15/07/2025
जब हुकूमतों के नमक-ख्वार ही मज़हब के आलिम बन जाते हैं [बनाये जाते हैं] क्यूंकि हुकूमत को मालुम है, क़ानून की सख्ती के अलावा, मज़हब का लीडर भी एक जरिया है अवाम को काबू में करने का और उसको हुकूमत भी सेफ्टी-वॉल्व की तरह इस्तेमाल करती है. लो पैसा, ऐश से रहो, बस जिस दिन ज़रुरत होगी, तुम्हें इस्तेमाल कर लेंगे, बार बार नहीं करेंगे, साल दो साल में एक बार करेंगे, ताकि क़ौम में भी तुम्हारी वक़त बनी रहे, आखिर तभी तो तुम काम आओगे और ऐसे एक दो नहीं, बहुत सारे तैयार किये जाते हैं
फ़िरक़े पर झगड़ने वाले बदबख्तों, जब फिलिस्तीन में मां बाप अपने बच्चों की जिस्म के टुकड़े ढूंढ कर तकफीन की कोशिश करते हैं तुम बर्रेसग़ीर में वही लानती हरकतें करते हो और आज तुम जिन अस्लाफ का नाम लेते हो, अगर हिम्मत है तो जिस तरह की रकीक हरकतों का मुज़ाहरा कर रहे हो, पहले अपने सारे अहम् सेंटर्स में किसी एक से भी, और टॉप जगहों में से कहीं एक से, इस पर फतवा दिलवा दो, और फतवा तो क्या सिर्फ बयान दे दो. तुम में ये हिम्मत नहीं और फ़िरक़ा परस्ती में डूबे हो
और दरबारी जब जुब्बा ओ दस्तार, इत्र से महकते कपड़े पहन कर बड़ी गाड़ियों से उतरें और उनकी फ़िरक़ापरस्ती हो या दरबारी हुक्म की पासबानी क्यूंकि उनसे मुखालफत जुर्म है. इनके सफ़ेद और शफ़्फ़ाफ़ कपड़ों से गाज़ा के मासूमों का लहू टपक रहा है. न इनमें हिम्मत है और न इस्लाम या किसी शख्सियत से मोहब्बत, ये बस बैठाये गए हैं
ये तब चुप रहते हैं जब एक छोटा सा मुस्लिम मुल्क सूडान में मुस्लिम जेनोसाइड में शामिल होता है, कई कई मुल्कों में वह मुसलमानों का खून बहाता है, ये मज़हब की रूह से ही अवाम को धोका दे कर दूर ले जाते हैं, अहम तरीन फ़रीज़े और अहकाम को चालाकी से ट्रैक चेंज कर अवाम को डायवर्ट करना, और इनके पिछलग्गू का ये हाल है की हमारे इस आदमी से इख्तिलाफ न करना, चाहे वह मक्कार हो क्यूंकि वह 'उलमा' में से है, अच्छा, हक़ कब से आलिम से टकराने लगा?
और मरवानी या दरबारी क्या उम्मत को मज़हब सिखाएंगे? ऐसे ऐसे नक़ाब उतरे हैं और उतर रहे हैं, याद रखियेगा बस, अब वह दौर नहीं रहा कि चुप रहिये, हक़ शिनासी और हक़ गोई और हक़ परस्ती की अहमियत है....
फ़िरक़े पर झगड़ने वाले बदबख्तों, जब फिलिस्तीन में मां बाप अपने बच्चों की जिस्म के टुकड़े ढूंढ कर तकफीन की कोशिश करते हैं तुम बर्रेसग़ीर में वही लानती हरकतें करते हो और आज तुम जिन अस्लाफ का नाम लेते हो
अगर हिम्मत है तो जिस तरह की रकीक हरकतों का मुज़ाहरा कर रहे हो, पहले अपने सारे अहम् सेंटर्स में किसी एक से भी, और तीनों अहम फ़िरक़ों की टॉप जगहों में से कहीं एक से, इस पर फतवा दिलवा दो, और फतवा तो क्या सिर्फ बयान दे दो. तुम में ये हिम्मत नहीं और फ़िरक़ा परस्ती में डूबे हो...
