Shri Narmada Prakashan

Shri Narmada Prakashan साहित्य सेवा में समर्पित

पुस्तक समीक्षा : वीणा की दोहावलीलेखिका : पूनम दुबे 'वीणा'  प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन  "वीणा की दोहावली" पूनम दुबे 'व...
28/05/2025

पुस्तक समीक्षा : वीणा की दोहावली

लेखिका : पूनम दुबे 'वीणा'

प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

"वीणा की दोहावली" पूनम दुबे 'वीणा' द्वारा रचित दोहा संग्रह है, जो उनकी छठी एकल कृति है। यह दोहा संग्रह भारतीय साहित्य की समृद्ध परंपरा को जीवंत करता है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को भावनात्मक गहराई और नैतिक मूल्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है, जो आध्यात्मिकता, प्रेम, प्रकृति, सामाजिक जागरूकता और नैतिकता जैसे विविध विषयों को छूता है।

पुस्तक में दोहों को विभिन्न विषयों जैसे गणपति उत्सव, माता शारदे, प्रेम, योग, पर्यावरण, देश प्रेम, और नारी शक्ति आदि के अंतर्गत व्यवस्थित किया गया है। संग्रह में गणपति, शिव, राम, राधा-कृष्ण, और माता दुर्गा जैसे देवी-देवताओं पर आधारित दोहे भक्ति भाव से परिपूर्ण हैं। कवयित्री ने अपने पति के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण को दोहों के माध्यम से व्यक्त किया है। "जीवन साथी" और "मनमीत" जैसे खंडों में प्रेम की स्थायी और पवित्र भावना को उकेरा है। पर्यावरण, जल संरक्षण, और नारी शक्ति जैसे विषयों पर दोहे समाज को जागृत करने का कार्य करते हैं। "नारी नारायणी" जैसे खंडों में नारी की गरिमा और शक्ति को उभारा गया है। प्रकृति के प्रति लेखिका का प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दोहों में स्पष्ट है।
पूनम दुबे 'वीणा' की लेखनी में सहजता और भावनात्मक गहराई है। दोहे पारंपरिक छंद संरचना में हैं, जो पाठकों को सहज ही बाँध लेते हैं। भाषा में सरलता और प्रवाह है, जो आम पाठक से लेकर साहित्य प्रेमी तक को आकर्षित करती है। दोहों में प्रयुक्त उपमा, रूपक और प्रतीक भारतीय काव्य की समृद्ध परंपरा को जीवंत करते हैं, जो कि रीतिकालीन शैली की याद दिलाता है, साथ ही आधुनिक संदर्भों को भी समेटता है।

"वीणा की दोहावली" साहित्य प्रेमियों, भक्ति रस के पाठकों, और सामाजिक मुद्दों पर विचार करने वालों के लिए एक प्रेरणादायी और आनंददायक अनुभव है। लेखिका को इस अनमोल रचना के लिए हार्दिक बधाई। पुस्तक हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है और इसे पढ़ना हर साहित्य प्रेमी के लिए एक सुखद अनुभव होगा।

~ सत्यम सिंह बघेल

पुस्तक समीक्षा : आधी जमीं आधा आसमांलेखक : कुलदीप सिंह खोमरेप्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशनपरिचय :आधी जमीं आधा आसमां कुलदीप...
23/05/2025

पुस्तक समीक्षा : आधी जमीं आधा आसमां
लेखक : कुलदीप सिंह खोमरे
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

