दर्शन का समावेश है, जो पाठकों को आत्मिक स्तर पर छूता है। 'ख्यालों की यायावरी' उनकी संवेदनशीलता और सृजनशीलता का प्रतीक है।

~ सत्यम सिंह बघेल

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 7000/- ...
09/05/2025

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...

5000/- में
100 पेज, 35 प्रतियाँ

7000/- में
100 पेज, 50 प्रतियाँ

8500/- में
100 पेज, 70 प्रतियाँ

12500 में
100 पेज, 100 प्रतियाँ

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6. भूमिका लिखवाने एवं समीक्षा कराने के लिए हमारी टीम द्वारा पूर्ण सहयोग रहेगा।

7. पुस्तकों के साथ प्रशस्ति पत्र भी प्रदान करेंगे।

8. रॉयल्टी मूल्य का 55/% प्रदान करेंगे।

9. पुस्तक का साइज 5.5 * 8.5 रहेगा... ।

सम्पर्क : श्री नर्मदा प्रकाशन
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