Tere heth me chaabi o sat Guru satlok duaar ki

Tere heth me chaabi o sat Guru satlok duaar ki Tere hath me chaabi o satguru satlok duar ki

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19/12/2021

*★गुरू बदलने से कोई पाप नहीं लगता★*

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04/11/2021
04/11/2021
03/11/2021
03/11/2021

#कबीरसागर_का_सरलार्थPart147

गरूड़ बोध का सारांश Part-C

‘कुछ अमृतवाणी गरूड़ बोध से‘‘

धर्मदास वचन
धर्मदास बीनती करै, सुनहु जगत आधार। गरूड़ बोध भेद सब, अब कहो तत्त्व विचार।।
सतगुरू वचन (कबीर वचन)
प्रथम गरूड़ सों भैंट जब भयऊ। सत साहब मैं बोल सुनाऊ।
धर्मदास सुनो कहु बुझाई। जेही विधि गरूड़ को समझाई।।
गरूड़ वचन
सुना बचन सत साहब जबही। गरूड़ प्रणाम किया तबही।।
शीश नीवाय तिन पूछा चाहये। हो तुम कौन कहाँ से आये।।
ज्ञानी (कबीर) वचन कहा कबीर है नाम हमारा। तत्त्वज्ञान देने आए संसारा।।
सत्यलोक से हम चलि आए। जीव छुड़ावन जग में प्रकटाए।।
गरूड़ वचन
सुनत बचन अचम्भो माना। सत्य पुरूष है कौन भगवाना।।
प्रत्यक्षदेव श्री विष्णु कहावै। दश औतार धरि धरि जावै।।
ज्ञानी (कबीर) बचन
तब हम कहया सुनो गरूड़ सुजाना। परम पुरूष है पुरूष पुराना।।(आदि का)
वह कबहु ना मरता भाई। वह गर्भ से देह धरता नाहीं।। कोटि मरे विष्णु भगवाना। क्या गरूड़ तुम नहीं जाना।।
जाका ज्ञान बेद बतलावैं। वेद ज्ञान कोई समझ न पावैं।। जिसने कीन्हा सकल बिस्तारा। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का सिरजनहारा।। जुनी संकट वह नहीं आवे। वह तो साहेब अक्षय कहावै।।
गरूड़ वचन
राम रूप धरि विष्णु आया। जिन लंका का मारा राया।।
पूर्ण ब्रह्म है विष्णु अविनाशी। है बन्दी छोड़ सब सुख राशी।।
तेतीस कोटि देवतन की बन्द छुड़ाई। पूर्ण प्रभु हैं राम राई।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तुम गरूड़ कैसे कहो अविनाशी। सत्य पुरूष बिन कटै ना काल की फांसी।।
जा दिन लंक में करी चढ़ाई। नाग फांस में बंधे रघुराई।।
सेना सहित राम बंधाई। तब तुम नाग जा मारे भाई।।
तब तेरे विष्णु बन्दन से छूटे। याकु पूजै भाग जाके फूटे।।
कबीर ऐसी माया अटपटी, सब घट आन अड़ी।
किस-किस कूं समझाऊँ, कूअै भांग पड़ी।।
गरूड़ वचन
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा। तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया। शरण लेवों अविगत राया।।
कबहु ना छोडूँ तुम्हारा शरणा। तुम साहब हो तारण तरणा।।
पत्थर बुद्धि पर पड़े है ज्ञानी। हो तुम पूर्ण ब्रह्म लिया हम जानी।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तब हम गरूड़ कुं पाँच नाम सुनाया। तब वाकुं संशय आया।।
यह तो पूजा देवतन की दाता। या से कैसे मोक्ष विधाता।।
तुमतो कहो दूसरा अविनाशी। वा से कटे काल की फांसी।।
नायब से कैसे साहेब डरही। कैसे मैं भवसागर तिरही।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
साधना को पूजा मत जानो। साधना कूं मजदूरी मानो।।
जो कोऊ आम्र फल खानो चाहै। पहले बहुते मेहनत करावै।।
धन होवै फल आम्र खावै। आम्र फल इष्ट कहावै।।
पूजा इष्ट पूज्य की कहिए। ऐसे मेहनत साधना लहिए।।
यह सुन गरूड़ भयो आनन्दा। संशय सूल कियो निकन्दा।।

■ भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव ने कहा कि हे परमेश्वर! आपने तो इन्हीं देवताओं के नाम मंत्र दे दिये। यह इनकी पूजा है। आपने बताया कि ये तो केवल 16 कला युक्त प्रभु हैं। काल एक हजार कला युक्त प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म असँख्य कला का परमेश्वर है। आपने सृष्टि रचना में यह भी बताया है कि काल ने आपको रोक रखा है। काल ब्रह्म के आधीन तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी हैं। हे परमेश्वर! नायब (उप यानि छोटा) से साहब (स्वामी-मालिक) कैसे डरेगा? यानि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो केवल काल ब्रह्म के नायब हैं। जैसे नायब तहसीलदार यानि छोटा तहसीलदार होता है। तो छोटे से बड़ा कैसे डर मानेगा? भावार्थ है कि ये काल ब्रह्म के नायब हैं। आपने इनकी भक्ति बताई है, इनके मंत्र जाप दिए हैं। ये नायब अपने साहब (काल ब्रह्म) से हमें कैसे छुड़वा सकेंगे? तब परमेश्वर कबीर जी ने पूजा तथा साधना में भेद बताया कि यदि किसी को आम्र फल यानि आम का फल खाने की इच्छा हुई है तो आम फल उसका पूज्य है। उस पूज्य वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयत्न साधना कही जाती है। जैसे धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उस धन से आम मोल लेकर खाया जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा हमारा ईष्ट देव यानि पूज्य देव है।
जो देवताओं के मंत्र का जाप मेहनत (मजदूरी) है। जो नाम जाप की कमाई रूपी भक्ति धन मिलेगा, उसको काल ब्रह्म में छोड़कर कर्जमुक्त होकर अपने ईष्ट यानि पूज्य देव कबीर देव (कविर्देव) को प्राप्त करेंगे। यह बात सुनकर गरूड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा गुरू के पूर्ण गुरू होने का भी साक्ष्य मिला कि पूर्ण गुरू ही शंका का समाधान कर सकता है और दीक्षा प्राप्ति की। गरूड़ को त्रोतायुग में शरण में लिया था। श्री विष्णु जी का वाहन होने के कारण तथा बार-बार उनकी महिमा सुनने के कारण तथा कुछ चमत्कार श्री विष्णु जी के देखकर गरूड़ जी की आस्था गुरू जी में कम हो गई, परंतु गुरू द्रोही नहीं हुआ। फिर किसी जन्म में मानव शरीर प्राप्त करेगा, तब परमेश्वर कबीर जी गरूड़ जी की आत्मा को शरण में लेकर मुक्त करेंगे। दीक्षा के पश्चात् गरूड़ जी ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी से ज्ञान चर्चा करने का विचार किया। गरूड़ जी चलकर ब्रह्मा जी के पास गए। उनसे ज्ञान चर्चा की।

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02/11/2021

#कबीरसागर_का_सरलार्थPart146

गरूड़ बोध का सारांश Part-B

साधना तथा पूजा का अंतर

जैसे अपने को आम खाने हैं तो पहले मेहनत, मजदूरी, नौकरी करेंगे, धन मिलेगा तो आम खाने को मिलेगा। नौकरी पूजा नहीं होती। उस समय हमारा पूज्य आम होता है। पूज्य की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयत्न नौकरी है। इसी प्रकार अपने पूज्य परमेश्वर कबीर जी हैं तथा अमर लोक है। उसके लिए हम श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव, श्री गणेश तथा श्री दुर्गा जी की मजदूरी करते हैं, साधना करते हैं। पूजा परमेश्वर की करते हैं। गरूड़ जी बड़े प्रसन्न हुए और इस अमृत ज्ञान की चर्चा हेतु श्री ब्रह्मा जी से मिले। उनको बताया कि मैंने एक महर्षि से अद्भुत ज्ञान सुना है। मुझे उनका ज्ञान सत्य लगा है। उन्होंने बताया कि आप (ब्रह्मा), विष्णु तथा शिव नाशवान हो, पूर्ण करतार नहीं हो।

आप केवल भाग्य में लिखा ही दे सकते हो। आप किसी की आयु वृद्धि नहीं कर सकते हो। आप किसी के कर्म कम-अधिक नहीं कर सकते। पूर्ण परमात्मा अन्य है, अमर लोक में रहता है। वह पाप कर्म काट देता है। वह मृत्यु को टाल देता है। आयु वृद्धि कर देता है। प्रमाण भी वेदों में बताया है। ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में कहा है कि रोगी का रोग बढ़ गया है। वह मृत्यु को प्राप्त हो गया है। तो भी मैं उस भक्त को मृत्यु देवता से छुड़वा लाऊँ, उसको नवजीवन प्रदान कर देता हूँ। उसको पूर्ण आयु जीने के लिए देता हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 5 में कहा है कि हे पुनर्जन्म प्राप्त प्राणी! तू मेरी भक्ति करते रहना। यदि तेरी आँखें भी समाप्त हो जाएंगी तो तेरी आँखें स्वस्थ कर दूँगा, तेरे को मिलूँगा भी यानि मैं तेरे को प्राप्त भी होऊँगा। ब्रह्मा जी को वेद मंत्र कंठस्थ हैं। तुरंत समझ गए, परंतु संसार में लोकवेद के आधार से ब्रह्मा जी अपने आपको प्रजापिता यानि सबकी उत्पत्तिकर्ता मान रहे थे। वेदों को कठंस्थ (याद) कर लेना भिन्न बात है। वेद मंत्रों को समझना विशेष ज्ञान है। मान-बड़ाई वश होकर ब्रह्मा जी ने कहा कि वेदों का ज्ञान मेरे अतिरिक्त विश्व में किसी को नहीं है।

