Kashana times

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04/04/2025

इतिहास और आज का आईना: हाथियों की फौज से वक्फ बिल तक

अब्रहा ने काबा को ढहाने का फैसला किया और अपनी सेना के साथ मक्का की ओर बढ़ा। उसकी सेना में "महमूद" नाम का एक विशाल हाथी भी शामिल था। मक्का के निकट "मुग़म्मस" नामक स्थान पर उसने पड़ाव डाला। फिर उसने काबा के संरक्षक हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब से मुलाकात की और धमकी दी:

"मैं काबा को ढहा दूँगा!"

अब्दुल मुत्तलिब ने शांत भाव से उत्तर दिया:
"काबा का मालिक अल्लाह है, वही इसकी हिफाजत करेगा।"

उन्होंने केवल अपने ऊँटों की वापसी की माँग की और वापस लौट गए। जब अब्रहा की सेना काबा पर हमला करने आगे बढ़ी, तो अल्लाह ने अबाबील (छोटे परिंदों) के झुंड भेजे, जिन्होंने सिज्जील (पकी हुई मिट्टी के पत्थर) बरसाए। ये पत्थर जिस पर भी गिरे, वह नष्ट हो गया। अब्रहा की पूरी सेना तबाह हो गई, और वह स्वयं भी मारा गया।

कुरान (सूरह अल-फील) में अल्लाह फरमाता है:

"क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे रब ने हाथी वालों के साथ क्या किया? उसने उनकी चाल को नाकामयाब कर दिया और उन पर झुंड के झुंड परिंदे भेजे, जो उन पर पक्की मिट्टी के पत्थर मारते थे।" (कुरान 105:1-5)

यह घटना अल्लाह की ताकत और तकब्बुर (अहंकार) के खात्मे की सबसे बड़ी मिसाल है।

मौजूदा दौर और वक्फ बिल

आज के दौर में वक्फ बिल पास हो चुका है, जिससे लोग असमंजस और बेचैनी का शिकार हैं। कई सवाल कौम के सामने हैं, लेकिन उनके विरोध को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। इस्लाम के अनुसार, वक्फ अल्लाह की संपत्ति होती है और वही उसका असली मालिक है।

जिस तरह "काबा का मालिक अल्लाह है, वही इसकी हिफाजत करेगा," उसी तरह अल्लाह अपने बंदों की भी हिफाजत करेगा।

फिर चिंता कैसी? ग़म किस बात का? अल्लाह जिससे चाहता है, काम ले लेता है!

आबिद मोहम्मद खान✍🏻
कशाना टाइम्स, भोपाल

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा: प्रशासन की छूट, पब्लिक की परेशानीकुछ ही दिन पहले तक, भोपाल की रातों का एक अलग ही मंजर था। दुकान...
17/03/2025

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा: प्रशासन की छूट, पब्लिक की परेशानी

कुछ ही दिन पहले तक, भोपाल की रातों का एक अलग ही मंजर था। दुकानों के जल्दी बंद होने से सड़कों पर सन्नाटा था, अपराध का ग्राफ गिरा हुआ था, और ठेलों-ठेलों पर प्रशासन की सख्त निगरानी थी। लोगों ने महसूस किया कि यह सख्ती उनके लिए कितनी फायदेमंद थी—सुरक्षित गलियां, शांत माहौल और एक अनुशासित जीवनशैली। लेकिन जैसे ही प्रशासन ने इस नियम में ढील दी, हालात तेजी से बदलने लगे।

रातों में बढ़ता अपराध: एक चिंताजनक स्थिति

पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं पर नज़र डालें तो यह छूट अपराधियों के लिए 'स्वर्ण समय' बन चुकी है—