परिचय :
आधी जमीं आधा आसमां कुलदीप सिंह खोमरे जी का हिन्दी काव्य संग्रह है, जिसमें मानवीय जीवन के द्वंद्वों - जमीन की सच्चाइयों और आकाश की असीमित आकांक्षाओं- को उजागर करता है। यह सामाजिक न्याय, समानता, मानवीय रिश्तों और आध्यात्मिक चिंतन के विषयों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
विषयवस्तु की गहराई :
शीर्षक आधी जमीं आधा आसमां इस संग्रह के मूल भाव को समेटता है: धरती की कठोर वास्तविकताओं और आकाश की असीम संभावनाओं के बीच संतुलन। खोमरे जी की कविताएँ सामाजिक असमानताओं जैसे जातिगत भेदभाव, गरीबी और शोषण को उजागर करती हैं, साथ ही मुक्ति और समानता की आकांक्षा को प्रेरित करती हैं। एक नया सवेरा और आजाद परिंदा है जैसी कविताएँ आशा और दृढ़ता का संदेश देती हैं, जो पाठकों को उत्पीड़न से ऊपर उठने की प्रेरणा देती हैं। वहीं, पैसे के चक्कर में और असली तस्वीर जैसी कविताएँ भौतिकवाद और समाज की उदासीनता की आलोचना करती हैं।
संग्रह में व्यक्तिगत भावनाओं, रिश्तों और बचपन की यादों का भी सुंदर चित्रण है। माँ का चेहरा और भरा आँगन जैसी कविताएँ पारिवारिक बंधनों और नॉस्टैल्जिया को कोमलता से व्यक्त करती हैं, जबकि कुछ जख्म और रिश्तों का क्या? टूटे रिश्तों और अधूरी आकांक्षाओं के दर्द को उजागर करती हैं।
शैली और काव्य कला :
खोमरे की काव्य शैली सरल किन्तु गहन है, जो पारंपरिक हिन्दी काव्य को समकालीन संवेदनाओं के साथ जोड़ती है। उनकी भाषा बोलचाल की है, जो ग्रामीण और शहरी भारत के रोजमर्रा के अनुभवों से जुड़ती है, जिससे यह व्यापक पाठकों के लिए सुलभ है। कविताओं में प्रयुक्त बिम्ब- जैसे अंबर में उड़ती पतंग या चूल्हा- जीवंत और भावपूर्ण हैं, जो अमूर्त भावनाओं को मूर्त रूप देते हैं। संग्रह की ताकत इसकी भावनात्मक सच्चाई और निराशा व आशा के बीच संतुलन में निहित
सामाजिक प्रासंगिकता :
आधी जमीं आधा आसमां की सबसे बड़ी विशेषता इसका सामाजिक न्याय पर दृढ़ फोकस है। अब और नहीं और नफरत की ज्वाला जैसी कविताएँ हाशिए पर पड़े लोगों के लिए उनके अधिकार और सम्मान की माँग करती हैं। शहर को चमक में कवि मेहनतकश वर्ग के योगदान को रेखांकित करते हुए शहरी प्रगति की सतही चमक को उजागर करते हैं।
भावनात्मक और दार्शनिक गहराई :
सामाजिक टिप्पणी के अलावा, यह संग्रह एक दार्शनिक यात्रा है। सफर और हे खुदा जैसी कविताएँ में खोमरे अस्तित्वगत सवालों और आध्यात्मिक खोज को व्यक्त करते हैं। धरती और आकाश का बार-बार आने वाला प्रतीक मानवीय सीमाओं और असीम संभावनाओं के बीच तनाव को दर्शाता है, जो पाठकों को अपने जीवन में संतुलन खोजने के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष :
आधी जमीं आधा आसमां एक प्रभावशाली काव्य संग्रह है, जो काव्यात्मक सौंदर्य को सामाजिक परिवर्तन की माँग के साथ जोड़ता है। कुलदीप सिंह खोमरे एक जनकवि के रूप में उभरते हैं, जो न केवल चुप्पी साधे लोगों को आवाज देते हैं, बल्कि मानव आत्मा की दृढ़ता का उत्सव भी मनाते हैं। इस संग्रह की भावनात्मक गहराई और सामाजिक प्रासंगिकता इसे समकालीन हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान बनाती है। यह उन पाठकों के लिए अवश्य पढ़ने योग्य है, जो ऐसी कविताओं की तलाश में हैं जो चुनौती देती हों, प्रेरित करती हों और आत्मचिंतन को प्रोत्साहित करती हों।

