13/09/2025
मैं चाहकर भी खुश नहीं रह पा रहा...
जैसे मेरी रूह हर दिन किसी अंधेरे में खो रही हो।
लोग मेरी हँसी को देखकर कहते हैं, "सब ठीक है," पर कोई नहीं जानता कि मेरे अंदर की तन्हाई मुझसे भी डर रही है।
ज़िंदगी मुझसे सिर्फ ये सवाल पूछती है कितनी चोट सह सकता है ये दिल, कितनी बर्बादी झेल सकता है ये इंसान।
मैं हंसता हूं, बोलता हूं, जीता हूं... लेकिन अंदर से हर पल मैं खुद को खोता जा रहा हूं।
मेरी ख्वाहिशें अधूरी, मेरे सपने टूटे, और मेरे रिश्ते... सिर्फ यादों में जिंदा हैं।
शायद यही मेरी तक़दीर है सांसें चलती रहें, पर दिल कभी सच में खुश न हो पाए।
कभी लगता है, अगर ये दर्द चुपचाप मर जाए, तो शायद मैं भी जीना सीख जाउं
हँसते हुए भी जब अंदर हर रोज़ खुद से जुदा हो जाओ... यही वो सन्नाटा है, जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है।