इन मंत्रों का अर्थ गलत लगाया है। कबीर परमेश्वर ने ऐसे व्यक्तियों के विषय में कहा है कि :-

कबीर, जान बूझ साच्ची तजैं, करै झूठ से नेह। ताकि संगत हे प्रभु, स्वपन में भी ना देय।।

ब्रह्मा जी गरूड़ के वचन सुनकर अति क्रोधित हुए और कहा कि तेरी पक्षी वाली बुद्धि है। तेरे को कोई कुछ कह दे। उसी की बातों पर विश्वास कर लेता है। तेरे को अपनी अक्ल नहीं है। ब्रह्मा जी ने उसी समय विष्णु, महेश, इन्द्र तथा सब देवताओं व ऋषियों को बुला लिया। सभा लग गई। ब्रह्मा जी ने उनको बुलाने का कारण बताया कि गरूड़ आज नई बात कर रहा है कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश नाशवान हैं। पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। वह अमर लोक में रहता है। तुम कर्ता नहीं हो। यह बात सुनकर श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत क्रोधित हुए और गरूड़ को ब्रह्मा वाले उलाहणें (दोष निकालकर बुरा-भला कहना) कहे। फिर सबने मिलकर निर्णय लिया कि माता (दुर्गा) जी से सत्य जानते हैं। सब मिलकर माता के पास गए। यही प्रश्न पूछा कि क्या हमारे (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) से अन्य कोई पूर्ण प्रभु है। क्या हम नाशवान हैं? माता ने दो टूक जवाब दिया कि तुमको यह गलतफहमी (भ्रम) कब से हो गया कि तुम अविनाशी तथा जगत के कर्ता हो। यदि ऐसा है तो तुम मेरे भी कर्ता (बाप) हुए जबकि तुम्हारा जन्म मेरी कोख से हुआ है। वास्तव में परमेश्वर अन्य है, वही अविनाशी है। वही सबका कर्ता है। यह बात सुनकर सभा भंग हो गई, सब चले गए।