~ सत्यम सिंह बघेल

पुस्तक समीक्षा : 'किंजल्किनी: माल कमल अम्लान'लेखिका : डॉ. सीमा अग्रवाल  प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन  समीक्षा :  'किंजल...
21/05/2025

पुस्तक समीक्षा : 'किंजल्किनी: माल कमल अम्लान'

लेखिका : डॉ. सीमा अग्रवाल
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

समीक्षा :
'किंजल्किनी: माल कमल अम्लान' डॉ. सीमा अग्रवाल जी द्वारा रचित एक दोहा संग्रह है, जो हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा में एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह पुस्तक दोहे की विधा को न केवल जीवंत रखती है, बल्कि आधुनिक संदर्भों में इसे नवीन अर्थ और भाव प्रदान करती है। दोहा, जो अपनी संक्षिप्तता में गहन अर्थ समेटने की क्षमता के लिए जाना जाता है, इस संग्रह में एक ऐसी गागर बनकर उभरता है, जिसमें जीवन के विविध रंगों और भावनाओं का सागर समाया है।

संग्रह में दोहों को विभिन्न खंडों में वर्गीकृत किया गया है, जैसे गणेश-वंदना, शारदा-स्तुति, राम-भक्ति, प्रकृति, सामाजिक चेतना, और विविध विषय। प्रत्येक खंड अपने आप में एक स्वतंत्र काव्य-यात्रा है, जो पाठक को आध्यात्मिक, सामाजिक, और मानवीय संवेदनाओं की गहराई में ले जाती है। दोहों की भाषा सरल, प्रवाहमयी, और भावपूर्ण है, जो आम पाठक से लेकर साहित्य प्रेमी तक को आकर्षित करती है।

डॉ. सीमा अग्रवाल जी ने दोहों में परंपरागत छंद-विधान का पालन करते हुए आधुनिक संवेदनाओं को कुशलता से पिरोया है। उनके दोहे न केवल परंपरा के प्रति श्रद्धा रखते हैं, बल्कि समकालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से उठाते हैं। उदाहरण के लिए:

आध्यात्मिकता और भक्ति :
राम-भक्ति पर केंद्रित दोहे, जैसे "राम हमारी आस्था, राम अमिट विश्वास। राम सजीवन प्राण हित, राम हमारी श्वास॥" राम के प्रति अटूट श्रद्धा और उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाते हैं। ये दोहे भक्ति की सहजता और गहनता को एक साथ प्रस्तुत करते हैं।

सामाजिक चेतना :
सामाजिक विसंगतियों पर टिप्पणी करते हुए, लेखिका लिखती हैं:
"लिव इन लिव इन क्या बला, बदले सब प्रतिमान। चंद पलों की मस्तियाँ, फिर सूना वीरान॥"
यह दोहा आधुनिक जीवनशैली की क्षणभंगुरता और इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर गहरी चोट करता है।

प्रकृति और मानवता :
प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन को रेखांकित करते हुए, दोहे पर्यावरण संरक्षण और नैतिकता की बात करते हैं। जैसे:
"नीड़-माँद उजड़े सभी, बिखरे तिनका-पात। खग-मृग-मन कोसते, क्या आदम की जात॥"

शिल्प और भाषा :
डॉ. अग्रवाल की लेखनी में दोहों की पारंपरिक 13-11 मात्राओं का कड़ाई से पालन किया गया है, जो उनकी छंद-निपुणता को दर्शाता है। भाषा में हिंदी की मिठास, संस्कृतनिष्ठ शब्दों का समावेश, और लोक-जीवन की सरलता का सुंदर समन्वय है। उनके दोहे संक्षिप्त होने के बावजूद गहरे अर्थ और भावनात्मक तीव्रता से युक्त हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता :
पुस्तक में सामाजिक मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, पर्यावरण विनाश, रिश्तों की नाजुकता, और आधुनिकता की अंधी दौड़ पर तीखी टिप्पणियाँ हैं। लेखिका ने 'लिव-इन' जैसी आधुनिक प्रवृत्तियों, भौतिकवाद, और सामाजिक असमानता पर सटीक प्रहार किए हैं। साथ ही, भारतीय संस्कृति, हिंदी भाषा, और सनातन मूल्यों के प्रति गर्व और श्रद्धा उनके लेखन में स्पष्ट झलकती है।

