27/07/2025
मल्चिंग तकनीक अपनाएं किसान, खेती के लिए है वरदान
आज के समय में जब रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव साफ़ दिखाई दे रहे हैं, ऐसे में किसान भाइयों का झुकाव तेजी से जैविक खेती की ओर बढ़ रहा है। लेकिन जैविक खेती को सफल और लाभकारी बनाने के लिए सिर्फ उर्वरकों और कीटनाशकों को बदलना ही काफी नहीं होता, बल्कि खेत की मिट्टी की नमी, संरचना और पोषण संतुलन बनाए रखना भी उतना ही जरूरी होता है।
इसी कड़ी में, एक पुरानी लेकिन आज की परिस्थितियों में बेहद उपयोगी तकनीक का नाम है, मल्चिंग तकनीक। यह तकनीक न सिर्फ मिट्टी की रक्षा करती है, बल्कि उत्पादन, पोषण और जल-संरक्षण के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। आइए इसे विस्तार से समझें।
🔸 मल्चिंग तकनीक क्या है?
मल्चिंग तकनीक में खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह को एक आवरण (कवर) से ढक दिया जाता है। यह आवरण मिट्टी को सीधे सूर्य की गर्मी, वर्षा के कटाव, खरपतवार और नमी के वाष्पीकरण से बचाता है। यह आवरण जैविक (प्राकृतिक) और अजैविक (कृत्रिम) दोनों प्रकार का हो सकता है।
🔸 मल्चिंग के प्रकार:
1) जैविक मल्च
• सूखी घास
• फसल अवशेष
• भूसा
• पत्तियाँ (नीम, बबूल आदि)
• नारियल की भूसी
• लकड़ी की छाल
• कम्पोस्ट या खाद
2) अजैविक मल्च
• प्लास्टिक मल्च शीट (काली, चांदी-काली)
• बायोडिग्रेडेबल फिल्म
• रबर ग्रेन्यूल मल्च
• फैब्रिक शीट
✅ जैविक खेती में मल्चिंग के लाभ:
🔸 नमी संरक्षण: मिट्टी से पानी के वाष्पीकरण को रोकता है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।
🔸 खरपतवार नियंत्रण: मल्च खरपतवार को प्रकाश से वंचित करता है, जिससे उनका विकास रुकता है।
🔸 पौधों की सुरक्षा: मिट्टी अधिक समय तक ठंडी रहती है, जड़ों को गर्मी से सुरक्षा मिलती है।
🔸 अंकुरण और वृद्धि में सहायता: बीज जल्दी अंकुरित होते हैं और पौधों की जड़ें गहरी और मजबूत बनती हैं।
🔸 उर्वरक और कीटनाशक की खपत कम: जैविक संतुलन बेहतर रहता है, जिससे अतिरिक्त रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती।
🔸 उत्पादन में बढ़ोत्तरी: फूल और फल की संख्या और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं।
🧠 किस फसल में कौन-सा मल्च?
🔸 टमाटर, मिर्च - काली प्लास्टिक मल्च
🔸 लौकी, खीरा - सूखी घास, नारियल की भूसी
🔸 बैंगन, भिंडी - फसल अवशेष, पत्तियाँ
🔸 आलू, प्याज - भूसा, जैविक कम्पोस्ट
🌦️ जलवायु अनुसार मल्चिंग:
🔹 शुष्क क्षेत्र: जैविक मल्च नमी बनाए रखने में अत्यधिक सहायक।
🔹 वर्षा क्षेत्र: अजैविक मल्च से जल कटाव और खरपतवार को रोका जा सकता है।
🔹 सर्द क्षेत्र: काली प्लास्टिक मल्च से मिट्टी की गर्मी बनाए रखना आसान।
⚠️ सावधानियाँ:
🔹 जैविक मल्च डालने के बाद नाइट्रोजन की कमी हो सकती है, इसलिए गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट देना आवश्यक है।
🔹 प्लास्टिक मल्च के उपयोग में जल निकासी व्यवस्था का ध्यान रखें।
🔹 गीले मौसम में मल्च बहुत गाढ़ा न लगाएं, इससे फंगस लगने की संभावना रहती है।
💧 मल्चिंग + ड्रिप सिंचाई = आदर्श संयोजन:
अगर मल्चिंग को ड्रिप इरिगेशन तकनीक से जोड़ा जाए तो
🔹 पानी की 50–70% तक बचत,
🔹 पौधों को जड़ से पोषण मिलना,
🔹 उत्पादन में 30–60% तक वृद्धि जैसे फायदे देखे गए हैं।
🔚 निष्कर्ष:
मल्चिंग तकनीक आज के समय में कम लागत, अधिक लाभ और स्थायी जैविक खेती का आधार बन चुकी है। यह पर्यावरण के अनुकूल, पोषण-संरक्षक और उत्पादन-वर्धक तकनीक हर छोटे-बड़े किसान को अपनानी चाहिए।
🔖 सुझाव:
• शुरुआत छोटे खेत से करें
• स्थानीय उपलब्ध मल्च का ही चयन करें
• जैविक खाद के साथ मल्चिंग का प्रयोग करें
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