गांधी नगर थाना क्षेत्र: अदनान नामक युवक की चाकू मारकर हत्या,छोला थाना सरेआम तलवारबाजी,तलैया थाना आदिल नामक युवक की हत्या,मंगलवारा पड़ोसियों के बीच तलवारें चलने की वारदात रातों में बाइकर्स गैंग आधी रात को सर पर कफ़न बांधे, तेज़ रफ्तार में बाइकर्स का आतंक।
इन घटनाओं के अलावा भी कई छोटी-मोटी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो दर्शाती हैं कि अपराधियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं।
प्रशासन की छूट: सुविधा या परेशानी?
शहर में रमज़ान का पाक महीना चल रहा है, होली शांतिपूर्ण तरीके से मनाई गई, और अब रंग पंचमी का उल्लास और ईद की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। ऐसे समय में प्रशासन की यह छूट आम जनता के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं।
याद रखें, ज़िंदगी अनमोल है ! रातों में अपनी जान, माल और सेहत को जोखिम में डालकर किसी भी तरह का नुकसान न उठाएं। व्यापार की छूट का सही उपयोग करें, लेकिन सुरक्षा के साथ समझौता न करें। प्रशासन को भी चाहिए कि वह जनता की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए। क्योंकि ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा!
आबिद मोहम्मद खान ✍🏻कशाना टाइम्स

07/03/2025

✨अजब मौलवी के गजब फतवे✨
🏃‍♂️मोहम्मद शमी के रोज़े पर सवाल,
इस्लामी रियायत को किया नजरअंदाज़

🏏भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी को लेकर बरेलवी मौलवी के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। मौलवी साहब ने शमी पर यह इल्ज़ाम लगाया कि उन्होंने क्रिकेट ग्राउंड में खड़े होकर सॉफ्ट ड्रिंक पीते हुए रोज़े की खिलाफ़वर्जी की है। इसे गुनाह करार देते हुए मौलवी ने सख्त प्रतिक्रिया दी। लेकिन सवाल ये है — क्या मौलवी साहब को इस्लामी रियायतों का इल्म है ❓

क्या है पूरा मामला ❓
मोहम्मद शमी इस वक्त भारत से बाहर दुबई में चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय टीम का हिस्सा हैं। वहां वो अपने देश के लिए खेल रहे हैं और सफर में हैं। इस्लाम में सफर के दौरान रोज़ा न रखने की रियायत दी गई है, जिसे अल्लाह की रहमत माना गया है।
हदीसें क्या कहती हैं ❓
इस्लाम में सफर के दौरान रोज़ा छोड़ने की पूरी इजाज़त है। यह कोई गुनाह नहीं, बल्कि अल्लाह की ओर से दी गई आसानी है। कई हदीसें इस बात को तस्दीक करती हैं:
• अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
"अल्लाह तआला को यह पसंद है कि उसकी दी गई रियायतों को अपनाया जाए, जैसे उसे उसके हुक्मों की पैरवी पसंद है।"
(सुनन इब्ने माजा: 1666)
• अदी बिन हातिम (रज़ि.) से रिवायत है:
"सफर में रोज़ा न रखना अल्लाह की दी हुई एक नेमत है, जिसे कबूल करना बेहतर है।"
(सहीह मुस्लिम: 1121)
• जैबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि.) फरमाते हैं:
"सफर में रोज़ा न रखना अल्लाह की एक रियायत है, जिसे अपनाना बेहतर है।"
(सहीह मुस्लिम: 1115)
• अनस बिन मालिक (रज़ि.) फरमाते हैं:
"रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ सफर में कुछ लोग रोज़ा रखते थे और कुछ नहीं रखते थे, और नबी (ﷺ) ने किसी पर ऐतराज़ नहीं किया।"
(सहीह बुखारी: 1947)
🏏मोहम्मद शमी का सॉफ्ट ड्रिंक पीना कोई गुनाह नहीं है। सफर में रोज़ा छोड़ने की इजाज़त इस्लाम में खुद अल्लाह ने दी है। ऐसे में बरेलवी मौलवी का बयान बेबुनियाद है और इस्लामी तालीमात की सही समझ पर सवाल उठाता है। उम्मीद है कि धार्मिक रहनुमा ऐसे मामलों में गैर-ज़रूरी बयानबाज़ी से बचेंगे और सही इल्म को आम करेंगे।
आबिद मोहम्मद खान✍🏻 कशाना टाइम्स भोपाल

