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Dudawas दुदावास

गांँव के चौपालों पर जब लोग आते हैअपने अपने दिल की बात सब सुनाते हैरिमझिम बारिश की फुहार मन को भाता हैबागों में डाले झूले...
13/01/2025

गांँव के चौपालों पर जब लोग आते है
अपने अपने दिल की बात सब सुनाते है
रिमझिम बारिश की फुहार मन को भाता है
बागों में डाले झूले भी सब के मन को लुभाता है

बीता बचपन मेरा जिस गांँव में मन वहीं बसता है
सभी लोगों के बीच वहांँ अपनापन झलकता है
गांँव की झोपड़ी में जो सुकून मिलता है
शहर के घरों में पैसा कमाने का जुनून दिखता है

गांँव में सब के घर कच्चे पर दिल के सभी सच्चे है
जीवन बीता जो गांँव में वो दिन ही बहुत अच्छे थे
गांँव की हरियाली, मिट्टी की खुशबू को दिल तरसता है
याद कर बीते दिनों को हर पल आंँखों से नीर बरसता है

वो गांँव का पोखड़, तालाब किनारे सांझ को घूमना
हटियाँ लगने का इंतजार कर हटियाँ पर जाकर चाट खाना
कच्ची सड़को पर पानी बहना काग़ज़ की नाव का उन पर तैरना
जाड़ों के मौसम में घर के द्वार पर बैठ आग का तापना

बड़े बुजुर्गों से हर दिन किस्से कहानियों का सुनना
बारिश में भीग कर धूल मिट्टी में ही खेलते रहना
गांँव की गलियों में ही आज भी बसता मेरा मन है
शहर में आज सभी ख़ुश है ये तो केवल एक भ्रम है

खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म...
12/01/2025

खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!!

“और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”

नन्हें के आने की “खबर”
“माँ” की तबियत का दर्द
और पैसे भेजने का “अनुनय”
“फसलों” के खराब होने की वजह...!!

कितना कुछ सिमट जाता था एक
“नीले से कागज में”...

जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती
और “अकेले” में आंखो से आंसू बहाती !

“माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी
बच्चों का भविष्य थी और
गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां”

“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा
देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!!

अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौडता हैं
और अक्सर ही दिल तोड़ता है
“मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो
सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता है...
सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में

“मकान” सिमट गए फ्लैटों में
जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में
“चूल्हे” सिमट गए गैसों में
और इंसान सिमट गए पैसों में

कमाई कितनी भी क्यों न हो,खुशियां तो अपनों के छाँव में ही है ।शहर तो सिर्फ नाम का शहर हैं,सुकून तो अपने गांव में ही है ।।
30/12/2024

कमाई कितनी भी क्यों न हो,
खुशियां तो अपनों के छाँव में ही है ।
शहर तो सिर्फ नाम का शहर हैं,
सुकून तो अपने गांव में ही है ।।

07/09/2024

*कहां आनंद है शहरों में गांव में अपनों के संग मस्ती में लिन हो जाओगे जिंदगी में यह पल कभी कभार देखने को मिलते हैं अभी गांव में कुछ अलग ही मिजाज है मस्ती का माहौल है*
*यह जो छोटे-छोटे कार्यक्रम होते हैं इससे गांव में बहुत ही अच्छा माहौल रौनक आ जाती है गांव में भाईचारा कायम बना रहे बहुत ही शानदार प्रदर्शन*

नोखा के लिए सभी साथियों
04/11/2023

नोखा के लिए सभी साथियों

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27/10/2023

#दिनेश_सारण_ras_स्वागत_समारोह

 #दुदावास
20/09/2023

#दुदावास

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