परंतु ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी के गले में यह सत्य नहीं उतर पा रहा था। उन्होंने गरूड़ को बुलाया। गरूड़ ने आकर प्रणाम किया। आदेश पाकर बैठ गया। तीनों देवताओं ने कहा, हे पक्षीराज! आपको कैसे विश्वास हो कि हम जगत के कर्ता नहीं हैं? आप जो चाहो, परीक्षा करो। गरूड़ जी उठकर उड़कर मेरे पास (कबीर जी के पास) आए तथा सब वृतांत बताया। तब मैंने कहा कि बंग देश (वर्तमान में बांग्लादेश) में एक ब्राह्मण का बारह वर्षीय बालक है। उसकी आयु समाप्त होने वाली है। वह कुछ दिन का मेहमान है। मैंने उस बालक को शरण में लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव की स्थिति बताई जो गरूड़ तेरे को बताई है। उस बालक ने बहुत विवाद किया और मेरे ज्ञान को नहीं माना। तब मैंने उस बालक से कहा कि तेरी आयु तीन दिन शेष है। यदि तेरे ब्रह्मा-विष्णु-शिव समर्थ हैं तो अपनी रक्षा कराओ। मैं इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गया। बालक बेचैन है। उस बालक को लेकर देवताओं के पास जाओ। उनसे कुछ बनना नहीं है। फिर आप मेरे से ध्यान से बातें करना। मैं तेरे को आगे क्या करना है, वह बताऊँगा।
गरूड़ जी उस बालक को लेकर ब्रह्मा-विष्णु-शिव के पास गए। गरूड़ ने बालक को समझाया कि आप उन देवताओं से कहना कि हम आपके भक्त हैं। मेरे दादा-परदादा, पिता और मैंने सदा आपकी पूजा की है। मेरे जीवन के दो दिन शेष हैं। मेरी आयु भी क्या है? कृपा मेरी आयु वृद्धि कर दें। बच्चे ने यही विनय की तो तीनों ने कोशिश की परंतु व्यर्थ। फिर विचार किया कि धर्मराज (न्यायधीश) के पास चलते हैं। सबका हिसाब उसी के पास है। उससे वृद्धि करा देते हैं। यह विचार करके सबके सब धर्मराज के पास गए। उनसे तीनों देवताओं ने कहा कि पहले तो यह बताओ कि इस ब्राह्मण बच्चे की कितनी आयु है? धर्मराज ने डॉयरी (रजिस्टर) देखकर बताया कि कल इसकी मृत्यु हो जाएगी। तीनों देवताओं ने कहा कि आप इस बच्चे की आयु वृद्धि कर दो। धर्मराज ने कहा, यह असंभव है। तीनों ने कहा कि हम आपके पास बार-बार नहीं आते, आज इज्जत-बेइज्जती का प्रश्न है। हमारे आये हुओं की इज्जत तो रख लो। धर्मराज ने कहा कि एक पल भी न बढ़ाई जा सकती है, न घटाई जा सकती है। यदि आप अपनी आयु इसको दे दो तो वृद्धि कर सकता हूँ। यह सुनते ही सबकी हवा निकल गई। उस समय कहने लगे कि यह तो परमेश्वर ही कर सकता है। वहाँ से तुरंत चल पड़े और गरूड़ से कहा कि कोई और समर्थ शक्ति है तो तुम इसकी आयु बढ़वाकर दिखा दो।
गरूड़ ने कबीर जी से ध्यान द्वारा (टेलीफोन से) सम्पर्क किया। परमेश्वर कबीर जी ने ध्यान द्वारा बताया कि आप इसके लिए मानसरोवर से जल ले आओ। वहाँ एक श्रवण नाम का भक्त मिलेगा। उसको मैंने सब समझा दिया है, आप अमृत ले आओ। गरूड़ जी ने जैसी आज्ञा हुई, वैसा ही किया। अमृत लाकर उस बच्चे को पिला दिया। उस बालक के पास मैं गया। गरूड़ ने उसे सब समझा दिया कि अमृत तो बहाना है। ये स्वयं परमेश्वर हैं। इन्होंने जल मन्त्रित करके दिया था। बालक तुम दीक्षा ले लो। इस अमृत से तो दस दिन जीवित रहोगे।

बालक ने मेरे से दीक्षा ली। जब बालक 15 दिन तक नहीं मरा तो गरूड़ ने तीनों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को बताया कि वह बालक जीवित है। मेरे गुरू जी से दीक्षा ले ली है। उन्होंने उस बच्चे को पूर्ण आयु जीने का आशीर्वाद दे दिया है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों फिर धर्मराज के पास गए, साथ में गरूड़ भी गया। तीनों देवताओं ने धर्मराज से पूछा कि वह बालक कैसे जीवित है, उसको मर जाना चाहिए था। धर्मराज ने उसका खाता देखा तो उसकी आयु लम्बी लिखी थी।

धर्मराज ने कहा कि यह ऊपर से ही होता है। यह तो कभी-कभी होता है। उस परमेश्वर की लीला को कौन जान सकता है? तीनों देवताओं को आश्चर्य हुआ, परंतु मान-बड़ाई के कारण प्रत्यक्ष देखकर भी सत्य को माना नहीं। अपना अहम भाव नहीं त्यागा। गरूड़ को विश्वास अटल हो गया।
कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह। मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना येह।।

इस गरूड़ बोध के अंत में वासुकी नाग कन्या वाला प्रकरण गलत तरीके से लिखा है।
इसमें गरूड़ को गुरू पद पर चित्रार्थ कर रखा है। वह ऐसा नहीं है। जो भी किया, परमेश्वर कबीर जी ने किया है।

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01/11/2021

#कबीरसागर_का_सरलार्थPart145

गरूड़ बोध का सारांश Part-A

कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65 पर है
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उसको सृष्टि रचना सुनाई। अमरलोक की कथा सत्यपुरूष की महिमा सुनकर गरूड़ देव अचम्भित हुआ। अपने कानों पर विश्वास नहीं कर रहे थे। मन-मन में विचार कर रहे थे कि मैं आज यह क्या सुन रहा हूँ? मैं कोई स्वपन तो नहीं देख रहा हूँ। मैं किसी अन्य देश में तो नहीं चला गया हूँ।

कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65(625) पर है

जो देश और परमात्मा मैंने सुना है, वह जैसे मेरे सामने चलचित्र रूप में चल रहा है। जब गरूड़ देव इन ख्यालों में खोए थे, तब मैंने कहा, हे पक्षीराज! क्या मेरी बातों को झूठ माना है। चुप हो गये हो। प्रश्न करो, यदि कोई शंका है तो समाधान कराओ। यदि आपको मेरी वाणी से दुःख हुआ है तो क्षमा करो। मेरे इन वचनों को सुनकर खगेश की आँखें भर आई और बोले कि हे देव! आप कौन हैं? आपका उद्देश्य क्या है? इतनी कड़वी सच्चाई बताई है जो हजम नहीं हो पा रही है। जो आपने अमरलोक में अमर परमेश्वर बताया है, यदि यह सत्य है तो हमें धोखे में रखा गया है। यदि यह बात असत्य है तो आप निंदा के पात्र हैं, अपराधी हैं। यदि सत्य है तो गरूड़ आपका दास खास है।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने कहा, हे गरूड़देव! जो शंका आपको हुई है, यह स्वाभाविक है, परंतु आपने संयम से काम लिया है। यह आपकी महानता है। परंतु मैं जो आपको अमरपुरूष तथा सत्यलोक की जानकारी दे रहा हूँ, वह परम सत्य है। मेरा नाम कबीर है। मैं उसी अमर लोक का निवासी हूँ। आपको काल ब्रह्म ने भ्रमित कर रखा है। यह ज्ञान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी को भी नहीं है। आप विचार करो गरूड़ जी! जीव का जन्म होता है। आनन्द से रहने लगता है। परिवार विस्तार होता है। उसके पालन-पोषण में संसारिक परंपराओं का निर्वाह करते-करते वृद्ध हो जाता है। जिस परिवार को देख-देखकर अपने को धन्य मानता है। उसी परिवार को त्यागकर संसार छोड़कर मजबूरन जाना पड़ता है। स्वयं भी रो रहा है, अंतिम श्वांस गिन रहा है।

परिवार भी दुःखी है। यह क्या रीति है? क्या यह उचित है? गरूड़ देव बोले, हे कबीर देव! यह तो संसार का विधान है। जन्मा है तो मरना भी है। परमेश्वर जी ने कहा कि क्या कोई मरना चाहता है? क्या कोई वृद्धावस्था पसंद करता है? गरूड़ देव का उत्तर=नहीं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि यदि ऐसा हो कि न वृद्ध अवस्था हो, न मृत्यु तो कैसा लगे? गरूड़ देव जी ने कहा कि कहना ही क्या, ऐसा हो जाए तो आनन्द हो जाए परंतु यह तो ख्वाबी ख्याल (स्वपन विचार) जैसा है। हे धर्मदास! मैंने कहा कि वेदों तथा पुराणों को आप क्या मानते हो, सत्य या असत्य? गरूड़ देव जी ने कहा, परम सत्य।

देवी पुराण के तीसरे स्कंद में स्वयं विष्णु जी ने कहा कि हे माता! तुम शुद्ध स्वरूपा हो। यह सारा संसार तुमसे ही उद्भाषित हो रहा है। मैं ब्रह्मा तथा शंकर आपकी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से ऐसे पुख्ता प्रमाण (सटीक प्रमाण) सुनकर गरूड़ देव चरणों में गिर गए। अपने भाग्य को सराहा और कहा कि जो देव सृष्टि की रचना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा दुर्गा देव तथा निरंजन तक की उत्पत्ति जानता है, वह ही रचनहार परमेश्वर है। आज तक किसी ने ऐसा ज्ञान नहीं बताया। यदि किसी जीव को पता होता,
चाहे वह ऋषि-महर्षि भी है तो अवश्य कथा करता। मैंने बड़े-बड़े मण्डलेश्वरों के प्रवचन सुने हैं। किसी के पास यह ज्ञान नहीं है। इनको वेदों तथा गीता का भी ज्ञान नहीं है। आप स्वयं को छुपाए हुए हो। मैंने आपको पहचान लिया है। कृपा करके मुझे शरण में ले लो परमेश्वर।

