19/02/2024
एक मुरीद (शिष्य) का सबसे सच्चा रिश्ता अपने पीर (गुरु) से होता है।।दुनिया के रिश्ते नातों में पीर की याद ही मुरीद के दिल की बंजर भूमि को ज़िंदा रखती है।
जैसे माँ कितनी भी दूर हो ,चाहे बात भी न करे लेकिन माँ की याद बनी रहती है ऐसे ही मुर्शिद भी आत्मिक तौर से माँ ही होता है।
मुरशिद के होने से यह संसार एक खेल का मैदान बन जाता है,there is no more struggle in life.. Everything becomes play..
जैसे छोटा बच्चा हो ,उसकी माँ सामने हो तो वह खेलता रहता है, वह जानता है उसकी माँ सामने बैठी है ,उसे कुछ नही होगा। ऐसे ही मुर्शिद के होने से एक मुरीद के मन मे भरोसा होता है कि मेरा पीर है , मैं इस संसार मे खेल रहा हूं , मुझे कुछ नही होगा।
दुनिया जहाँ के सारे प्रेम गीत असल मे सिर्फ और सिर्फ मुरशिद और शिष्य के प्रेम की कहनियां है ।
धन्य हैं वो लोग जो गुरु शिष्य की महान परंपरा से जुड़े हैं । जो भी गुरु शिष्य परम्परा से जुड़े हैं , उन सब को मेरे अनेको प्रणाम क्यों कि उन्होंने ऐसा कुछ छू लिया जो एक आम आदमी के बस की बात नहीं।
- माँ मोनिका जी