💐इंसाफ के पथ पर अग्रसर नवविवाहित जोड़ी: सैयद बासित अली और इलमा अंसारी की प्रेरणादायक मिसाल💐💐हाल ही में भोपाल के सैयद बास...
25/02/2025

💐इंसाफ के पथ पर अग्रसर नवविवाहित जोड़ी: सैयद बासित अली और इलमा अंसारी की प्रेरणादायक मिसाल💐

💐हाल ही में भोपाल के सैयद बासित अली और कोटा की इलमा अंसारी ने वैवाहिक जीवन में कदम रखा। लेकिन इस जोड़ी ने अपनी खुशियों को एक तरफ रखकर एक ऐसा रास्ता चुना, जो न सिर्फ साहस और संकल्प का प्रतीक है, बल्कि समाज के लिए एक मिसाल भी है। नवविवाहित होने के बावजूद, वे व्यक्तिगत जीवन की खुशियों से आगे बढ़कर लोगों को न्याय दिलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे हैं।

💐आज जब अधिकतर लोग अपने निजी जीवन में व्यस्त रहते हैं, तब बासित और इलमा ने यह दिखा दिया कि सच्चा प्रेम वही है, जो समाज के लिए भी कुछ अच्छा करने की भावना रखता है। वे सिर्फ एक जोड़ा नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई की लड़ाई में एक मजबूत साझेदार भी हैं। उनके इस कदम ने यह साबित कर दिया है कि जब इरादे नेक हों और हौसले बुलंद, तो कोई भी मंज़िल मुश्किल नहीं होती।
💐इलमा अंसारी ने अपने ज्ञान, साहस और दृढ़ निश्चय से यह दिखाया है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वे अपने पारंपरिक जीवन की सीमाओं को तोड़ते हुए, समाज में बदलाव लाने के लिए अग्रसर हैं। वहीं,
सैयद बासित अली ने अपने समर्पण और न्यायप्रियता से यह साबित किया कि सच्चे साथी वही होते हैं, जो एक-दूसरे के सपनों और सिद्धांतों को सम्मान देते हैं।

💐सर्वोच्च न्यायालय के प्रांगण में खड़ी इस जोड़ी की तस्वीर सिर्फ एक फोटो नहीं, बल्कि हज़ारों युवाओं के लिए प्रेरणा है। यह संदेश है कि न्याय की राह में आने वाली कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि सच्चाई और हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

💐 सैयद बासित अली और इलमा अंसारी को उनके इस नेक इरादे और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिशों के लिए दिल से सलाम। काश, हमारे समाज में ऐसी सोच और ऐसे कदम उठाने वाले और भी लोग हों, जो इंसाफ के इस सफर में अपना योगदान दें।

आबिद मोहम्मद खान, ✍🏻काशाना टाइम्स, भोपाल

23/02/2025

💥वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है। कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।💥

🙂ग़ालिब का यह शेर आज की सच्चाई बन गया है। भोपाल की ख़ूबसूरती पर जैसे क़ुदरत की नज़र पड़ी है। मैं भोपाल, आज अपनी सजी-धजी सूरत पर खुद हैरान हूँ। मेहमानों की आमद ने मुझे संवारा है, मुझे निखारा है, और पहली बार मुझे एहसास हुआ है कि मैं केवल ख़ूबसूरत नहीं, बल्कि बेइंतहा ख़ूबसूरत हूँ। मेरी गलियों, सड़कों, चौकों और चौराहों ने आज जैसे एक नई ज़िन्दगी पाई है। रानी का शहर सचमुच रानी की तरह सज चुका है।

💥लेकिन एक सवाल बार-बार मेरे दिल को कचोटता है—क्या यह ख़ूबसूरती मेहमानों के जाने के बाद भी बरकरार रह सकेगी? क्या सजी हुई सड़कें सुरक्षित रह पाएँगी? क्या दीवारों पर अब कभी पान-गुटखे की पिचकारी नहीं दिखेगी? क्या फुटपाथों पर भीख माँगने वाले अब नज़र नहीं आएँगे? यह सवाल सरकार से ज़्यादा अवाम से है, क्योंकि शहर अवाम का है, सबका है।