निष्कर्ष :
'किंजल्किनी: माल कमल अम्लान' एक ऐसी कृति है, जो परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु बनाती है। डॉ. सीमा अग्रवाल जी की यह रचना हिंदी साहित्य में दोहा विधा की जीवंतता को दर्शाती है और पाठकों को आध्यात्मिक, सामाजिक, और मानवीय चेतना से जोड़ती है। यह पुस्तक न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणादायी है, जो जीवन के गहरे अर्थों को सरल शब्दों में खोजने की इच्छा रखते हैं।

~ सत्यम सिंह बघेल

पुस्तक समीक्षा : भाव भरे कुछ शब्द-माललेखक : विजयकान्त द्विवेदी  प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन,परिचय :"भाव भरे कुछ शब्द-म...
20/05/2025

पुस्तक समीक्षा : भाव भरे कुछ शब्द-माल

लेखक : विजयकान्त द्विवेदी
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन,

परिचय :
"भाव भरे कुछ शब्द-माल" विजयकान्त द्विवेदी द्वारा रचित एक हिन्दी काव्य संग्रह है, जिसमें 84 कविताएँ शामिल हैं। यह संग्रह लेखक के जीवनानुभवों, भावनाओं और समाज के प्रति उनकी संवेदनशील दृष्टि को प्रस्तुत करता है। कविताएँ विभिन्न विषयों जैसे प्रेम, भक्ति, प्रकृति, सामाजिक परिवर्तन, नारी शक्ति, और देशभक्ति को छूती हैं, जो पाठकों को भावनात्मक और वैचारिक स्तर पर प्रभावित करती हैं।

काव्य की विशेषताएँ :
विजयकान्त द्विवेदी की काव्य शैली सरल, सुगम और भावपूर्ण है। उनकी रचनाएँ छंदबद्ध और मुक्त छंद दोनों रूपों में हैं, जो उनकी काव्य-कुशलता को दर्शाती हैं। संग्रह की कविताएँ मनोभावों को सहजता से व्यक्त करती हैं, और इनमें भाषा की मधुरता, लयबद्धता और प्रसाद गुण की झलक मिलती है। लेखक ने अपनी कविताओं में परंपरागत भारतीय संस्कृति, मूल्यों और आधुनिक समाज की चुनौतियों का सुंदर समन्वय किया है।

प्रमुख विषय और कविताएँ :
1. भक्ति और आध्यात्मिकता : संग्रह की शुरुआत "श्री गणेश वंदना" से होती है, जो भक्ति भाव से परिपूर्ण है। "भक्ति गीत" और "माँ मुझको मूर्धन्य बना दो" जैसी कविताएँ भगवान और माँ के प्रति गहरी श्रद्धा और आत्मिक उन्नति की प्रार्थना को व्यक्त करती हैं। ये रचनाएँ भक्ति काव्य की परंपरा को जीवंत करती हैं।
उदाहरण : "माँ मुझको मूर्धन्य बना दो / माँ बेटे का पावन नाता / जाने जगत और विधाता।"

2. नारी शक्ति : "नारी" और "मेरी माँ एक नारी थी" जैसी कविताएँ नारी की गरिमा, शक्ति और संवेदनशीलता को रेखांकित करती हैं। लेखक नारी को केवल कोमलता का प्रतीक नहीं, बल्कि शक्ति और सृजन का आधार मानते हैं।
उदाहरण : "पथ के पत्थर को यदि नारी संवार दे / बोल पड़ेगा पत्थर यदि नारी पुकार दे।"

3. सामाजिक चेतना : "गाँव" और "शहर" जैसी कविताएँ ग्रामीण और शहरी जीवन के बदलते स्वरूप और मूल्यों के ह्रास को चित्रित करती हैं। लेखक ने सामाजिक परिवर्तनों और आधुनिकता के प्रभाव को संजीदगी से उकेरा है।
उदाहरण : "आह! अब कितने बदल गए / गाँव के भी लोग / रही नहीं मापूमियत / अब, नहीं वह संयोग।"