परमेश्वर कबीर जी ने गरूड़ से कहा कि आप पहले अपने स्वामी श्री विष्णु जी से आज्ञा ले लो कि मैं अपना कल्याण कराना चाहता हूँ। एक महान संत मुझे मिले हैं। मैंने उनका ज्ञान सुना है। यदि आज्ञा हो तो मैं अपना कल्याण करा लूँ। मैं आपका दास नौकर हूँ, आप मालिक हैं। हमें सब समय इकट्ठा रहना है। यदि मैं छिपकर दीक्षा ले लूँगा तो आपको दुःख होगा। गरूड़ ने ऐसा ही किया। विष्णु जी से सब बात बताई। श्री विष्णु जी ने कहा मैं आपको मना नहीं करता, आप स्वतंत्र हैं। आपने अच्छा किया, सत्य बता दिया। मुझे कोई एतराज नहीं है।
हे धर्मदास! मैंने गरूड़ को प्रथम मंत्र दीक्षा पाँच नाम (कमलों को खोलने वाले प्रत्येक देव की साधना के नाम) की दी। गरूड़ देव ने कहा कि हे गुरूदेव! यह मंत्र तो इन्हींदेवताओं के हैं। अमर पुरूष का मंत्र तो नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि ये इनकी पूजा के मंत्र नहीं हैं। ये इन देवताओं को अपने अनुकूल करके इनके जाल से छूटने की कूँजी (key) है। इनके वशीकरण मंत्र हैं। जैसे भैंसे को आकर्षित करने के लिए यदि उसको भैंसा-भैंसा करते हैं तो वह आवाज करने वाले की ओर देखता तक नहीं। जब उसका वशीकरण नाम पुकारा जाता है, हुर्र-हुर्र तो वह तुरंत प्रभाव से सक्रिय हो जाता है। आवाज करने वाले की ओर दौड़ा आता है। आवाज करने वाला व्यक्ति उससे अपनी भैंस को गर्भ धारण करवाता है। इसी प्रकार आप यदि श्री विष्णु जी के अन्य किसी नाम का जाप करत रहें, वे ध्यान नहीं देते। जब आप इस मंत्र का जाप करोगे तो विष्णु देव जी तुरंत प्रभावित होकर साधक की सहायता करते हैं। ये देवता तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग तथा पाताल) के प्रधान देवता हैं। ये केवल संस्कार कर्म लिखा ही दे सकते हैं। इस मंत्र के जाप से हमारे पुण्य अधिक तथा भक्ति धन अधिक संग्रहित हो जाता है। उसके प्रतिफल में ये देवता साधक की सहायता करते हैं। इस प्रकार इनकी साधना तथा पूजा का अंतर समझना है।