🌷शासन ने मेहमानों के स्वागत के लिए भोपाल को वो तमाम सौग़ातें दी हैं, जिनसे हर ज़ुबान पर बस यही निकल रहा है—“वाह! क्या शहर है!” लेकिन अब ज़िम्मेदारी भोपाल के बाशिंदों की शुरू होती है। इस निखरी हुई ख़ूबसूरती को कायम रखना, हरियाली को बचाए रखना, सफ़ाई को आदत में शुमार करना—यही असली इम्तिहान है।

🌷इन्वेस्टर मीट और मेहमानों की आमद तभी सार्थक होगी जब हम इस ख़ूबसूरत बदलाव को हमेशा के लिए अपना लेंगे। वरना यह करोड़ों रुपये का इन्वेस्टमेंट एक सस्ते मेकअप की तरह मेहमानों के जाते ही उतर जाएगा। तो आइए, इस शहर को ऐसे ही संवारे रखें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी कह सकें—“वाह! क्या शहर है!”
आबिद मोहम्मद खान ✍🏻
कशाना टाइम्स भोपाल

https://youtu.be/kIV2j5Cq0L0 Yash entertainment ki nai Udan
12/02/2025

https://youtu.be/kIV2j5Cq0L0

Yash entertainment ki nai Udan

Song : MehroomYASH VISION ENTERTAINMENT PRESENTS Producer: Nandini rajput & Dinesh rajput Director: Iqbal Baksh Associate producer: Amjad Qureshi Line produc...

05/02/2025

🥷सालों पहले इमाम-मुअज़्ज़िनों की जेब पर पड़ा डाका,
आज तक इंसाफ़ नहीं!"🥷

शाही औक़ाफ़ की हक़ीक़त पर से एक और परदा उठा है। एक कहावत मशहूर है कि डायन भी सात घर छोड़ देती है, लेकिन शाही औक़ाफ़ ने ग़रीब इमामों और मुअज़्ज़िनों की जेब तक नहीं छोड़ी।
तारीख़ 2 फरवरी 2025 को एक दैनिक समाचार पत्र में ज़ाहिद मीर की रिपोर्ट ने यह ख़ुलासा किया कि 12 साल पहले भोपाल में इमाम-मुअज़्ज़िनों से ज़मीन के नाम पर पैसे लिए गए, लेकिन आज तक उन्हें उनका हक़ नहीं मिला। रसीद क्रमांक 193, जो दफ़्तर औकाफ शाही से जारी हुई थी, एक बड़ा सवाल उठा रही है—क्या शाही औक़ाफ़ सिर्फ़ नाम का रह गया है और असल में लूट का अड्डा बन चुका है?
सावल और भी है ❓
15000 रुपये – 12 साल पहले और आज की क़ीमत ?

2010-15के बीच भोपाल में ज़मीन के दाम बेहद कम थे। उस समय 15 बाय 30 (450 स्क्वायर फ़ीट) ज़मीन मात्र ₹15000 में दी गई थी जैसा की रसीद बोलती है,लेकिन 2025 में इतनी ही ज़मीन की क़ीमत लाखों में पहुंच चुकी है। सवाल यह है कि जो पैसे इमामों और मुअज़्ज़िनों से लिए गए, उनका इस्तेमाल कहां हुआ? अगर वह पैसा आज के हिसाब से आंका जाए तो यह मुद्रास्फीति (Inflation) के अनुसार कम से कम ₹40,000 से ₹50,000 हो सकता है।

शाही औक़ाफ़ की नियत – मदद या लूट?
शाही औक़ाफ़ का मूल उद्देश्य मिस्कीनों, यतीमों, मुसाफ़िरों और मज़लूमों की मदद करना था। लेकिन हक़ीक़त इसके उलट है। भोपाल में औक़ाफ़ की ज़मीनों पर आलीशान बंगले और दुकानें खड़ी हो गईं, मगर असल हक़दार आज भी न्याय की बाट जोह रहे हैं।