4. देशभक्ति और इतिहास : "शहीद" और "जोहर ज्वाला" जैसी कविताएँ देश के लिए बलिदान देने वालों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं। ये रचनाएँ इतिहास के गौरवमयी पन्नों को जीवंत करती हैं।
उदाहरण : "लेखनी, नमन कर / अमर शहीदों को / जिन्दगानी जो / मातृभूमि पर लूटा गए।"

5. प्रकृति और प्रेम : "मुम्बई की बरसात", "सावन माना", और "प्रणय के गीत क्या गाऊँ" जैसी कविताएँ प्रकृति की सुंदरता और प्रेम की कोमल भावनाओं को उकेरती हैं। लेखक ने प्रेम को आधुनिक संदर्भों में भी प्रस्तुत किया है, जो पाठकों को आकर्षित करता है।

सशक्त पक्ष :
भावनात्मक गहराई : कविताएँ पाठक के हृदय को छूती हैं, चाहे वह माँ के प्रति श्रद्धा हो या देश के प्रति प्रेम।
भाषा की सरलता : लेखक की भाषा सहज और प्रवाहमयी है, जो सभी वर्गों के पाठकों के लिए समझने योग्य है।
विविधता : संग्रह में भक्ति, प्रेम, सामाजिक चेतना, और देशभक्ति जैसे विविध विषयों का समावेश इसे व्यापक बनाता है।
सांस्कृतिक जुड़ाव : कविताएँ भारतीय संस्कृति और परंपराओं से गहराई से जुड़ी हैं, जो पाठकों में गर्व और आत्मीयता का भाव जगाती हैं।

निष्कर्ष :
"भाव भरे कुछ शब्द-माल" एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु का काम करता है। विजयकान्त द्विवेदी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न रंगों को शब्दों में पिरोया है। यह संग्रह उन पाठकों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है, जो हिन्दी साहित्य, भक्ति और सामाजिक चेतना से प्रेरित काव्य को पसंद करते हैं। लेखक की भावनात्मक गहराई और सहज अभिव्यक्ति इस संग्रह को एक यादगार पढ़ने का अनुभव बनाती है।

~ सत्यम सिंह बघेल

समीक्षा : 'भाव सुमन' (छंद संग्रह)लेखिका : मधु गुप्ता 'महक'प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन'भाव सुमन' मधु गुप्ता 'महक' द्वार...
19/05/2025

समीक्षा : 'भाव सुमन' (छंद संग्रह)

लेखिका : मधु गुप्ता 'महक'

प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

'भाव सुमन' मधु गुप्ता 'महक' द्वारा रचित एक काव्य संग्रह है, जो कुण्डलिया, घनाक्षरी, और दोहा जैसे पारंपरिक हिंदी छंदों की त्रिवेणी के रूप में प्रस्तुत जो प्रकृति, धर्म, संस्कृति, सामाजिक मूल्य, और मानवीय भावनाओं जैसे विविध विषयों को समेटती हैं।