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28/10/2021

#कबीरसागर_का_सरलार्थPart141

‘‘नाम भक्ति की कमाई करना अनिवार्य‘‘ Part -A

अध्याय ‘‘बीर सिंह बोध‘‘ पृष्ठ 123 पर :-

राजा बीर सिंह की एक छोटी रानी सुंदरदेई थी। उसने भी परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ले रखी थी। उसने सत्संग बहुत सुने थे। विश्वास कम था, नाम की कमाई यानि साधना नहीं करती थी। जब रानी का अंतिम समय आया तो यम के दूत राजभवन में प्रवेश कर गए। फिर यमदूत रानी के शरीर में प्रवेश कर गए और अंतिम श्वांस का इंतजार करने लगे। उस समय रानी सुंदरदेई के शरीर में बेचैनी हो गई। यमदूत दिखाई देने लगे। राजा ने रानी से पूछा कि क्या बात है? रानी ने कहा कि मुझे राजपाट, महल, आभूषण, कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। रानी ने कहा कि साधु-भक्तों को बुलाकर परमात्मा की चर्चा कराओ। साधु तथा भक्त आकर परमात्मा की चर्चा तथा भक्ति करने लगे। उससे कोई लाभ नहीं हुआ। रानी के शरीर में कष्ट और बढ़ गया। अर्ध-अर्ध यानि आधा श्वांस चलने लगा। श्वांस खींच-खींचकर आने-जाने लगा। हृदय कमल को त्यागकर जीव भयभीत होकर त्रिकुटी की ओर भागा। यम दूतों ने चारों ओर से घेर लिया। चारों यमदूतों ने जीव को घेरकर कहा कि आप चलो! हरि (प्रभु) ने तुम्हें बुलाया है। तब रानी के जीव को सत्संग वचन याद आए। उसने यमदूतों से कहा कि हे बटपार! हे जालिमों! तुम यहाँ कैसे आ गए? हमारा सतगुरू हमारा मालिक है। आप हमें नहीं ले जा सकते। मेरे सतगुरू धनी (मालिक) ने मुझे नाम दिया है। मेरे गुरूजी आएंगे तो मैं जाऊँगी। यह बात सुनकर यम के दूत बोले कि यदि आपका कोई खसम (धनी) है तो उसको बुलाओ, नहीं तो हमारे साथ परमात्मा के दरबार में चलो। जीव ने कहा कि :-
धरनी (पृथ्वी) आकाश से नगर नियारा। तहाँ निवाजै धनी हमारा।।
अगम शब्द जब भाखै नाऊं। तब यम जीव के निकट नहीं आऊं।।
भावार्थ :- पहले तो रानी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जो सतगुरू जी सत्संग में ज्ञान सुना रहे हैं, वह सत्य है। वह सोचती थी कि यह केवल कहानी है क्योंकि सब नौकर-नौकरानी आज्ञा मिलते ही दौड़े आते थे। मनमर्जी का खाना खाती थी, सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनती थी।
उसने सोचा था कि ऐसे ही आनन्द बना रहेगा। यह तो पूर्व जन्म की बैटरी चार्ज थी। वर्तमान में चार्जर मिला (नाम मिला) तो चालू नहीं किया यानि साधना नहीं की। जब बैटरी की चार्जिंग समाप्त हो जाती है, बैटरी डाउन हो जाती है तो सर्व सुविधाऐं बंद हो जाती हैं। फिर न पंखा चलता है, न बल्ब जगता है। बटन दबाते रहो, कोई क्रिया नहीं होती। इसी प्रकार जीव का पूर्व जन्म की भक्ति का धन यानि चार्जिंग समाप्त हो जाती है तो सर्व सुविधाऐं छीन ली जाती हैं। जीव को नरक में डाल दिया जाता है, तब उसको अक्ल आती है। उस समय वक्त हाथ से निकल चुका होता है। केवल पश्चाताप और रोना शेष रह जाता है। रानी सुंदरदेई ने सत्संग सुन रखा था। पूर्ण सतगुरू से दीक्षा ले रखी थी। नाम की कमाई नहीं की थी। वह गुरूद्रोही नहीं हुई थी। गुरू निंदा नहीं करती थी। रानी ने सतगुरू को याद किया कि हे सतगुरू! हे मेरे धनी! मेरे को यमदूतों ने घेर रखा है। मुझ दासी को छुड़ावो। मैंने आपकी दीक्षा ले रखी है। आज मुझे पता चला कि ऐसी आपत्ति में न पति, न पत्नी, ने बेटा-बेटी, भाई-बहन, राजा-प्रजा कोई सहायक नहीं होता। रानी के जीव ने हृदय से सतगुरू को पुकारा। तुरंत सतगुरू कबीर जी वहाँ उपस्थित हुए। रानी ने दौड़कर सतगुरू देव जी के चरण लिए। उसी समय यमदूत भागकर हरि यानि धर्मराज के पास गए और बताया कि उसका सतगुरू आया तो वहाँ पर प्रकाश हो गया। जीव ने सत सुकृत नाम जपा था। उसको इतना ही याद था। इस कारण से उसको यमदूतों से छुड़वाया तथा पुनः जीवन बढ़ाया। तब रानी ने दिल से भक्ति की। फिर सतगुरू कबीर जी ने पुनः सतनाम, सारनाम दिया, उसकी कमाई की। संसार असार दिखाई देने लगा। राज, धन, परिवार पराया दिखाई दे रहा था।
जाने का समय निकट लग रहा था। इस कारण से रानी ने तन-मन-धन सतगुरू चरणों में समर्पित करके भक्ति की तो सत्यलोक में गई। वहाँ परमेश्वर (सत्य पुरूष) ने रानी के जीव के सामने अपने ही दूसरे रूप सतगुरू से प्रश्न किया कि हे कडि़हार! (तारणहार) मेरे जीव को यमदूतों ने कैसे रोक लिया? सतगुरू रूप में कबीर जी ने कहा कि हे परमेश्वर! इसने दीक्षा लेकर भक्ति नहीं की। इस कारण से इसको यमदूतों ने घेर लिया था। मैंने छुड़वाया। परमेश्वर कबीर जी ने जीव से कहा कि आपने भक्ति क्यों नहीं की? सत्यलोक में कैसे आ गई?