सवाल जो हुकूमत और वक़्फ़ बोर्ड को शाही औकाफ से पूछे जाने चाहिए:

1. 12 साल पहले इमामों और मुअज़्ज़िनों से ₹15000 वसूले गए, वह रकम कहां गई?
2. अगर यह ज़मीन वाक़ई उनकी थी, तो उन्हें कब्ज़ा क्यों नहीं मिला?
3. क्या आज भी भोपाल में औक़ाफ़ से जुड़ी ज़मीनों को इसी तरह बेचा जा रहा है?
4. क्या वक़्फ़ बोर्ड और शाही औक़ाफ़ में पारदर्शिता लाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?

5. क्या हुकूमत और प्रशासन इस मामले की जांच करेगा?
अब इन्साफ़ कौन दिलाएगा?
यह मुद्दा सिर्फ़ इमामों और मुअज़्ज़िनों का नहीं, बल्कि भोपाल के हर उस शख़्स का है जो वक़्फ़ संपत्तियों पर अपना हक़ समझता है। क्या शाही औक़ाफ़ अब भी अपनी जिम्मेदारी निभाएगा, या फिर यह लूट का खेल यूं ही चलता रहेगा?
आबिद मोहम्मद ख़ान,✍🏻
काशाना टाइम्स,भोपाल

*💥इन्फ्लुएंसर बनने की होड़ में तहज़ीब का क़त्ल💥* कहते हैं कि जहां औरत का एहतराम होता है, वहां देवताओं वास होता हैं। लेकिन अ...
14/01/2025

*💥इन्फ्लुएंसर बनने की होड़ में तहज़ीब का क़त्ल💥*

कहते हैं कि जहां औरत का एहतराम होता है, वहां देवताओं वास होता हैं। लेकिन अफसोस, हमारे इस तहज़ीबदार शहर भोपाल में आज कुछ लोग सोशल मीडिया पर फेमस होने की ख़ातिर अपनी ज़बान और किरदार को उस मुकाम पर ले जा रहे हैं, जहां तहज़ीब का नामोनिशान नहीं बचता। ये वह लोग हैं जो सोशल मीडिया पर इनफ्लुएंसर बनने की चाहत में गंदी गालियों, बेहूदे अल्फ़ाज़ और बेहयाई का सहारा लेकर अपने आपको मशहूर करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।

इस खेल में लड़के और लड़कियां दोनों बराबर के शरीक हैं। अफसोस की बात यह है कि सिर्फ ये लोग ही नहीं, बल्कि इन्हें देखने वाले, लाइक और शेयर करने वाले लोग भी इस बदतहज़ीबी के गुनहगार बन रहे हैं। शायद इन्हें यह एहसास नहीं कि यह वही शहर है जिसकी तहज़ीब का परचम दुनिया भर में बुलंद है। यह शहर है खान शाकिर अली खान, शंकर दयाल शर्मा, कैफ़ भोपाली, असद भोपाली, अख्तर सईद खान, रूमी जाफरी, रफी शबीर और मंज़र भोपाली जैसे बेमिसाल शायरों, अदबनवाज़ों और फनकारों का, जिन्होंने अपनी क़लम और फन से इस शहर को दुनिया के नक्शे पर एक अलग मुकाम दिया।

भोपाल की मिट्टी में तहज़ीब और सलीक़ा रचा-बसा है। यह वही शहर है जहां हबीब तनवीर, आलोक चटर्जी, जावेद ज़ैदी और विभा मिश्रा जैसे अज़ीम फनकारों ने अपने फन से इस तहज़ीब को नई पहचान दी। लेकिन आज यह मसर्रत की बात नहीं कि सोशल मीडिया के नाम पर कुछ नादान लोग इस तहज़ीब को अपने फूहड़ मजाक और भद्दे अल्फ़ाज़ों के नीचे रौंदने पर आमादा हैं।