कुण्डलिया : गणेश वंदना, रामायण, पर्यावरण, रक्षाबंधन, तुलसी, परशुराम आदि। ये कविताएँ भक्ति, प्रकृति, और सामाजिक मूल्यों को उजागर करती हैं। उदाहरण के लिए, "गणेश वंदना" में भक्ति और आस्था का भाव है:
.
सुमिरन करते आपको, श्री गणपति गजराज।
विपदा सबकी दूर हो, रखिए सब की लाज॥
घनाक्षरी : मकर संक्रांति, होली, वसंत ऋतु, शिव स्तुति, गंगा स्तुति आदि। ये रचनाएँ उत्सवों, ऋतुओं, और आध्यात्मिकता को जीवंत करती हैं। जैसे, "होली" में उत्सव का रंग बिखरता है:
.
न मारो रे पिचकारी, श्याम सुन्दर विहारी,
तनम न सवे भीगे, चोली न भिगाइए॥
.
दोहा : शारदे वंदना, जीवन मूल्य, और सामाजिक संदेश। जैसे:
.
महक कहे संसार में, सुख-दुःख रहते संग।
अच्छा हो व्यवहार तो, कभी न होना तंग॥
.
पुस्तक की विशेषताएँ :
1. भाषा और शैली : मधु गुप्ता की भाषा सरल, सहज, और प्रवाहमयी है, जो आम पाठक से लेकर साहित्य प्रेमी तक को आकर्षित करती है। छंदों का नियमबद्ध प्रयोग उनकी काव्य-कुशलता को दर्शाता है।
2. विषय वैविध्य : काव्य संग्रह में भक्ति, प्रकृति, सामाजिक समस्याएँ, और उत्सवों का समन्वय है, जो इसे व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
3. सांस्कृतिक मूल्य : छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और सनातन धर्म के प्रति लेखिका की निष्ठा रचनाओं में स्पष्ट है। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व और सम्मान को प्रेरित करती है।
4. प्रेरणादायी संदेश : कविताएँ न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी देती हैं।

प्रशंसा और समर्थन :
पुस्तक में कई साहित्यकारों और विद्वानों के शुभकामना संदेश शामिल हैं, जो इसकी गुणवत्ता को रेखांकित करते हैं। कृष्ण मोहन निगम, नीलम सोनी, डॉ. उमेश कुमार पांडेय, और राजेश पांडेय जैसे व्यक्तियों ने लेखिका की रचनात्मकता और सामाजिक प्रभाव की सराहना की है।

निष्कर्ष :
'भाव सुमन' हिंदी साहित्य में एक सुंदर और प्रेरणादायी योगदान है, जो मधु गुप्ता 'महक' की संवेदनशीलता, साहित्यिक प्रतिभा, और सांस्कृतिक निष्ठा को दर्शाता है। यह संग्रह न केवल काव्य प्रेमियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रासंगिक है जो जीवन के सूक्ष्म भावों और भारतीय संस्कृति की गहराई को समझना चाहते हैं। यह पुस्तक पाठकों के मन को छूती है और हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

~ सत्यम सिंह बघेल

श्री नर्मदा प्रकाशन से... आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 6500...
19/05/2025

श्री नर्मदा प्रकाशन से... आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ...

5000/- में
100 पेज, 35 प्रतियाँ

6500/- में
100 पेज, 50 प्रतियाँ

8500/- में
100 पेज, 70 प्रतियाँ

12500 में
100 पेज, 100 प्रतियाँ

14500/- में
100 पेज, 130 प्रतियाँ

1. ISBN नम्बर के साथ -
2. आकर्षक कवर पृष्ठ अच्छी क्वालिटी के साथ
3. इनर बुक 80 GSM पेपर क्वालिटी
4. शाब्दिक/मात्रिक वर्तनी शुध्द कराने के पश्चात प्रकाशन
5. सोशलमीडिया एवं डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से प्रचार-प्रसार
6. भूमिका लिखवाने एवं समीक्षा कराने के लिए हमारी टीम द्वारा पूर्ण सहयोग रहेगा।
7. पुस्तकों के साथ प्रशस्ति पत्र भी प्रदान करेंगे।
8. रॉयल्टी भी प्रदान करेंगे।
9. पुस्तक का साइज 5.5 * 8.5 रहेगा... ।

सम्पर्क : श्री नर्मदा प्रकाशन
Mob. No. 6391393776, 9335688424
Email : [email protected]



#हिन्दीसाहित्य

धन्यवाद 🙏❤

पुस्तक समीक्षा : काव्यालोकलेखक : आलोक इलाहाबादी  प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन  परिचय :"काव्यालोक" आलोक इलाहाबादी का प्र...
18/05/2025

पुस्तक समीक्षा : काव्यालोक

लेखक : आलोक इलाहाबादी

प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

परिचय :