सिर नीचा करके जीव ने कहा कि पहले मुझे विश्वास नहीं था। फिर यमदूतों की यातना देखकर मुझे आपकी याद आई। आपका ज्ञान सत्य लगा। आपको पुकारा। आपने मेरी रक्षा की।
फिर मेरे को वापिस जीवन दिया गया। तब मैंने दिलोजान से आपकी भक्ति की। पूर्ण दीक्षा प्राप्त करके आपकी ही कृपा से गुरू जी के सहयोग से मैं यहाँ आपके चरणों में पहुँच पाई हूँ। सत्यलोक में जाकर भक्त अन्य भक्तों के पास भेज दिया जाता है। सुंदर अमर शरीर मिलता है। बहुत बड़ा आवास महल मिलता है। विमान आँगन में खड़ा है। सिद्धियां आदेश का इंतजार करती हैं। तुरंत विद्युत की तरह सक्रिय होती हैं जैसे बिजली का बटन दबाते ही बिजली से चलने वाला यंत्र तुरंत कार्य करने लगता है। ऐसे वहाँ पर वचन का बटन हैं। जो वस्तु चाहिए बोलिये। वस्तु-पदार्थ आपके पास उपस्थित होगा। जैसे भोजन खाने की इच्छा होते ही आपके भोजनस्थल पर गतिविधि प्रारम्भ हो जाएंगी, थाली-गिलास रखे जाएंगे। कुछ देर में खाने की इच्छा बनी तो सिद्धि से उठकर रसोई में रखे जाएंगे। मिनट पश्चात् इच्छा हुई तो भी उसी समय व्यवस्था हो जाएगी। घूमने की इच्छा हुई तो विमान में गतिविधि महसूस होगी। विमान के निकट जाते ही द्वार खुल जाएगा। विमान स्टार्ट हो जाएगा। जहाँ जिस द्वीप में जाने की इच्छा होगी, विचार करने पर विमान उसी ओर उड़ चलेगा। इच्छा करते ही ताजे-ताजे फल वृक्षों से तोड़कर लाकर आपके समक्ष रख दिए जाएंगे। सत्यलोक की नकल यह काल लोक है। इसी तरह स्त्री-पुरूष परिवार हैं।
सत्यलोक में दो तरह से संतानों की उत्पत्ति होती है। शब्द से तथा मैथुन से। वह हंस पर निर्भर करता है। वचन से संतानोपत्ति वाला क्षेत्र सतपुरूष के सिंहासन के चारों ओर है। नर-नारी से परिवार वाला क्षेत्र उसके बाद में है। वचन से संतान उत्पन्न करने वाले केवल नर ही उत्पन्न करते हैं। सत्यलोक में वृद्धावस्था नहीं है। नर-नारी वाले क्षेत्र में लड़के तथा लड़कियां दोनों उत्पन्न करते हैं। विवाह करते हैं केवल वचन से। जो बच्चे उत्पन्न होते हैं, वे काल लोक से मुक्त होकर गए जीव जन्म लेते हैं। फिर कभी नहीं मरते, न वृद्ध होते। जो सत्यलोक में मुक्त होकर जाते हैं, उनको सर्वप्रथम सत्यपुरूष जी के दर्शन कराए जाते हैं। उस समय उसका वही स्वरूप रहता है जैसा पृथ्वी से आता है, परंतु वृद्ध नीचे से गया तो वहाँ सतपुरूष के सामने उसी अवस्था व स्वरूप में जाता है। उसका प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश जितना हो जाता है। उसके पश्चात् उसको उस स्थान पर भेजा जाता है जो सबसे भिन्न है। वहाँ जाते ही उसका स्वरूप तो वैसा ही रहता है, लेकिन उसके शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों जैसा हो जाता है, परंतु यदि वृद्ध नीचे से गया है तो युवा अवस्था हो जाती है। जवान है तो जवान ही रहता है, बालक है तो बालक ही रहता है। वहाँ पर कुछ को सत्य पुरूष के वचन से स्त्री-पुरूष का शरीर मिलता है। कुछ बीज रूप में सतपुरूष द्वारा बनाए जाते हैं जिनका फिर एक बार किसी के घर सत्यलोक में जन्म होगा, परिवार बनेगा।
उस स्थान पर वे हंस एक बार जन्म लेंगे जो काल लोक तथा अक्षर लोक से मुक्त होकर जाते हैं। एकान्त स्थान पर रखे जाते हैं। वे दोनों क्षेत्रों में जन्म लेते हैं। (वचन से उत्पन्न होने वाले तथा स्त्री-पुरूष से जन्म लेने वाले में) स्त्री-पुरूष से उत्पत्ति की औसत अधिक होती है। यह औसत 10-90 होती है। यह 10ः वचन से उत्पत्ति, 90ः विवाह रीति से उत्पत्ति होती है।
सत्यलोक में स्त्री तथा नर के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान होता है।
मीनी सतलोक, मानसरोवर पहले हैं। वहाँ दोनों के शरीर का प्रकाश चार सूर्यों के समान होता है। फिर आगे जाते हैं। जब परब्रह्म के लोक में बने अष्ट कमल के पास पहुँचते हैं तो हंस तथा हंसनी यानि नर-नारी के शरीर का प्रकाश 12 सूर्यों के प्रकाश के समान हो जाता है। फिर सत्यलोक में बनी भंवर गुफा में प्रत्येक के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के समान हो जाता है।

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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25/10/2021
25/10/2021
25/10/2021
24/10/2021
23/10/2021


Prithvi Lok is a prisoner food. Where Jyoti Niranjan, the lord of 21 universes, creates Kaal/Brahm in 84 lakh yonis to make the souls unhappy.
Whereas Satlok is the Lok of Parameshwara KavirDev, who is the immortal immortal and imperishable world. Where there is no suffering of 84 lakh yonis.

04/10/2021

*★मनुष्य जीवन पाकर भी भक्ति नहीं किए तो जीवन व्यर्थ है★*

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