यह लोग चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, न गालियां बकने से यह मशहूर होंगे, न फटे कपड़े पहनकर नाचने से। इन्हें यह समझना चाहिए कि शोहरत अपनी मेहनत, अदब और फन से हासिल होती है, न कि तहज़ीब का कत्ल करके।

भोपाल, जो अदब और सलीक़े का मक्का माना जाता है, को इस तरह बदनाम करना एक बड़ा गुनाह है। इनफ्लुएंसर बनने की चाहत रखने वाले और उन्हें बढ़ावा देने वाले दोनों को यह समझना होगा कि उनकी यह हरकतें शहर की रूह और इसकी अज़ीम शख़्सियतों की कुर्बानियों का मज़ाक उड़ाने के बराबर हैं।

कशाना टाइम्स,✍🏻 आबिद मोहम्मद खान

13/01/2025

मौत का धागा: चाइनीज़ मांजा बना जानलेवा, त्योहारों पर बढ़ा खतरा
कशाना टाइम्स, भोपाल | एडवोकेट आबिद मोहम्मद खान
चाइनीज़ मांजा: जानलेवा परंपरा
चाइनीज़ मांजा, जो पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल होता है, अब त्योहारों की खुशी के बीच मौत का सामान बन गया है। इसकी तेज धार न केवल इंसानों की जान ले रही है, बल्कि पर्यावरण और जीव-जंतुओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रही है।
हालिया घटनाएं: खतरनाक परिणाम
1. अमरोहा (उत्तर प्रदेश): ड्यूटी पर जा रहे पुलिस कांस्टेबल शाहरुख की बाइक सवार के दौरान चाइनीज़ मांजे से गर्दन कटने के कारण मौके पर ही मौत हो गई।
2. धार (मध्य प्रदेश): श्याम भूरिया, खेत से लौटते समय मांजे की चपेट में आए और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उनकी जान चली गई।
3. दिल्ली: 2023 में स्वतंत्रता दिवस पर एक बाइक सवार की गर्दन कटकर मौत हो गई।

चाइनीज़ मांजे के घातक प्रभाव
1. मानव जीवन पर असर: बाइक सवारों, राहगीरों और बच्चों के लिए यह मांजा जानलेवा है।
2. पक्षियों पर प्रभाव: मांजे में फंसकर हजारों पक्षी घायल हो रहे हैं या मर रहे हैं।
3. पर्यावरण पर असर: यह प्लास्टिक और कांच से बना होता है, जो लंबे समय तक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।

कानूनी प्रतिबंध और उनकी अनदेखी
भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत चाइनीज़ मांजे के उपयोग, निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है। इसके बावजूद, यह खुले बाजार और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आसानी से उपलब्ध है।
त्योहारों पर पतंग उड़ाने की परंपरा और सावधानियां
मकर संक्रांति, स्वतंत्रता दिवस और अन्य त्योहारों पर पतंग उड़ाना भारत की सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। लेकिन चाइनीज़ मांजे के उपयोग से यह परंपरा अब जानलेवा बनती जा रही है।
सावधानियां:
चाइनीज़ मांजे का उपयोग बंद करें।
बायोडिग्रेडेबल या सूती मांजे का उपयोग करें।
बाइक सवार हेलमेट पहनें।
बच्चों और पक्षियों की सुरक्षा का ध्यान रखें।
समाधान और जागरूकता
1. सख्त कानून: चाइनीज़ मांजे की बिक्री और उपयोग पर कड़ी निगरानी हो।
2. जागरूकता अभियान: लोगों को इसके खतरों के प्रति जागरूक करना होगा।
3. पर्यावरण के अनुकूल विकल्प: पारंपरिक और सुरक्षित मांजे को बढ़ावा देना चाहिए।
त्योहारों का आनंद
तभी है जब हम इसे जिम्मेदारी के साथ मनाएं। चाइनीज़ मांजा एक गंभीर खतरा बन चुका है और इसे जड़ से समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
“खुशी से मनाएं त्योहार, लेकिन सावधानी और जागरूकता के साथ।”

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