"काव्यालोक" आलोक इलाहाबादी का प्रथम काव्य संग्रह है, जिसमें उनकी 27 रचनाएँ शामिल हैं। यह संग्रह हिंदी साहित्य में एक युवा कवि की संवेदनशीलता, वैचारिक गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति की बेहतरीन प्रस्तुति है। आलोक, जो पेशे से एक अधिवक्ता हैं, अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के विविध रंगों—प्रेम, विरह, माता-पिता के प्रति श्रद्धा, सामाजिक चेतना और आत्मचिंतन—को सहज और प्रभावशाली ढंग से उकेरते हैं।

विषयवस्तु और संरचना :

"काव्यालोक" में कविताएँ, मुक्तक और शेर शामिल हैं, जो विभिन्न भावनाओं और जीवन के अनुभवों को समेटे हुए हैं। संग्रह की रचनाएँ निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर केंद्रित हैं:

1. प्रेम और विरह : कविताएँ जैसे "हम तुम्हें चाहते हैं", "तेरी गैरमौजूदगी में", और "पहली मोहब्बत" प्रेम की कोमलता, उत्साह और जुदाई के दर्द को व्यक्त करती हैं। ये रचनाएँ पाठक के हृदय को छूती हैं क्योंकि इनमें व्यक्त भावनाएँ सार्वभौमिक और आत्मकथात्मक हैं।

2. माता-पिता के प्रति श्रद्धा : "बूढ़े माँ-बाप" और "पिता ने हिम्मत दी माता ने प्यार दिया" जैसी कविताएँ माता-पिता के त्याग, प्रेम और जीवन में उनके महत्व को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। ये रचनाएँ आधुनिक समाज में रिश्तों की बदलती प्रकृति पर भी टिप्पणी करती हैं।

3. प्रेरणा और संघर्ष : "बस चलते जाना है" और "पहाड़ों को चीरकर" जैसी रचनाएँ जीवन के संघर्षों, आत्मविश्वास और दृढ़ता की प्रेरणा देती हैं। ये कविताएँ विशेष रूप से युवाओं के लिए प्रासंगिक हैं, जो छोटी-छोटी असफलताओं से हताश हो जाते हैं।

4. सामाजिक चेतना : कुछ रचनाएँ, जैसे "ऐ नारी उठ अब तुझे लड़ना होगा", सामाजिक मुद्दों पर विचार करती हैं और नारी सशक्तीकरण जैसे विषयों को उजागर करती हैं।

भाषा और शैली :

आलोक की लेखन शैली सहज, सरल और प्रवाहमयी है। उन्होंने जटिल शब्दावली या अलंकारों का सहारा लेने के बजाय रोजमर्रा की भाषा में गहरे भावों को व्यक्त किया है। उनकी कविताएँ आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई हैं, जो पाठक को कवि के अनुभवों और भावनाओं से सीधे जोड़ती हैं। उदाहरण के लिए, "तेरी गैरमौजूदगी में" में वे लिखते हैं:

"तेरी गैरमौजूदगी में सारे संसार की आवाज लिखता हूँ।"

यह पंक्ति प्रेम और विरह के दर्द को सादगी के साथ व्यक्त करती है।

प्रमुख विशेषताएँ :

1. संवेदनशीलता : आलोक की कविताएँ भावनात्मक गहराई से भरी हैं। चाहे वह प्रेम हो, माता-पिता के प्रति कृतज्ञता हो, या जीवन के संघर्षों का चित्रण, उनकी रचनाएँ पाठक के मन को उद्वेलित करती हैं।

2. प्रासंगिकता : संग्रह की कई कविताएँ आधुनिक समाज की चुनौतियों और रिश्तों की बदलती गतिशीलता को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, "बूढ़े माँ-बाप" में वे माता-पिता के प्रति उपेक्षा की भावना को मार्मिक ढंग से उजागर करते हैं।

3. प्रेरणादायी स्वर : कविताएँ न केवल भावनाओं को व्यक्त करती हैं, बल्कि पाठकों को जीवन में आगे बढ़ने, चुनौतियों का सामना करने और रिश्तों को महत्व देने की प्रेरणा भी देती हैं।