..जिन हाकिमों को अपना समझते हो, वह कमज़ोर नहीं हैं, हर साल करोड़ों डॉलर के हथियार खरीदते हैं, यमन में क़त्ल आम करते हैं तो कभी क़तर का ब्लॉकेड करते हैं, कभी सूडान में मुसलमानों की ही नस्लकुशी में लगे, और कोई आलिम नहीं बोलता, एक छोटा मगर अमीर मुल्क आधा दर्जन मुस्लिम मुल्कों में शोरिशें करवाता है और तुम्हारी जुबां पर रियाल या दिरहम लटक रहे हैं, और न इन हाकिमों का मुहम्मद (स) के इस्लाम से कोई वास्ता नज़र आता है
है हिम्मत तो जवाब दो कि, 'फिलिस्तीन के हैबतनाक क़त्ल आम और तक़रीबन दो साल तक एक लाख मुसलमानों के खून से ज़मीन सुर्ख होने के बाद भी, डिप्लोमेसी और तेल ही नहीं, हर तरह के असरात और ताक़त होने के बावजूद और इतना असर और वसाएल होने के बाद भी कि वह ज़ुल्म रुकवा सकते थे
ज़ुल्म रुकवाने की कोई कोशिश नहीं की, इन फलां और फलां हुक्मरान से बरात करना कैसा है और इन को आम मुसलमान के दुःख और तकलीफ में कोई वाज़ेह एक़दाम न करने पर, उम्मा का इन पर लानत और इनसे दूरी इख्तियार करने और इनके क़ौल और अमल को इस्लाम के उसूलों और हुब्बे ईमानी के ऐन मुनाफि जानते हुए, उम्मत का इन पर शक करना जाएज़ है या नहीं'.
अब जवाब दीजिये, 'हाँ' कहिये या ज़रा गोलमोल सही, एक आवाज़ तो निकालिये, जब कभी आप सब कहते हैं की आप सब के अस्लाफ क़ुर्बानियां देते थे, तो ज़रा अब एक बयान ही दे दो, पूरी इस्लामी दुनिया के जो अहम् तरीन इदारे हैं उनमें कहीं से एक आवाज़ उठे तो शर्मिंदगी, ज़लालत और पब्लिक ओपीनियन की वजह से सही, कुछ करें, वरना खुले तौर पर इस्राईल को मदद हर तरह सप्लाइज जाने देना और कोई ब्लॉकेड न लगाना साबित करता है ये की ये ज़ालिम के साथ हैं.
जब मज़हब को अपने अपने 'मठ' और अपनी अपनी 'पीठ' में बाँट लिया और एक एक मठ या पीठ के चौधरी बने बैठे हो, तो बोलो, फ़िरक़े से मोहब्बत और मज़हब से अदावत, अब तो मुनाफ़िक़ों पर असली फतवा उम्मत ही लगाएगी
अभी एक दिन पहले बच्चों का मिसाइल हमले में क़त्ल, पानी और खाना बांटते वक़्त गोलियां और हमले में मौतें, इस पर भी चुप्पी और ख़ामोशी, तुम्हारा किरदार तो तुम्हारे अमल से आज साबित है, और ये इतना लिखा जाएगा की हर मुनाफ़िक़ के मुंह से उसका मुखौटा उतारने की हिम्मत इस क़ौम में आये, और यहां खबीस बैठे फ़िरके की बात करते हैं, यही करते करते इस्लाम के दायरे के बाहर जा कर भी फ़िरक़ा फ़िरक़ा करते रहना
ایک فتوی چاہیئے کہ جن عرب ممالک کے حاکموں کی اسرائیل کو مدد اور غزہ میں شیر خوار بچوں کے قتل عام، اور ان حالات کی روشنی میں ان سے مسلمان، برات کا اعلان کرنا درست ہے، ابھی پھر میزائل حملے
میں بچے مارے گئے ہیں، ذرا اپنی درسگاہ یا ادارے جو دن رات فتوے دیتے ہیں، ان سے یہھی جواب دلوا دیجیئگا، جنگ آزادی میں ہمت دکھانے والوں کے وارث اگر ایک حاکم پر بھی
ذرا کہہ دیں تو شاید کچھ غیرت ایمانی جاگے اور شرم آئے تو یہ ممالک اتنی طاقت رکھتے ہیں کہ تیل ہو یا ڈپلومیسی ہی نہیں، دوسرے طریقے سے بھی معصوموں کا قتل و خون رکوا سکتے ہیں، مگر وہ تو سپلائیز ہں روکتے، ہمت کرکے بیان ہی دلوا دیجئے، فتوی نہ سہی، کہ مسلمان اب ان کے کردار کی وجہ سے ان سے دوری اختیار کریں۔۔۔۔ویسے میں نا شیعہ ہوں اور نہ آپکا مخالف، مگر یہ ثابت ہے کہ مکر کی جڑیں بہت گہری ہیں، پہلے محمد ص کے لائے مذہب پر عمل کیجئے اور محمد ص کی مانیے، صحابہ کی محبت کے دعوے سب ڈھونگ ہی لگتے ہیں، ایسے حالات میں جو قوم آپسی فرقہ پرستی سے باز نہیں آ رہی، اور خوب چہرے و کردار سامنے آ رہے ہیں۔ کیا پرائریٹیڈ ہونا چاہیئے، اور کس پر بول رہے ہیں آپ۔۔۔