निष्कर्ष :

"काव्यालोक" एक युवा कवि की संवेदनशील और प्रेरणादायी रचनाओं का संग्रह है, जो हिंदी काव्य साहित्य में एक नया स्वर लाता है। आलोक इलाहाबादी की यह पहली कृति उनकी रचनात्मकता, भावनात्मक गहराई और सामाजिक चेतना का परिचय देती है। यह संग्रह उन पाठकों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है जो सहज भाषा में गहरे भावों और जीवन के विविध रंगों को अनुभव करना चाहते हैं। यह पुस्तक एक उभरते कवि की प्रतिभा का प्रतीक है और हिंदी साहित्य में उनकी भविष्य की रचनाओं के लिए उत्सुकता जगाती है।

~ सत्यम सिंह बघेल

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 6500/- ...
18/05/2025

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5000/- में
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3. इनर बुक 80 GSM पेपर क्वालिटी
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7. पुस्तकों के साथ प्रशस्ति पत्र भी प्रदान करेंगे।
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पुस्तक ऑर्डर के लिए अमेजन पर उपलब्ध हैलेखक : डॉ. जशभाई पटेलप्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशनKhalihan Mein Uge Suraj, Hindi N...
17/05/2025

पुस्तक ऑर्डर के लिए अमेजन पर उपलब्ध है

लेखक : डॉ. जशभाई पटेल
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

Khalihan Mein Uge Suraj, Hindi Novel by Dr. Jashbhai Patel 'Sangharsh'

'Khalihan Mein Uge Suraj' (The Sun Rising in the Threshing Field) is a compelling Hindi novel by Dr. Jashbhai Patel 'Sangharsh' that weaves together the intricate tapestry of rural life and family dynamics. This masterfully crafted narrative explores the complex relationship between two brothers ...

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...5000/- में100 पेज, 35 प्रतियाँ 6500/- ...
17/05/2025

आपकी अपनी एकल पुस्तक प्रकाशित कराएँ सारी सुविधाओं के साथ श्री नर्मदा प्रकाशन से...

5000/- में
100 पेज, 35 प्रतियाँ

6500/- में
100 पेज, 50 प्रतियाँ

8500/- में
100 पेज, 70 प्रतियाँ

12500 में
100 पेज, 100 प्रतियाँ

14500/- में
100 पेज, 130 प्रतियाँ

1. ISBN नम्बर के साथ -
2. आकर्षक कवर पृष्ठ अच्छी क्वालिटी के साथ
3. इनर बुक 80 GSM पेपर क्वालिटी
4. शाब्दिक/मात्रिक वर्तनी शुध्द कराने के पश्चात प्रकाशन
5. सोशलमीडिया एवं डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से प्रचार-प्रसार
6. भूमिका लिखवाने एवं समीक्षा कराने के लिए हमारी टीम द्वारा पूर्ण सहयोग रहेगा।
7. पुस्तकों के साथ प्रशस्ति पत्र भी प्रदान करेंगे।
8. रॉयल्टी भी प्रदान करेंगे।
9. पुस्तक का साइज 5.5 * 8.5 रहेगा... ।

सम्पर्क : श्री नर्मदा प्रकाशन
Mob. No. 6391393776, 9335688424
Email : [email protected]





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पुस्तक बिक्री हेतु अमेजन पर उपलब्ध है....!पंखिया जनि काटऽ (काव्य संग्रह)लेखक : कनक किशोरप्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन
16/05/2025

पुस्तक बिक्री हेतु अमेजन पर उपलब्ध है....!

पंखिया जनि काटऽ (काव्य संग्रह)
लेखक : कनक किशोर
प्रकाशक : श्री नर्मदा प्रकाशन

Pankhiya Jani Kata" is a powerful collection of Bhojpuri poetry that delves deep into the essence of women's lives, their struggles, and aspirations. This masterfully crafted anthology by Kanak Kishor presents a compelling social commentary through verses that explore various facets of feminine e...

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